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News Times 24 Published on Jan 13, 2019 अपने लिंक्ड-इन अकाउंट पर एक कविता पोस्ट की है, जिसके जरिए इस मामले पर उन्होंने तंज कसा है। चंद्रकला इसमें लिखती हैं, ‘छुओ ना मेरी हस्ती को, फूंक दूंगी तेरी बस्ती को’... IAS चंद्रकला ने शेयर की कविता, लिखा- ‘छुओ ना मेरी हस्ती को, फूंक दूंगी तेरी बस्ती को ’ सीबीआई ने जनवरी के पहले हफ्ते में बी चंद्रकला के लखनऊ स्थित घर पर छापामेरी की। छापे के बाद सीबीआई ने दावा किया कि चंद्रकला के घर से अहम दस्तावेज जब्त हुए। इसके अलावा चंद्रकला पर हमीरपुर में कलेक्टर रहते अवैध खनन और साल 2012 में पहचान के लोगों को खनन पट्टे देने का आरोप लगाया। नियम के मुताबिक ये पट्टे ई-टेंडर के जरिए देने जाने चाहिए थे। इसके मामले के बाद चंद्रकला ने अपने लिंक्ड-इन अकाउंट पर एक कविता पोस्ट की है, जिसके जरिए इस मामले पर उन्होंने तंज कसा है। चंद्रकला इसमें लिखती हैं, ‘छुओ ना मेरी हस्ती को, फूंक दूंगी तेरी बस्ती को’... चंद्रकला लिखती हैं- संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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नर - नारी की समानता की आवाज़ उठाने वाली महिला नेत्रियों का एकपक्षीय दृष्टिकोण उजागर :
यदि शहीद पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति अपने अखबार में आवाज़ न उठाते
और यदि CBI अधिकारी दबाव के बावजूद निर्भीकता व निष्पक्षता न बरतते एवं जज साहब भी निर्भीक व निष्पक्ष निर्णय न देते तो साध्वी को न्याय कहाँ से मिलता ? किन्तु इन लोगों के पुरुष होने के कारण पुरुष विरोधी महिला नेत्रियों ने एक शब्द भी कहना मुनासिब नहीं समझा। ऐसी ही नर - नारी समानता समाज को चाहिए क्या ? 20 दिसंबर 1991 को प्रदर्शित महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म 'सड़क ' वेश्या वृत्ती के गैर कानूनी कारोबार को उजागर करने और ध्वस्त करने की एक साहसिक प्रेरणा देती है। नायक रवि ( संजय दत्त ) का सहयोग न मिलता तो क्या पूजा ( पूजा भट्ट ) जिसे उसके अपने चाचा ने ही इस नर्क में धकेला था क्या बच सकती थी ? अब से 26 वर्ष पूर्व आई इस फिल्म से जनता ने कोई सबक नहीं लिया और ढोंगियों के फेर में युवतियाँ फँसती रही हैं या उनके रिशतेदारों द्वारा ही फंसाई जाती रही हैं। राम रहीम मामले में भी साध्वियाँ और उनके परिवार स्वेच्छा से ही फंसे थे। किन्तु साहसी पत्रकार जो शहीद भी हुआ यदि छाप कर सार्वजनिक न करता और जज व CBI अधिकारी साहस न दिखाते तब यह न्याय मिलना संभव न होता किन्तु नारीवादी नेत्रियों को पुरुषों को उनका श्रेय देना गवारा न हुआ। ये महिला संगठन यदि अब भी जनता को जाग्रत करें और इन ढोंगियों से महिलाओं व युवतियों को बचाएं तो देश व समाज का भला हो सकता है। 'सड़क ' की तरह संदेषपरक फिल्में अब नहीं बन रही हैं लेकिन मुकेश भट्ट ने इसका सीकवल बनाने की घोषणा की है जिसमें आलिया भट्ट की भूमिका संजय दत्त व पूजा भट्ट की बेटी के रूप मे होगी। संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता।
उठो और जागोःसंवैधानिक मान्यताएं खतरे में हैं बिहार के घटनाक्रम को मात्र भ्रष्टाचार का मामला न समझें।नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार कई स्तरों पर संवैधानिक मान्यताओं और परंपराओं को नष्ट करने का काम कर रही है।अफसोस की बात है आम लोगों को यह नजर ही नहीं आ रहा।हो सकता है लालू यादव के परिवार ने भ्रष्टाचार किया हो लेकिन उससे लड़ने और निबटने के लिए महागठबन्धन को तोड़ना तो गले नहीं उतरता। महागठन्धन जब बना था तब भी बिहार और लालू के परिवार में भ्रष्टाचार था,लेकिन एक अंतर था,महागठबंधन का निर्माण साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया गया था।उसके उद्देश्यों में कहीं पर भ्रष्टाचार का जिक्र नहीं है।लेकिन बिहार में चीजें जिस तरह संचालित की गयी हैं, न्यायपालिका की देश में जिस तरह खुली अवहेलना हो रही है, संसदीय मर्यादाओं को ताक पर रखकर जिस तरह हंगामे किए जा रहे हैं,मीडिया को सत्य और विवेक की हत्या के लिए जिस तरह नग्नतम रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है वह अपने आपमें विरल घटना है। बिहार में जदयू का महागठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ सरकार बनाना ,कोई साधारण घटना नहीं है।यह घटना संकेत है कि संसदीय लोकतंत्र और जनादेश की हमारे नेताओं में कोई इज्जत नहीं है। उल्लेखनीय है इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं लेकिन बिहार हर मामले में अजूबा है,इसबार समूचे जनादेश को ही पलट दिया गया । बिना दल-बदल के समूचे जदयू का स्वैच्छिक भाव से राजनीतिक मन परिवर्तन करके रख दिया गया है। मात्र कुछ एफआईआर के बहाने, कुछ छापों के बहाने यह सब हुआ है।इसका अर्थ यह भी है कि मोदी से लेकर नीतीश कुमार तक किसी के मन में जनादेश को लेकर कोई वचनवद्धता नहीं है।*** असल में मोदीजी ने समूची राजनीति में पैसे और सत्ता की भूमिका को महानतम बना दिया है।इस भूमिका को आमलोगों के जेहन में उतारने में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है। मोदी फिनोमिना की सबसे बड़ी विशेषता है कि अब भाजपा कहीं पर आंदोलन नहीं करती, सिर्फ मीडिया हमले करवाती है, संगठित प्रचार अभियान चलाती है और उसके बाद लक्ष्य को निशाना बनाकर गिरा देती है।भाजपा की समूची रणनीति यह है कि हर हालत में भाजपा और मोदी का वैचारिक-प्रशासनिक वर्चस्व मानो।इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद और मीडिया के हठकंड़ों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। भाजपा-मोदी का वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक बात आम लोगों के जेहन में उतारी जा रही है कि ´मोदी सही और बाकी गलत´,मोदी की मानो,चैन से रहो।मोदी की मनवाने के लिए पहले प्यार से घूस देकर फुसलाया जाता है, बाद में मीडिया के कोड़े लगवाए जाते हैं,अंत में प्रशासनिक हमले होते हैं।मसलन्,यदि आप विपक्ष में हैं तो पहले भाजपा कोशिश करती है कि आप उसके साथ चले जाएं,यदि साथ नहीं जाते तो दल-बदल कराया जाता है, दल-बदल से भी मामला न संभले तो मीडिया हमले कराकर बदनाम किया जाता है, तब भी न संभले तो सीबीआई-आईडी आदि के छापे और मीडिया से अहर्निश बदनामी करके हर एक्शन को देशहित, ईमानदारी की रक्षा में,जनता की सेवा में समर्पित कर दिया जाता है।इस समूची प्रक्रिया में सत्य क्या यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता ,सिर्फ मीडिया में जो बताया गया है वह महत्वपूर्ण रह जाता है।मीडिया के जरिए दिमागों की इस तरह की नाकेबंदी ने हमारे सोचने-समझने और स्वतंत्र रुप से फैसले लेने की क्षमता पूरी तरह खत्म कर दी है।अब हम मीडिया में जो कहा जा रहा है उसे सत्य, न्याय, जनहित आदि के पैमानों पर नहीं परखते अपितु हमारी आदत हो गयी है कि मीडिया में जो कहा जा रहा उसे आँखें बंद करके मानने लगे हैं। मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता। मोदी के गुण क्या हैं, मोदी ने कौन सा अच्छा काम किया है, ये चीजें मोदी प्रेम का आधार नहीं हैं बल्कि ´घृणा´ही मोदी प्रेम का आधार है। इस ´घृणा´को हम हर मसले पर मीडिया प्रस्तुतियों में सक्रिय भूमिका अदा करते सहज ही देख सकते हैं। मसलन् , मीडिया वाले गऊ गुंडई से लेकर तेजस्वी प्रकरण तक इसे साफतौर पर देख सकते हैं।यानी ´घृणा´का इतने व्यापक मॉडल के रूप में भारत में प्रयोग विगत ढाई हजार सालों में कभी नहीं देखा गया।हमारे यहां ´घृणा´थी लेकिन नैतिक रूप में। एक वैचारिक अस्त्र के रूप में मोदी ने इसका आविष्कार करके देश को गहरे संकट में डाल दिया है।अब हम गलत में मजा लेने लगे हैं,गलत हमें अच्छा लगने लगा है।यह ´घृणा´के मॉडल की सबसे बड़ी उपलब्धि है।´घृणा´के मॉडल की विशेषता है सभी किस्म के तर्क और विवेक का अंत। मोदी के व्यक्तित्व के सामने आज हम इस कदर अभिभूत हैं कि किसी भी चीज को वास्तव रूप में देखना ही नहीं चाहते।वास्तव से नफरत करने लगे हैं। https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1727740463921320 *** :