Thursday 21 June 2018

‘नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है...’ :डेविड अब्राहम ------ इकबाल रिजवी





आज भी याद आते हैं, ‘नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है...’ गाने वाले जॉन चाचा : 

डेविड अब्राहम और अमोल पालेकर (फिल्म बातों बातों में)

डेविड की जिंदगी में फिल्म ‘बूट पालिश’ (1954) मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने बच्चों से प्यार करने वाले दयालु जॉन चाचा का किरदार निभाया। पर्दे पर उनका गाया गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है…’ बरसों तक रेडियो पर बजता रहा।
खेलों की दुनिया में कोई बड़ा मौका नहीं मिला, वकालत चली नहीं, बस शौक में फिल्मों में अभिनय क्या किया वही उनका कैरियर बन गया। उनका नाम था डेविड। कद तो महज पांच फुट तीन इंच था, लेकिन छोटा कद उन्हें फिल्मों में लंबी पारी खेलने से नहीं रोक पाया।21 जून 1909 को महाराष्ट्र के ठाणे में जन्मे डेविड अब्राहम एक संपन्न यहूदी परिवार से संबंध रखते थे। उनकी परवरिश मुंबई में हुई, जहां उनके पिता रेलवे में इंजीनियर थे। उन्हें कसरत करने का खासा शौक था और घरवालों की ख्वहिश के चलते कानून की पढ़ाई पूरी की, लेकिन इस दौरान उनकी खेलों में रूचि बढ़ती गयी। वे न सिर्फ वेटलिफ्टिंग करने लगे बल्कि कई प्रतियोगिताएं भी जीतीं। कानून की पढ़ाई के बाद डेविड अदालत में बैठने लगे, मगर कई महीने तक कोई केस ही नहीं मिला। उन्होंने नौकरी ढूंढने की भी जीतोड़ कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। खेलों की दुनिया ने उन्हें शोहरत तो जरूर दी लेकिन इतना पैसा नहीं मिला कि खेलों को अपना कैरियर बना पाते।कालेज के दिनों में डेविड इंडियन पीपुल्स थियेटर से जुड़े थे। उसी दौर के एक दोस्त ने उनके मन में फिल्मों के प्रति दिलचस्पी जगायी। डेविड काम की तलाश में बहुत परेशान थे और कुछ पैसे कमाने के लिए वे फिल्मों में काम करने को राजी हो गए। 1937 में फिल्म ‘जम्बो’ में उन्हें छोटा सा रोल मिला। इसमें युवा डेविड को एक बूढ़े प्रोफेसर का किरदार निभाना पड़ा। इसके बाद एक दो और फिल्मों में उन्होंने कुछ छोटे छोटे रोल किए। फिर फिल्म ‘नया संसार’ (1940) में उन्हें अहम रोल मिला और उनकी पहचान एक अभिनेता के रूप में बनी। 1944 में आई फिल्म ‘द्रौपदी’ में शकुनी का किरदार निभा कर डेविड ने अपने अभिनय की नयी रेंज का प्रदर्शन किया।संवाद याद करने, कैमरे का सामना करने और फिल्म यूनिट में लोगों के साथ बात चीत करना डेविड को इतना भाता था कि फिर उन्होंने किसी और दूसरे काम के बारे में सोचा ही नहीं। फिल्मी दुनिया को ही उन्होंने हमेश के लिये अपना परिवार बना लिया। डेविड को जो भी रोल मिलते थे, वे स्वीकर कर लेते थे। इससे उनकी अच्छी आमदनी तो हुई ही साथ ही हर तरह के रोल निभाने का मौका भी मिला। फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास डेविड के बड़े प्रशंसक थे और अपनी कई फिल्मों में उन्हें मौका दिया।डेविड एक चरित्र अभिनेता के रूप मे स्थापित हो चुके थे। तभी उनकी जिंदगी में फिल्म ‘बूट पालिश’ (1954) का अध्याय जुड़ा। इस फिल्म में उन्होंने बच्चों से प्यार करने वाले दयालु जॉन चाचा का किरदार निभाया। पर्दे पर उनका गाया गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है…’ बरसों तक रेडियो पर बजता रहा। इस फिल्म के लिये डेविड को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। यह फिल्म उनके जीवन में मील का पत्थर बन गयी। सालों तक लोग उन्हें जॉन चाचा कह कर बुलाते रहे।

डेविड फिल्मों से जरूर जुड़े, लेकिन खेलों के प्रति उनकी दिलचस्पी कम नहीं हुई। वे महाराष्ट्र वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन के 30 साल तक अध्यक्ष रहे। 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता के जज भी बने। बात चीत में तेज तर्रार डेविड ने खेलों की कमेंट्री भी की और फिल्मी प्रशंसकों से अधिक खेल के प्रशंसकों में लोकप्रिय रहे। उन्हें सरकारी और गैरसरकारी कार्यक्रमों के संचालन का काम भी मिलने लगा। फिल्म फेयर के पहले अवार्ड का संचालन डेविड ने ही किया था।निजी जीवन में भी डेविड का हास्य बोध बहुत जबरदस्त था। डेविड ने सवा सौ से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी चर्चित फिल्मों में हाथी मेरे साथी, बातों बातों में, अभिमान, कालीचरण, गोलमाल, खट्टा मीठा, सत्यकाम और खूबसूरत शामिल हैं। डेविड ने जीवन भर शादी नहीं की। 1979 में डेविड ने इजराइल में बसने का फैसला लिया, इसी सिलसिले में वे अपने रिश्तेदारों के पास टोरंटो गए। 28 दिसंबर 1981 को वहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 2 जनवरी 1982 को डेविड का निधन हो गया।

https://www.navjivanindia.com/people/david-the-unforgotten-hindi-film-actor-who-become-john-chacha

No comments:

Post a Comment

कुछ अनर्गल टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम है.असुविधा के लिए खेद है.