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Sunday, 8 October 2017

उर्दू भारतीय भाषा और हिन्दी की पूरक है

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उर्दू  भाषा का जन्म भारत में ही हुआ है और यह यहाँ के जीवन में खूब रस - बस चुकी है। लखनऊ में जन्म होने और नौ वर्ष की उम्र व कक्षा चार तक की पढ़ाई वहीं करने के कारण और घर में जो बोल चाल रही उसके कारण मुझे यह फर्क ही नहीं समझ आया कि, हम लोग जो बोलते हैं वह हिन्दी- उर्दू मिश्रित बोली है। इसका पता लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद 'करगिल ' में 1981 में तब चला जब होटल मुगल शेरटन, आगरा से डेपुटेशन पर वहाँ ' होटल हाई लैण्ड्स ' गए थे। एक रोज़ मेनेजर साहब समेत सभी साथी सुबह टहलते - टहलते टी बी हास्पिटल तक पहुँच गए थे। वहाँ के सी एम ओ साहब ने हम लोगों से परिचय जानने के लिहाज से बातचीत की। मुझसे परिचय जानने के बाद उनकी प्रतिक्रिया थी कि, आप तो आगरा के लगते नहीं , आप तो लखनऊ के लगते हैं। मैंने उनसे पूछा कि, डॉ साहब मैं हूँ तो लखनऊ का ही लेकिन आपने कैसे पहचाना ? तो श्रीनगर निवासी उन डॉ साहब का कहना था बाकी सबसे अलग आपकी ज़बान में एक श्रीनगी  है जो केवल लखनऊ में ही पाई जाती है। 
अपनी बचपन से सीखी बोलचाल की भाषा के ही कारण लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद भी लखनवी के रूप में पहचाना गया तो इसका कारण मैनेजर साहब व साथियों की निगाह में कारण मेरे हिन्दी का उर्दू मिश्रित होना था जबकि अन्य की हिन्दी बृज भाषा या पंजाबी मिश्रित थी। अलग से उर्दू लिपि, भाषा या साहित्य न पढ़ने के बावजूद अगर हमारी हिन्दी को उर्दू मिश्रित समझा गया तो मेरे लिए उर्दू अलग भाषा कैसे हो सकती है ? 
अतः नभाटा का उपरोक्त लेख हो या द वायर में नूपुर शर्मा जी के कार्यक्रम हम लोग पसंद के साथ देखते - पढ़ते हैं। प्रस्तुत वीडियो में नूपुर शर्मा जी ने उर्दू भाषा के कलाकार टाम आल्टर   साहब को जो  श्रद्धांजली अर्पित की है उससे काफी कुछ सीखने की प्रेरणा मिलती है। : 






  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Friday, 15 July 2016

भारत-भू 'तृतीय विश्वयुद्ध' का अखाड़ा भी बन सकती है ------ विजय राजबली माथुर

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बेहद अफसोसनाक है कि, कश्मीर के राजनेता होकर भी उपरोक्त लेख में अनुच्छेद 370 के महत्व को विद्वान लेखक नहीं जानते हैं और उसे हटाने की पैरवी कर रहे हैं। मई से अगस्त तक ढाई माह 1981 में मुझे भी श्रीनगर व करगिल में रहने का अवसर मिला है। कर्गिल से पहले 'द्रास' क्षेत्र में है जोजीला दर्रा और इसी में ज़मीन के नीचे 'प्लेटिनम' का प्रचुर भंडार छिपा पड़ा है। इसी जगह अक्सर बर्फबारी के कारण रास्ता जाम में वाहनों को फंसना पड़ता है। हमारा ट्रक भी यहीं फंस गया था। यदि यहाँ सुरंग बना दी जाये तो श्रीनगर से कर्गिल तक छह घंटों के समय में पहुंचा जा सकता है और लेह जाने वालों को करगिल में रात्रि विश्राम भी न करना पड़े। परंतु जैसा मैंने एक ब्लाग-पोस्ट में दिया है सच्चाई वहीं ज्ञात हुई है तब उक्त लेख के राजनेता लेखक कैसे अनभिज्ञ रहे ताज्जुब की बात है : 
"तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई,जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम'की प्रचुरता है.सभी जानते हैं कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने अनुच्छेद  '३७०' न रखवाया  होता  तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चुका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते.अनुच्छेद ३७० को हटाने का आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके,क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा देते,फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र  का भंडाफोड़ करके कश्मीर को भारत में मिलाने पर मजबूर किया था .तो समझिये जनाब कि अनुच्छेद  ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.और यही वजह है कश्मीर समस्या की .साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है.इसी लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है.इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'अनुच्छेद  ३७०' हटाने का राग अलापता रहता है.इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया जाता है.साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है.यह हमारे देश की जनता का परम -पुनीत कर्तव्य है कि, वह सरकार की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखे कि वह यू एस ए के मंसूबे न पूरे कर दे। 
अनुच्छेद 370 को समाप्त कराने की मांग उठाते रहे लोग जब सत्ता में मजबूती से आ गए हैं तब बिना पाकिस्तान के अस्तित्व के ही 'जोजीला'दर्रे में स्थित 'प्लेटिनम' जो 'यूरेनियम' के उत्पादन में सहायक है यू एस ए को देर सबेर हासिल होता दीख रहा है । अड़ंगा चीन व रूस की तरफ से हो सकता है और उस स्थिति में भारत-भू 'तृतीय विश्वयुद्ध' का अखाड़ा भी बन सकती है। देश और देश कि जनता का कितना नुकसान तब होगा उसका आंकलन वर्तमान सरकार नहीं कर सकती है तो क्या विपक्ष भी नहीं करेगा ?"
http://krantiswar.blogspot.in/2016/07/blog-post.html


(विजय राजबली माथुर )



***  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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