Friday, 15 March 2013

हमारी मांग व उसकी वजहों को देश के दूसरे हिस्सों में रखें।---ईरोम शर्मीला चानू

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 गांधीवादी आंदोलन कर्ता-ईरोम शर्मिला चानू को 40 वे जन्मदिन पर सरकार का तोहफा-पुनः गिरफ्तारी ---




 14 मार्च 2013 को लखनऊ मे विधानसभा पर 'धरना कार्यक्रम'मे बोलते हुये-वंदना मिश्रा(PUCL),सामने  बैठे हुए बाएँ से दायें-कान्ति मिश्रा (CPI),ताहिरा हसन (वरिष्ठ पत्रकार),सीमा चंद्रा (AISA)।



 (हिंदुस्तान,लखनऊ,15 मार्च 2013)
 Photo: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा आज साँय चार बजे से छह बजे तक ईरोम शर्मिला जी की मांगों के समर्थन मे लखनऊ मे विधानसभा पर धरना  दिया जाएगा।
( हिंदुस्तान,लखनऊ,14 मार्च 2013 )


 
http://www.livehindustan.com/news/editorial/rubaru/article1-story-57-61-315354.html

 
 
जब तक जान है, तब तक संघर्ष करती रहूंगी
First Published:09-03-13 07:32 PM
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दुर्बल काया, चेहरे पर बार-बार आते घुंघराले बाल, निगाहें थकी हुईं, पर मानों किसी चीज को भेद रही हों, नाक पर मेडिकल टेप चिपकी हुई और ‘फोस्र्ड फीडिंग’ के लिए नाक के अंदर नली- इरोम शर्मिला चानू को देखने के बाद कोई भी उनके साहस, दृढ़-निश्चय और आत्म-विश्वास को नहीं भांप सकता। पर उनकी यही खूबियां उन्हें आयरन लेडी ऑफ मणिपुर बनाती हैं और दुनिया में सबसे अधिक दिनों तक भूख-हड़ताल पर बैठने वाली इंसान। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून, जिस पर पूर्वोत्तर में इंसानी जिंदगी को बदतर बनाने का आरोप है, के खिलाफ उनकी अहिंसात्मक लड़ाई आज भी जारी है। पिछले दिनों जब वह दिल्ली आईं, तो प्रवीण प्रभाकर ने उनसे बातचीत की। बातचीत के अंश-
चार नवंबर, 2000 से अब तक, कोई साढ़े 12 साल से आप भूख-हड़ताल पर बैठी हैं। क्या आपको अंदाजा था कि यह लड़ाई लंबी खिंचती ही जाएगी?
मैं मानती हूं कि ये साढ़े 12 साल और आगे न जाने कितने साल बस मेरे भूख-हड़ताल से ही नहीं जुड़े हैं। यह सत्याग्रह है। यह अहिंसात्मक संघर्ष है। यह शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन है। यह बापू के सिद्धांतों पर अमल है। यह सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून का विरोध है। समझिए तो यह सशस्त्र बलों की ज्यादतियों के खिलाफ जनता का आंदोलन है। यह मानवाधिकार को पाने की लड़ाई है। मैं जो मांग कर रही हूं, वही मणिपुर की मांग है। यह हमारे आत्म-सम्मान की मांग है। जब मैं फास्ट पर बैठी थी, तब यह विचार नहीं किया था कि लड़ाई कब तक चलेगी, तो फिर आज क्यों सोचूं? इसलिए कि आपके संघर्ष के गिने-चुने नतीजे ही सामने आए हैं। एक बड़ा फायदा यह जरूर हुआ कि इस मसले को राष्ट्रीय पहचान मिली। लेकिन इन एक-दो फायदों का क्या हासिल है?
आपके कहने का मतलब शायद यह है कि केंद्र सरकार ने अब तक सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को समाप्त नहीं किया है। ऐसा क्यों? यही तो मैं भी सवाल कर रही हूं और इसे कानून के इस्तेमाल के विरुद्ध ही मेरा संघर्ष है। जहां तक मैं समझती हूं, एक तरफ तो व्यवस्था गांधीजी के सिद्धांतों पर चलने की बात करती है, दूसरी तरफ, उसे हमारे अहिंसात्मक संघर्ष से विशेष फर्क नहीं पड़ता, नो रिस्पॉन्स। ऐसे में, आपका यह संघर्ष कब तक चलता रहेगा?
जब तक शरीर में सांस है। इस देह को एक-न-एक दिन मिट जाना है। अगर मैं अपनी माटी के लिए कुछ कर सकूं, तो मैं समझूंगी कि मेरी जिंदगी समाज के काम आई। हमारे देश में लोकतंत्र है। इसलिए जनता की जीत होगी। आज नहीं, तो कल होगी। लेकिन जब जीत होगी, तब समाज पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा। मैंने अपनी जिंदगी एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित कर दी है। एक सामान्य और खुशहाल जिंदगी जीने की मेरी तमन्ना है। मणिपुर के लोग चाहते हैं कि वे डर और आतंक के माहौल से छुटकारा पाएं। इसलिए मेरी लड़ाई जनता के लिए है, खासकर उन राज्यों की जनता के लिए, जो सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के इस्तेमाल से पीड़ित हैं। लेकिन आपने आमरण अनशन का ही फैसला क्यों किया? अपनी मांग मनवाने के लिए दूसरे अहिंसक रास्ते आप अपना सकती थीं?
मेरे पास यही एक रास्ता था। वैसे भी भूख-हड़ताल सबसे शुद्ध अहिंसक माध्यम है, यह आध्यात्मिकता पर आधारित है। मैं शांतिपूर्ण रैलियों में हिस्सा लेती थी। 2000 की बात है। मालोम में मैंने अखबारों के पहले पन्ने पर दिल दहला देने वाली तस्वीरें (मालोम नरसंहार की तस्वीरें) देखीं। जब भी वे तस्वीरें याद आती हैं, मुझे अपना फैसला सही लगता है।  आप जिस कानून को हटाने की बात करती हैं, उसी के बल पर मणिपुर जैसे राज्यों में कानून-व्यवस्था कायम है। फौज के लोग यही बताते हैं। सरकार भी यही कहती है।
और जो लोगों के बीच डर का माहौल है, उसका क्या? कितने बेगुनाह लोग मारे गए, उनका कोई हिसाब-किताब है? उनके परिजनों पर क्या गुजरी होगी? इस कानून के आड़ में लड़कियों के जीवन के साथ खिलवाड़ होता है। तमाम रिपोर्ट पलटिए, वहां की खबरों पर गौर कीजिए, मानवाधिकार के लिए काम कर रहे संगठनों से आंकड़े जुटाइए, सब साफ हो जाएगा। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस विशेषाधिकार कानून का क्या मतलब है? क्यों हमें दूसरों से अलग करके देखा जाता है? जबकि ईश्वर ने सबको बराबर बनाया है। भारतीय संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है। लेकिन जो भूमिगत संगठन वहां बगावत फैला रहे हैं, बम विस्फोट को अंजाम दे रहे हैं, उन्हें रोकना भी तो जरूरी है।
आप इन्सरजेंसी की ही बात कर रहे हैं न! मैं अहिंसा की पुजारी हूं। किसी भी तरह की हिंसा की मैं आलोचना करती हूं। जिन्हें जो करना है, वे अहिंसक तरीके से करें। आम इंसानों का खून बहाकर किसी को कुछ भी हासिल नहीं होगा। सरकार को लगता है कि आपका अनशन आत्महत्या की कोशिश है। हमें लगता है कि आप खुद को यातना दे रही हैं। आप क्या कहना चाहेंगी?
मुझे अपनी जिंदगी से प्यार है। मैं नहीं मरना चाहती। न ही मैंने आत्महत्या की कोशिश की। आपलोग भी यह मत सोचें कि मैं खुद को यातना दे रही हूं। यह कोई दंड नहीं है, बल्कि यह तो मेरा कर्तव्य है। आप लोग भी हमारी आवाज को बुलंद करें। हमारी मांग व उसकी वजहों को देश के दूसरे हिस्सों में रखें।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

1 comment:

  1. फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ---

    Seema Chandra --my plsr.....thnks to u ppl jotting it down ...!!
    2 hours ago · Unlike · 2
    Surendra Rajput-- waah dekhiye kaha kaha tak pahunch jaa raha hai aapka ye karykaram social media ke maadhayam se
    2 hours ago · Unlike · 1

    ReplyDelete

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