Saturday, 29 December 2018

तीन तलाक बिल से औरत को क्या मिला ? ------ नाइश हसन

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http://epaper.navbharattimes.com/details/6697-81181-2.html




नाइश हसन
(सामाजिक कार्यकर्ता )
मुस्लिम औरतें तीन तलाक के खिलाफ अपने हक की झंडाबरदारी पूरी हिम्मत से करती आईं हैं। उनकी कड़ी मेहनत से ही यह मुद्दा उच्चतम न्यायालय होता हुआ संसद तक बहस में आ पाया। ऐसा लगा कि लंबा इंतजार पूरा हुआ और अब मुसलमान औरतों को इंसाफ मिल जाएगा। सरकार ने मुस्लिम महिला विवाह अधिकारों का संरक्षण विधेयक-2017 का मसौदा भी पेश किया, लेकिन अफसोस कि उसमें महिलाओं के सवाल की पूरी तरह से अनदेखी की गई। बिल के केन्द्र से पहली बार और इस बार भी महिला पूरी तरह से गायब है। इसलिए यह अनदेखी पूरी होशोहवास में की गई मालूम पड़ती है। देश में छिड़ी बहस के दौरान मुस्लिम महिलाओं ने अपने बहुत से सुझाव पेश किए थे जिन्हें बिल में शामिल करना जरूरी नहीं समझा गया, यह चिन्ता की बात है। 

जमीनी तजुरबे बताते हैं कि जब भी आदमी तीन तलाक देता है वह औरत को फौरन घर से बेदखल कर देता है। सुझाव यह था कि पति की गैरमौजूदगी में पति के परिवार का कोई भी रिश्तेदार महिला को घर से बेदखल न कर सके इसका प्रावधान भी दर्ज हो, साथ ही जो पति अपनी पत्नी और बच्चों को बिना तलाक दिए, बिना उनका खर्च उठाए छोड़ कर गायब रहते हैं उन्हें भी बिल की गिरफ्त में लाया जाए, उसे भी शामिल नहीं किया गया। पति के जेल जाने के दौरान पत्नी और बच्चों का खर्च कौन उठाएगा इसकी भी गुंजाइश बिल में पेश नहीं की गई। इन प्रावधानों को जोड़े बिना यह बिल औरत को किसी प्रकार का लाभ नहीं पहुंचा पाएगा। औरत पर तिहरा बोझ बढ़ेगा, पति अपनी जमानत के लिए वकील के चक्कर लगाएगा और औरत भरण पोषण के लिए दर-दर भटकेगी। तीन साल की सजा भी अधिक है। यह भी परिवार को बचाने नहीं बरबाद करने के लिए काफी है। इन सब से तो औरत फिर हाशिए पर ढकेली जा रही है उसे कुछ हासिल होता नजर नहीं दिख रहा है। सवाल यह है कि इस बिल से औरत को क्या मिला/ मौलवियों और राजनीतिक दलों से इतर महिलाओं के सवाल को सुना जाना बेहद जरूरी है। 

ऐसा मालूम पड़ता है कि यह बिल पुनः जल्दबाजी में लाकर वोटों की गोलबन्दी और फासिस्ट जातिवादी ताकतों को मजबूत करने का एक प्रयास है । बिल पास होने पर लोकसभा में जयश्रीराम के नारे लगाना इसके राजनीतिक लाभ लेने का संकेत दे रहे हैं, उन्हें औरत की व्यथा से क्या लेना देना। अब भी गुंजाइश बाकी है इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 
(ये लेखक के निजी विचार हैं)


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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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