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Friday, 6 October 2017

जनता दीदउ के झांसे में न फंसे ------

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प्रोफेसर बलराज मधोक  ( DAV कालेज , जम्मू )  द्वारा आर एस एस की दीक्षा में दी जाने वाली दक्षिणा को प्रश्नांकित करने के कारण जब  हटाया गया तब पंडित दीन दयाल उपाध्याय को जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया था। विचारधारा के बारे में उपरोक्त वीडियोज़ में विस्तृत चर्चा है। परंतु वह निर्विवाद रूप से एक ईमानदार व सादगी पसंद व्यक्ति थे। लेकिन 1967 में बनी संविद ( ULP ) सरकारों में शामिल जनसंघी मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुये थे। उनके संबंध में एक जांच रिपोर्ट लेकर उस पर विचार करने हेतु जब वह 1968 में  रेल यात्रा कर रहे थे ऐसे भ्रष्ट मंत्रियों की योजना के अंतर्गत उनकी हत्या कर मुगल सराय के रेलवे यार्ड में फेंक दिया गया था और  42 वर्षीय अटल बिहारी बाजपेयी को उनके स्थान पर नियुक्त कर दिया गया था। 
अब जब उत्तर प्रदेश और केंद्र दोनों जगह भाजपा ( पूर्ववर्ती जनसंघ ) की  पूर्ण बहुमत की सरकारें हैं उनकी जघन्य हत्याकांड की जांच करके दोषियों को दंड देने के बजाए उनको महिमामंडित करने के सरकारी उपाय किए जा रहे हैं जिसके लिए सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ - साथ सरकारी कोष ( जनता से वसूले गए कर ) का भी दुरुपयोग किया जा रहा है। न ही विपक्षी दल जनता को जागरूक कर रहे हैं और न ही खुद कोई आवाज़ उठा रहे हैं। प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि, वे शासन - सत्ता के इस आलोकतांत्रिक दुरुपयोग के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ। महिमामंडन करने के बजाए उनकी हत्या की जांच कर आज  50 वर्ष बाद जीवित बचे अपराधियों को कडा दंड दिया जाये। 





  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 17 August 2017

संवेदनहीन लोकतन्त्र को आक्सीजन की आवश्यकता ------ अवधेश कुमार

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 28 July 2017

´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल : संवैधानिक मान्यताएं खतरे में ------ जगदीश्वर चतुर्वेदी

मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता।



Jagadishwar Chaturvedi
उठो और जागोःसंवैधानिक मान्यताएं खतरे में हैं
बिहार के घटनाक्रम को मात्र भ्रष्टाचार का मामला न समझें।नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार कई स्तरों पर संवैधानिक मान्यताओं और परंपराओं को नष्ट करने का काम कर रही है।अफसोस की बात है आम लोगों को यह नजर ही नहीं आ रहा।हो सकता है लालू यादव के परिवार ने भ्रष्टाचार किया हो लेकिन उससे लड़ने और निबटने के लिए महागठबन्धन को तोड़ना तो गले नहीं उतरता। 
महागठन्धन जब बना था तब भी बिहार और लालू के परिवार में भ्रष्टाचार था,लेकिन एक अंतर था,महागठबंधन का निर्माण साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया गया था।उसके उद्देश्यों में कहीं पर भ्रष्टाचार का जिक्र नहीं है।लेकिन बिहार में चीजें जिस तरह संचालित की गयी हैं, न्यायपालिका की देश में जिस तरह खुली अवहेलना हो रही है, संसदीय मर्यादाओं को ताक पर रखकर जिस तरह हंगामे किए जा रहे हैं,मीडिया को सत्य और विवेक की हत्या के लिए जिस तरह नग्नतम रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है वह अपने आपमें विरल घटना है।
बिहार में जदयू का महागठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ सरकार बनाना ,कोई साधारण घटना नहीं है।यह घटना संकेत है कि संसदीय लोकतंत्र और जनादेश की हमारे नेताओं में कोई इज्जत नहीं है। उल्लेखनीय है इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं लेकिन बिहार हर मामले में अजूबा है,इसबार समूचे जनादेश को ही पलट दिया गया । बिना दल-बदल के समूचे जदयू का स्वैच्छिक भाव से राजनीतिक मन परिवर्तन करके रख दिया गया है। मात्र कुछ एफआईआर के बहाने, कुछ छापों के बहाने यह सब हुआ है।इसका अर्थ यह भी है कि मोदी से लेकर नीतीश कुमार तक किसी के मन में जनादेश को लेकर कोई वचनवद्धता नहीं है।***
असल में मोदीजी ने समूची राजनीति में पैसे और सत्ता की भूमिका को महानतम बना दिया है।इस भूमिका को आमलोगों के जेहन में उतारने में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है। मोदी फिनोमिना की सबसे बड़ी विशेषता है कि अब भाजपा कहीं पर आंदोलन नहीं करती, सिर्फ मीडिया हमले करवाती है, संगठित प्रचार अभियान चलाती है और उसके बाद लक्ष्य को निशाना बनाकर गिरा देती है।भाजपा की समूची रणनीति यह है कि हर हालत में भाजपा और मोदी का वैचारिक-प्रशासनिक वर्चस्व मानो।इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद और मीडिया के हठकंड़ों का खुलकर प्रयोग हो रहा है।
भाजपा-मोदी का वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक बात आम लोगों के जेहन में उतारी जा रही है कि ´मोदी सही और बाकी गलत´,मोदी की मानो,चैन से रहो।मोदी की मनवाने के लिए पहले प्यार से घूस देकर फुसलाया जाता है, बाद में मीडिया के कोड़े लगवाए जाते हैं,अंत में प्रशासनिक हमले होते हैं।मसलन्,यदि आप विपक्ष में हैं तो पहले भाजपा कोशिश करती है कि आप उसके साथ चले जाएं,यदि साथ नहीं जाते तो दल-बदल कराया जाता है, दल-बदल से भी मामला न संभले तो मीडिया हमले कराकर बदनाम किया जाता है, तब भी न संभले तो सीबीआई-आईडी आदि के छापे और मीडिया से अहर्निश बदनामी करके हर एक्शन को देशहित, ईमानदारी की रक्षा में,जनता की सेवा में समर्पित कर दिया जाता है।इस समूची प्रक्रिया में सत्य क्या यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता ,सिर्फ मीडिया में जो बताया गया है वह महत्वपूर्ण रह जाता है।मीडिया के जरिए दिमागों की इस तरह की नाकेबंदी ने हमारे सोचने-समझने और स्वतंत्र रुप से फैसले लेने की क्षमता पूरी तरह खत्म कर दी है।अब हम मीडिया में जो कहा जा रहा है उसे सत्य, न्याय, जनहित आदि के पैमानों पर नहीं परखते अपितु हमारी आदत हो गयी है कि मीडिया में जो कहा जा रहा उसे आँखें बंद करके मानने लगे हैं।
मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता। मोदी के गुण क्या हैं, मोदी ने कौन सा अच्छा काम किया है, ये चीजें मोदी प्रेम का आधार नहीं हैं बल्कि ´घृणा´ही मोदी प्रेम का आधार है। इस ´घृणा´को हम हर मसले पर मीडिया प्रस्तुतियों में सक्रिय भूमिका अदा करते सहज ही देख सकते हैं। मसलन् , मीडिया वाले गऊ गुंडई से लेकर तेजस्वी प्रकरण तक इसे साफतौर पर देख सकते हैं।यानी ´घृणा´का इतने व्यापक मॉडल के रूप में भारत में प्रयोग विगत ढाई हजार सालों में कभी नहीं देखा गया।हमारे यहां ´घृणा´थी लेकिन नैतिक रूप में। एक वैचारिक अस्त्र के रूप में मोदी ने इसका आविष्कार करके देश को गहरे संकट में डाल दिया है।अब हम गलत में मजा लेने लगे हैं,गलत हमें अच्छा लगने लगा है।यह ´घृणा´के मॉडल की सबसे बड़ी उपलब्धि है।´घृणा´के मॉडल की विशेषता है सभी किस्म के तर्क और विवेक का अंत। मोदी के व्यक्तित्व के सामने आज हम इस कदर अभिभूत हैं कि किसी भी चीज को वास्तव रूप में देखना ही नहीं चाहते।वास्तव से नफरत करने लगे हैं।
https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1727740463921320
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Wednesday, 15 March 2017

क्या उत्तर प्रदेश में कोई संरचनात्मक बदलाव हुआ है? ------ अनिल पदमनाभन

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पद्मनाभन  साहब की नज़र से तीन वर्षों में दो बार ऐसा होना उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में संरचनात्मक बदलाव है। क्योंकि देश की जनसंख्या में नौजवानों की आबादी काफी ज़्यादा हो गई है और वह युवा आबादी किसी परंपरा में आसानी से नहीं बंधती।यह स्थिति इन मतदाताओं को अपनी पहचान से परे जाकर अपनी प्राथमिकताए तय करने की राह दिखाती है। 

परंतु मुझे जो जानकारी 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद आज से तीन वर्ष पहले हासिल हुई थी उसके अनुसार प्राथमिकताओं में बदलाव की यह प्रक्रिया 2011 / 12 में शुरू की गई थी। व्हाईट हाउस में तब के प्रेसीडेंट बराक हुसैन ओबामा साहब ने विश्व भर के दलित-पिछड़ों की एक बैठक की थी जिसमें भारत से गए लोगों में लखनऊ विश्वविद्यालय के एक तत्कालीन  हिन्दी अध्यापक भी शामिल हुये थे। उस बैठक में ही यह तय हुआ था कि विश्व भर से किस प्रकार मुस्लिमों  का सत्ता में अस्तित्व समाप्त करना है।उसी योजना के तहत कारपोरेट समर्थक 'भ्रष्टाचार आंदोलन' चलवाया गया था और  उसी योजना का यह परिणाम था कि, 2014 के लोकसभा चुनावों में दलित वर्ग का वोट बसपा के बजाए भाजपा को पड़ा था और लोकसभा में बसपा 'शून्य ' हो गई थी। 2017 का यू पी चुनाव परिणाम उसी व्यवस्था का विस्तार है जिसने दलित वर्ग के साथ - साथ पिछड़े वर्ग का भी वोट बसपा / सपा के बजाए भाजपा को पड़ा है। चुनाव विश्लेषणों से सिद्ध है कि, यू पी विधानसभा में इस बार अगड़े अर्थात सवर्ण वर्ग के विधायक अधिक चुने गए हैं। दलित, पिछड़ा और मुस्लिम प्रतिनिधित्व काफी कम हुआ है। 

आज ईस्ट इंडिया कंपनी सरीखा 'साम्राज्यवाद ' स्थापित करना संभव नहीं है। अतः कारपोरेट कंपनियों द्वारा नियंत्रित तथाकथित राष्ट्रवाद अर्थात अप्रयक्ष साम्राज्यवाद स्थापित किया जा रहा है जो कि, जनतंत्र की समाप्ती एवं अधिनायकतंत्र के आगमन का संकेत प्रस्तुत करता है। 
(विजय राजबली माथुर ) 
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Friday, 25 September 2015

सपा और भाजपा के बीच गुप्त गठजोड़ --- रिहाई मंच

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RIHAI MANCH
For Resistance Against Repression
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मोदी और अमित शाह से गुप्त बैठक के बाद महागठबंधन से अलग हुए मुलायम-रिहाई मंच :
मोदी और अमित शाह से मुलायम और राम गोपाल की मुलाकात पर क्यों चुप हैं आजम खान रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव और बहू रिचा यादव को यादव सिंह ने पहुंचाया लाभ जेल जाने के डर से मुलायम का कुनबा भाजपा  को बिहार में कर रहा है मदद। 
लखनऊ 13 सितम्बर 2015 : रिहाई मंच ने मीडिया में आई इन रिपोर्टाें को सपाका भाजपा के साथ गुप्त तालमेल साबित करने वाला बताया है जिसमें तथ्यों केसाथ यह बताया गया है कि बिहार चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने का निर्णय मुलायम सिंह ने मोदी और अमित शाह सेगुप्त मुलाकात के बाद लिया है।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने जारी प्रेस रिलीज में कहा है किजिस तरह मीडिया में आई रिर्पोटें यह बता रही हैं कि 27 अगस्त को मुलायमसिंह यादव और उनके भाई रामगोपाल यादव ने नरेंद्र मोदी से एक घंटे तक बंदकमरे में बैठक की और उसके बाद ही बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन की तरफ से30 अगस्त को होने वाली स्वाभिमान रैली में खुद शामिल न होने सम्बंधित बयान दिया और रैली में शिवपाल यादव के शामिल होने के ठीक दूसरे दिन 31अगस्त को फिर रामगोपाल यादव और अमित शाह के बीच एक घंटे तक मुलाकात केबाद, 2 सितम्बर को जिस तरह सपा ने महागठबंधन से अपने को अलग कर लिया वहसपा और भाजपा के रिश्ते को उजागर करने के लिए पर्याप्त है।
रिहाई मंच नेता ने कहा कि जिस तरह रिपोर्ट में यह बताया गया है कि अमितशाह और रामगोपाल यादव के बीच 31 अगस्त को हुयी बैठक अमित शाह और बिहारचुनाव में उसके गठबंधन के दूसरे सहयोगी दलों लोजपा, हिंदुस्तान अवाममोर्चा, आरएलसपी के नेताओं के साथ दोपहर के भोजन से ठीक पहले खत्म हुयीवह यह भी साबित करता है कि भाजपा और उसके घटक दल सीटों के बंटवारे में सपा की अपने पक्ष मंे भूमिका निभा पाने की क्षमता को भी ध्यान में रख रहेहैं। रिहाई मंच नेता ने कहा कि मुलायम और भाजपा के बीच गुप्त गठजोड़ पर सपा के मुस्लिम चेहरे आजम खान को अपना पक्ष रखना चाहिए और यह बताना चाहिएकि बहुत ज्यादा बोलने वाली उनकी जबान इस मसले पर खुद अपनी मर्जी से खामोशहै या फिर मुलायम परिवार के दबाव मंे खामोश है।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि महागठबंधन से अलगहोने की वजह सपा के नेता यह बता रहे हैं कि उन्हें गठबंधन में उनकीहैसियत से कम सीटें दी जा रही थीं। जबिक वे यह नहीं बता रहे हैं कि उनकीवहां कोई हैसियत ही नहीं है और 2010 के चुनाव में सपा ने जिन 146 सीटांेपर चुनाव लड़ा था उन सबमंे उसकी जमानत जब्त हो गई थी। रिहाई मंच नेताओंने कहा कि गुजरात में भी मुलायम सिंह सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकरभाजपा को इसी तरह मदद पहंुचाते रहे हैं। रिहाई मंच नेताओं ने कहा किबिहार चुनाव में चाहे जीत जिसकी हो यूपी में मुलायम और उनके परिवार कीमुस्लिम के प्रति भीतरघात वाली राजनीति का खात्मा अब तय है क्योंकि अबमुसलमान उनके असली भगवा चेहरे को पहचान चुका है और वह अब सपा के लिएमुस्लिम वोटों का जुगाड़ करने वाले उसके मुस्लिम चेहरों की भी सच्चाई जानचुका है जो विधानसभा में भारी तादाद में होने के बावजूद आज तक मुसलमानोंसे किये गये चुनावी वादों पर एक शब्द तक नहीं बोलते हैं।
रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि मीडिया में आया यह रहस्य उद्घाटन कि रामगोपाल यादव के बेटे और फिरोजाबाद से सांसद अक्षय यादव और उनकी पत्नी रिचा यादवको यादव सिंह के करीबी राजेश कुमार मनोचा की कम्पनी एनएम बिल्डवेल और मैक्काॅन इंफ्रा के मालिक जिसकी डायरेक्टर यादव सिंह की पत्नी कुसुमलताभी रह चुकी हैं में रजिस्ट्रार आॅफ कम्पनीज (आरओसी) के मुताबिक दस हजारशेयर हैं और जिसकी जांच आयकर विभाग कर रहा है, साफ करता है कि मुलायमसिंह यादव का पूरा कुनबा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है और इसीलिए यादवसिंह मामले की सीबीआई जांच के अदालती आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट तकमें जाती है। यादव परिवार जेल जाने की डर से भाजपा को चुनावी लाभपहंुचाने के लिये बिहार में प्रत्याशी खड़े कर रही है। रिहाई मंच नेताओंने कहा कि संगठन जल्द ही सपा और भाजपा के बीच पिछले दो दशकांे से चल रहे गुप्त गठजोड़ और उसके द्वारा संघ परिवार के मुस्लिम विरोधी एजंेडे को आगे बढ़ाने की कोशिशों पर दस्तावेज जारी करेगा।




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 28 May 2015

वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के उदारीवाद की उपज है मोदी सरकार --- विजय राजबली माथुर

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2011 से ही ब्लाग-पोस्ट्स के माध्यम से सूचित करता रहा हूँ कि मनमोहन सिंह जी ने अपने कार्यकाल में सोनिया जी व राहुल जी पर हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव/RSS के सहयोग से भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन चलवाया था जिसने मोदी साहब को सत्तासीन किया है। यह भेंट अगली कड़ियों पर अमल करने हेतु थी।
Jeevan Yadav यह निष्कर्ष बहुत सी बातों की प्रतीक्षा करेगा




 2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है।
http://krantiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_13.html 
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https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/458395827647852 


 http://krantiswar.blogspot.in/2015/02/aquil-ahmed.html
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अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है। 

तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html

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1962 मे चीनी आक्रमण मे भारत की फौजी पराजय के सदमे से नेहरू जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तब 1963 मे राधाकृष्णन जी की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गई। के कामराज नाडार ,कांग्रेस अध्यक्ष जो उनके प्रांतीय भाषी थे से मिल कर उन्होने नेहरू जी को हटा कर खुद प्रधान मंत्री बनने और कामराज जी को राष्ट्रपति बनवाने की एक गुप्त स्कीम बनाई। परंतु उनका दुर्भाग्य था कि( वह नहीं जानते थे कि उनके एक बाड़ी गार्ड साहब जो तमिल भाषी न होते हुये भी अच्छी तरह तमिल समझते थे ) नेहरू जी तक उनकी पूरी स्कीम पहुँच गई जिसका खुलासा उस सैन्य अधिकारी ने अवकाश ग्रहण करने के पश्चात अपनी जीवनी मे किया है।..........................आज 48 वर्ष बाद कांग्रेस मे उस कहानी को दूसरे ढंग से दोहराया गया है अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी गंभीर बीमारी का इलाज करने जब अमेरिका चली गईं तो उनकी गैर हाजिरी मे उनके द्वारा नियुक्त 4 सदस्यीय कमेटी (राहुल गांधी जिसका महत्वपूर्ण अंग हैं)को नीचा दिखाने और सोनिया जी को चुनौती देने हेतु गैर राजनीतिक और अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने अपने पुराने संपर्कों(I M F एवं WORLD BANK) को भुनाते हुये फोर्ड फाउंडेशन से NGOs को भारी चन्दा दिला कर और बागी इन्कम टैक्स अधिकारी अरविंद केजरीवाल तथा किरण बेदी (असंतुष्ट रही पुलिस अधिकारी) के माध्यम से पूर्व सैनिक 'अन्ना हज़ारे' को मोहरा बना कर 'भ्रष्टाचार' विरोधी सघन आंदोलन खड़ा  करवा दिया।
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post.html

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 17 May 2015

सांसद निधि के काम : भ्रष्टाचार आम

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सांसद निधि की शुरुआत राजीव गांधी द्वारा अपने कार्यकाल 1984-89 में की गई थी । उनका उद्देश्य चाहे जो रहा हो परंतु यह भ्रष्टाचार वृद्धि का ही हेतु बन कर रह गई है।


;संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 15 April 2011

क्या भ्रष्टाचार से समृद्धि आती है ?

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खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है











संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर