मोहम्मद गनी-- दिहाड़ी मज़दूर से फिल्मकार बनने का सफर -
मोहम्मद गनी
February 7, 2014 at 8:41am
एक बेलदार से फोटोग्राफर और फिल्मकार का सफर तय करने वाले अड़तीस साल के मोहम्मद गनी मथुरा के ऐसे अकेले फ़िल्मकार हैं जिन्होंने अपने श्रम और लगन से बड़े परदे की एक फ़िल्म का निर्माण कर मथुरा ही नहीं दूसरे शहरों के सांस्कृतिक कमिर्यों को हैरत में डाल दिया है। कहानीकार ज्ञानप्रकाश की कहानी ''कैद '' पर आधारित यह फ़िल्म कोई बम्बइया शैली की तर्ज़ पर न होकर विशुध्द कलात्मक और मकसदशुदा फ़िल्म है । फ़िल्म 'कैद' का प्रदर्शन आजकल मथुरा में जगह जगह किया जा रहा है. इसके साथ ही गाणी इस फ़िल्म को फ़िल्म फेस्टिवल में भी भेजने की तैयारी में जुटे हैं. यह फ़िल्म एक बच्चे के साथ स्कूल और घर पर की गई उपेक्षा से उपजे दर्द की ददर्नाक कहानी है ।
मोहम्मद गनी के पिता नाज़र अली ने सपने में भी न सोचा था कि उनका अनपढ़ बेटा ईंट-गारे की कैद से मुक्त होकर पढ़े लिखों की जमात में शरीक होकर मुक्त गगन में विचरण करेगा । आर्ट फ़िल्म संसार में कुछ कर गुजरने की हसरत रखने वाले गनी ने बताया कि मुफलिसी का जीवन जीने वाले उनके पिता नाज़र अली एटा जनपद के गाँव दोर्रा से मथुरा में काम की तलाश में आये थे। तब मथुरा में श्री कृष्ण जन्म भूमि पर भागवत मंदिर का निर्माण चल रहा था। मज़दूरों की जरूरत थी सो फ़ौरन खप गए। परिवार में पत्नी के अलावा चार बच्चे थे । निर्माण स्थल पर ही अधबने मंदिर में एक मुस्लिम परिवार ने डेरा डालने में तनिक भी संकोच नहीं किया। नाज़र अली को चंग बजाकर आल्हा गाने में महारत हासिल थी । शाम को थके हारे परिवार में आते तो आल्हा गाकर थकान मिटाते। बच्चे पिता के कंठ से निकली स्वर लहरी में बह जाते । पूरा परिवार पेट में अन्न पहुंचाकर ही संतुष्ट था। गनी के स्कूल जाने का सवाल तो दूर' अ ब स' या 'अलिफ़ वे पे' से वाकिफ होने का अवसर न मिला । गनी के हाथो में ताकत आई तो वह भी अपने भाई हनीफ और सनीफ के साथ मेहनत -मजूरी करने लगा। धीरे धीरे मंदिर बन गया तो नाज़र परिवार को मंदिर परिसर से अपनी रिहाइश हटानी पड़ी । सभी लोग यमुना पार की गरीबों की बस्ती में जा बसे । पड़ौस में घनश्याम दरजी की दूकान थी ,पिता ने गनी को दर्जी की मिन्नतें कर कपडा सिलाई का काम सीखने में लगा दिया । तब गनी की उम्र १५ साल रही होगी .गनी ने बताया कि कपडे पर कैंची चलाना तो आ गया पर हर वक्त उसकी इच्छा कैमरे को छूने की होती थी। १९९० में वह स्वतन्त्र दरजी हो गया। पैसा बचाने लगा एक कैमरा खरीदने के लिए । हिंदी पढ़ना सीख लिया। पत्रिकाओं में बड़े बड़े फोटोग्राफरों के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई । इसी वक्त गनी को अशोक मेहता ,बाबा आजमी ,लारेंस डिसूजा जैसे नामी गिरामी फोटोग्राफरों के बारे में जानने का अवसर मिला । गनी ने पढ़ा कि बाबा आजमी (कैफी आजमी के बेटे और शबाना आजमी के भाई ) ''इप्टा '' में काम करते हैं । मथुरा में ''इप्टा'' की शाखा थी । गनी ने इसके पदाधिकारिओं से संपर्क साधा और सदस्य बन गया। वह राम मंदिर आंदोलन का दौ.र था। मथुरा में गुरुशरण सिंह के नाटक ''अपहरण भाईचारे का'' मंचन हुआ। गनी को इस नाटक में काम करने का मौका मिला। गनी को उसकी अभिनय प्रतिभा देख सुशील कुमार सिंह के नाटक ''सिंहासन खाली करो ''में काम दिया गया लेकिन दरजी की दूकान में आमंदनी कम होने लगी । गनी को इप्टा वालों से मिलने शहर आना पड़ता था .अत; घर में ही ''प्रेरक थिएटर '' बना डाला । दिनभर काम और फिर बचे वक्त में गरीब बस्ती के बच्चों के साथ किसी नाटक का रिहर्सल। .गनी की संस्था में गति आ गई। गनी की समझ का विस्तार होने लगा। प्रगतिशील लोगों के संगठन ''जन सांस्कृतिक मंच ''ने गनी को हाथों हाथ लिया। गनी का जुड़ाव देश के वामपंथी आंदोलन से हुआ । वह एक आयोजन में दिल्ली जाकर कैफी आजमी ,फारूख शेख ,मुद्रा राक्षस ,शबाना आजमी ,हबीब तनबीर आदि से मिला। उसकी संस्था' प्रेरक' ने मलिन वस्तिओ में और ज्यादा शिद्दत से काम करना शुरू कर दिया।
पूरे परिवार ने मेहनत मशकत से जमा की कुछ रकम से जमीन का एक टुकड़ा ख़रीदा और बच्चों का स्कूल खोल दिया । गनी का पूरा परिवार स्कूल के काम में जुट गया . गनी ने बच्चों के अंदर नाट्य प्रतिभा को जगाना प्रारम् किया । परिसर में प्रेमचंद की कहानी'' कफ़न '' पर नाटक तैयार किया गया । हरिशंकर परसाई के कई व्यंग पर आधारित नाटक खेले गए। गनी ने दर्जीगिरी का काम फिर भी न छोड़ा ,पैसा इकठ्ठा जो करना था कैमरा खरीदने के लिए ।लगभग ५ वर्ष पूर्व गनी का वर्षों पुराना सपना पूरा हुआ। वह एक हैंडीकैम कैमरा खरीद लाया । शम्भूनाथ सिंह की एक कहानी पर इस छोटे कैमरे से ६ मिनट की फ़िल्म बना डाली । स्कूल चल निकला। आमंदनी होने लगी । सन २०१० में दूसरा कैमरा ख़रीदा और ज्ञान प्रकाश विवेक की अनुमति के बाद उनकी कहानी ''कैद'' का नाट्य रूपांतरण कर उसे फिल्माया गया । फ़िल्म में कई पात्रों का अ•िानय स्कूल के छात्र और शिक्षकों ने किया है । इस फ़िल्म में ''पान सिंह तोमर '' में अभिनय करने वाले अभिनेता व् निदेशक संदीपन विमलकांत(पटकथा लेखिका अचला नागर के बेटे ) ने भी काम किया है। गनी के इस बड़े व् प्रथम प्रयास को मथुरा --आगरा में सराहा जा रहा है।
गनी के सपनों में अब पंख लग गए हैं । उसे धन दौलत की दुनिया से परहेज है । वह जनता के दर्द को व्यक्त करने वाले साहित्य को अपनी फिल्मों में स्थान देना चाहता है । गनी ने बताया कि प्रसिध्द अभिनेता अमोल गुप्त ने उससे कहा है कि अगला सिनेमा छोटी छोटी जगहों -कस्बों से पैदा होगा ,जनता की बात जनता के लिए। गनी ने अपनी दूसरी फ़िल्म की तैयारी शुरू कर दी है . कहानीकार शुशांत सुप्रिय की कहानी ''मेरा जुर्म क्या है '' की पटकथा लेखन में जुट गए हैं --गनी और उसके भाई हनीफ ।
गनी और उसके परिवार का .नाटक और अच्छी फिल्मों के प्रति एक ईमानदार समर्पण देख मथुरा का साहित्यिक -सांस्कृतिक समुदाय उनके प्रति श्रद्धानत है।
साभार जगदीश्वर चतुर्वेदी जी :
https://www.facebook.com/notes/jagadishwar-chaturvedi/
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