* बिहार में तेजस्वी बूथ और गांव लेवल पर
* * कांशीराम वाले बसपा की तरह काम नहीं
* * * अखिलेश सिर्फ फैंसी रैली करते हैं
Prashant Kanojiya
2019 में होने वाले चुनाव से पहले ही भाजपा 30 फीसदी काम पूरा कर चुकी है. उसने बूथ तक पहुँचने के लिए हर संभव प्रयास किया है. भाजपा जिस प्रकार चुनाव लड़ती है ये कबीले तारीफ है. नैतिकता की बात करने की जरूरत नहीं, क्योंकि राजनीति इसी का नाम है. 2019 लोकसभा चुनाव पर सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तर प्रदेश और बिहार डालेंगे. बिहार में तेजस्वी जिस प्रकार गांव स्तर पर काम कर रहे हैं, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि भाजपा के अलावा अगर कोई दल बूथ और गांव लेवल पर काम कर रहा है, तो वो राजद है.
कांशीराम वाले बसपा की तरह काम नहीं :
अब रही बात उत्तर प्रदेश की. मायावती का अपना काडर और वोटबैंक हैं, उसे मेहनत अपने वोटबैंक को बढ़ाने के लिए करना होगा. लेकिन बसपा अब कांशीराम वाले बसपा की तरह काम नहीं कर रही तो ज्यादा कोई फर्क नहीं आपयेगा.
अखिलेश सिर्फ फैंसी रैली करते हैं :
अब आते हैं अखिलेश यादव पर. युवा मुख्यमंत्री होने के नाते युवा वर्ग में लोकप्रियता है पर उसे वोट में तब्दील करवाने की क्षमता नहीं है. 2019 का चुनाव नज़दीक है, लकिन पार्टी का बूथ तो छोड़ो विधानसभा पर कोई ठोस काम नहीं हो रहा है. 90 फीसदी जिला अध्यक्ष (सभी इकाई) के लखनऊ में पड़े रहते हैं. उन्हें अभी तक पता नहीं है कि भाजपा की सरकार में वो ठेकेदारी दिलाने या लेने का काम नहीं कर पाएंगे. पार्टी के 90 फीसदी लोग न लोहिया को जानते हैं और न ही समाजवाद का स.
अखिलेश के पास ख़राब सलाहाकारों की फौज है, जिसने डूबने में कोई कसर नहीं छोड़ा. अखिलेश कान के कच्चे हैं और खुद से परखने से ज्यादा सलाहकार कान में बताते हैं उसपर विश्वास करते हैं. शिवपाल की नाराजगी के बाद बूथ लेवल ध्वस्त है. अखिलेश सिर्फ फैंसी रैली करते हैं, गांव स्तर पर नहीं जाते. बूथ से ज्यादा ट्विटर पर भरोसा करते हैं. अखिलेश से कार्यकर्ताओं को मिलने के लिए बड़ा फ़िल्टर पार करना होता है. सामाजिक न्याय पर कंफ्यूज हैं. खुद को कोर वोटर नहीं है, वही वोटर है जो भाजपा और कांग्रेस के पास है.
मुलायम ग्राउंड के आदमी का सुझाव नकार कर चुनाव लड़ कर न जीत पाने वाले रामगोपाल यादव पर ज्यादा भरोसा है, जो ग्राउंड का 1 फीसदी काम भी नहीं जानते. बिहार में भाजपा रुक जाएगी लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी हालात के हिसाब से नामुमकिन है.
प्रशांत कनौजिया
साभार :
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