सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी !
पारंपरिक भारतीय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति नूतन हिन्दी सिनेमा की एक बेहद प्रतिभाशाली और भावप्रवण अभिनेत्री रही हैं। परदे पर भारतीय स्त्री की गरिमा, ममता, सहृदयता, विवशता, तकलीफ और संघर्ष को जिस जीवंतता से उन्होंने जिया है, उसे देखना एक दुर्लभ सिनेमाई अनुभव रहा है। वे हिंदी सिनेमा की पहली अभिनेत्री थी जो चेहरे से ही नहीं, बल्कि हाथ-पैर की उंगलियों से भी अभिनय कर सकती थी। अपने दौर में 'मिस इंडिया' रह चुकी नूतन ने कम उम्र में ही अपने फिल्मी सफर की शुरूआत 1950 में अपनी मां और चौथे दशक की अभिनेत्री शोभना समर्थ द्वारा निर्देशित फिल्म 'हमारी बेटी' से की थी, लेकिन उन्हें ख्याति मिली 1955 की फिल्म 'सीमा' से जिसमें बलराज सहनी उनके नायक थे। इस फिल्म में नूतन ने चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में दिन काट रही एक विद्रोहिणी नायिका का सशक्त किरदार निभाया था। नूतन ने सत्तर से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा था,, जिनमें कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - सीमा, हमलोग, आखिरी दाव, मंजिल, पेइंग गेस्ट, दिल्ली का ठग, बारिश, लैला मजनू, छबीली, कन्हैया, सोने की चिड़िया, अनाड़ी, छलिया, दिल ही तो है, खानदान, दिल ने फिर याद किया, रिश्ते नाते, दुल्हन एक रात की, सुजाता, बंदिनी, लाट साहब, यादगार, तेरे घर के सामने, सरस्वतीचंद्र, अनुराग, सौदागर, मिलन, देवी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, साजन की सहेली आदि। 'सुजाता' में अछूत कन्या के किरदार, 'सरस्वतीचंद्र' में नाकाम प्रेमिका और पीड़ित पत्नी के भावपूर्ण अभिनय और 'बंदिनी' में अभिनय की संपूर्णता के लिए वे सदा याद की जाएगी। अस्सी के दशक में नूतन ने 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी कुछ फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं निभाई थी। उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें आधा दर्ज़न 'फिल्मफेयर' पुरस्कार हासिल हुए थे। पुण्यतिथि (21 फरवरी) पर इस विलक्षण अभिनेत्री को श्रधांजलि, उनकी फिल्म 'बंदिनी' के गीत की पंक्तियों के साथ !
मत खेल जल जाएगी
कहती है आग मेरे मन की
मैं बंदिनी पिया की
चिर संगिनी हूँ साजन की
मेरा खींचती है आँचल...
मन मीत तेरी हर पुकार
मेरे साजन हैं उस पार, मैं इस पार
अबकी बार, ले चल पार
ओ रे माझी, ओ रे मांझी !
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