जन गण मन की बात - एपिसोड 248 में विनोद दुआ ने बताया है कि, राष्ट्रपति जैल सिंह ने कहा था कि वह इंदिराजी के कहने पर ' झाड़ू लगाने को भी तैयार हैं' । '
या तो विनोद दुआ भूल गए हैं या जानबूझ कर गलत बता रहे हैं । वस्तुतः ज्ञानी जैल सिंह इन्दिरा गांधी सरकार में गृह मंत्री थे जब उनको राष्ट्रपति के रूप में प्रत्याशी बनाने का निर्णय हुआ था और चूंकि ऐसा होने पर ज्ञानी जी को सक्रिय राजनीति से अलग होना था तब पत्रकारों के यह पूछने पर कि क्या आप राष्ट्रपति बनने को तैयार हैं ? ज्ञानी जी ने उत्तर में वह बात कही थी : कि वह इंदिराजी के कहने पर ' झाड़ू लगाने को भी तैयार हैं' । ' लेकिन तब वह राष्ट्रपति नहीं थे उस पद के लिए तब उनका नाम प्रस्तावित हुआ था। द वायर का यह एपिसोड देखने वाले नई पीढ़ी के लोग तो गुमराह हो जायेणे और ज्ञानी जी को गलत समझ लेंगे।
*राष्ट्रपति के रूप में पहले तो राजीव गांधी को इंदिराजी की मृत्यु के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नियुक्त करके उन्होने देश में अस्थिरता होने से बचाव किया। यदि पूर्व परंपरा के अनुसार तत्कालीन गृहमंत्री पी वी नरसिंघा राव को कार्यावाहक पी एम बना देते तब वह पद पर कायम रहने के लिए पार्टी तोड़ देते वह कोई गुलजारी लाल नंदा की तरह ( जिनहोने दो - दो बार कार्यवाहक पी एम रहने के बावजूद पार्टी को नहीं तोड़ा ) सरलता से नहीं हट जाते इसलिए ज्ञानी जी ने सीधे ही राजीव गांधी को पी एम की शपथ दिला दी थी।
** राजीव गांधी के विदेश राज्यमंत्री के के तिवारी ने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को आतंकवाद का संरक्षक बता दिया था इसलिए राजीव गांधी से उन्होने के के तिवारी को मंत्रीमंडल से हटाने को कहा था और उनको न हटाने पर अपने उत्तरवर्ती आर वेंकटरमन के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार करने की चेतावनी दे दी थी जिस कारण के के तिवारी को स्तीफ़ा देना ही पड़ा।
अतः ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति के रूप में कमजोर बताना उनके प्रति घोर अन्याय का प्रतीक है।
*** डॉ शंकर दयाल शर्मा ने क्षेत्रीय और जातिवादी दृष्टिकोण से ए बी बाजपेयी को बहुमत न होते हुये भी शपथ दिला दी थी। लेकिन यह तथ्य विनोद दुआ छिपा ले गए।
**** कर्नाटक के राज्यपाल के गलत फैसले की आड़ में विनोद दुआ राज्यपाल पद को ही अनुपयोगी और औपनिवेशिक ( 1935 के GOI एक्ट पर अवलंबित ) बता रहे हैं। वस्तुतः वह जनसंघ और आर एस एस की पुरानी मांग को ही बल प्रदान कर रहे हैं जिसमें वे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का सीधा चुनाव चाहते थे और राष्ट्रपति तथा राज्यपाल का पद समाप्त करने को कहते थे। अब वही बात द वायर के माध्यम से विनोद दुआ फिर से उठा रहे हैं।
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