Monday, 18 June 2018

सत्ता पर घमंड चढ़ा तो बर्बाद हुई आबादी ------ चंद्रशेखर जोशी


Chandrashekhar Joshi
18-06-2018 
सत्ता पर घमंड चढ़ा तो बर्बाद हुई आबादी
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भारत में एक भयावह घटना हुई। लूटपाट मची, हत्याएं हुईं, भूख से बिलखती जानें गईं। गांवों में जंगल उग आए। बिहार की धरती से मानव आबादी आधी से अधिक उजड़ गई। इसका एक कारण बना मध्यम घर के घमंडी व्यक्ति का सत्ता पाना।
...बात जरा पुरानी है। एक ब्रिटिश शासक था, राबर्ट क्लाइब। इसे इतिहास की कई किताबों में महान भी कहा गया है। अपनी धरती के लिए यह वाकई महान कारनामा कर गया। भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना का श्रेय क्लाइब को ही जाता है। यह सामान्य घर का था पर बेहद लालची, चालबाज, घमंडी, क्रूर और धोखेबाज था।
...किस्सा ऐसा कहते हैं कि क्लाइव 18 वर्ष की उम्र में मद्रास के बंदरगाह में ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क बनकर आया। 1746 में जब मद्रास अंग्रेजों के हाथ से निकल गया तो वह नौकरी छोड़कर भाग गया। बाद में उसे मद्रास के पास ही सेंट डेविड किले में सैनिक की नौकरी मिल गई। इन दिनों फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच भारत को जीतने के लिए युद्ध छिड़े रहते थे। भारत के नवाबों की सल्तनतें कमजोर पड़ रही थीं, मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन हो रहा था। खैर इन सल्तनतों के उजड़ने की लंबी कहानी है। 
...क्लाइव जब सेंट डविड के किले में सैनिक बना तो उसने कुछ छोटी-मोटी लड़ाइयों में हिस्सा लिया। करीब दो साल बाद फ्रांस और इंग्लैंड के बीच एक समझौता हो गया और क्लाइव फिर क्लर्की करने चला गया। कुछ दिनों वह बंगाल रहा और फिर मद्रास चला गया। उस समय कर्नाटक की नवाबी के लिये दो रियासतों में संघर्ष चल रहा था। मुहम्मद अली ने अंग्रेजों से समझौता किया तो पूरे कर्नाटक में लड़ाई छिड़ गई। चंदा साहब के आक्रमण से मुहम्मद अली को बचाने के लिए अंग्रेजों ने क्लाइव के नेतृत्व में एक सेना भेज दी। इस युद्ध में चंदा साहब को फ्रांसीसी मदद कर रहे थे। लंबी लड़ाई के बाद मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बन गया। यहीं से क्लाइव की धाक जम गई। क्लाइब के जयकारे लगने लगे, विलियम पिट ने क्लाइब को स्वर्ग से जन्मा सेनापति बताया। ईस्ट इंडिया कंपनी के संचालक मंडल ने उसे भारी-भरकम तलवार देकर सम्मानित किया। इसके बाद वह इंग्लैंड चला गया। दो साल बाद अंग्रेजों ने उसे फिर लेफ्टिनेंट कर्नल बना कर भारत बुलाया। इससे क्लाइब का घमंड बढ़ता गया। वह पूरे भारत को जीतने की तमन्ना पालने लगा। उसके ठाटबाट बेतरतीब बढ़ गए। राजकोष की बड़ी रकम उसके ऐशोआराम में खर्च होने लगी। अब उसकी नीयत फ्रांसीसियों को खदेड़ कर भारत के राजे-रजवाड़ों की संपत्ति को कब्जाने पर टिक गई।
...ऐसा हुआ कि 9 अप्रैल 1756 को बंगाल और बिहार के सूबेदार की मृत्यु हो गई। सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बन गया। नवाबी हासिल करने के बाद सिराजुद्दौला ने सलामन जंग के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी। वह अपने मकसद में कामयाब रहा पर वापस मुर्शिदाबाद लौट गया। इनदिनों कलकत्ते की आबादी काफी बढ़ चुकी थी, यह शहर व्यापारिक केंद्र बन गया था। अधिकांश व्यापार पर अंग्रेजों का कब्जा था। 5 जून को सिराजुद्दौला की सेना कलकत्ते पर आक्रमण करने चली गई। सिराजुद्दौला की सेना को देख कलकत्ता के गवर्नर, कमांडर और अधिकतर अंग्रेज दुर्ग छोडक़र समुद्री रास्ते से भाग निकले। बहुत कम संघर्ष के बाद कलकत्ता पर नवाब का कब्जा हो गया। ऐसा बताते हैं कि 20 जून को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने नगर पर पूर्ण कब्जा कर लिया। 
...इस दिन एक अजीब घटना हुई, हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। बताते हैं कि जो अंग्रेज शहर में बच गए उन्हें सिराजुद्दौला के सैनिकों ने बंदी बना लिया। 146 अंग्रेज बंदियों को किले की एक छोटी सी कोठरी में कैद कर दिया गया। तीन दिन बाद जब कोठरी खोली गई तो केवल 23 लोग ही जीवित मिले। जीवितों में से एक जॉन जेड हॉलवेल भी था। बाद में हॉलवेल ने ही इस कोठरी की दास्तान बताई और इसे कलकत्ते की काल कोठरी का नाम दिया गया। तब से काल कोठरी अत्याचारों के लिए जानी जाती है। काल कोठरी का किस्सा बताने वाला भरोसे लायक था नहीं। जो भी हो, इस किस्से ने क्लाइब के अत्याचारों के लिए जमीन तैयार कर दी। जब सिराजुद्दौला के आक्रमण की खबर मद्रास पहुंची तो अंग्रेजों ने क्लाइव के नेतृत्व में एक सेना कलकत्ता भेज दी।
...क्लाइव को जब पता चला कि सिराजुद्दौला से उसके आदमी असंतुष्ट हैं तो वह षड्यंत्र रचने लगा। उसने सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर, साहूकार जगत सेठ, मानिक चन्द्र, व्यापारी राय दुर्लभ तथा अमीन चन्द्र के साथ एक गुप्त समझौता किया। मीरजाफर को कई लालच दिए गए और प्लासी की लड़ाई में मीरजाफर अपनी फौज से गद्दारी कर गया। इस षड्यंत्र से अंग्रेजों ने प्लासी के युद्ध में जीत हासिल कर ली। 
...घमंडी क्लाइब की इस जीत ने बंगाल और बिहार का ही नहीं, पूरे भारत का भाग्यचक्र बदल दिया। क्लाइब के दिमाग आसमान चढ़ गए। देश में दौलत की छीना-झपटी मची। घूसखोरी चली और भारीभरकम नजराने वसूले गए। बेईमानी और लूटमार व्यापार के बराबर का धंधा बन गया। किसानों पर कई तरह के कर लगा दिए। अफसर बेरहमी से कर वसूलते और जो न दे सके उसे भयावह यातना देकर धरती से विदा कर देते।
...इसका परिणाम यह हुआ कि 1770 में बंगाल और बिहार में भयानक अकाल पड़ गया। भूख से तड़प कर मरने वालों की कोई गितनी न रही। खाल पर लिपटी हड्डियों को श्मशान तक पहुंचाने वाला भी कोई न बचा। खेत बंजर पड़ गए, मवेशी चारे के बिना मर गए। भूख और यातनाओं से बिहार की एक तिहाई आबादी खत्म हो गई। उपजाऊ खेत और मकान जंगल ने ढक दिए। इसका खयाल करना दुखदाई है, लेकिन सच है। सत्ताखोरों का मन तब भी न भरा। ईस्ट इंडिया कंपनी और सरकार अर्द्धजीवित मानव कंकालों से मालगुजारी वसूल करती रही। अधमरे लोगों पर कर और बढ़ा दिए गए, जोर-जबर्दस्ती वसूली चलती रही। बिहार के करीब एक दर्जन गांवों से छह दशक बाद जंगल हटे।
...क्लाइब के अत्याचार यहीं नहीं थमे। उस पर सबकुछ जीतने की धुन सवार थी। मैसूर का हैदर अली अंग्रेजों का कट्टर दुश्मन था। उसने अंग्रेजों को कई बार हराया। उसका बेटा टीपू सुल्तान भी अंग्रेजों से लड़ता रहा। मैसूर के दो युद्धों में कई साल बीते, मानवता बिलखती रही। क्लाइब के षड्यंत्र अंग्रेजों के लिए करगर साबित हुए। उन्होंने लालच दिया, युद्ध लड़े, धोखेबाजी की और अंतत: पूरे देश को गुलाम बना लिया।

..इसके राज में क्या-क्या न हुआ, इस घमंडी की याद भी दुखद.
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