Wednesday, 20 March 2013

हिन्दू शब्द -फेसबुक पर

Vijai RajBali Mathur 'हिन्दू' शब्द 'हिंसा' से बना है अतः हिंदुओं मे 'हिंसा'=मनसा-वाचा-कर्मणा करने वालों को पूजा जाना आश्चर्य जनक नहीं है। 23 hours ago · Like · 1


Vijai RajBali Mathur सर्व प्रथम बौद्धों ने अपने मठों/विहारों/ग्रन्थों को जलाने/नष्ट करने वालों को यह संज्ञा दी थी फिर फारसियों ने एक गंदी और भद्दी गाली के रूप मे इस शब्द का प्रयोग इस देश के लोगों को निकृष्ट सिद्ध करने के लिए किया था और ब्रिटिश हुकूमत के हक मे पूर्व क्रांतिकारी सावरकर महोदय ने इसे प्रचारित करा दिया। क्यों नहीं 'श्रेष्ठ' ='आर्य'बनने की बात करते?गुलामी के प्रतीकोण से प्रेम क्यों?
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Vijai RajBali Mathur जनाब आप ही क्यों न पढे इसे-http://madhyabharat.net/archives.asp?NewsID=179

madhyabharat.net
Madan Sharma यह बात सही है कि विदेशी भाषा में हिंदू शब्द का अर्थ चोर डाकू व् लुटेरा है ...किन्तु हम अपने शब्दों के लिए विदेशी शब्दकोष क्यों देखते है ....हिंदी भाषा में बहुत से ऐसे शब्द है जिनका अर्थ विदेशी भाषा में कुछ और है ...यह भी बात सही है कि हिंदू शब्द का यदि व्याकरण द्वारा अर्थ किया जाय तो यह हिंसावाची शब्द सिद्ध होता है ... आज व्यवहारिक पक्ष यही है कि हिंदू शब्द का अर्थ है हिंद के निवासी ..यदि अन्य मत वाले अपने को हिंदू ना माने तो य अलग बात है ...ये उनकी समस्या है ....आज सरकारी रूप से वैदिक धर्म या सनातन धर्म का ही रूप हिंदू धर्म है ये अलग बहस कि बात है ....मुख्य रूप से देखा जाय तो हम वैदिक धर्मी अर्थात वेद के अनुसार आचरण करने वाले लोग हैं ....आज वेद व अन्य आर्ष गर्न्थों कि गलत व्याख्या व अवैज्ञानिक विचारों पर आधारित पुराणों कि वजह से हमें अन्य धर्मावलंबियो के सामने पराजय का सामना करना पड़ता है .....सिर्फ एक आर्य समाज ही है जो वेद के आधार पर अन्य मतावलंबियों को मुह तोड़ उत्तर दे सकती है ...
विश्वप्रिय वेदानुरागी हिन्दू संस्कृत का शब्द नहीं है , राम कृष्ण व्यास पतंजलि हनुमान हिन्दू नहीं थे , किसी शास्त्र में हिन्दू शब्द नहीं है

  • विश्वप्रिय वेदानुरागी हिन्दू का एक संक्षिप्तिकरण देखिये :- “हि” “न्” “दु”
    “हि” अर्थात् हित ना करे वह
    “न्” अर्थात् न्याय ना करे वह
    “दु” अर्थात् दुष्टता करे वह

    और इसका प्रमाण निम्न श्लोक है :-
    हिन्दू शब्द की एक और व्याख्या देखिये जिसमें हिन्दू शब्द का निन्दित अर्थ दिया गया है |
    हितम् न्यायम् न कुर्याद्यो
    दुष्टतामेव आचरेत्
    स पापात्मा स दुष्टात्मा
    हिन्दू इत्युच्यते बुधै:||३/२१||
    आत्मानम् यो वदेत् हिन्दू
    स याति अधमां गतिम् |
    दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा तु त हिन्दुं
    सद्य: स्नानमुपाचरेत् ||७/४७||
    हिंकारेण परीहार्य:
    नकारेण निषेधयेत् |
    दुत्कारेण विलोप्तव्य:
    यस्स हिन्दू सदास्मरेत् ||९/१२||
    इति कात्थक्य: शिवस्मृतौ



    शिव स्मृति
    (जो हित और न्याय ना करे, दुष्टता का आचरण करे, वह पापी, वह दुष्टात्मा हिन्दू कहलाते हैं)
    (जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू कहता है वह अधम गति को प्राप्त होता है और ऐसे हिन्दू को देख कर स्पर्श कर शीघ्र ही स्नान करें)
    (हिं हिं करके जिसका परिहार करना चाहिए, न न करके जिसका निषेध करना चाहिए, दूत् दूत् करके जिसे दूर भगाना (नष्ट कर देना) चाहिए वही हिन्दू है इसे सदा याद रखें)

  • Madan Sharma धन्यवाद विश्वप्रिय वेदानुरागी जी इतनी सुन्दर जानकारी के लिए .....किन्तु यह विडंबना है कि हम चाह कर भी खुद को हिंदू शब्द से अलग नहीं रख सकते .....

  • ज्ञान चंद आर्य आदरनीय विश्वप्रिय वेदानुरागी जी ने बिल्कुल सही कहा है और जो प्रमाण उन्होने दीये हैं वो भी सराहनीय हैं इतना सब होते हुए भी अपने आप को हिंदू कहलवाना हमारी विवशता बन चुका है अभी पिछले दिनों जनगणना हुई थी उसमें या तो अपने धर्म का नाम हिंदू लिखवाओ या फिर अन्य उनके यहाँ यहाँ रजिस्टर में ऐसा कोई खाना नही है जिसमे अपने धर्म का नाम वैदिक लिखवाया जा सके 

    यहाँ भी स्पष्ट है---
     
    http://madhyabharat.net/archives.asp?NewsID=179

1 comment:

  1. फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी---
    Sushil Sonee ---विजय राज जी, मुझे दुःख हुआ जानकर कि धर्म के ठेकेदारों ने यह सत्य छुपाया हमसे | दुःख होता है जानकर कि आज हम पश्चिम के अनुकरण को ही अपना गौरव मान बैठे | दुःख दुःख होता है कि भीष्म, कर्ण, अर्जुन जैसे महान वीरों के वंशज होते हुए भी दासता को अपना सौभाग्य मान बैठे हैं | दुःख होता है जानकर कि रामायण और महाभारत को अपना सर्वोच्च धर्मग्रन्थ मानने वाले आज भी विदेशियों की गुलामी को अपना अहो भाग्य मानते हैं | धन्यवाद आपका सत्य सामने रखने के लिए |

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