Thursday 10 May 2018

क्रान्तिकारियों की शहादत एक ऐसे मुल्क के सपने के लिए थी जो बराबरी, समानता और शोषण से मुक्त हो ------ जया सिंह



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Jaya Singh
10-05-2018

संघ-भाजपा द्वारा जारी ‘देशभक्ति’ के शोर के बीच हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि देश क्या है? और देशभक्ति किसे कहते हैं? देश कोई कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता है, यह बनता है वहाँ के लोगों से, जनता से। और देश भक्ति के असली मायने है जनता से प्यार, इनके दुख तकलीफ़ से वास्ता और इनके संघर्ष में साथ देना। देशभक्ति की बात करते हुए अगर इस देश की आजादी की लड़ाई पर नजर डाली जाय तो आज भी हमारे जेहन में जो नाम आते हैं वे हैं: शहीद भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, अशफ़ाक-उल्ला, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’। देशभक्ति के लिए देश के अर्थ को समझना बेहद जरूरी है और यह भी जानना जरूरी है कि देश के लिए कुर्बान होने वाले इन शहीदों ने किसके लिए अपनी जान की बाजी लगायी थी? आज यह एक आम आदमी भी समझ सकता है कि देश कागज़ पर बना महज एक नक्शा नहीं होता। न ही केवल जमीन का एक टुकड़ा होता है। देश बनता है वहाँ रहने वाली जनता से। वह जनता जो उस देश की जरूरत का हर एक साजो सामान बनाती है, वह किसान और खेतिहर मजदूर जो अनाज पैदा करते हैं वह जनता जो देश को चलाती है। क्या इस जनता के दुःख-तकलीफ में शामिल हुए बिना, उसके संघर्ष में भागीदारी किये बिना कोई देशभक्त कहला सकता है? भगतसिंह के लिए क्रान्ति और संघर्ष का मलतब क्या था? वह किस तरह के समाज के लिए लड़ रहे थे? 6 जून 1929 को दिल्ली के सेशन जज की अदालत में दिये भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त के बयान से स्पष्ट होता हैः

‘क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है- अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मजदूरों को उनके प्राथमिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। दुनियाभर के बाजारों को कपड़ा मुहैया करानेवाला बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढँकने-भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्वयं गन्दे बाड़ों में रहकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूँजीपति जरा-जरा सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा कर देते हैं। यह भयानक असमानता और जबर्दस्ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उथल पुथल की तरफ लिए जा रहा है। यह स्थिति बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सकती। स्पष्ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ढ की कगार पर चल रहे हैं।’(भगतसिंह और उनके साथियों के उपलब्ध सम्पूर्ण दस्तावेज, सं- सत्यम, पृष्ठ- 338)

भगतसिंह के लिए देशभक्ति का मतलब था- जनता के लिए शोषणमुक्त समाज बनाने का संकल्प। आज़ादी की लड़ाई में क्रान्तिकारियों की शहादत एक ऐसे मुल्क के सपने के लिए थी जो बराबरी, समानता और शोषण से मुक्त हो। जहाँ नेता और पूँजीपति घपलों घोटालों से देश की जनता को न लूटें।

मगर भाजपा के ‘देशभक्त’ क्या कर रहे हैं? क्या इस देश की जनता को याद नहीं है कि कारगिल के शहीदों के ताबूत तक के घोटाले में इसी भाजपा के तथाकथित देशभक्त फँसे थे। सेना के लिए खरीद में दलाली और रिश्वत लेते हुए भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण पकड़े गए थे। मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला और उससे जुड़ी हत्याएं देश की जनता भूली नहीं होगी। भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव कैमरे पर रिश्वत लेकर यह बोलते हुए पकड़े गए थे कि ‘पैसा खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं’। क्या जब देश की जनता महँगाई की मार से परेशान थी तभी मोदी सरकार ने पूँजीपतियों के कर्ज माफी की घोषणाएँ नहीं की? ऐसे हैं ये ‘राष्ट्रवादी’ और यही है संघ और भाजपा की ‘देशभक्ति’।


आज बात-बात पर देशभक्ति का प्रमाण-पत्र बाँटने वाले संघ-भाजपा गिरोह की असलियत जानने के लिए हमें एक बार स्वतन्त्रता आन्दोलन में इनकी करतूतों के इतिहास पर नजर डाल लेनी चाहिए।
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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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