Tuesday, 9 August 2016

क्या ऐसा होगा? ------ विजय राजबली माथुर

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 क्या ऐसा होगा?
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अयोध्या के बाबरी प्रकरण के बाद उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार का अस्तित्व आया था। काशीराम जी को अपने गृह जनपद इटावा से मुलायम सिंह जी ने सांसद तक बनवाया था। यदि यह गठबंधन कायम रहता तो सदा-सर्वदा के लिए उत्तर प्रदेश से भाजपा का अस्तित्व समाप्त हो जाता। अतः संघप्रिय गौतम के माध्यम से मायावती जी को मुलायम सिंह जी के विरुद्ध करके वह सरकार गिरा दी गई। भाजपा के समर्थन से कई बार मायावती जी मुख्यमंत्री बनीं किन्तु उनकी सरकार भाजपा द्वारा ही हर बार गिरा दी गई। इसके बावजूद गुजरात नर-संहार के बाद 2002 में मायावती जी ने अटल व मोदी के साथ भाजपा का वहाँ प्रचार किया था।


2014 के लोकसभा चुनावों से काफी पहले  व्हाईट हाउस में बराक हुसैन ओबामा द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय गोपनीय बैठक की गई थी जिसमें भारत से भी कई दलित कहे जाने वाले चिंतक शामिल हुये थे जिनमें से एक लखनऊ के विद्वान भी थे। वहीं पर मुस्लिमों के विरुद्ध विश्व व्यापी मुहिम चलाये जाने और उसमें प्रत्येक देश के दलित माने जाने वाले लोगों का सहयोग लेने की रूप रेखा तय की गई थी। उसी अनुसार 2014 के लोकसभा चुनावों में समस्त दलित कहे जाने वाले वर्ग का वोट बसपा के बजाए भाजपा को गया था और बसपा का एक भी सांसद न जीत सका था। उसी मुहिम का परिणाम है बसपा से हाल ही में हुई टूटन। मायावती जी को उनके खास लोगों ने उसी अंदाज़ में उनको झटका दिया है जिस अंदाज़ में 1995 में उन्होने खुद मुलायम सिंह जी को झटका दिया था तब उनको भी भाजपा का समर्थन हासिल था जिस प्रकार अब उनको झटका देने वालों को हासिल हुआ है।
2017 के आसन्न चुनावों में यदि बसपा-सपा गठबंधन बना कर चुनाव लड़ा जाये तो अब भी भाजपा के मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है वरना अभी तो भाजपा बसपा को ध्वस्त करने के लिए गोपनीय समर्थन देकर सपा सरकार फिर से बनवा देगी लेकिन उसके बाद सपा को उसी प्रकार तोड़ेगी जिस प्रकार अभी बसपा को तोड़ा है। मायावती जी व मुलायम सिंह जी दूरदर्शिता का परिचय दें तो दीर्घकालीन मजबूत गठबंधन बना कर न केवल उत्तर प्रदेश में वरन सम्पूर्ण देश में भाजपा को परास्त कर सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा होगा?
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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 7 August 2016

हिंदी पत्रकारिता का 'तेज' : राजेंद्र माथुर ------ पंकज श्रीवास्तव


Pankaj Srivastava
आज राजेंद्र माथुर का जन्मदिन है। दिल्ली में नवभारत टाइम्स के संपादक रहे 1982 से 1991 तक। बमुश्किल 56 साल की उम्र पाई लेकिन हिंदी पत्रकारिता को ऐसा 'तेज' दिया कि तमाम नामी अंग्रेज़ी संपादक 'उपग्रह' नज़र आते थे। हाल यह था कि वे रज्जू बाबू के संपादकीय और लेख पढ़कर देश-दुनिया के तमाम विषयों पर अपनी समझ बढ़ाते थे.. राय बनाते थे। हाँ, घर नहीं बना पाए थे और जब उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनक फ़्लैट पर पहुँचे तो मकान मालिक जान पाया कि किरायेदार क्या हस्ती था !
बहरहाल, अब दिल्ली में तमाम फ़ार्म हाउस वाले संपादक हैं। दो-चाार फ़्लैट के मालिक संपादकों की तो गिनती ही नहीं। संपादक जी की कार की लंबाई उनके वास्तविक कद से मीलों ज़्यादा है, लेकिन वे यह नहीं जानते कि सार्क सम्मेलन में केवल अध्यक्ष के भाषण का प्रसारण होता है। बाक़ी कार्रवाई 'इन कैमरा' होती है। वे शान से राजनाथ सिंह के भाषण को प्रसारित न करने को भारत की बेइज्ज़ती करार देते हुए पाकिस्तान से जंग का आह्वान करते हैं। दूसरे दिन जब विदेश मंत्रालय का कोई बाबू प्रसारण रोकने की ख़बर का खंडन करता है तो कुछ 'सम्मानित' अख़बार दसवें पेज पर छोटी सी ख़बर छाप देते हैं। बाक़ी में इतनी भी शर्म नहीं.! चैनलों से तो उम्मीद करना ही क़ुफ़्र है ! सोचिये, क्या ही अच्छे दिन आये हैं.. संपादकों को सरकारी बाबू 'ज्ञान' पिला रहा है !
कई बार लगता है कि रज्जू बाबू का 1991 में मरना एक रूपक है। उदारीकरण की शुरुआत के साथ तमाम प्रतिभाओं को बौना बनाने का जो क़ामयाब उपक्रम चला, उसमें रज्जू बाबू कहाँ फिट होते। रोज़-रोज़ मरने से तो अच्छा था कि तभी मर गये।
हो सके तो माफ़ कर देना सर, हाँलाकि हम इस लायक़ नहीं हैं । 
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Friday, 5 August 2016

प्रकृतिक नहीं मानवीय हैं विपदाएं ------ बद्रि नारायण

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 4 August 2016

विश्व बंधुत्व की भावना का परित्याग भारत की मूल भावना की समाप्ती होगा ------ हरजिंदर

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश