Tuesday, 30 August 2011

श्याम गुप्ता की पोल

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday, 26 August 2011

अन्ना गिरि

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Hindustan-Lucknow-25/08/2011


Hindustan-Lucknow/26/08/2011
Hindustan-Lucknow-26/08/2011


Hindustan/ Lucknow/26/082011

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday, 22 August 2011

लोक संघर्ष से साभार-'अन्ना गाँधी नहीं हैं : हसन कमाल'

http://loksangharsha.blogspot.com/2011/08/blog-post_22.html


देश के मशहूर सहाफी हसन कमाल ने अपने एक लेख में प्रिंट  इलेक्ट्रोनिक मीडिया केजरिये अन्ना हजारे की तहरीक के हक़ में ली जा रही गैर मामूली दिलचस्पी को उनकासरमायेदारी प्रेम बतलाया है। उनके अनुसार मीडिया यह काम अपने सरमायेदार आकाओंके इशारे पर कर रहा है जिनके आर्थिक हित देश में निवेश करते हैं
हसन कमाल की यह बात ठीक लगती है। जिस प्रकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी. सरकार नेभ्रष्टचार के मामले में कड़ी कार्यवाई की और पूंजीपतियों की कंपनियों को जो करार अघात 2 जीस्पेक्ट्रम घोटाले  कामन वेल्थ के ठेकों को लेकर पहुंचाजिसमें देसी सरमायेदारों से लेकर विदेशीसरमायेदार भी शामिल रहेउससे बौखला कर ही यह जवाबी हमला कांग्रेस  यू.पी. सरकार परआना हजारे को सामने रख कर सरमायेदारों की और से किया गया है
हसन कमाल ने अन्ना को रातोरात गाँधी बन जाने को भी हास्यापद बताते हुए लिखा हैकि खुद अन्ना हजारे ने कभी खुद को गाँधी होने का दवा नहीं किया। गाँधी जी ने कभी भीदेश को क्षेत्रियता अथवा भाषा की संकीर्ण विचारधारा के हक़ में ले जाने की वकालत नहींकी बल्कि वह हमेशा एक देश एक समाज  भारतीयता की बात करते रहेपरन्तु इसकेविपरीत अन्ना हजारे ने राज ठाकरे के उस मत के हक़ में अपना समर्थन दिया था जोउन्होंने महाराष्ट्र से गैर महाराष्ट्रीय लोगों को बहार निकलने के बारे में रखा था। 
अन्ना हजारे के पीछे कौन ताकते काम कर रही हैं यह बात जब तक साफ़ होगी शायद बहुत देर होचुकी होगी और देश की आर्थिक उन्नति तब तक काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी होगी। अन्ना की मुहिम कीराष्ट्रीयता पर इससे बड़ा प्रश्न चिन्ह और क्या होगा कि उन्होंने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रात्रि8 से 9 के बीच बत्ती बुझाने का निर्देश देशवासियों को दिया जिस दिन प्रत्येक देशवासी अपने घरों परप्रफुल्लित होकर चिराग करता रहा है। क्या यह स्वतंत्रता दिवस के अपमान  देश द्रोहिता के दायरे मेंनहीं आता है

-मोहम्मद तारिक खान 



'लोकसंगर्ष' पर मैंने यह टिप्पणी दी है-
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Vijai Mathur ने कहा…

मैंने अपने कलाम और कुदाल पर इसी प्रकार अन्ना को 'राष्ट्रद्रोह' मे गिरफ्तार करने की मांग की थी।
आपके इस लेख को मे 'कलाम और कुदल' पर पेस्ट कर रहा हूँ।

Friday, 19 August 2011

अन्ना टीम की पोल खोली किसी जागरूक ने


(किन्ही जागरूक नागरिकों द्वारा भेजी हमे यह ई-मेल प्राप्त हुई है आप सब भी इसका अवलोकन करें और राष्ट्र हित मे निर्णय लेने का कष्ट करें) 


रामलीला मैदान में अभी-अभी खत्म हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने साफ़ और स्पष्ट जवाब देते हुए लोकपाल बिल के दायरे में NGO को भी शामिल किये जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. विशेषकर जो NGO सरकार से पैसा नहीं लेते हैं उनको किसी भी कीमत में शामिल नहीं करने का एलान भी किया. ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधान तक सभी को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की जबरदस्ती और जिद्द पर अड़ी अन्ना टीम NGO को इस दायरे में लाने के खिलाफ शायद इसलिए है, क्योंकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, संदीप पाण्डेय ,अखिल गोगोई और खुद अन्ना हजारे भी केवल NGO ही चलाते हैं. अग्निवेश भी 3-4 NGO चलाने का ही धंधा करता है. और इन सबके NGO को देश कि जनता की गरीबी के नाम पर करोड़ो रुपये का चंदा विदेशों से ही मिलता है.इन दिनों पूरे देश को ईमानदारी और पारदर्शिता का पाठ पढ़ा रही ये टीम अब लोकपाल बिल के दायरे में खुद आने से क्यों डर/भाग रही है.भाई वाह...!!! क्या गज़ब की ईमानदारी है...!!!





इन दिनों अन्ना टीम की भक्ति में डूबी भीड़ के पास इस सवाल का कोई जवाब है क्या.....?????



जहां तक सवाल है सरकार से सहायता प्राप्त और नहीं प्राप्त NGO का तो मई बताना चाहूंगा कि....




भारत सरकार के Ministry of Home Affairs के Foreigners Division की FCRA Wing के दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 तक देश में कार्यरत ऐसे NGO's की संख्या 20088 थी, जिन्हें विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी थी.इन्हीं दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान इन NGO's को विदेशी सहायता के रुप में 31473.56 करोड़ रुपये प्राप्त हुये. इसके अतिरिक्त देश में लगभग 33 लाख NGO's कार्यरत है.इनमें से अधिकांश NGO भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के परिजनों,परिचितों और उनके दलालों के है. केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अतिरिक्त देश के सभी राज्यों की सरकारों द्वारा जन कल्याण हेतु इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है.एक अनुमान के अनुसार इन NGO's को प्रतिवर्ष न्यूनतम लगभग 50,000.00 करोड़ रुपये देशी विदेशी सहायता के रुप में प्राप्त होते हैं.



 इसका सीधा मतलब यह है की पिछले एक दशक में इन NGO's को 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक मदद मिली. ताज्जुब की बात यह है की इतनी बड़ी रकम कब.? कहा.? कैसे.? और किस पर.? खर्च कर दी गई. इसकी कोई जानकारी उस जनता को नहीं दी जाती जिसके कल्याण के लिये, जिसके उत्थान के लिये विदेशी संस्थानों और देश की सरकारों द्वारा इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है. इसका विवरण केवल भ्रष्ट NGO संचालकों, भ्रष्ट नेताओ, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट बाबुओं, की जेबों तक सिमट कर रह जाता है. 




भौतिक रूप से इस रकम का इस्तेमाल कहीं नज़र नहीं आता. NGO's को मिलने वाली इतनी बड़ी सहायता राशि की प्राप्ति एवं उसके उपयोग की प्रक्रिया बिल्कुल भी पारदर्शी नही है. देश के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों, शोषितों, दलितों, अनाथ बच्चो के उत्थान के नाम पर विदेशी संस्थानों और  देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's की कोई जवाबदेही तय नहीं है. उनके द्वारा जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के भयंकर दुरुपयोग की चौकसी एवं जांच पड़ताल तथा उन्हें कठोर दंड दिए जाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है.




 लोकपाल बिल कमेटी में शामिल सिविल सोसायटी के उन सदस्यों ने जो खुद को सबसे बड़ा ईमानदार कहते हैं और जो स्वयम तथा उनके साथ देशभर में india against corruption की मुहिम चलाने वाले उनके अधिकांश साथी सहयोगी NGO's भी चलाते है लेकिन उन्होंने आजतक जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's के खिलाफ आश्चार्यजनक रूप से एक शब्द नहीं बोला है, NGO's को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की बात तक नहीं की है.





इसलिए यह आवश्यक है की NGO's को विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से मिलने वाली आर्थिक सहायता को प्रस्तावित लोकपाल बिल के दायरे में लाया जाए. (कृपया इस पोस्ट को जितने ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकते हों उतने ज्यादा लोगों तक पहुंचाइये.)

Thursday, 18 August 2011

इलेक्ट्रानिक मीडिया के शेर से सावधान रहें

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"एक वर्ष पहले तक भारत मे महाराष्ट्र के बाहर अन्ना हज़ारे को जानने वाले  कितने लोग थे?"....... " सरकार ने       महज छह महीनों मे अन्ना को देश के हर आम आदमी की आवाज बना दिया"। यह कथन है हिंदुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक जी का। वह आगे लिखते हैं-"अन्ना को यह समझने की जरूरत है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के सहारे जिस लोकप्रियता के शेर की सवारी वह कर रहे हैं,उसके अपने खतरे भी हैं। टीम अन्ना की यह जिद भी समझ से परे है कि उन्होने जो लोकपाल विधेयक तैयार किया है,सरकार उसे ही क्यों नहीं संसद के सामने रखती। "

पहली बार 1966 मे 'लोकपाल'की चर्चा उठी थी और इस बिल को आठ बार संसद मे पेश किया जा चुका है। अटल जी छह वर्ष प्रधानमंत्री रहे उससे पहले शांतिभूषण जी खुद कानून मंत्री रह चुके थे ,लेकिन किसी ने भी इस बिल को पारित नहीं कराया।

आज अन्ना कोई क्रांति नहीं कर रहे हैं वह तो कारपोरेट घरानों की वैसी ही मदद कर रहे हैं जैसी मनमोहन जी चाहते हैं।1991 मे वित्त मंत्री बनने के बाद मनमोहन जी ने जिन आर्थिक नीतियों को अपनाया था उनके संबंध मे अमेरिका जाकर एल के आडवाणी साहब ने कहा था कि इनहोने उनकी नीतियों को चुरा लिया है और सत्ता पाने पर उन लोगों ने इन्हीं आर्थिक नीतियों को जारी रखा जिनहोने भ्रष्टाचार को दिन दूना और रात चौगुना बढ़ाया। आज जब संसद मे मनमोहन सरकार की निंदा का प्रस्ताव का गुरुदास दास गुप्ता ने रखा तो भाजपा और कांग्रेस ने मिल कर वोटिंग की लेकिन जनता को मूर्ख समझ कर भाजपा बाहर अन्ना का समर्थन करती है और संसद मे उसकी नेता सुषमा स्वराज सरकार को लोकपाल बिल शीतकालीन सत्र मे पास करने का सुझाव देती हैं जिसे मान लिया गया। 


लोक सभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप जी भी अन्ना को इलेक्ट्रानिक मेडिया का शेर ही मानते हैं ,देखिये इस स्कैन को-










Hindustan-Lucknow-18/08/2011


विदेशी अखबारों मे अन्ना की खूब वकालत हो रही है-



अमेरिका और ब्रिटेन अपनी आर्थिक उथल-पुथल से घबरा कर भारत मे दोतरफा घेराबंदी कर रहे हैं। एक तो भारत सरकार को अमेरिका को  अपना दिया ऋण वापिस न मांगने को राजी करते हैं और दूसरी ओर अन्ना को भ्रष्टाचार का मामला टूल देने का निर्देश देते हैं,जिससे भूख-बेकारी,मंहगाई आदि की मूल-भूत समस्याएँ पीछे  रह जाएँ और जनता भ्रष्टाचार के जो पूंजीवाद का अनिवार्य कारक है मे उलझ कर फंस जाये।

ईस्ट इंडिया क .ने मुगलों को रिश्वत दे कर दीवानी अधिकार प्राप्त किए और इसी भ्रष्ट आचरण के बल पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। आज भी विदेशी क .रिश्वत के डैम पर ही टिकी हैं। वे ही क .अन्ना को एक करोड़ का दान दे चुकी हैं जिसमे से 2 लाख 20 हजार रु अन्ना साहब अपने जन्म दिन पर फूँक चुके हैं। यह भ्रष्टाचार नहीं है तो क्या है?कोर्ट से बचने के लिए बीमारी का बहाना करते हैं और जनता को मूर्ख बनाने के लिए अनशन का स्वांग रचते हैं।

1974 मे जे पी आंदोलन मे घुस कर संघ सत्ता तक पहुंचा फिर बोफोर्स आंदोलन मे घुस कर वी पी सरकार को नचाया-घुमाया -गिराया। अब अन्ना आंदोलन मे घुस कर एकबार फिर सत्ता हथियाने का उपक्रम किया है। आम जनता तो राजनीति समझती नहीं है पढे-लिखे लोग शोषणकारी  व्यवस्था को मजबूत करने हेतु अन्ना के पीछी डटे खड़े हैं। जनता ने इस चाल को न समझा तो देश को उसी प्रकार के दुर्दिन देखने पड़ेंगे जिस प्रकार से बंगाल से बामपंथी शासन के खत्म होते ही पेट्रोल,डीजल,गैस के दाम बढ़ा कर सरकार ने दिखाये हैं और अन्ना के जाल मे उलझा कर जनता का इनसे ध्यान हटा दिया है।



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday, 15 August 2011

स्वातंत्र्य योद्धा

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हिंदुस्तान-सलाम परिशिष्ट-15-अगस्त-2011(लखनऊ)

अन्ना को राष्ट्रद्रोह मे गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया जाए ,देखिये उनकी राष्ट्रद्रोही अपील -

हिंदुस्तान-लखनऊ-पेज -5 (15/08/2011)
जब सम्पूर्ण राष्ट्र सदियों के बाद प्राप्त अपनी आजादी की 65वी वर्षगांठ माना रहा है तो अमेरिकी एजेंट अन्ना हज़ारे लोगों से रात् के 8-9 बजे बिजली बंद (ब्लैक आउट) करने की अपील कर रहे हैं। यह खुल्लमखुल्ला राष्ट्रद्रोह है और उन्हें तत्काल प्रभाव से 'राष्ट्रद्रोह' मे गिरफ्तार किया जाना चाहिए। शहीद सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद,अश्फ़ाकुल्लाह खान,रामप्रसाद 'बिस्मिल',लाहिड़ी बंधु,बटुकेश्वर दत्त आदि अगणित क्रांतिकारियों ने क्या इसलिए खुद को देश पर कुर्बान किया था कि आजाद भारत मे साम्राज्यवादी एजेंट 'जश्ने आजादी'के दिन ब्लैक आउट की घोषणा करे?क्या गांधी,नेहरू,सुभाष,तिलक,लाला लाजपत राय,बिपिन चंद्र पाल,राजेन्द्र प्रसाद आदि अनेकों नेताओं ने इसलिए देश को आजाद कराया था कि एक दिन आजादी की खुशियाँ मनाने की बजाए शोक (अंधकार) रखा जाये?

यदि मनमोहन सिंह सरकार अन्ना हज़ारे से मिली-भगत के कारण उन पर कारवाई नहीं करती है तो न्यायालयों को स्वतः संगयान लेकर अन्ना हज़ारे जैसे देशद्रोही को तत्काल जेल मे बंद कर देना चाहिए।

भ्रष्टाचार विरोध तो बहाना है ,अन्ना और उनकी टीम भारत मे जैसा भी लोकतन्त्र है उसे नष्ट करके तानाशाही स्थापित करना चाहते हैं। लोकप्रिय हास्य कलाकार सुरेन्द्र शर्मा ने हजरतगंज लखनऊ स्थित पंजाब नेशनल बैंक की 73वी जयंती पर कहा-"कभी विदेश मे जमा धन को भारत मे लाने की बात होती है तो कभी लोकपाल बिल की। कुल मिलाकर सभी भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि खुद कभी सुधरना नहीं चाहते। अगर हर व्यक्ति केवल अपने को सुधार ले तो भ्रष्टाचार की समस्या काफी हद तक सुलझ जाएगी।"




यह भी पढ़ें-http://krantiswar.blogspot.com/2011/08/blog-post_15.html
http://janhitme-vijai-mathur.blogspot.com/2011/08/blog-post_15.html
http://sheshji.blogspot.com/2011/08/blog-post_7523.html
http://krati-fourthpillar.blogspot.com/2011/08/blog-post_14.html

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ!


यजुर्वेद के अध्याय 22 मन्त्र 22 मे "ओ 3 म आ---------------योगक्षेमों नः कल्पताम। ।" द्वारा स्वाधीनता की रक्षा हेतु 'राष्ट्रीय प्रार्थना' प्रस्तुत की गई है। किन्तु पाश्चात्य साम्राज्यवादी साहित्य एवं दृष्टिकोण के अनुगामी हमारे देशीय विचारक मानते हैं कि राष्ट्रीयता की भावना का संचार अंग्रेज़ शासकों की नीतियों से हुआ है और यह आधुनिक धारणा है। मैं नहीं समझ सकता कि  यजुर्वेद के इस मन्त्र मे जो कहा गया है वह गलत कैसे माना जाता है? इस मन्त्र का भावानुवाद विद्वान कवि के अनुसार यह है-

ब्रहमन! सुराष्ट्र मे हों,द्विज ब्रहमतेजधारी।
क्षत्री महारथी हों अरी-दल -विनाशकारी। ।

होवे दुधारी गौवें,पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्ट्र की हों,नारी सुभग सदा ही। ।

बलवान सभ्य योद्धा,यजमान-पुत्र होवे।
इच्छानुसार वर्षे,पर्जन्य ताप धोवे । ।

फल फूल से लदी हो,औषद्ध अमोघ सारी।
हों योग-क्षेमकारी ,स्वाधीनता हमारी। ।

सृष्टि के प्रारम्भ मे ही मनुष्यों को अपने राष्ट्र के प्रति सदा सजग रहने का निर्देश दिया गया था जिसका उल्लंघन करके वेदों की मनगढ़ंत व्याख्या कर्मकांडी लोगों द्वारा खूब की गई और जनता को गुमराह किया गया परिणामस्वरूप हमारा देश 900 -1100 वर्ष से अधिक गुलाम रहा। गुलामी के दौरान सभी विदेशी शासकों ने इस देश की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट किया तथा इसमे हमारे देश के स्वार्थी कर्मकांडी लोगों ने भरपूर उन शासकों की मदद  की। आज आजादी के 64 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद उन लोगों ने अपने को अभी तक सुधारा नहीं है और देश की स्वाधीनता पर लगातार हो रहे आक्रमणों का यही सबसे बड़ा कारण है।

लोकसभा के महा सचिव रहे सुभाष कश्यप जी के इन विचारों को पढ़ें -


hindustan-lucknow-04/08/2011


एक तो वैसे ही संसद अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही है उसके बावजूद फासिस्ट प्रवृति के लोगों का संरक्षण प्राप्त कर तथाकथित समाज सुधारक अन्ना हज़ारे साहब संसद को पंगु करने हेतु अनशन की धमकी का सहारा ले रहे हैं। कारपोरेट घरानों का भरपूर समर्थन लेकर वह भ्रष्टाचार दूर करने का दिवा-स्वप्न दिखा रहे हैं। पूंजीवाद खुद ही भ्रष्टाचार की जड़ है और उसी पर आधारित कर्मकांडी पद्धति उसकी पोषक। इन दोनों का विरोध तो करना नहीं चाहते और भ्रष्टाचार दूर करने का खुद को ठेकेदार घोषित करते हैं। यह तानाशाही नहीं तो और क्या है?अन्ना ,रामदेव तो भ्रष्ट पूंजीवाद को बचाने के इंस्ट्रूमेंट हैं.भ्रष्टाचार तो पूंजीवाद का बाई-प्रोडक्ट है.देखिये 'आह्वान'का यह सम्पादकीय-(बड़ा देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)





आजाद हिन्द फौज ने 'एक चूहा हाथी का सरदार' शीर्षक से पर्चे छपवाकर तोप मे भर कर ब्रिटिश सेना मे भारतीय जवानों के समक्ष फिंकवाए थे यह बताने के लिए कि हम लोगों की कमजोरी से विदेशी संख्या मे कम होकर भी हम पर हावी हैं। वही स्थिति आज भी है। मुट्ठी भर पूंजीपति अपने विदेशी साम्राज्यवादी आकाओं के हितार्थ देश की बहुसंख्यक आबादी का शोषण कर रहे हैं। बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों ही घपलों मे फंस कर कोर्ट को चकमा दे रहे हैं और इतनी बड़ी आबादी को गुमराह करके ठग रहे हैं। दोनों के जैकारे लग रहे है। भ्रष्टाचार तो ये दूर कर सकते नहीं परन्तु त्याग और बलिदान से प्राप्त 'स्वाधीनता' को जरूर खतरे मे डाल देंगे।

आजादी के बाद से मिलेटरी शासन की एक तबका वकालत करता आ रहा है ,पाकिस्तान मे इसी प्रकार के शासन ने उस देश के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा कर रखा है। भारत को लोकतान्त्रिक देश होने के कारण ही साम्राज्यवादी उस प्रकार दबोच नहीं पाये जिस प्रकार पाकिस्तान की 'संप्रभुता' को ठेंगा दिखा कर नग्न ताण्डव करते रहते हैं। अन्ना-रामदेव को समर्थन देने वाले यह तय कर लें कि क्या अब आजादी को बरकरार नहीं रखना चाहते? 06 अगस्त 2011 के हिंदुस्तान ,लखनऊ के पृष्ठ 14 पर छापे गए इस समाचार को कुछ लोग खुशी से सराहेंगे परंतु मुझे संदेह है कि यह भारत विशेषकर काश्मीर के अंदरूनी मामले मे साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त करने की चाल है। आतंकवाद को क्या पाकिस्तान मे घुस कर ड्रोगन हमले की भांति ही भारत मे घुस कर समाप्त करने का इशारा तो नहीं है यह प्रस्ताव।

hindustan-lucknow-06/08/2011


अमेरिका की चाल अब पाकिस्तान को टुकड़ों मे बाँट कर कमजोर करने की है भारत मे एक तबका इस बात से बेहद खुश होगा। लेकिन गंभीरता से सोचे तो समझ आ जाएगा कि पाकिस्तान के संभावित छोटे-छोटे टुकड़े पूरी तरह अमेरिका के कब्जे मे होंगे जो भारत के लिए किसी भी तरह से हितकर नहीं होगा। जो संगठन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु अस्तित्व मे आया था वह आज पूरी तरह से अमेरिकी साम्राज्यवाद का भारत मे हितचिंतक बना हुआ है और धर्म की गलत व्याख्या एवं दुरुपयोग द्वारा जनता को अपने साथ बांध लेता है,उसके द्वारा ऐसे अमेरिकी प्रस्तावों पर खुश होना लाजिमी है ।

खेद और अफसोस की बात है कि जो बामपंथ भारत की एकता और  अखंडता का हामी है उसे जनता धर्म-विरोधी कह कर ठुकरा देती है। धर्म क्या है इसे बामपंथ ने अधार्मिकों के हवाले कर रखा है क्योंकि वह इसे मानता ही नहीं तो जनता को समझाये कैसे?अधार्मिक तत्व इस स्थिति का लाभ उठा कर धर्म की पूंजीवादी व्याख्या अपने हित मे प्रस्तुत कर देते हैं। कुल मिला कर हानि मजदूर और शोषित वर्ग की ही होती है और इजारेदार शोषक वर्ग दानी एवं धार्मिक कहलाकर उसी उत्पीड़ित वर्ग से ही पूजा जाता है। आजादी के आंदोलन मे त्याग और बलिदान का लम्बा अनुभव और इतिहास रखते हुये भी आज बामपंथ का जनता से जुड़ाव न हो पाना इसी धर्म-अधर्म का झंझट है।बामपंथ ने यदि धर्म को अधार्मिक और साम्राज्यवादी/सांप्रदायिक लोगों के लिए खुला न छोड़ा होता और जनता को धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया होता तो आज देश की दिशा और दशा  कुछ और ही होती। जन्म से मृत्यु तक जीवन मे अनेक संस्कारों की आवश्यकता होती है जिन्हें मजबूरन पोंगा-पंथियों से ही लोग सम्पन्न कराते हैं और उनके प्रभाव मे आकार गलत दिशा मे वोटिंग कर जाते हैं। यह सब प्रशिक्षण के आभाव का ही दुष्परिणाम है।  आज आजादी के 65वे सालगिरह को मनाते हुये प्रबुद्ध जनों का परम दायित्व है कि आगे इस आजादी को कैसे बचाए रखा जाये इस बात पर गंभीरता से विचार करें  जबकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंघा राव जी  बहुत पहले अपने -'The Insider' मे खुलासा कर गए हैं कि ,"हम स्वतन्त्रता के भ्रम जाल मे जी रहे हैं । "

उच्च वर्ग के लिए आजादी का कोई विशेष महत्व नहीं है। अतः मध्य वर्ग का ही यह दायित्व है कि वह आगे बढ़ कर जनता को राजनीतिक रूप से जागरूक करे और आजादी पर मंडरा रहे खतरे के प्रति आगाह करे एवं इसकी रक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाए।

Sunday, 14 August 2011

AISF platinium Jublie13

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Hindustan-Lucknow-13/08/2011

Hindustan-Lucknow-14/08/2011










 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Tuesday, 9 August 2011

बलिदान और भ्रष्टाचार

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हिंदुस्तान लखनऊ-09/08/2011

हिंदुस्तान-लखनऊ-09/08/2011 







 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday, 8 August 2011

64 वर्षों मे क्या हुआ हमारे देश मे

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 7 August 2011

64 वर्ष का लेखा-जोखा

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hindustan-07/08/2011




    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday, 5 August 2011

'तुलसी की महत्ता' --- विजय राजबली माथुर

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28 जूलाई 1982 को 'सप्तदिवा'आगरा मे प्रकाशित यह लेख 30 वर्ष की आयु की समझ से लिखा था जिसे आज 29 वर्ष बाद पुनः प्रकाशित कर रहे हैं तुलसी दास जी की जयंती-श्रावण शुक्ल सप्तमी के अवसर पर ।

खेद यह है कि कुछ दूसरे ब्लागो पर आपको तुलसी दास जी का दूसरा रूप दिखाया जाएगा जो उनका था नहीं। तमाम लोग भक्ति-अध्यात्म के नाम पर महान 'ऐतिहासिक-राजनीतिक ग्रंथ' को जनता के सामने पाखंडी रूप मे प्रस्तुत करते और तमाम वाहवाही लूटते हैं। अफसोस आज के विज्ञान के युग मे भी लोग-बाग अपनी सोच को परिष्कृत नहीं करना चाहते। खैर मैंने अपना फर्ज अदा किया है। -



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
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 फेसबुक कमेन्ट  :
07-08-2015 ---
 

Thursday, 4 August 2011

एक पुरानी याद

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Hindustan-Lucknow-04/08/2011


आज यह खबरें पढ़ कर पुरानी यादें ताजा हो गईं जिंनका जिक्र 'विद्रोही स्वर-स्वर मे' पहले भी कर चुके हैं। 1961 तक बाबूजी लखनऊ मे हुसेन गंज मे नाले के किनारे स्थित 'फख़रुद्दीन मंजिल' के निचले भाग मे किराये पर रहते थे और बरेली तबादला होने तक वहीं थे। उस समय तक नाला पाटा नहीं गया था। हम लोगों को घर के चबूतरे पर ही खड़े होकर सामने मुख्य मार्ग पर हो रही गतिविधियें दीख जाती थी । जिस गुड़िया के मेले का जिक्र इन भद्र -जनों ने किया है उसका तमाशा भी हम लोगों को घर से ही दीख जाता था। लेकिन फिर भी पास के मेले मे तो बाबूजी तीनों भाई-बहन को घुमाने ले जाते थे। कभी-कभी दिन मे साईकिल पर बैठा कर मुझे तथा अजय को मंकी-ब्रिज और डालीगंज पुलों पर लगने वाला मेला भी दिखाने ले जाते थे। तब शहीद स्मारक आज की स्थिति मे नहीं था। पिछले वर्ष तो अखबारों मे कोई खबर नहीं थी इस बार इस खबर को पढ़ कर बचपन की यादें ताजा हो गईं।

यह सच है अब इन मेलों आदि मे वह उत्साह भी नहीं होता और न ही वह स्वरूप होता है। आजकल के लोग तो प्रगतिशील हैं वे क्यों परम्पराओं को बचाने लगे?हाँ पाखंडी परम्पराओं का परिपालन जरूर किया जाता है।




    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday, 1 August 2011

प्रेमचंद का सवा सेर गेंहू

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अब से लगभग 75 वर्ष पूर्व जिंनका अवसान हुआ वह मुंशी प्रेमचंद कितने दूरदर्शी थे इसे निम्न स्काई से समझा जा सकता है -






हिंदुस्तान-लखनऊ-01/08/2011

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर