Sunday, 2 December 2018

कर्तव्यनिष्ठों की कब तक हत्याएं होती रहेंगी ? ------ एकता जोशी


एकता जोशी 

अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन करने वाले लोगों की कब तक हत्याएं होती रहेंगी ?

हमारे देश के नागरिकों को भारत के संविधान में सभी प्रकार के अधिकार मिले हुए हैं और इन अधिकारों के साथ साथ उनके कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं लेकिन विडंबना यह है कि बहुत से लोग हैं जो कि अपने अधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन अपने कर्तव्यों को याद तक नहीं करते हैं और दुख इस बात का है कि जो लोग अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाते हैं उन्हें पुरस्कार देना तो दूर की बात है बल्कि उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है।

देश के तकरीबन सभी जागरूक नागरिकों को अच्छी तरह मालूम है कि नरेन्द्र दाभोलकर एक ऐसी शख्सियत थी जो कि अंधविश्वास एवं पाखण्डों के बारे में अपने बौद्धिक एवं तार्किक तरीके से लोगों को समझाते थे एवं इसके लिए बहुत से अन्य लोगों को भी तैयार कर चुके थे बल्कि एक संगठन भी इस काम को अंजाम देने के लिए खड़ा कर चुके थे।
सच कहें तो नरेंद्र दाभोलकर देश के नागरिकों को ज्ञान विज्ञान के द्वारा अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाने का काम कर एक जागरूक व्यक्ति होने के कर्तव्य को भलीभाँति निभा रहे थे लेकिन बड़े दुख की बात है कि 20 अगस्त 2013 को पुणे में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई ।

नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद में उनके साथी गोविंद पानसरे ने उनके काम को रूकने नहीं दिया बल्कि निरंतर जारी रखा, लेकिन बड़े दुख की बात है कि 16 फरवरी 2015 को उनकी भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

नरेंद्र दाभोलकर के राह पर चलने वाले तर्कवादी लेखक एम एम कलबुर्गी ने भी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था बल्कि 77 वर्ष का यह बुजुर्ग अपनी कलम से समाज में जागरूकता पैदा करने में जुटा हुआ था लेकिन अफसोस है कि 30 अगस्त 2015 को इनकी भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी रोहित वेमुला का नाम कौन नहीं जानता है उसका दोष यही था कि वह बहुजन महापुरुषों की विचारधारा की चर्चा अपने साथियों से करता था और इसके लिए हॉस्टल में छोटी छोटी सभा भी करने लगा था जिससे बहुत से शोधकर्ताओं को तथागत बुद्ध, कबीर ,रैदास, ज्योतिराव फुले, बाबा साहेब अंबेडकर एवं कांशीराम जी की बातें भली भांति समझ में आने लगी थी लेकिन दुख इस बात का है कि मनुवादी सरकार के केंद्रीय मंत्री एवं सांसद के दवाब से उन्हें भी 17 जनवरी 2016 को मौत के मुंह में धकेल दिया गया।

विशेष CBI अदालत के जज बी एच लोया के नाम से भी आप सब वाकिब होंगे वे भी तो अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन ही कर रहे थे लेकिन 1 दिसंबर 2014 को उन्हें भी तड़ीपार गुंडे बदमाशों ने सदा के लिए अपने रास्ते से हटा दिया।

पत्रकार गोरी लंकेश भी मीडिया में पत्रकार होने का अपना कर्तव्य ही तो निभा रही थी लेकिन सनातन संस्था नहीं चाहती थी कि वह अंधविश्वास के खिलाफ कलम चलाये इसलिए 5 सितंबर 2017 को उसकी भी गोली मारकर हत्या करवा दी गई।

सबसे बड़ी दुखदाई बात यह है कि अभी तक इनमें से किसी के भी हत्यारे को या तो पकड़ा ही नहीं गया और यदि कोई पकड़ा भी है तो उसे अभी तक आरोपी तक नहीं बनाया गया है।

जज बी एच लोया की मौत का मामला तो कुछ अजीब तरीके का बनता जा रहा है सुनवाई के लिए जिस भी जज को लगाया जाता है वह तड़ीपार गुंडों के डर से अपने आपको इस केस से अलग कर लेता है।

इन घटनाओं से साबित होता है कि अंधविश्वास एवं पाखण्डवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले बहुजन समाज के महापुरुषों की हत्या की जो बातें हम लोग अभी तक सुनते रहे हैं वे बिलकुल 16 आना सही हैं।

अब विचार करने वाली बात यह है कि अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन करने वाले लोगों को कब तक मौत के घाट उतारा जाता रहेगा और कब तक शोषित बहुजन मूलनिवासी समाज को अंधविश्वास एवं पाखण्डों में उलझाकर रखा जायेगा और हम सब कब तक ये सब चुपचाप देखते रहेंगे ?
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