लखनऊ,23 मार्च,2013---आज साँय तीन बजे 22,क़ैसर बाग स्थित भाकपा कार्यालय पर ज़िला काउंसिल,लखनऊ की ओर से अमर शहीद भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे मुख्य अतिथि के तौर पर राज्य सचिव डॉ गिरीश की उपस्थित विशेष उल्लेखनीय रही। मुख्य वक्ता के रूप मे कामरेड प्रदीप तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुये भगत सिंह की आज भी प्रासंगिकता होने को रेखांकित किया। उन्होने इस संदर्भ मे वेनेजुएला के दिवंगत राष्ट्रपति कामरेड शावेज का उदाहरण दिया कि उन्होने अपने देश मे भगत सिंह की नीतियों पर चल कर ही कामयाबी हासिल की थी। उनके बाद जिलमंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़, सर्व कामरेड सचान,कल्पना पांडे, सुधाकर,अकरम,महेंद्र रावत आदि ने भी अपनी श्रद्धांजली भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों को दी। गोष्ठी के प्रारम्भ मे सभी कामरेड्स ने कामरेड भगत सिंह एवं कामरेड शावेज के चित्रों पर पुष्पांजली भी अर्पित की।
कामरेड डॉ गिरीश के निर्देश पर कामरेड संचालक ने कामरेड विजय राजबली माथुर को बोलने को कहा। कामरेड विजय राजबली माथुर ने डॉ गिरीश,तिवारी जी,ख़ालिक़ साहब को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कि उन्हे बोलने का अवसर प्रदान किया गया बताया कि,82 वर्ष पूर्व ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को आज ही के दिन फांसी दे दी थी। लेकिन भगत सिंह को असेंबली मे बम फेंक कर फांसी पर क्यों झूलना पड़ा यह जानना और याद रखना भी ज़रूरी है। उन्होने साथियों को याद दिलाया कि ब्रिटिश सरकार द्वारा मिलों मे काम करने वाले मजदूरों के हकों को कुचलने के लिए आर्डिनेंस जारी किया गया था और असेंबली मे बैठे भारतीय प्रतिनिधि मूक-दर्शक बने हुये थे। गांधी जी का सत्याग्रह इन मजदूरों के हक मे नहीं किया जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि गांधी जी ब्रिटिश साम्राज्यवाद का हित साध रहे हैं। इसलिए क्रांतिकारियों ने देश की जनता को जाग्रत करने और असेंबली का ध्यान मजदूरों के अधिकारों की ओर खींचने के लिए असेंबली मे 'धूम्र बम'फेंकने का निश्चय किया था। वह बम आगरा के नूरी गेट (जो अब शहीद भगत सिंह द्वार कहलाता है और यहाँ बूरा मार्केट है )तैयार किया गया था। कानपुर और झांसी दोनों ओर के क्रांतिकारियों का आगरा पहुँचना सुगम था इसलिए क्रांतिकारियों का जमाव आगरा मे हुआ था। आगरा से दिल्ली-बंबई का भी रेल तथा सड़क मार्ग सुगम था। बटुकेश्वर दत्त (जिनकी एकमात्र पुत्री श्रीमती भारती बागची 13 वर्ष की आयु मे पिता का साया उठने के बाद कड़े संघर्ष द्वारा अब पटना के मगध महिला महा विद्यालय मे कामर्स की विभागाध्यक्ष हैं)ने अदालत मे सिद्ध किया था कि उन लोगों ने वैज्ञानिक आधार पर 'बम' को इस प्रकार बनाया था कि वह केवल धमाका करे और धुआँ हो उससे जन-हानि की कोई संभावना नहीं थी फिर भी उन लोगों ने खाली स्थान पर ही उसका फिस्फोट किया था। सजा सुनाने वाले ब्रिटिश जज मिस्टर एस फोर्ड ने फैसले मे लिखा है कि भगत सिंह और उनके साथी बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि इस समाज को तोड़े बगैर जन-कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती। किन्तु इनको मृत्यु दंड देना उनकी मजबूरी थी। NCERT की सरकारी किताबों मे भगत सिंह को आतंकवादी बताए जाने की तथा नक्सलाईट्स द्वारा उनकी खुद से तुलना किए जाने को कामरेड माथुर ने गलत बताया। उन्होने 1967 मे हुये नक्सल बाड़ी आंदोलन का हवाला देते हुये बताया कि उस समय वह सिलीगुड़ी मे उस स्थान से 08 मील दूर थे और खुद देखा था कि इससे मारवाड़ियों/व्यापारियों को ही लाभ हुआ था जिनको नुकसान से ज़्यादा इंश्योरेंस क्लेम मिल गया था। स्थानीय बंगालियों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था। कामरेड माथुर का विचार था कि हम लोगों को भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों का स्मरण एक सत्संग के रूप मे नहीं वरन जनता के बीच जा कर,स्कूलों और कालेजों मे करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि ये लोग क्यों शहीद हुये ,आम जनता के लिए वे क्या चाहते थे।
अपने सम्बोधन मे कामरेड डॉ गिरीश ने आशा व्यक्त की कि आगे से हम जनता के बीच मे इस प्रकार के कार्यक्रम कर सकेंगे और जनता को अपने हक समझा सकेंगे। उन्होने स्वीकार किया कि नकसलाईट्स तथा भाजपाई भी भगत सिंह को अपने रंग मे रंगने का प्रयास करते हैं। किन्तु भगत सिंह मात्र क्रांतिकारी ही नहीं महान दार्शनिक भी थे उन्होने अपने अध्यन द्वारा निष्कर्ष निकाल कर ढाई पृष्ठीय पुस्तिका मे पहले ही सांप्रदायिक समस्या को देश के लिए घातक बता दिया था। उन्होने कहा था कि हिंसा करना उनका उद्देश्य नहीं है वे तो जनता को जाग्रत करना व आतताई ब्रिटिश हुकूमत को ही हटाना मात्र नहीं चाहते थे वरन भविष्य के लिए यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि 'मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण' सदा के लिए समाप्त हो जाये। वह पक्के साम्यवादी थे। कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन-नौजवान सभा के मातृ संगठन 'भारत नौजवान सभा' का गठन भगत सिंह की प्रेरणा से ही हुआ था और इसका संविधान उन्होने ही लिखा था। उन्होने 'मैं नास्तिक क्यों'और 'हाँ मैं कम्युनिस्ट हूँ' पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। डॉ गिरीश ने स्पष्ट किया कि जब सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म का पतन हो चुका था तब 1998 मे सत्ता प्राप्ति बाद कामरेड शावेज ने अमेरिका को ज़बरदस्त चुनौती दी और अपने देश मे तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण करके अमेरिकी शोषण को बंद कर दिया। वहाँ आज जनता मे कोई भी अशिक्षित नहीं है और न ही कोई भूखा है। यह सब भगत सिंह द्वारा बताई नीतियों पर ही अमल करने का परिणाम है अतः भगत सिंह हमारे आज भी आदर्श हैं। उन्होने स्वीकार किया कि पहले हम लोगों ने भगत सिंह को आगे न रख कर जो गलती की उसे अब नहीं दोहराएंगे। उन्होने संकेत दिया कि भगत सिंह की नीतियों को सार्वजनिक रूप से जनता को समझाने के कार्यक्रम भाकपा द्वारा चलाये जाएँगे। आज जनता मे व्यवस्था के प्रति जो निराशा व हताशा है उसके लिए वह आशा भारी निगाहों से हमारी पार्टी की ओर ही देख रही है और हम उसे पूरा करेंगे। डॉ गिरीश ने बताया कि गांधी जी ने 'बम की पूजा' शीर्षक पर्चा लिख कर भगत सिंह का मखौल उड़ाया था जिसका जवाब भगत सिंह ने 'बम का दर्शन' नामक पर्चा लिख कर दिया था। हम लोगों को भगत सिंह का साहित्य लेकर जनता के बीच मे जाना होगा।
जिलमंत्री के आग्रह पर बोलते हुये संचालक कामरेड ओ पी अवस्थी ने कहा कि आज जब साप्रदायिक शक्तियों का संकट गहरा गया है हमे भगत सिंह के बताए मार्ग का अनुसरण करने पर ही उसका निदान मिल सकता है। कामरेड मुख्तार अहमद ने कहा कि गांधी जी भगत सिंह आदि की सजा माफ करा सकते थे,अंग्रेजों को भी ऐसा अंदाज़ा था लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं किया जो इन क्रांतिकारियों के प्रति उनकी ना इंसाफ़ी थी। कामरेड जिलमंत्री द्वारा सभी साथियों विशेष कर कामरेड डॉ गिरीश व प्रदीप तिवारी के प्रति आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी का समापन हुआ।
(रिपोर्ट प्रस्तोता-विजय राजबली माथुर )
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
कामरेड डॉ गिरीश के निर्देश पर कामरेड संचालक ने कामरेड विजय राजबली माथुर को बोलने को कहा। कामरेड विजय राजबली माथुर ने डॉ गिरीश,तिवारी जी,ख़ालिक़ साहब को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कि उन्हे बोलने का अवसर प्रदान किया गया बताया कि,82 वर्ष पूर्व ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को आज ही के दिन फांसी दे दी थी। लेकिन भगत सिंह को असेंबली मे बम फेंक कर फांसी पर क्यों झूलना पड़ा यह जानना और याद रखना भी ज़रूरी है। उन्होने साथियों को याद दिलाया कि ब्रिटिश सरकार द्वारा मिलों मे काम करने वाले मजदूरों के हकों को कुचलने के लिए आर्डिनेंस जारी किया गया था और असेंबली मे बैठे भारतीय प्रतिनिधि मूक-दर्शक बने हुये थे। गांधी जी का सत्याग्रह इन मजदूरों के हक मे नहीं किया जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि गांधी जी ब्रिटिश साम्राज्यवाद का हित साध रहे हैं। इसलिए क्रांतिकारियों ने देश की जनता को जाग्रत करने और असेंबली का ध्यान मजदूरों के अधिकारों की ओर खींचने के लिए असेंबली मे 'धूम्र बम'फेंकने का निश्चय किया था। वह बम आगरा के नूरी गेट (जो अब शहीद भगत सिंह द्वार कहलाता है और यहाँ बूरा मार्केट है )तैयार किया गया था। कानपुर और झांसी दोनों ओर के क्रांतिकारियों का आगरा पहुँचना सुगम था इसलिए क्रांतिकारियों का जमाव आगरा मे हुआ था। आगरा से दिल्ली-बंबई का भी रेल तथा सड़क मार्ग सुगम था। बटुकेश्वर दत्त (जिनकी एकमात्र पुत्री श्रीमती भारती बागची 13 वर्ष की आयु मे पिता का साया उठने के बाद कड़े संघर्ष द्वारा अब पटना के मगध महिला महा विद्यालय मे कामर्स की विभागाध्यक्ष हैं)ने अदालत मे सिद्ध किया था कि उन लोगों ने वैज्ञानिक आधार पर 'बम' को इस प्रकार बनाया था कि वह केवल धमाका करे और धुआँ हो उससे जन-हानि की कोई संभावना नहीं थी फिर भी उन लोगों ने खाली स्थान पर ही उसका फिस्फोट किया था। सजा सुनाने वाले ब्रिटिश जज मिस्टर एस फोर्ड ने फैसले मे लिखा है कि भगत सिंह और उनके साथी बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि इस समाज को तोड़े बगैर जन-कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती। किन्तु इनको मृत्यु दंड देना उनकी मजबूरी थी। NCERT की सरकारी किताबों मे भगत सिंह को आतंकवादी बताए जाने की तथा नक्सलाईट्स द्वारा उनकी खुद से तुलना किए जाने को कामरेड माथुर ने गलत बताया। उन्होने 1967 मे हुये नक्सल बाड़ी आंदोलन का हवाला देते हुये बताया कि उस समय वह सिलीगुड़ी मे उस स्थान से 08 मील दूर थे और खुद देखा था कि इससे मारवाड़ियों/व्यापारियों को ही लाभ हुआ था जिनको नुकसान से ज़्यादा इंश्योरेंस क्लेम मिल गया था। स्थानीय बंगालियों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था। कामरेड माथुर का विचार था कि हम लोगों को भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों का स्मरण एक सत्संग के रूप मे नहीं वरन जनता के बीच जा कर,स्कूलों और कालेजों मे करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि ये लोग क्यों शहीद हुये ,आम जनता के लिए वे क्या चाहते थे।
अपने सम्बोधन मे कामरेड डॉ गिरीश ने आशा व्यक्त की कि आगे से हम जनता के बीच मे इस प्रकार के कार्यक्रम कर सकेंगे और जनता को अपने हक समझा सकेंगे। उन्होने स्वीकार किया कि नकसलाईट्स तथा भाजपाई भी भगत सिंह को अपने रंग मे रंगने का प्रयास करते हैं। किन्तु भगत सिंह मात्र क्रांतिकारी ही नहीं महान दार्शनिक भी थे उन्होने अपने अध्यन द्वारा निष्कर्ष निकाल कर ढाई पृष्ठीय पुस्तिका मे पहले ही सांप्रदायिक समस्या को देश के लिए घातक बता दिया था। उन्होने कहा था कि हिंसा करना उनका उद्देश्य नहीं है वे तो जनता को जाग्रत करना व आतताई ब्रिटिश हुकूमत को ही हटाना मात्र नहीं चाहते थे वरन भविष्य के लिए यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि 'मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण' सदा के लिए समाप्त हो जाये। वह पक्के साम्यवादी थे। कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन-नौजवान सभा के मातृ संगठन 'भारत नौजवान सभा' का गठन भगत सिंह की प्रेरणा से ही हुआ था और इसका संविधान उन्होने ही लिखा था। उन्होने 'मैं नास्तिक क्यों'और 'हाँ मैं कम्युनिस्ट हूँ' पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। डॉ गिरीश ने स्पष्ट किया कि जब सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म का पतन हो चुका था तब 1998 मे सत्ता प्राप्ति बाद कामरेड शावेज ने अमेरिका को ज़बरदस्त चुनौती दी और अपने देश मे तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण करके अमेरिकी शोषण को बंद कर दिया। वहाँ आज जनता मे कोई भी अशिक्षित नहीं है और न ही कोई भूखा है। यह सब भगत सिंह द्वारा बताई नीतियों पर ही अमल करने का परिणाम है अतः भगत सिंह हमारे आज भी आदर्श हैं। उन्होने स्वीकार किया कि पहले हम लोगों ने भगत सिंह को आगे न रख कर जो गलती की उसे अब नहीं दोहराएंगे। उन्होने संकेत दिया कि भगत सिंह की नीतियों को सार्वजनिक रूप से जनता को समझाने के कार्यक्रम भाकपा द्वारा चलाये जाएँगे। आज जनता मे व्यवस्था के प्रति जो निराशा व हताशा है उसके लिए वह आशा भारी निगाहों से हमारी पार्टी की ओर ही देख रही है और हम उसे पूरा करेंगे। डॉ गिरीश ने बताया कि गांधी जी ने 'बम की पूजा' शीर्षक पर्चा लिख कर भगत सिंह का मखौल उड़ाया था जिसका जवाब भगत सिंह ने 'बम का दर्शन' नामक पर्चा लिख कर दिया था। हम लोगों को भगत सिंह का साहित्य लेकर जनता के बीच मे जाना होगा।
जिलमंत्री के आग्रह पर बोलते हुये संचालक कामरेड ओ पी अवस्थी ने कहा कि आज जब साप्रदायिक शक्तियों का संकट गहरा गया है हमे भगत सिंह के बताए मार्ग का अनुसरण करने पर ही उसका निदान मिल सकता है। कामरेड मुख्तार अहमद ने कहा कि गांधी जी भगत सिंह आदि की सजा माफ करा सकते थे,अंग्रेजों को भी ऐसा अंदाज़ा था लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं किया जो इन क्रांतिकारियों के प्रति उनकी ना इंसाफ़ी थी। कामरेड जिलमंत्री द्वारा सभी साथियों विशेष कर कामरेड डॉ गिरीश व प्रदीप तिवारी के प्रति आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी का समापन हुआ।
(रिपोर्ट प्रस्तोता-विजय राजबली माथुर )
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
शहीद भगतसिँह विश्व इतिहास मेँ मार्क्स लेनिन की तरह व्यक्तित्व से बढकर एक विचार है जो सदैव सर्वहारा को साम्यवादी समाज के निर्माण हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित करता रहेगा।
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