Thursday, 5 November 2015

संविधान के ढांचे को बचाने की जरूरत है ------ वीरेंद्र यादव

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आरएसएस के प्रवक्ताओं का कहना है कि आज जो लेखक-बुद्धिजीवी प्रतिरोध कर रहे हैं उनमें बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने बनारस में नरेन्द्र मोदी का लोकसभा चुनाव के दौरान विरोध किया था. यह सच भी है क्योंकि बहुतों के साथ बनारस से लेकर दिल्ली तक के प्रतिरोध में मैं स्वयं शामिल रहा हूँ. मोदी के गुजरात के हिंदुत्व माडल को देखते हुए यह अंदेशा था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद समूचे देश में हिन्दुत्ववादी शक्तियां बेलगाम होकर बहुसंख्यकवाद को आक्रामक ढंग से अमल में लायेंगीं . आज देश में कलबुर्गी ,पानसरे सरीखे लेखकों-बुद्धिजीवियों और गाय , .गोमांस व पाकिस्तान के नाम पर निर्दोष अख़लाकों की हत्या से असहिष्णुता का जो वातावरण निर्मित हुआ है इससे चुनाव-पूर्व की आशंका सच साबित हुयी है. देश के बौद्धिक समुदाय का प्रतिरोध चुनाव के पूर्व और चुनाव के बाद देश के संविधान सम्मत जनतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बचाने के सामूहिक दायित्व का निर्वहन था और है. जरूरत है इसे जन-आन्दोलन का रूप देने की .
https://www.facebook.com/virendra.yadav.50159836/posts/1014079911976041?pnref=story



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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