मीना कुमारी जी की 44 वीं पुण्य तिथि पर उनका लिखा और उनका ही गाया यह गीत सुनें :
अज़ीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म !:
'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हिंदी / उर्दू सिनेमा की भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं परदे पर अपने लाज़वाब अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन के दर्द को रूपहले परदे पर साकार करते-करते कब वह ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी न चला होगा। भूमिकाओं में विविधता के अभाव के बावज़ूद उनकी खास अभिनय-शैली और मोहक आवाज़ का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।1939 में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने बेबी मीना के नाम से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया था। नायिका के रूप में 1949 में बनी 'वीर घटोत्कच' उनकी पहली फिल्म थी, लेकिन उन्हें मक़बूलियत हासिल हुई विमल राय की फिल्म 'परिणीता से।1972 की 'गोमती के किनारे' उनकी आखिरी फिल्म थी। 33 साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ कालजयी फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सागर, बहू बेगम, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, आरती, चित्रलेखा, साहब बीवी गुलाम, सांझ और सवेरा, मंझली दीदी, भींगी रात, नूरज़हां, काजल, फूल और पत्थर, पाकीज़ा और मेरे अपने। मीना कुमारी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ अपने असफल दाम्पत्य और तब के संघर्षशील अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ अपने अधूरे प्रेम संबंध की वज़ह से भी चर्चा में रहीं। उनकी बेपनाह भावुकता ने उन्हें नशे की दुनिया में भटकाया, लेकिन उनकी शायरी ने उन्हें मुक्ति भी दी।
मीना कुमारी की पुण्यतिथि पर उन्हें खिराज़े अकीदत उन्ही की एक नायाब नज़्म के साथ !
सुबह से शाम तलक दूसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है कभी सोचने लगता है
यह ज़हन और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ !
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Sanjog Baltar shared OLD is GOLD's photo.
Meena
Kumari ( 1 August 1932 – 31 March 1972), born Mahjabeen Bano was an
movie actress and poet. She is regarded as one of the most prominent
actresses to have appeared on the screens of Hindi Cinema. During a
career spanning 30 years from her childhood to her death, she starred in
more than ninety films, many of which have achieved classic and cult
status today. With her contemporaries Nargis and Madhubala she is regarded as one of the most influential Hindi movie actresses of all time.
Kumari gained a reputation for playing grief-stricken and tragic roles, and her performances have been praised and reminisced throughout the years. Like one of her best-known roles, Chhoti Bahu, in Sahib Bibi Aur Ghulam (1962), Kumari became addicted to alcohol. Her life and prosperous career were marred by heavy drinking, troubled relationships, an ensuing deteriorating health, and her death from liver cirrhosis in 1972.
Kumari is often cited by media and literary sources as "The Tragedy Queen", both for her frequent portrayal of sorrowful and dramatic roles in her films and her real-life story.
Kumari gained a reputation for playing grief-stricken and tragic roles, and her performances have been praised and reminisced throughout the years. Like one of her best-known roles, Chhoti Bahu, in Sahib Bibi Aur Ghulam (1962), Kumari became addicted to alcohol. Her life and prosperous career were marred by heavy drinking, troubled relationships, an ensuing deteriorating health, and her death from liver cirrhosis in 1972.
Kumari is often cited by media and literary sources as "The Tragedy Queen", both for her frequent portrayal of sorrowful and dramatic roles in her films and her real-life story.