Monday, 15 August 2011

स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ!


यजुर्वेद के अध्याय 22 मन्त्र 22 मे "ओ 3 म आ---------------योगक्षेमों नः कल्पताम। ।" द्वारा स्वाधीनता की रक्षा हेतु 'राष्ट्रीय प्रार्थना' प्रस्तुत की गई है। किन्तु पाश्चात्य साम्राज्यवादी साहित्य एवं दृष्टिकोण के अनुगामी हमारे देशीय विचारक मानते हैं कि राष्ट्रीयता की भावना का संचार अंग्रेज़ शासकों की नीतियों से हुआ है और यह आधुनिक धारणा है। मैं नहीं समझ सकता कि  यजुर्वेद के इस मन्त्र मे जो कहा गया है वह गलत कैसे माना जाता है? इस मन्त्र का भावानुवाद विद्वान कवि के अनुसार यह है-

ब्रहमन! सुराष्ट्र मे हों,द्विज ब्रहमतेजधारी।
क्षत्री महारथी हों अरी-दल -विनाशकारी। ।

होवे दुधारी गौवें,पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्ट्र की हों,नारी सुभग सदा ही। ।

बलवान सभ्य योद्धा,यजमान-पुत्र होवे।
इच्छानुसार वर्षे,पर्जन्य ताप धोवे । ।

फल फूल से लदी हो,औषद्ध अमोघ सारी।
हों योग-क्षेमकारी ,स्वाधीनता हमारी। ।

सृष्टि के प्रारम्भ मे ही मनुष्यों को अपने राष्ट्र के प्रति सदा सजग रहने का निर्देश दिया गया था जिसका उल्लंघन करके वेदों की मनगढ़ंत व्याख्या कर्मकांडी लोगों द्वारा खूब की गई और जनता को गुमराह किया गया परिणामस्वरूप हमारा देश 900 -1100 वर्ष से अधिक गुलाम रहा। गुलामी के दौरान सभी विदेशी शासकों ने इस देश की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट किया तथा इसमे हमारे देश के स्वार्थी कर्मकांडी लोगों ने भरपूर उन शासकों की मदद  की। आज आजादी के 64 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद उन लोगों ने अपने को अभी तक सुधारा नहीं है और देश की स्वाधीनता पर लगातार हो रहे आक्रमणों का यही सबसे बड़ा कारण है।

लोकसभा के महा सचिव रहे सुभाष कश्यप जी के इन विचारों को पढ़ें -


hindustan-lucknow-04/08/2011


एक तो वैसे ही संसद अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही है उसके बावजूद फासिस्ट प्रवृति के लोगों का संरक्षण प्राप्त कर तथाकथित समाज सुधारक अन्ना हज़ारे साहब संसद को पंगु करने हेतु अनशन की धमकी का सहारा ले रहे हैं। कारपोरेट घरानों का भरपूर समर्थन लेकर वह भ्रष्टाचार दूर करने का दिवा-स्वप्न दिखा रहे हैं। पूंजीवाद खुद ही भ्रष्टाचार की जड़ है और उसी पर आधारित कर्मकांडी पद्धति उसकी पोषक। इन दोनों का विरोध तो करना नहीं चाहते और भ्रष्टाचार दूर करने का खुद को ठेकेदार घोषित करते हैं। यह तानाशाही नहीं तो और क्या है?अन्ना ,रामदेव तो भ्रष्ट पूंजीवाद को बचाने के इंस्ट्रूमेंट हैं.भ्रष्टाचार तो पूंजीवाद का बाई-प्रोडक्ट है.देखिये 'आह्वान'का यह सम्पादकीय-(बड़ा देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)





आजाद हिन्द फौज ने 'एक चूहा हाथी का सरदार' शीर्षक से पर्चे छपवाकर तोप मे भर कर ब्रिटिश सेना मे भारतीय जवानों के समक्ष फिंकवाए थे यह बताने के लिए कि हम लोगों की कमजोरी से विदेशी संख्या मे कम होकर भी हम पर हावी हैं। वही स्थिति आज भी है। मुट्ठी भर पूंजीपति अपने विदेशी साम्राज्यवादी आकाओं के हितार्थ देश की बहुसंख्यक आबादी का शोषण कर रहे हैं। बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों ही घपलों मे फंस कर कोर्ट को चकमा दे रहे हैं और इतनी बड़ी आबादी को गुमराह करके ठग रहे हैं। दोनों के जैकारे लग रहे है। भ्रष्टाचार तो ये दूर कर सकते नहीं परन्तु त्याग और बलिदान से प्राप्त 'स्वाधीनता' को जरूर खतरे मे डाल देंगे।

आजादी के बाद से मिलेटरी शासन की एक तबका वकालत करता आ रहा है ,पाकिस्तान मे इसी प्रकार के शासन ने उस देश के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा कर रखा है। भारत को लोकतान्त्रिक देश होने के कारण ही साम्राज्यवादी उस प्रकार दबोच नहीं पाये जिस प्रकार पाकिस्तान की 'संप्रभुता' को ठेंगा दिखा कर नग्न ताण्डव करते रहते हैं। अन्ना-रामदेव को समर्थन देने वाले यह तय कर लें कि क्या अब आजादी को बरकरार नहीं रखना चाहते? 06 अगस्त 2011 के हिंदुस्तान ,लखनऊ के पृष्ठ 14 पर छापे गए इस समाचार को कुछ लोग खुशी से सराहेंगे परंतु मुझे संदेह है कि यह भारत विशेषकर काश्मीर के अंदरूनी मामले मे साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त करने की चाल है। आतंकवाद को क्या पाकिस्तान मे घुस कर ड्रोगन हमले की भांति ही भारत मे घुस कर समाप्त करने का इशारा तो नहीं है यह प्रस्ताव।

hindustan-lucknow-06/08/2011


अमेरिका की चाल अब पाकिस्तान को टुकड़ों मे बाँट कर कमजोर करने की है भारत मे एक तबका इस बात से बेहद खुश होगा। लेकिन गंभीरता से सोचे तो समझ आ जाएगा कि पाकिस्तान के संभावित छोटे-छोटे टुकड़े पूरी तरह अमेरिका के कब्जे मे होंगे जो भारत के लिए किसी भी तरह से हितकर नहीं होगा। जो संगठन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु अस्तित्व मे आया था वह आज पूरी तरह से अमेरिकी साम्राज्यवाद का भारत मे हितचिंतक बना हुआ है और धर्म की गलत व्याख्या एवं दुरुपयोग द्वारा जनता को अपने साथ बांध लेता है,उसके द्वारा ऐसे अमेरिकी प्रस्तावों पर खुश होना लाजिमी है ।

खेद और अफसोस की बात है कि जो बामपंथ भारत की एकता और  अखंडता का हामी है उसे जनता धर्म-विरोधी कह कर ठुकरा देती है। धर्म क्या है इसे बामपंथ ने अधार्मिकों के हवाले कर रखा है क्योंकि वह इसे मानता ही नहीं तो जनता को समझाये कैसे?अधार्मिक तत्व इस स्थिति का लाभ उठा कर धर्म की पूंजीवादी व्याख्या अपने हित मे प्रस्तुत कर देते हैं। कुल मिला कर हानि मजदूर और शोषित वर्ग की ही होती है और इजारेदार शोषक वर्ग दानी एवं धार्मिक कहलाकर उसी उत्पीड़ित वर्ग से ही पूजा जाता है। आजादी के आंदोलन मे त्याग और बलिदान का लम्बा अनुभव और इतिहास रखते हुये भी आज बामपंथ का जनता से जुड़ाव न हो पाना इसी धर्म-अधर्म का झंझट है।बामपंथ ने यदि धर्म को अधार्मिक और साम्राज्यवादी/सांप्रदायिक लोगों के लिए खुला न छोड़ा होता और जनता को धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया होता तो आज देश की दिशा और दशा  कुछ और ही होती। जन्म से मृत्यु तक जीवन मे अनेक संस्कारों की आवश्यकता होती है जिन्हें मजबूरन पोंगा-पंथियों से ही लोग सम्पन्न कराते हैं और उनके प्रभाव मे आकार गलत दिशा मे वोटिंग कर जाते हैं। यह सब प्रशिक्षण के आभाव का ही दुष्परिणाम है।  आज आजादी के 65वे सालगिरह को मनाते हुये प्रबुद्ध जनों का परम दायित्व है कि आगे इस आजादी को कैसे बचाए रखा जाये इस बात पर गंभीरता से विचार करें  जबकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंघा राव जी  बहुत पहले अपने -'The Insider' मे खुलासा कर गए हैं कि ,"हम स्वतन्त्रता के भ्रम जाल मे जी रहे हैं । "

उच्च वर्ग के लिए आजादी का कोई विशेष महत्व नहीं है। अतः मध्य वर्ग का ही यह दायित्व है कि वह आगे बढ़ कर जनता को राजनीतिक रूप से जागरूक करे और आजादी पर मंडरा रहे खतरे के प्रति आगाह करे एवं इसकी रक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाए।

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