Friday 22 March 2013

जल ही जीवन है ---विजय राजबली माथुर

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Hindustan-Lucknow-31/03/2012

वैज्ञानिक विकासक्रम मे जल की उत्पत्ति के बाद ही प्राणियों के अस्तित्व की बात आती है।करोडों  वर्ष पूर्व जब पृथ्वी की सतह ठंडी होने पर तमाम गैसों की वर्षा हुई उस दौरान ही हाईड्रोजन के दू भाग व आक्सीजन का एक भाग मिलने से 'जल' की उत्पत्ति हुई। उसके काफी बाद वनस्पती और फिर प्राणियों की उत्पत्ति हुई। दस लाख वर्ष पूर्व मानव का यह स्वरूप सामने आया था जो आज है। 'मनन' करने के कारण हम मनुष्य कहलाए थे किन्तु आज मनन का नितांत आभाव है और यही कारण मनुष्यता के ही संकट का नहीं समस्त प्राणियों व वनस्पतियों के भी संकट का हेतु है। जिस प्रकार एक प्रतिशत धनवानों द्वारा प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का 99 प्रतिशत दुरुपयोग किया जा रहा है उनमे 'जल' का प्रमुख स्थान है। आने वाला समय अगली पीढ़ियों के लिए जलाभाव के संकट का होगा। यदि अपनी मनुष्यता को 'मनन' के प्रयोग से बचना है तो अब अविलंब 'जल' के महत्व को समझना चाहिए। जल का अनावश्यक दुरुपयोग तत्काल रोका जाये तभी अंतर्राष्ट्रीय 'जल दिवस' मनाने का महत्व सार्थक हो सकता है।
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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