** डिजिटलाईज़ेशन के इस युग में बैंक इन्टरनेट, ATM और मोबाईल फोन के ज़रिए कार्य करना चाह रहे हैं। अनावश्यक sms भेजते रहते हैं और उसका चार्ज खाताधारक से काट लेते हैं। इन्टरनेट, ATM से लेन-देन पर भी बैंक द्वारा शुल्क काट लिया जाता है और इन शुल्कों पर सर्विस टैक्स भी जोड़ा जाता है। छह माह से अधिक समय तक कोई लेन-देन न होने पर एकाउंट ठप कर दिया जाता है। फिर से वेरिफिकेशन करने को कहा जाता है। आसमान से भी ऊपर उड़ रही मंहगाई में साधारण इंसान कहाँ से और कैसे बचत करे जो बैंक में जमा किया जा सके। जब नई बचत न हो रही हो तब क्या पुरानी किसी बचत को यों ही निकाल कर उड़ाया जा सकता है। अतः छह माह की अनावश्यक पाबंदी, sms शुल्क व ATM/इन्टरनेट पर लगने वाला चार्ज बैंकों द्वारा समाप्त कराने हेतु साधारण जनता को एकजुट होकर प्रतिवाद करना चाहिए। सरकार बैंकों को केवल धनवानों तक ही सीमित रखना चाहती इसलिए अनावश्यक बोझ जनता पर लाद दिया गया है जबकि पहले चेकबुक, स्टेशनरी आदि सब बैंको की ओर से निशुल्क प्रदान किया जाता था तब भी उनको लाभ रहता था।
यदि प्रतिवाद न किया गया तो साधारण जन का यों ही शोषण होता रहेगा।
यदि प्रतिवाद न किया गया तो साधारण जन का यों ही शोषण होता रहेगा।
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