* जिन्ना का जन्म भारतीय मुसलमानों को दारुण दुख देकर उन्हें नुकसान पंहुचाने , और हर तरह की साम्प्रदायिक ताकतों को लाभ पंहुचाने के लिए हुआ है । अब वह मरणोपरांत भी भारतीय मुसलमानों के लिए एक बड़ी आपदा , और संघ परिवार के लिए ढाल बनने जा रहा है ।
** जिन्ना की समझ मे यह बेसिक बात नहीं आयी , कि जिस मुस्लिम क़ौम का एकछत्र भाग्य विधाता होने का वह दावा कर रहा है , भारतीय जुलाहों में सबसे बड़ी तादाद उन्हीं की है । एक व्यक्ति के खादी पहनने से कितने ही मुस्लिम किसानों , कत्तीनों , जुलाहों और दर्ज़ियों का चूल्हा जलता है ।
*** जिन्ना को बढ़िया से जानो और सावरकर को समझो। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार की साझेदार बनी हिन्दू महासभा क्या हिन्दुत्व का झाल बजाने जिन्ना से गलबहियाँ करने गयी थी?
**** जिन्ना इतिहास का वो अध्याय है जो हिन्दू महासभा की कलई उतारता है। ------ नवेन्दु कुमार
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
उसकी अलीगढ़ के विश्व विद्यालय में लगी एक तस्वीर के सिवा वह भारतीय मुस्लिमों का रहनुमा कभी नहीं रहा । जो मुस्लिम उसे अपना इमाम मानते थे , वे तभी उसके साथ पाकिस्तान चले गए थे , और उन्होंने नरक भोगा ।
वस्तुतः जिन्ना इस सचाई को जान अत्यधिक कुंठित रहता था , कि भारत मे गांधी पर विश्वास करने वाले मुस्लिमों की तादाद उसके मुक़ाबले काफी ज्यादा है ।
जिस प्रकरण पर जिन्ना कांग्रेस से छिटक कर अलग हुआ , वह बहुत मामूली और हल करने योग्य था । कांग्रेस का नेतृत्व गांधी के हाथ मे आने के बाद , इस पार्टी ने खादी और हिंदी को लेकर टेक पकड़ ली थी । कांग्रेस अधिवेशन में जिन्ना की हूटिंग भी सूट बूट पहनने और अंग्रेज़ी में भाषण झाड़ने के कारण हुई थी । वह गुजराती अथवा टूटी फूटी हिंदी में भी भाषण दे सकता था । स्वयं गांधी भी उसी की तरह गुजराती थे , और अंतिम समय तक अशुद्ध व्याकरण वाली हिंदी बोलते रहे । लेकिन उनकी अशुद्ध हिंदी भी व्याकरणाचार्यों पर भारी पड़ती थी । जिन्ना गुजराती में भी भाषण दे सकता था , बजाय इंग्लिश के , जो उसे आती थी । दक्षिण के एक बड़े राष्ट्रीय नेता के कामराज मरते दम तक तमिल बोलते रहे । लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रतिष्ठा में कमी न आई । स्वयं गांधी के समधी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अंग्रेज़ी में वार्तालाप करते थे । उन्हें भी हिंदी नहीं आती थी । गांधी हर बार उन्हें चेतावनी देते थे , कि मैं इस बार आपको अंतिम अवसर दे रहा हूँ । अगली बार आपसे हिंदी में बात करूंगा , अन्यथा कोई बात नहीं करूंगा । यस , नेक्स्ट टाइम श्योर , कह कर राजा जी उन्हें बहला देते । जिन्ना भी यही सब कुछ करते हुए बीच का रास्ता निकाल सकता था । पर उस जैसे दम्भी मनुष्य के लिए यह कैसे सम्भव था ?
रही खादी की बात । सो तन मन से बीमार जिन्ना की समझ मे यह बेसिक बात नहीं आयी , कि जिस मुस्लिम क़ौम का एकछत्र भाग्य विधाता होने का वह दावा कर रहा है , भारतीय जुलाहों में सबसे बड़ी तादाद उन्हीं की है । एक व्यक्ति के खादी पहनने से कितने ही मुस्लिम किसानों , कत्तीनों , जुलाहों और दर्ज़ियों का चूल्हा जलता है ।
शैतान किसी प्रदूषण कारी वाहन की तरह अपने गुज़र जाने के बाद भी अपने पीछे दूषित धुएं की लकीर छोड़ जाता है । जगद्गनियंता इस महा देश को शैतान के आफ्टर इफेक्ट से बचाये ।
जिन्ना को बढ़िया से जानो और सावरकर को समझो। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार की साझेदार बनी हिन्दू महासभा क्या हिन्दुत्व का झाल बजाने जिन्ना से गलबहियाँ करने गयी थी?
नहीं देश हिंदोस्तान को तोड़ने के षड्यन्त्र का रिहर्सल कर रहे थे सत्ता के भूखे मुस्लिम-हिन्दू विघटन के सियासी सरदार। जिन्ना इतिहास का वो अध्याय है जो हिन्दू महासभा की कलई उतारता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय में लगे जिन्ना के चित्र को श्रद्धा का नहीं , अपितु इतिहास का विषय मानना चाहिए। इस विश्व विद्यालय की स्थापना सर सैयद अहमद खां ने की थी , जो भले ही अंग्रेजों के हिमायती थे , पर मुस्लिमों में आधुनिक शिक्षा के प्रबल पक्षधर भी थे। इस लिहाज से उनका दृष्टिकोण रूढ़िवादी मौलवियों से भिन्न था।
जिन्ना का यह चित्र आज कल नहीं लगा , बल्कि 1938 में लग चुका था। जबकि इससे पहले इसी विश्व विद्यालय में महात्मा गांधी का चित्र लग चुका था , जो आज भी है।
जिन्ना अकस्मात एवं परिस्थिति वश मुस्लिमों का धर्म ध्वजी बना। अन्यथा वह पाश्चात्य रहन सहन का आदी एक वकील था , और ऐसी चीजें खाता पीता था , जिनका नाम सुन कर ही धर्म ग्राही मुस्लिमों को कै आने लगती है। भारत की राजनीति में अनफिट होकर वह लन्दन जा बसा था। क्योंकि उसे न हिंदी आती थी और न उर्दू। उसे लन्दन से कई साल बाद शायर इक़बाल भारत वापस लाये , क्योंकि तब तक द्विराष्ट्र बाद का सिद्धान्त जन्म ले चुका था , और एक मुस्लिम राष्ट्र की पैरवी के लिए जिन्ना जैसे कानून जानने वाले और कुतर्क करने वाले वकील की ज़रूरत थी।
द्वित्तीय विश्व युद्ध के उपरांत जब राज्यों में सरकारों का गठन हुआ , तो बंगाल में उसकी पार्टी मुस्लिम लीग के साथ हिन्दू महा सभा भी सरकार में साझीदार थी। क्योंकि दोनों देश को तोड़ने में विश्वास रखते थे , और आज भी रखते हैं।
वह अपने गुजराती सम प्रदेशीय गांघी से बहुत द्वेष रखता था , और उन्हें चिढ़ाता था। उनके सामने वार्ता के लिए बुलाई गई बैठकों में सिगरेट फूंकता रहता था , और उनकी बकरी की ओर ललचाई बुरी नज़रों से देखता था। फिर भी गांधी उसकी क्षुद्रताओं को बर्दाश्त करते थे , और उसे क़ायदे आज़म की संज्ञा उन्हीने दी थी।
गांघी ने देश विभाजन रोकने का भरसक प्रयत्न किया , लेकिन जब जिन्ना ने गृह युद्ध की धमकी दी तो वह मन मसोस कर रह गए।
पाकिस्तान बनने के बाद वह तत्काल धर्म निरपेक्ष बन गया , जो असल मे वह था भी। पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष के रूप में दिए गए अपने पहले भाषण से ही वह वहां के कट्टरपंथियों की किरकिरी बन गया , क्योंकि उसने कहा था कि इस देश मे हर धर्मावलंवी को अपना धर्म मानने की छूट है। इसके कुछ ही समय बाद वह tb से मर गया । अगर न मरता , तो मुस्लिम कट्टर पंथी उसे मारने वाले थे , जैसा कि भारत में हिन्दू कट्टरपंथियों ने गांधी को मारा।
जब वह मरने वाला था , और उसकी बहन उसे कराची से इस्लामाबाद लायी , तो हवाई अड्डे पर उसे रिसीव करने वाला कोई न था। यही नहीं , उसे वहां से हॉस्पिटल तक लाने के लिए एक खटारा एम्बुलेंस भेजी गई , जो रास्ते मे खराब हो गयी , और जिन्ना उसमे तड़पता रहा।
वह अपने अंतिम दिनों में देश विभाजन की अपनी भूल को महसूस करने लगा था , साथ ही यह भी कि वह अपने लाखों धर्म बन्धु मुस्लिमों की हत्या का उत्तरदायी है। आज भारतीय उप महाद्वीप में मुस्लिम जिन्ना की वजह से ही अब तक आक्रांत हैं। आज देश विभाजित न होता , तो भारत विश्व का नम्बर 1 मुल्क़ होता।
बहरहाल, जिन्ना की तसवीर हमारा क्या बिगाड़ेगी , जब जिन्ना खुद कुछ न बिगाड़ पाया। उसकी तस्वीर लगी रहने दो। वह भारतीय मुसलमानों का आदर्श कभी नहीं रहा , कभी नहीं रहेगा। समय समय पर इतिहास का तापमान परखने के लिए उसकी तस्वीर ज़रूरी है।
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