Virendra Yadav
26-01-2020
आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर लखनऊ के 'शाहीनबाग ' ऐतिहासिक घंटाघर पार्क में अभूतपूर्व जनसैलाब था। घंटाघर की चारों दिशाओं में तिरंगे ही तिरंगे, हवा में गूंजते नारे और आजादी के तराने। आंचल सचमुच परचम बन गए थे, जिनके बुर्के अभी नहीं उतर पाए हैं, उन्होंने भी नकाब उतार दी थी। कल गिरफ्तार हुई पूजा शुक्ला की रिहाई की मांग को लेकर आज कुछ नए नारे इस मुहिम में अब शामिल हो गए थे। लेकिन आज इस अपार जनसमूह को देखकर ऐसा लगा कि यह नई सिविल सोसाइटी है, जिसकी पहचान उन सौ पचास लोगों तक सीमित नहीं है, जो इस शहर के जलसा, जुलूस और सभाओं के जाने पहचाने चेहरे हैं। यह अवाम का नया अवतार है जो आजादी के आंदोलन की याद दिलाते हुए नागरिक अधिकारों की नई इबारत लिख रहा है।आज इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव मित्र राकेश के साथ इस जनसैलाब के बीच से गुजरते और जायजा लेते हुए हम लोगों ने शिद्दत से य़ह अहसास किया कि यह नया नागरिक समाज अब पुराने नेतृत्त्व का मुखापेक्षी नहीं है। इस नए आंदोलन के साथ युवा नेतृत्त्व का नया सामूहिक चेहरा भी उभर रहा है। स्वीकार करना होगा कि इस मुहिम में दैश की बहुसंख्यक जमात अल्पमत में और अल्पसंख्यक जमात बहुमत में है। लेकिन यह पहली बार हुआ है कि अलपसंख्यक की बहुतायत के बावजूद इस मुहिम के नारे और मुहावरे मजहबी न होकर कौमी है। धार्मिक पहचान के नाम पर नमाज है तो हवन और अरदास भी। जेल सदफ गई तो पूजा भी, शोएब गए तो दारापुरी और दीपक भी।यह भी पहली बार है कि इस मुहिम में शामिल होने के लिए इस बार न किसी ने हमें कोई इत्तला दी और न ही कोई संदेश। हम खुद बखुद वहाँ जब तब जाते हैं और अपने नागरिक कर्तव्य का दायित्व निर्वहन कर बकौल राकेश अपनी अंतरात्मा के भार से मुक्त होते हैं। सचमुच यह भारतीय जनतंत्र का नया अवतार है। जो आंचल परचम बने हैं न वे फिर घूंघट बनेंगे और न जिन चेहरों ने नकाब से मुक्ति पाई है, अब न वे फिर पर्दानशीं होंगें। आमीन!
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संकलन-विजय माथुर
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