Monday, 27 January 2020

नागरिक कर्तव्य का दायित्व निर्वहन ------ वीरेंद्र यादव







Virendra Yadav 
26-01-2020 
आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर लखनऊ के 'शाहीनबाग ' ऐतिहासिक घंटाघर पार्क में अभूतपूर्व जनसैलाब था। घंटाघर की चारों दिशाओं में तिरंगे ही तिरंगे, हवा में गूंजते नारे और आजादी के तराने। आंचल सचमुच परचम बन गए थे, जिनके बुर्के अभी नहीं उतर पाए हैं, उन्होंने भी नकाब उतार दी थी। कल गिरफ्तार हुई पूजा शुक्ला की रिहाई की मांग को लेकर आज कुछ नए नारे इस मुहिम में अब शामिल हो गए थे। लेकिन आज इस अपार जनसमूह को देखकर ऐसा लगा कि यह नई सिविल सोसाइटी है, जिसकी पहचान उन सौ पचास लोगों तक सीमित नहीं है, जो इस शहर के जलसा, जुलूस और सभाओं के जाने पहचाने चेहरे हैं। यह अवाम का नया अवतार है जो आजादी के आंदोलन की याद दिलाते हुए नागरिक अधिकारों की नई इबारत लिख रहा है।आज इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव मित्र राकेश के साथ इस जनसैलाब के बीच से गुजरते और जायजा लेते हुए हम लोगों ने शिद्दत से य़ह अहसास किया कि यह नया नागरिक समाज अब पुराने नेतृत्त्व का मुखापेक्षी नहीं है। इस नए आंदोलन के साथ युवा नेतृत्त्व का नया सामूहिक चेहरा भी उभर रहा है। स्वीकार करना होगा कि इस मुहिम में दैश की बहुसंख्यक जमात अल्पमत में और अल्पसंख्यक जमात बहुमत में है। लेकिन यह पहली बार हुआ है कि अलपसंख्यक की बहुतायत के बावजूद इस मुहिम के नारे और मुहावरे मजहबी न होकर कौमी है। धार्मिक पहचान के नाम पर नमाज है तो हवन और अरदास भी। जेल सदफ गई तो पूजा भी, शोएब गए तो दारापुरी और दीपक भी।यह भी पहली बार है कि इस मुहिम में शामिल होने के लिए इस बार न किसी ने हमें कोई इत्तला दी और न ही कोई संदेश। हम खुद बखुद वहाँ जब तब जाते हैं और अपने नागरिक कर्तव्य का दायित्व निर्वहन कर बकौल राकेश अपनी अंतरात्मा के भार से मुक्त होते हैं। सचमुच यह भारतीय जनतंत्र का नया अवतार है। जो आंचल परचम बने हैं न वे फिर घूंघट बनेंगे और न जिन चेहरों ने नकाब से मुक्ति पाई है, अब न वे फिर पर्दानशीं होंगें। 

आमीन!

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2836872156363465&set=a.165446513506056&type=3


 संकलन-विजय माथुर

***************************************************************************

Saturday, 25 January 2020

वह सहिष्णु समाज वाले भारत को उग्र राष्ट्रवाद से भरा हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं ------ दि इकोनामिस्ट

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 
























 संकलन-विजय माथुर

********************************************************************************
फ़ेसबुक कमेंट्स : 



Friday, 24 January 2020

फ़ीरोज गांधी विदेशी पत्रकार की नजर से ------

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 





    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday, 22 January 2020

हम कागज नही बनाएंगे - हम रजिस्ट्रेशन नही कराएंगे: "सत्याग्रह" ------ मनीष सिंह



Manish Singh
16 अगस्त 1908, जोहान्सबर्ग, जगह हमीदा मस्जिद के सामने का मैदान। भारतीय और एशियन समुदाय की भारी भीड़ गांधी के इशारे का इंतजार कर रही थी। गांधी टेलीग्राम पढ़ रहे थे, जो सरकार की ओर से आया था। लिखा था- काला कानून वापस नही लिया जाएगा।

गांधी ने आंदोलन दोबारा शुरू करने की घोषणा की। उस मैदान में हजारों लोगों ने उस मैदान में अपने  NRC सर्टिफिकेट जला दिए। पूरे दक्षिण अफ्रीका में भयंकर बवंडर खड़ा हो गया। दुनिया सत्याग्रह नाम के नए-नए ईजाद हथियार का इस्तेमाल देख रही थी।
--
दरअसल 1906 में ट्रांसवाल की सरकार ने एक " ट्रांसवाल एशियाटिक ऑर्डिनेंस" जारी किया। हर भारतीय, अरब, चीनी और दूसरे काले एशियन्स को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। रजिस्ट्रार के पास जाकर अपना शारीरिक परीक्षण करवाना होगा, अंगुलियों की छाप देनी होगी। एक सर्टिफीकेट लेना होगा, जो सदा साथ रखना होगा। न होने पर फाइन या जेल हो सकती थी। आबाल- वृद्ध , कोई भी अगर बगैर रजिस्ट्रेशन पेपर्स के मिले, उसकी उंगलियों की छाप मैच न करे, तो सीधे जेल, या डिपोर्ट किया जा सकता था।

पहले से ही रंगभेद झेल रहे एशियन समुदाय को, इस कानून से जीना मुश्किल होने के आसार थे। गांधी जो अब तक समुदाय के जाने पहचाने चेहरे हो चुके थे, आगे आये। जोहान्सबर्ग के एम्पायर थिएटर में सारे समुदायों के लीडर्स को इकट्ठा किया। तीन हजार की भीड़ को संबोधित करते गांधी ने इस कानून को "काला कानून" कहा।

उन्होंने कहा- "हम इस कानून को रिजेक्ट करते हैं। हमे मिलकर तय करना होगा कि हममें से कोई रजिस्ट्रेशन न कराए। मैं सबसे पहले अपना वचन देता हूँ। मैं अपना रजिस्ट्रेशन नही कराऊंगा"

एक बूढ़ा मुसलमान उठा। वो सेठ हबीब था। सबसे पहला था वो, जिसने गांधी के सामने शपथ उठाई- " हम कागज नहीं बनाएंगे"...।

ये गूंजता हुआ नारा हो गया। कानून का उल्लंघन, जेल, मारपीट, अपमान और दमन को सहना, लेकिन अड़े रहना, पीछे नही हटना। मजबूती से थमे रहना, अपना आग्रह मुस्कान के साथ बनाये रखना। हम कागज नही बनाएंगे। हम रजिस्ट्रेशन नही कराएंगे।

आंदोलन के इन तरीकों को शुरू में उन्होंने "पैसिव रेजिस्टेंस" कहा। मगर नाम कुछ जंच नही रहा था। उन्होंने साथियों से नाम सुझाने को कहा। एक साथी मगनलाल थे- उन्होंने कहा, " सदाग्रह!!

गांधी ने सुना , सोचा.. फिर एकाएक बोले - " सत्य के प्रति निर्भीक आग्रह.. यही !

"सत्याग्रह"

यह गांधी की दिशा बन गयी। गांधी का हथियार बन गया। वक्त वो था, आज भी वही है। सवा सौ साल से दुनिया का कोई हिस्सा हो, वक्त हो, देश हो..

सत्याग्रह को हर आततायी ख़ौफ़ से देखता है।


https://www.facebook.com/manish.janmitram/posts/2698406466910320

***************************************************************************
फ़ेसबुक कमेंट्स ;

रामचंद्र गुहा को डर का अहसास कराया जा चुका है...... कौशल सिंह / सर्वेश रंजन सिंह

Sarvesh Rajan Singh
10 mins

रामचंद्र गुहा को खोने को बहुत कुछ है.. लेकिन पाने को कुछ भी नहीं क्योकि जो पाना था वो पा लिया अब उसे खोये न, इसका डर का अहसास कराया जा चुका है......
*************************************************
गाँधी नेहरू पटेल का अनुशरण करना आसान नहीं है . ये वो लोग है जिनको खोने का कोई डर नहीं था क्योकि जो पाए थे उसे वो खो दिए थे. और जो पाना था वो स्वप्न में था इसी ने उनको महान बनाया. ये लोग जब जब अंग्रेज़ो की सत्ता के द्वारा प्रताड़ित हुवे दुबारा मज़बूत और अति उत्साह के साथ आये क्योकि खोने को कुछ था नहीं और हर प्रताड़ना उन्हें उनके स्वप्न को नज़दीक ला देता की सत्ता अब डर रही है. उन लोगो का स्वप्न था भारत की आज़ादी। और ये कब प्राप्त होगी ये नही मालूम था।

रामचंद्र गुहा और रतन टाटा ने जो बयान दिया है उसके मेरे नज़र में दो मायने है. मुझे रतन टाटा के बयान से कोई दुःख नहीं हुवा है क्योकि बिजनेसमैन को सत्ता के साथ हमेशा खड़ा देखा है और न हो तो सत्ता उसे बर्बाद कर सकती है. अनिल अम्बानी इसके सबसे बेहतरीन उदहारण है. मुझे साफ़ साफ़ याद है की कैसे मायावती ने अनिल अम्बानी को बर्बाद कर दिया, अनिल अम्बानी को मुलायम सरकार में बहुत से ठेके मिले और इसके लिए अनिल अम्बानी ने एक समय भारत का सबसे बड़ा IPO लेकर आये थे , ऊर्जा के क्षेत्र में, उम्मीद उत्तर प्रदेश से थी. लेकिन सरकार बदली और मायावती ने उस सारे प्रोजेक्ट को थप किया और वही से अनिल अम्बानी की बर्बादी शुरू हुवी.

कुछ बिजनेसमैन व्यापारी नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए आते है . और इनकी सोच केवल कुछ समय के लिए ही होता है और उस समय में जितना दोहन किया जाय उतना कर लेते है . वो केवल एक ही सरकार के पक्ष में होते है. जैसे रामदेव , इनका कोई लॉन्ग टर्म विज़न नहीं था . जनता को स्वदेशी के नाम पर चुना लगाना था, राष्ट्रवाद के नाम पर गाय का अमृत दूध से महँगी गाय का मूत्र बेचना था और ये तभी संभव है जब राष्ट्रवादी सरकार सामने हो और उसकी मदद से अपनी मंशा को प्राप्त किया जाय. ऐसे लोग एक ही सरकार के चट्टे बट्टे होते है. और ये पूरी तैयारी के साथ होते है की दूसरी सत्ता आएगी तो इनको बंद करेगी तो क्यों न अपनी पसंद की सत्ता में ज्यादा से ज्यादा फायदा लेकर भागा जाय.

लेकिन उद्योगपति ऐसे नहीं होते . उन्हें लोग टर्म विज़न के साथ काम करना होता है . और उस लॉन्ग टर्म में कई सरकार आती है तो उन्हें खुद को सरकारों के साथ बैलेंस होकर चलना होता है . रतन टाटा का ब्यान इसी श्रेणी में आता है . अंदर से उन्हें भी पता है की ये देश आर्थिक, सामाजिक,वैज्ञानिक और वैचारिक रूप से बर्बाद हो रहा है और इसका कारण मोदी और शाह और संघ का विज़न है लेकिन सायरस मिस्त्री के कारण उन्हें ये बयान देना पड़ रहा है . जिसके लिए माफ़ है क्योकि रतन टाटा का देश के लिए योगदान सराहनीय है.

लेकिन रामचंद्र गुहा आप तो सत्ता की पहली प्रताड़ना में ही जमीं पर आ गए . और ऐसे लोग ही फासिस्ट सत्ता को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है की सबको अपनी आभा में लाया जा सकता है . चाहे किसी भी निति को अपनाना पड़े . साम दाम दंड भेद निति ही क्यों न हो.

CAA विरोध में जेल जाने के बाद उनके सुर बदले बदले हुवे है. और केरल में जो बयान दिया वो उनकी उसी वैचारिक पतन की ओर इशारा करता है. वो भूल गए की दुनिया की हर पार्टी पर किसी न किसी परिवार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष छत्रछाया रहती है . BJP संघ परिवार के हिस्सा है. दुनिया में क्रान्ति या बदलाव पार्टी संगठन या संघ नहीं लाती बल्कि दुनिया में जितने भी बदलाव हुवे है उसके पीछे किसी व्यक्ति के विचारो से जुड़े हुवे लोगो के कारण हुवा है. NAZI का अस्तित्व हिटलर से है . ROMAN EMPIRE का अस्तित्व जूलियस सीजर से था. जीसस , बुद्ध , नानक ये सारे व्यक्ति थे न की संगठन. रूस की क्रांति के पीछे लेनिन था.

अमेरिका में BUSH FAMILY सबसे बड़ी राजनितिक परिवार है . आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा अमेरिका के राज्यों में BUSH FAMILY का ही शासन है.

और रामचंद्र गुहा जी कांग्रेस की विरासत नेहरू तक थी . नेहरू के बाद कांग्रेस का कोई राजवंश पुत्र प्रधानमंत्री नहीं बना . नेहरू के बाद सत्ता लाल बहादुर शास्त्री को मिली न की उसकी बेटी इंदिरा गाँधी को . और इंदिरा गाँधी को नेहरू वाली कांग्रेस ने निकाल फेका था और इंदिरा ने नयी पार्टी उसी तर्ज पर बनायीं जैसे NCP या TMC है. इस पार्टी ने इंदिरा के छोड़कर केवल राजीव को गद्दी विरासत में दिया वो भी इसीलिए क्योकि इंदिरा की हत्या हो गयी थी. इंदिरा के जीवित रहते तो राजीव भी राजनीती से दूर ही रहे. उनका कोई राजनितिक वजूद नहीं था. जनता भावनात्मक होती है . अखिलेश हो या उद्धव ठाकरे या जगनमोहन रेड्डी ये सारे लोगो को भावनात्मक रूप से सत्ता विरासत में लिया है . लेकिन उसके बाद इस पार्टी ने नरसिंहराव और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री दिए जो गाँधी परिवार से हटकर था. अब ये न कह देना की मनमोहन तो सोनिया का पपेट था . तो मनमोहन पार्टी नहीं थे जिन्हें जनता के बीच में जाकर वोट माँगना था. याद रखिये प्रधानमंत्री पद देश से पहले जीती हुवी पार्टी के मैनिफैस्टो को पूरा करने के लिए होता है. क्योकि संसदीय लोकतंत्र में जनता नेता नहीं पार्टी को चुनती है .तो पार्टी अध्यक्ष को कण्ट्रोल करना होता है . देखा नहीं आज मोदी प्रधानमंत्री है . अमित शाह गृहमंत्री होकर भी BJP का अध्यक्ष पद त्याग नहीं रहा क्योकि पार्टी हाथ से निकल न जाय.

इस देश के लोग बलात्कारी को लोकसभा में चुनते है . वो दिक्कत आपको नहीं थी . दिल्ली में ही लोगो ने जिन 7 MP को चुना है उनका क्या राजनितिक क्रेडेंशियल है . हंस राज हंस को ही ले लीजिये . इस देश ने आतंकी प्रज्ञा ठाकुर को चुना है. ये सब आपको विनाशकारी नहीं लगा लेकिन केरल से राहुल गाँधी का चुना जाना विनाशकारी है.

फिर भी मैं यकीन के साथ कह रहा हु की आपका बयान जो आपने केरल में दिया है वो एक फासीवादी ताकतों के सामने झुकाव की ओर इंगित करता है. और ये तभी हो सकता है जब आपको खोने को बहुत कुछ है . क्योकि इस सत्ता में जिस तरह से देश की बर्बादी की गाथा हर क्षेत्र में चाहे वो सामजिक ,आर्थिक ,वैज्ञानिक और वैचारिक में हो रही है, लोगो को पाने की कोई उम्मीद नहीं है. और लोग अब जो उनके पास है उसे खोने से बचाने के लिए झुक रहे है .

आपने शायद सबसे ज्यादा ऑस्कर जीती हुवी फिल्म SCHINDLER LIST नहीं देखी. मैं कहता हु देखिये और खुद को SCHINDLER के स्थान पर पाते है तो आपको ये देश माफ़ कर देगा . क्योकि SCHINDLER ने अपने अंतिम भाषण में यही कहा था की वो यहूदियों को हिटलर के कहर से बचा रहे थे लेकिन फिर भी जब SS सेना का अफसर उनके सामने यहूदी बच्चे और महिला को अपने क्रीड़ा के रूप में गोली मारकर हत्या कर देता तो वो भी उस SHOT पर ताली बजाते क्योकि ऐसा न करने पर और उनके मौत पर दुःख जताने पर आपको हिटलर विरोधी घोसित किया जा सकता था. लेकिन वो अकेले में उनकी पीड़ा में कराहते थे.

समझे रामचंद्र गुहा, गाँधी, नेहरू उस आज़ादी के लिए लड़ रहे थे जो केवल उनके स्वप्न में था . क्या उन्हें पता था की दुनिया पर राज करने वाली सत्ता 1947 में आज़ाद कर देगी भारत को . लेकिन वो प्रताड़ित होते और जेल जाते और निकलकर अपने उस स्वप्न के लिए फिर उससे दुगुनी उत्साह से खड़े हो जाते.
कौशल सिंह ...

https://www.facebook.com/sarvesh.rajansingh/posts/1252761328448460

Tuesday, 21 January 2020

बहनों की बहादुरी को सलाम ------ अरविन्द राज स्वरूप

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
 अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।

1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की  संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।






Arvind Raj Swarup Cpi
लखनऊ 20 जनवरी 2020.

घंटाघर

आज शाम मुझको लखनऊ के घंटाघर जाने का मौका मिला । 
लगभग 5:45 बजे हुए थे ।लगभग दिन ढल चुका था।रात पसर रही थी।
मैं गिन नहीं सकता था पर हजारों महिलाएं वहां पर थी ।बुर्का नशीन भी और बिना बुर्के की भी।
मैंने पहली बार घंटाघर देखा उसके अगल-बगल भी लैंडस्केप को देखा घंटाघर बहुत पुराना लगता है ।अंग्रेजों के जमाने से भी पहले नवाब नसरुद्दीन हैदर नें बनाया था।घंटाघर के चारों तरफ पक्के पत्थर लगा दिए गए हैं जिससे एक चबूतरा सा बन गया है ।
साफ सुथरा।
उसके सामने की ओर मेन सड़क है और उसके पीछे बहुत बड़ा पार्क ।
वास्तव में बेहद खूबसूरत जगह है।
इतनी सारी महिलाओं को मैंने एक साथ कभी नहीं देखा।
मेरे लिए बात बड़ी तसल्ली की थी।
वहां पर महिलाएं सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरुद्ध धरना दे रही हैं।
मैंने वहां लोगों से पूछा क्या महिलाएं बिना किसी टेंट की छाया के धरना देती हैं ?तो लोगों ने बताया , ऐसा ही है ।
इतनी अधिक सर्दी पड़ रही है और सर पर टेंट लगाने को जगह नहीं है।
बाबा रे।
पर महिलाएं बैठी हुई है।
बहनों की बहादुरी को सलाम।
जहां हजारों की संख्या में महिलाएं धरना दे रही हैं उस स्थल पर एक चौकोर रस्सी खींच दी गई है । मेन सड़क की ओर उस रस्सी पर कुछ स्टिकर्स लगे हैं और उन पर लिखा है इस रस्सी के अंदर सिर्फ लेडीज़ या मीडिया कर्मी ही आ सकते हैं ।उस रस्सी के बाहर हजारों पुरुष भी है जो अपनी माताओं ,बहनों ,बीवियों का समर्थन करने पहुंचे हुए हैं ।
हजारों की तादाद में।
वहां मैंने देखा , दूर से , लखनऊ यूनिवर्सिटी की रिटायर्ड प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा भी मीडिया कर्मियों को कोई इंटरव्यू दे रही है। मैंने अपने साथ गए वहीं के एक निवासी साथी से कहा कि वह फोटो खींचे पर, उनके फोन की उस समय बैटरी चली गई थी और मेरा फोन मेरे पास नहीं था। जिसको वहां जाने की जल्दी में मैं चार्ज करने के लिए अपने निवास पर छोड़ गया था । 
इसलिए उस समय की फोटो मैं ले नहीं पाया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहे जो भी बयान दें।वह प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री। उनका कोई मतलब नहीं है।
साधारण महिलाओं और उनके मन में, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जो कानून लागू किए हैं उसका तिरस्कार है। अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।
1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई योगदान नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया।
तत्कालीन हिंदुत्ववादी नें डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के समक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव रखा था परंतु अंबेडकर जी नें और देश की संविधान सभा ने उस प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं किया।
अब देश की मोदी सरकार , बैक डोर से अपने पाश्विक बहुमत के सहारे देश के संविधान की मूल आत्मा को बदलना चाहती है और उसनें देश की नागरिकता को धर्म सापेक्ष करने की हिमाकत की है। देश की 130 करोड़ जनता उसको कभी स्वीकार नहीं करेगी।
देश के प्रधानमंत्री , देश के गृहमंत्री अथवा उनकी पूरी कैबिनेट तथा संपूर्ण भारतीय जनता पार्टी चाहे सीएए का विरोध करने वालों को कितना भी बुरा भला कहें या , उनको गालियां दे और या अपने झूठ का प्रचार झूठे मीडिया चैनलों से करवाएं।
देश में न्याय ही चलेगा।
यह देश सबका है ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ।
जो भी धर्म के आधार पर देश को बांटने की चेष्टा करेगा उसका हाल वही होगा जो हिटलर और मुसोलिनी का हुआ था
देश से कभी भी जनवाद खत्म नहीं किया जा सकता ।
देश का नौजवान और देश की महिलाएं और देश की आम जनता आज मोदी सरकार की नीतियों के विरुद्ध उठ खड़ी हुई है और इसका नतीजा विभिन्न असेंबली में हुए चुनाव में भी दिखाई दे रहा है।
वह दिन दूर नहीं है जब दिल्ली के चुनावों में भी मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह हार होने वाली है । चाहे वह 5000 रैली या 100000 रेलिया करें।रैलियों में अपनी पूरी कैबिनेट को भी लगा दे । 
दिल्ली में मोदी की सरकार भारतीय जनता पार्टी और इनकी नीतियां हारने वाली है।
मैं दूर से तिरंगे के आशिर्वाद के साथ आज़ादी का नारा सुन रहा था।

घंटाघर की बहनों संघर्ष जारी रहे।

आपको सलाम।

https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2546010418950414

 संकलन-विजय माथुर

**************************************************************
फ़ेसबुक कमेंट्स : 

Monday, 20 January 2020

बेटों का मन ------ डॉ मोनिका शर्मा

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 






 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश