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Monday, 27 January 2020

नागरिक कर्तव्य का दायित्व निर्वहन ------ वीरेंद्र यादव







Virendra Yadav 
26-01-2020 
आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर लखनऊ के 'शाहीनबाग ' ऐतिहासिक घंटाघर पार्क में अभूतपूर्व जनसैलाब था। घंटाघर की चारों दिशाओं में तिरंगे ही तिरंगे, हवा में गूंजते नारे और आजादी के तराने। आंचल सचमुच परचम बन गए थे, जिनके बुर्के अभी नहीं उतर पाए हैं, उन्होंने भी नकाब उतार दी थी। कल गिरफ्तार हुई पूजा शुक्ला की रिहाई की मांग को लेकर आज कुछ नए नारे इस मुहिम में अब शामिल हो गए थे। लेकिन आज इस अपार जनसमूह को देखकर ऐसा लगा कि यह नई सिविल सोसाइटी है, जिसकी पहचान उन सौ पचास लोगों तक सीमित नहीं है, जो इस शहर के जलसा, जुलूस और सभाओं के जाने पहचाने चेहरे हैं। यह अवाम का नया अवतार है जो आजादी के आंदोलन की याद दिलाते हुए नागरिक अधिकारों की नई इबारत लिख रहा है।आज इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव मित्र राकेश के साथ इस जनसैलाब के बीच से गुजरते और जायजा लेते हुए हम लोगों ने शिद्दत से य़ह अहसास किया कि यह नया नागरिक समाज अब पुराने नेतृत्त्व का मुखापेक्षी नहीं है। इस नए आंदोलन के साथ युवा नेतृत्त्व का नया सामूहिक चेहरा भी उभर रहा है। स्वीकार करना होगा कि इस मुहिम में दैश की बहुसंख्यक जमात अल्पमत में और अल्पसंख्यक जमात बहुमत में है। लेकिन यह पहली बार हुआ है कि अलपसंख्यक की बहुतायत के बावजूद इस मुहिम के नारे और मुहावरे मजहबी न होकर कौमी है। धार्मिक पहचान के नाम पर नमाज है तो हवन और अरदास भी। जेल सदफ गई तो पूजा भी, शोएब गए तो दारापुरी और दीपक भी।यह भी पहली बार है कि इस मुहिम में शामिल होने के लिए इस बार न किसी ने हमें कोई इत्तला दी और न ही कोई संदेश। हम खुद बखुद वहाँ जब तब जाते हैं और अपने नागरिक कर्तव्य का दायित्व निर्वहन कर बकौल राकेश अपनी अंतरात्मा के भार से मुक्त होते हैं। सचमुच यह भारतीय जनतंत्र का नया अवतार है। जो आंचल परचम बने हैं न वे फिर घूंघट बनेंगे और न जिन चेहरों ने नकाब से मुक्ति पाई है, अब न वे फिर पर्दानशीं होंगें। 

आमीन!

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 संकलन-विजय माथुर

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Wednesday, 26 June 2019

सन् 75 से भी ज्यादा ख़राब अघोषित आपातकाल की स्थिति है ------ प्रोबीर पुरकायस्थ

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इमरजेंसी यानी आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास के काले दौर के तौर पर याद किया जाता है। 25 जून की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह आपातकाल 26 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक रहा। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और तमाम तरह के नागरिक अधिकारों को कुचल दिया गया था। ये दौर तो बुरा था ही लेकिन तमाम राजनीतिक दल और नागरिक समाज आज लोकतंत्र को लेकर पहले से भी ज़्यादा चिंतित है। कई लोगों का मानना है कि देश में पिछले करीब 5 साल से एक अघोषित आपातकाल की स्थिति है, जो सन् 75 से भी ज्यादा ख़राब है। और इसका पूरी मजबूती से सामना करने की ज़रूरत है।


* इंदिरा गांधी ने निलम्बित लोकतंत्र को सक्रिय करने का विकल्प चुनने का जो फैसला किया, वह आपातकाल थोपने से कहीं बड़ा फैसला था। शायद उसी फैसले के कारण जनता ने दंडित करने के बाद दोबारा उन्हें मौका दिया।
**गलत तरीके से चुनाव जीतकर आने की वजह से इंदिरा गांधी का चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द किया था जिसके बाद की घटना है आपातकाल। सवाल ये है कि गलत तरीके से चुनाव जीतने की कोशिशें क्या बंद हो गयी हैं? उद्योगपतियों से राजनीतिक चंदे को अपने नाम कर लेने की कोशिशें, मीडिया पर कब्जा जमाए रखना, सूचना और तकनीक के दूसरे साधनों का दुरुपयोग, चुनाव जीतने में बड़े पैमाने पर धन का इस्तेमाल, ईवीएम की हैकिंग और ईवीएम की स्वैपिंग को लेकर आशंकाएं जैसी बातें बताती हैं कि गलत तरीके से चुनाव जीतने के हथकंडे बढ़े हैं। इनकी पुष्टि के लिए किसी अदालत का फैसला आना भर बाकी है। अगर ऐसा होता है तो हुक्मरान आपातकाल से कोई अलग प्रतिक्रिया देगा, यह भी देखने की बात होगी।
***उत्तराखण्ड में गलत तरीके से हरीश रावत की सरकार बर्खास्त की गयी, कर्नाटक में गलत तरीके से वीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गयी, गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के बजाए जोड़-तोड़ करने वाली पार्टी को सरकार बनाने का मौका दे दिया गया, मणिपुर में भी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटनाएं घटीं। यह सिलसिला अगर नहीं रुक रहा है तो समझिए कि आपातकाल की जड़ें देश में मजबूत हैं और मजबूत हो रही हैं। 

****संसद भवन में ‘जय़ श्रीराम’ और ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारों का लगना बताता है कि आपातकाल प्रेमी रूप बदलकर न सिर्फ पैदा हो चुके हैं बल्कि खुद को मजबूत कर चुके हैं। मॉब लिंचिंग पर देश की संसद और विधानसभाओं की खामोशी भी यही बात डंके की चोट पर कह रही है। गोरखपुर के बाद मुजफ्फरपुर में बच्चों की लगातार मौत को आपदा मान लेने वाली सोच लोकतांत्रिक नहीं हो सकती। एक ही समय में रांची में प्रधानमंत्री की योग क्रीड़ा और मुजफ्फरपुर में मौत का तांडव बताता है कि देश में लोकतंत्र की संवेदनशीलता सो रही है।
***** बहुत आसान है कि आपातकाल की बरसी पर सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया जाए, उसे लोकतंत्र विरोधी घोषित कर दिया जाए। मगर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2014 से पहले जनता पार्टी की सरकार समेत जितनी भी सरकारें बनीं वह कांग्रेस की कोख से निकली हुई सरकारें थीं। यहां तक कि बीजेपी जिस श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना आदर्श मानती है वह भी कांग्रेस की सरकार में मंत्री रह चुके थे। कहने का अर्थ ये है कि आपातकाल के बीज राजनीति पर वर्चस्व रखने वाली पार्टी में निहित होती है। वह कांग्रेस भी हो सकती है और कोई दूसरी पार्टी भी। 
(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार )
https://janchowk.com/zaruri-khabar/india-emergency-indira-modi-opposition-constitution/4772?#.XRH3RqAWPxU.facebook




  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Saturday, 4 August 2018

किसान बनने की इच्छुक अवंतिका बनीं मिसेज इंडिया

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 3 April 2018

तेरी बातें ही सुनाने आए, दोस्त ही दिल को दुखाने आए ------ सुधीर नारायण

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 18 November 2017

कुँवर नारायण को लखनऊ किन हालात में छोडना पड़ा ? ------ नवीन जोशी

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 8 October 2017

उर्दू भारतीय भाषा और हिन्दी की पूरक है

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उर्दू  भाषा का जन्म भारत में ही हुआ है और यह यहाँ के जीवन में खूब रस - बस चुकी है। लखनऊ में जन्म होने और नौ वर्ष की उम्र व कक्षा चार तक की पढ़ाई वहीं करने के कारण और घर में जो बोल चाल रही उसके कारण मुझे यह फर्क ही नहीं समझ आया कि, हम लोग जो बोलते हैं वह हिन्दी- उर्दू मिश्रित बोली है। इसका पता लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद 'करगिल ' में 1981 में तब चला जब होटल मुगल शेरटन, आगरा से डेपुटेशन पर वहाँ ' होटल हाई लैण्ड्स ' गए थे। एक रोज़ मेनेजर साहब समेत सभी साथी सुबह टहलते - टहलते टी बी हास्पिटल तक पहुँच गए थे। वहाँ के सी एम ओ साहब ने हम लोगों से परिचय जानने के लिहाज से बातचीत की। मुझसे परिचय जानने के बाद उनकी प्रतिक्रिया थी कि, आप तो आगरा के लगते नहीं , आप तो लखनऊ के लगते हैं। मैंने उनसे पूछा कि, डॉ साहब मैं हूँ तो लखनऊ का ही लेकिन आपने कैसे पहचाना ? तो श्रीनगर निवासी उन डॉ साहब का कहना था बाकी सबसे अलग आपकी ज़बान में एक श्रीनगी  है जो केवल लखनऊ में ही पाई जाती है। 
अपनी बचपन से सीखी बोलचाल की भाषा के ही कारण लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद भी लखनवी के रूप में पहचाना गया तो इसका कारण मैनेजर साहब व साथियों की निगाह में कारण मेरे हिन्दी का उर्दू मिश्रित होना था जबकि अन्य की हिन्दी बृज भाषा या पंजाबी मिश्रित थी। अलग से उर्दू लिपि, भाषा या साहित्य न पढ़ने के बावजूद अगर हमारी हिन्दी को उर्दू मिश्रित समझा गया तो मेरे लिए उर्दू अलग भाषा कैसे हो सकती है ? 
अतः नभाटा का उपरोक्त लेख हो या द वायर में नूपुर शर्मा जी के कार्यक्रम हम लोग पसंद के साथ देखते - पढ़ते हैं। प्रस्तुत वीडियो में नूपुर शर्मा जी ने उर्दू भाषा के कलाकार टाम आल्टर   साहब को जो  श्रद्धांजली अर्पित की है उससे काफी कुछ सीखने की प्रेरणा मिलती है। : 






  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Friday, 15 September 2017

यह सादगी थी तब और आज ? ------ विजय राजबली माथुर

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बात शायद 1959  या 60  की रही होगी;अजय और मैं बाबू  जी के साथ  साईकिल से ६-सप्रू मार्ग भुआ के घर से लौट रहे थे.बर्लिंगटन होटल के पास पहुंचे ही थे की पता चला नेहरु जी आ रहे हैं.बाबू  जी ने प्रधान मंत्री को दिखाने के विचार से रुकने का निर्णय लिया जबकि घर के पास पहुच चुके थे.नेहरु जी खुली जीप में खड़े होकर जनता का अभिवादन करते और स्वीकार करते हुए ख़ुशी ख़ुशी अमौसी एअरपोर्ट से आ रहे थे.आज जब विधायकों,सांसदों तो क्या पार्षदों को भी शैडो के साए में चलते देखता हूँ तो लगता है कि नेहरु जी निडर हो कर जनता के बीच कैसे चलते थे ? जनता उन्हें क्यों चाहती थी ? हुसैनगंज चौराहे पर मेवा का स्वागत फाटक बनवाने वाले चौरसिया जी का भतीजा मेरे क्लास में पढता था.नेहरु जी की सवारी जा चुकी थी और जनता आराम से मेवा तोड़ कर ले जा रही थी कहीं कोई पुलिस का सिपाही नहीं था और फ़ोर्स भी तुरंत हट चूका था.यह था उस समय के शासक और जनता का रिश्ता.आज क्या वैसा संभव है?हुसैनगंज चौराहे पर ही मुहर्रम का जुलूस या गुड़ियों का मेला दिखाने भी बाबु जी ले जाते थे.इक्का-दुक्का सिपाही ही होते होंगे आज सा भारी पुलिस फ़ोर्स तब नज़र नहीं आता था.
विधान सभा पर २६ जनवरी को गवर्नर विश्वनाथ दास द्वारा ध्वजारोहण भी बाबू  जी ने साईकिल के कैरियर और गद्दी पर दोनों भाइयों को खड़ा करके आसानी से दिखा दिया था क्या आज वैसा संभव है? आज तो साईकिल देखते ही पुलिस टूट पड़ेगी.उस समय तो एक निजी विवाह समारोह में भी विधान सभा के लॉन में एक चाय पार्टी में बाबा जी के साथ शामिल होने का मौका मिला था.वह समारोह संभवतः राय उमानाथ बली के घर का था.आज तो उस छेत्र में दो लोग दो पल ठहर भी जाएँ तो तहलका मच जायेगा.यह है हमारे लोकतंत्र की मजबूती !

न्यू हैदराबाद से पहले तो मामा जी खन्ना विला में रहते थे जिसे स्व.वीरेन्द्र वर्मा ने किराए पर ले रखा था और मामा जी वर्मा जी के किरायेदार थे.वर्मा जी तब संसदीय सचिव थे और उनके पास रिक्शा में बैठ कर दो मंत्री चौ.चरण सिंह और चन्द्र भानु गुप्ता अक्सर आते रहते थे.तब यह सादगी थी और आज के मंत्री.......?




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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 13 October 2016

फासीवाद के खिलाफ हम सब ------ राकेश (इप्टा )

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Arvind Raj Swarup Cpi added 4 new photos.
Lucknow 13th October 2016.
A few Photos of Protest at Lucknow against the attack of Sanghis on IPTA conference participants at Indore (MP)on 4th October 2016.

















लखनऊ , 13 अक्तूबर 2016 :
आज साँय जी पी ओ पार्क, हजरतगंज स्थित गांधी प्रतिमा पर इंदौर ( म . प्र .) में 'इप्टा  ' के राष्ट्रीय सम्मेलन पर 04 अक्तूबर 2016 को फासिस्टी गुंडों के हमले के खिलाफ विरोध स्वरूप एक धरना - प्रदर्शन का आयोजन किया गया । इसका संचालन इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने किया और इसमें प्रलेस, जलेस, जसम,साझी दुनिया, नीपा रंगमन्डली, अलग दुनिया, कलम सांस्कृतिक मंच, कलम विचार मंच , सेंटर फार आबजेक़टिव रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट, राही मासूम रज़ा एकेडमी, पी यू सी एल, अमित, दस्तक, डी वाई एफ वाई, नौजवानसभा, एस एफ आई, आल इंडिया वर्कर्स काउंसिल, लखनऊ कलेक्टिव आदि संस्थाओं का प्रतिनिधित्व रहा। 

राकेश ने सविस्तार इप्टा के राष्ट्रीय कन्वेन्शन में घटित हादसे का उल्लेख करते हुये कलाकारों और प्रतिनिधियों के संयम व साहस की सराहना की। 


 इप्टा के कलाकारों ने गीतों के माध्यम से फासीवादी ताकतों के विरुद्ध  संघर्ष व जनता की एकजुटता का आह्वान किया। 


इस धरने में बड़ी संख्या में लखनऊ के लेखक कलाकार व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुये जिनमें वेदा राकेश, अरविंद राज स्वरूप, वीरेंद्र यादव, रूप रेखा वर्मा, ताहिरा हसन, आनंद रमन तिवारी, फूलचंद यादव, सुभाष राय, ओ पी सिन्हा, के के शुक्ल, मोहम्मद ख़ालिक़, मोहम्मद अकरम, विजय राजबली माथुर, मोहम्मद शोएब, मधु गर्ग, कान्ति मिश्रा, आशा मिश्रा, बिपिन मिश्रा, रमेश दीक्षित  आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।  
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आगरा, 13 अक्तूबर 2016  : 


Jyotsna Raghuvanshi


आगरा इप्टा प्रतिरोध दिवस 13अक्तूबर 2016....अभिव्यक्ति की आजादी ...बाधक हो तूफान बवंडर नाटक नहीं रुकेगा...






 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 6 June 2016

यूपी में वह कौन बड़ा साहेब है, जो नहीं चाहता था कि तीस्ता सीतलवाड़ लखनऊ में रहें? ------ हस्तक्षेप







क्या अखिलेश सरकार नहीं चाहती तीस्ता सीतलवाड़ लखनऊ में रहें? :
नई दिल्ली। क्या उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के बीच कोई गुपचुप समझौता हो चुका है? ऐसी कोई आधिकारिक सूचना तो नहीं है, लेकिन उप्र की अखिलेश सरकार की कार्यप्रणाली संकेत दे रही है कि सपा-भाजपाके बीच अंदरूनी तौर पर खिचड़ी पक चुकी है और अगर ऐसा नहीं है तो माना जा सकता है कि अफसरशाही पर संघी कब्जा हो चुका है और अखिलेश यादव केवल संवैधानिक तौर पर मुख्यमंत्री रह गए हैं व अफसरशाही नागपुर मुख्यालय से निर्देश ले रही है।

आतंकवाद के आरोपों से निचली अदालत द्वारा बरी किए गए मुस्लिम युवकों के मामले में सपा सरकार द्वारा उच्च अदालत में फैसले के खिलाफ अपील करने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को लखनऊ में न ठहरने देने का सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने अखिलेश सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर सवालिया निशान लगाए हैं। इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर पूरी घटना का ब्यौरा प्रस्तुत किया है, जो निम्नवत् है।

अमित शाह और ऐसे ही लोग अगर चलकर कभी गुजरात दंगों के कारण जेल गए, तो तीस्ता सीतलवाड़ को शुक्रिया कहिएगा। संविधान और कानून की हिफाजत के लिए वे सारे खतरे उठा रही हैं। केस नतीजे तक पहुंचे, इसके लिए वे जुटी हैं।

अखिलेश यादव जी से भी एक निवेदन है। पिछले दिनों तीस्ता और मैं लखनऊ लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेने लखनऊ गए थे। तीस्ता की सरकारी गेस्ट हाउस में बुकिंग थी। वहां अफसरों ने बताया कि हाई लेवल से बुकिंग कैंसिल कर दी गई है। इसके बाद तीस्ता को जिन बड़े होटलों में ठहराने की कोशिश की गई, सबने नाम सुनते ही कहा कि किसी बड़े साहब ने मना किया है।

तीस्ता को जान पर खतरे की वजह से सुप्रीम कोर्ट से सुरक्षा मिली हुई है। साथ में गार्ड चलते हैं। उन्हें सुरक्षित जगह पर रहना पड़ता है। लेकिन उस दिन उन्हें जोखिम उठाकर एक सामान्य होटल में ठहरना पड़ा।

तीस्ता सुरक्षा की हाई कैटेगरी में हैं। उनकी मूवमेंट राज्य सरकार और लोकल पुलिस के संज्ञान में होती है। राज्य सरकार आसानी से जांच करा सकती है।

यूपी में वह कौन बड़ा साहेब है, जो नहीं चाहता था कि तीस्ता सीतलवाड़ लखनऊ में रहें?
http://www.hastakshep.com/hindi-news/2016/06/05/do-akhilesh-government-not-want-to-stay-teesta-setalvad-in-lucknow#.V1O7UJF9601

Saturday, 21 May 2016

उत्तर प्रदेश विधानसभा पर किसान पंचायत का उद्घोष और सरकार से मिला आश्वासन ------ विजय राजबली माथुर

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***कामरेड अंजान ने पंचायत में आए हुये किसानों को सूचित किया कि जैसा कि , मशहूर शायरा और एक्ट्रेस मीना कुमारी का कहना था :
मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है 
ना जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है 
तेरी आँखों से छलकते हुये इस गम की कसम 
ये दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है 

उन्होने भी किसानों के दर्द के साथ गहरा रिश्ता बनाया है और इसीलिए किसानों के लिए किसी भी बड़े से बड़े आंदोलन में भाग लेने के लिए वह सदा तैयार रहते हैं। ***

  लखनऊ,20 मई 2016 :
किसानसभा के स्थापना दिवस 11 अप्रैल 2016 से 'किसान जागरण यात्रा ' का प्रारम्भ संगठन के संस्थापक स्वामी सहजानन्द   सरस्वती जी की जन्मस्थली  गाजीपुर से राजेन्द्र यादव,पूर्व विधायक और महामंत्री उ प्र किसानसभा के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ था जो  35 जिलों का भ्रमण करते हुये लखनऊ के चिनहट क्षेत्र में 19 तारीख को पहुँच गई थी जिसने 20 तारीख को चारबाग रेलवे स्टेशन पहुँच कर विभिन्न जिलों से आए हुये किसान साथियों को साथ लेकर अपने राष्ट्रीय महामंत्री कामरेड अतुल कुमार सिंह 'अंजान ' के नेतृत्व  में एक विशाल मार्च निकाला जो उत्तर प्रदेश विधासभा क्षेत्र के जी पी ओ पार्क में  गांधी प्रतिमा पर धरना - सभा  में परिवर्तित हो गया जिसकी अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक इम्तियाज़ बेग ने की । प्रारम्भ में चारबाग में इप्टा के कलाकारों ने भी किसानों के उत्साह वर्द्धन हेतु अपनी प्रस्तुति दी। 

सभा में विभिन्न किसान नेताओं ने अपने विचार तथा यात्रा-वृतांत सुनाये। खेत मजदूर सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष , पूर्व सांसद  विश्वनाथ शास्त्री जी  भी सभा को संबोधित करने वाले वालों में प्रमुख थे। उत्तर प्रदेश भाकपा के प्रदेश सचिव गिरीश चंद्र शर्मा  ने अपने  9 और 10 मई के बुंदेलखंड दौरे का विस्तृत वर्णन किया  और खेद जताया कि वह राजेन्द्र यादव के अनुरोध के बावजूद किसान जागरण यात्रा में शामिल नहीं हो पाये।(ज्ञातव्य है कि किसान जागरण यात्रा 11 से 14 मई तक बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाली थी। )  गिरीश जी ने कहा कि वह बीमारी के बावजूद किसानों के साथ पार्टी की एकजुटता  दिखाने के लिए उपस्थित हुये हैं। बुन्देल खंड  समस्या पर आगामी 20 जून को छह पार्टियों की ओर से धरना  देने का  आयोजन कर रहे हैं। मीडिया ने उनके वक्तव्य को चटकारा लेते हुये प्रकाशित किया है। : 

उत्तर प्रदेश किसानसभा के महामंत्री और जागरण यात्रा के संयोजक राजेन्द्र यादव ने अपने उद्बोधन में बताया कि अभी तक सरकार द्वारा दिये आश्वासन के बावजूद बंद चीनी मिलें चालू नहीं हुई हैं, प्रदेश में सड़कों की स्थिति सबसे अधिक दयनीय है,गड्ढा युक्त सड़कों के कारण आए दिन दुर्घटना होती हैं, अनियमित विद्युत कटौती से प्रदेश का किसान ,व्यापारी,छात्र,महिलाएं सभी परेशान हैं। नहरों में टेल तक पानी नहीं पहुँच पाता। इस वर्ष दैवीय आपदा के कारण किसानों की फसल बीमा एवं फसल मुआवजा तो केंद्र और राज्य सरकार द्वारा घोषित धन राशि का लाभ प्रदेश के 70 प्रतिशत किसानों को प्राप्त नहीं हो सका है। इन सब महत्वपूर्ण मांगों को लेकर यह यात्रा 11 अप्रैल 2016 से गाजीपुर से चल कर बुंदेलखंड समेत 35 जिलों का परिभ्रमण करते हुये राजधानी पहुंची है। किसानसभा की दूसरी यात्रा को मथुरा से चल कर यहाँ संयुक्त होना था किन्तु पश्चिमाञ्चल के जिलों ने 7 से 14 दिन की जिलावार यात्राएं वहीं सम्पन्न कर लीं और यहाँ तक  नहीं पहुँच सके। दो माह बाद वह खुद उन जिलों में किसान  जागरण यात्रा निकालने का प्रयास करेंगे। 

राजेन्द्र  जी ने बताया कि उन्होने जाति- धर्म और दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर केवल किसानों  के हितार्थ इस यात्रा का संयोजन किया था इसी लिए सपा, बसपा,कांग्रेस और भाजपा के लोग भी उनके मंच से आकर किसान  जागरण यात्रा का समर्थन कर गए थे। कांग्रेस नेता जनार्दन राय तो सभा में भी उपस्थित थे। राजेन्द्र जी ने मुख्यमंत्री व सपाध्यक्ष द्वारा वार्ता के लिए बुलाये जाने के संदर्भ में कहा कि वह किसान हितों के लिए किसी से कोई समझौता नहीं करेंगे और यदि मांगे नहीं मानी गईं तो उग्र आंदोलन चलाया जाएगा। 

किसानसभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल अंजान ने अपने वृहद सम्बोधन में  संवाद शैली के माध्यम से किसानों को यह समझाने का अथक प्रयास किया कि वे जाति-धर्म,गोत्र-क्षेत्र,वाद-प्रतिवाद में  न फंस कर एकजुटता बनाएँ अन्यथा उनका जीवन और दुष्कर होता जाएगा। किसानों की आत्म -हत्याओं का ज़िक्र करते हुये उन्होने बताया कि वह खुद भी आंध्र व तेलंगाना में किसान पद-यात्राओं में इसी लिए शामिल हुये कि किसानों को आत्म-हत्या के कदम उठाने से रोका जाये। उन्होने किसानों को आगाह किया कि वे अपनी ज़मीन कतई न बेचें क्योंकि आने वाले समय में यही ज़मीन उनके बच्चों को भूख से बचा सकेगी। बिल्डरों के षडयन्त्रों से सावधान रहने को उन्होने किसानों को जागरूक किया। उन्होने बताया कि मीडिया में टी वी चेनल्स और अखबार के जरिये कैटरीना कैफ व दीपिका पादुकोण के किस्से इसलिए उछलते हैं कि किसान इन सब में व फूट के मामलों में उलझ कर अपनी समस्याओं पर आवाज़ न उठा सके । मीडिया के संबंध में उनकी चेतावनी का नमूना इससे ही स्पष्ट है कि उनके वक्तव्य को काट-छांट कर सिर्फ इस रूप में छापा गया है। :

कामरेड अंजान ने पंचायत में आए हुये किसानों को सूचित किया कि जैसा कि , मशहूर शायरा और एक्ट्रेस मीना कुमारी का कहना था :
मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है 
ना जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है 
तेरी आँखों से छलकते हुये इस गम की कसम 
ये दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है 
उन्होने भी किसानों के दर्द के साथ गहरा रिश्ता बनाया है और इसीलिए किसानों के लिए किसी भी बड़े से बड़े आंदोलन में भाग लेने के लिए वह सदा तैयार रहते हैं। उन्होने स्पष्ट कहा कि वह जिस संगठन के राष्ट्रीय महा सचिव पद पर हैं वह स्वामी सहजानन्द सरस्वती जी के वैज्ञानिक समाजवाद के दृष्टिकोण का अनुगामी है। इन्दु लाल याज्ञनिक,महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस किसानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। बंगाल किसानसभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित करने वालों में स्वामी विवेकानंद के बड़े भाई भी शामिल रहे हैं। लखनऊ जिले के ही काकोरी में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद,रोशन सिंह,आदि नेता सभी किसानों के पुत्र ही तो थे। (यद्यपि कामरेड अंजान ने बताया नहीं किन्तु उन क्रांतिकारियों का साथ देने वालों में तथा बटुकेश्वर दत्त के साथ काला पानी की सजा काटने वालों में उनके पिता श्री अयोध्या सिंह जी भी शामिल थे )। 
कामरेड अंजान ने उपस्थित किसानों के माध्यम से यह भी बताया कि , किसानसभा के केंद्रीय कार्यालय में उन्होने दो लाख  रुपये मूल्य की किताबें संग्रहित करा दी हैं जिंनका लाभ किसानों की आने वाली पीढ़ियाँ  भी उठा सकेंगी। इतनी प्रचंड गर्मी में  किसानों ने अपने हक के समर्थन में जागरण यात्रा में भाग लिया और 46 डिग्री तापमान में लखनऊ में धरने  पर बैठे इसके लिए उनके प्रति कामरेड अंजान ने आभार व्यक्त किया । साथ ही साथ किसान परिवारों के आबाल-वृद्ध सभी को उन्होने धन्यवाद दिया कि अपने परिजनों को उन लोगों ने इस किसान महापंचायत में भाग लेने हेतु भेजा। यात्रा और धरने में शामिल महिलाओं के प्रति उन्होने कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होने किसान पंचायत में  यह घोषणा भी की कि जब कभी भी किसानसभा की सरकार बनेगी राजेन्द्र यादव को किसान स्वतन्त्रता आंदोलन का 'स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी' घोषित किया जाएगा। उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। 

प्रशासन की ओर से SDM साहब द्वारा किसानसभा का मांग-पत्र ग्रहण किया गया। इसकी प्रमुख मांगें  इस प्रकार हैं :
1. राष्ट्रीय किसान आयोग (स्वामीनाथन आयोग) की संस्तुतियों को केंद्र और राज्य सरकारें तत्काल लागू करें। 
 2. 60 वर्ष के सभी स्त्री-पुरुष किसानों,खेत मजदूरों,ग्रामीण दस्तकारों को 10,000 रु. ( दस हजार रुपया) मासिक पेंशन केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर देना सुनिश्चित करें।   
3. किसानों के सहकारी-सरकारी कर्ज़ माफ किये जायें एवं उन्हें रबी-खरीफ पर ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाये।   
4. कृषि उत्पादों का लाभकारी मूल्य (लागत पर पचास फीसदी जोड़ कर) दिया जाय।  
 5. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को तत्काल वापस लिया जाय।   
6. केरल राजयकी भांति किसान कर्ज़ एवं आपदा राहत ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाय।   
7. खेती किसानी के लिए बिजली की बढ़ी दरों को वापस लिया जाय, साथ ही सस्ती एवं अबाध बिजली 18 घंटे उपलब्ध कराई जाय।  
 8. नहरों की टेल तक वास्तविक सफाई कराकर पानी खेतों में पहुँचने का पुख्ता प्रबंध किया जाय।  
 9. प्रदेश के किसानो के निजी नलकूपों को अन्य राज्यों की तरह मुफ्त बिजली की व्यवस्था की जाय।  
 10. नंदगंज,रसड़ा,छाता,देवरिया,औरैया,शाहगंज चीनी मिलों को चालू किया जाय।  
 11. शिक्षा व चिकित्सा व्यवस्था को सरकार अपने हाथ में ले।  
 12. गन्ने का सामान्य मूल्य 450 रु. किया जाय एवं गन्ने का बकाया भुगतान किया जाय।  
 13. प्रदेश में रबी व खरीफ की फसल बर्बाद होने के बाद केंद्र व प्रदेश की सरकारें क्षतिपूर्ति देने का वादा करें या अब तक लगभग 33%किसान लाभान्वित हुए हैं शेष किसानों को तत्काल क्षतिपूर्ति दी जाय।

सभाध्यक्ष द्वारा उपस्थित किसान समुदाय व स्थानीय जनता को धन्यवाद देने के बाद सभा समापन की घोषणा की गई। 
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(कामरेड अंजान और राजेन्द्र यादव जी के अतिरिक्त अर्चना उपाध्याय जी,जितेंद्र हरि पांडे,बी एन यादव,शिव बचन यादव,उपकार सिंह  कुशवाहा और उनके पिता श्री  भी उन लोगों में शामिल थे जिनसे मैं व्यक्तिगत रूप से भेंट कर सका । ) ------ विजय राजबली माथुर 

कामरेड राजेन्द्र यादव व जितेंद्र हरि पांडे के सौजन्य से प्राप्त रैली के कुछ  और खास  फोटो : 













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फोटो सौजन्य : अर्चना उपाध्याय जी 
22-05-2016 at 21 hrs.



संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश   
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21-05-2016