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यह दिल्ली में रहने वाले एक परिवार की लड़की का दर्द है...। इस परिवार के दिमाग पर टीवी है, और टीवी में एबीवीपी का आतंक है... उसकी गुंडागर्दी है... थोड़ा बोलने वाली लड़की को दी जाने वाली बलात्कार की धमकी है... बाल पकड़ कर घसीटी जाती लड़कियां हैं... लड़कियों को अपने पैंट खोल कर यौनांग दिखाते स्टूडेंट्स के नाम पर कुछ गुंडे-लुच्चे-लफंगे हैं... और इन सबके बीच अपनी बेटी की फिक्र है...।
इस फिक्र में पता नहीं कितने-कितने पहलू छिपे हैं..। यह फिक्र है कि सत्ता है... यह लड़की के आखिरी हश्र पर तय होगा...।
जेएनयू में चारों तरफ कंडोम बिखरे पड़े हैं... डीयू में लड़कियों को बलात्कार की धमकी है... सभी कॉलेज में लड़़कियों के 'चरित्र' पर... 'इज्जत' पर आंच है... इसलिए लड़कियों को कॉलेज में नहीं जाना चाहिए...। परिवार की औकात है तो पांच-दस लाख खर्च करके प्राइवेट कॉलेजों में जाइए या फिर बकौल मोहन भागवत तसल्ली से रसोई के काम में कारीगरी हासिल कीजिए...।
इस आईने में दिल्ली से बाहर के राज्यों, जिलों, कस्बों में मौजूद परिवारों के बारे में सोचिए कि वहां बजरिए टीवी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को लेकर कौन-सी छवि बन रही होगी... और उन घरों की दहलीज से निकल कर कॉलेज के जरिए नए सपने देखना लड़कियों के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा..।
तो क्या एजेंडा यही है कि पिछले बीस-तीस सालों के दौरान लड़कियों ने... और दलित-वंचित जातियों के बच्चों ने कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के जरिए जो थोड़ा सिर उठा कर चलने के सपने देखना शुरू किया था, उन्हें वापस अपनी हैसियत पर लौटा देना है...?
नहीं लड़की... बदनामी अगर बदनामी ही है... तो इस बदनामी की कोई भी जोखिम उठा लेना... लेकिन घर की दहलीज के भीतर मत लौटना...। चारदिवारियों में कैद 'इज्जत' के झूठे दिलासे दरअसल गुलामी की जंजीरें हैं... जो जिंदगी के... जीने के हर ख्वाब छीन लेती हैं...।
https://www.facebook.com/bindubikash.ojah/posts/790366574445726?comment_id=790499701099080&comment_tracking=%7B%22tn%22%3A%22R2%22%7D
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Bindu Bikash Ojha
आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की ने कहा- 'घर वाले कहते हैं कि अब कॉलेज-वॉलेज छोड़ो... वे अपनी पसंदीदा टीवी चैनल [पर पसरे आतंक और हंगामे को] देख कर यह फरमान सुनाते हैं..।' इसके आगे शायद उसकी आवाज घुट कर रह गई..। वह शायद यह कहना चाहती थी कि कितनी-कितनी जद्दोजहद के बाद घर की चारदिवारी के बाहर निकल सकने और कॉलेज के जरिए अपना आसमान तलाशने का... अपने भरोसे खड़ा हो सकने का... अपनी तरह से जीने की उम्मीद पालने का मौका मिल सका है... अब शायद वह छिन जाएगा..।यह दिल्ली में रहने वाले एक परिवार की लड़की का दर्द है...। इस परिवार के दिमाग पर टीवी है, और टीवी में एबीवीपी का आतंक है... उसकी गुंडागर्दी है... थोड़ा बोलने वाली लड़की को दी जाने वाली बलात्कार की धमकी है... बाल पकड़ कर घसीटी जाती लड़कियां हैं... लड़कियों को अपने पैंट खोल कर यौनांग दिखाते स्टूडेंट्स के नाम पर कुछ गुंडे-लुच्चे-लफंगे हैं... और इन सबके बीच अपनी बेटी की फिक्र है...।
इस फिक्र में पता नहीं कितने-कितने पहलू छिपे हैं..। यह फिक्र है कि सत्ता है... यह लड़की के आखिरी हश्र पर तय होगा...।
जेएनयू में चारों तरफ कंडोम बिखरे पड़े हैं... डीयू में लड़कियों को बलात्कार की धमकी है... सभी कॉलेज में लड़़कियों के 'चरित्र' पर... 'इज्जत' पर आंच है... इसलिए लड़कियों को कॉलेज में नहीं जाना चाहिए...। परिवार की औकात है तो पांच-दस लाख खर्च करके प्राइवेट कॉलेजों में जाइए या फिर बकौल मोहन भागवत तसल्ली से रसोई के काम में कारीगरी हासिल कीजिए...।
इस आईने में दिल्ली से बाहर के राज्यों, जिलों, कस्बों में मौजूद परिवारों के बारे में सोचिए कि वहां बजरिए टीवी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को लेकर कौन-सी छवि बन रही होगी... और उन घरों की दहलीज से निकल कर कॉलेज के जरिए नए सपने देखना लड़कियों के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा..।
तो क्या एजेंडा यही है कि पिछले बीस-तीस सालों के दौरान लड़कियों ने... और दलित-वंचित जातियों के बच्चों ने कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के जरिए जो थोड़ा सिर उठा कर चलने के सपने देखना शुरू किया था, उन्हें वापस अपनी हैसियत पर लौटा देना है...?
नहीं लड़की... बदनामी अगर बदनामी ही है... तो इस बदनामी की कोई भी जोखिम उठा लेना... लेकिन घर की दहलीज के भीतर मत लौटना...। चारदिवारियों में कैद 'इज्जत' के झूठे दिलासे दरअसल गुलामी की जंजीरें हैं... जो जिंदगी के... जीने के हर ख्वाब छीन लेती हैं...।
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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