Monday, 22 August 2011

लोक संघर्ष से साभार-'अन्ना गाँधी नहीं हैं : हसन कमाल'

http://loksangharsha.blogspot.com/2011/08/blog-post_22.html


देश के मशहूर सहाफी हसन कमाल ने अपने एक लेख में प्रिंट  इलेक्ट्रोनिक मीडिया केजरिये अन्ना हजारे की तहरीक के हक़ में ली जा रही गैर मामूली दिलचस्पी को उनकासरमायेदारी प्रेम बतलाया है। उनके अनुसार मीडिया यह काम अपने सरमायेदार आकाओंके इशारे पर कर रहा है जिनके आर्थिक हित देश में निवेश करते हैं
हसन कमाल की यह बात ठीक लगती है। जिस प्रकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी. सरकार नेभ्रष्टचार के मामले में कड़ी कार्यवाई की और पूंजीपतियों की कंपनियों को जो करार अघात 2 जीस्पेक्ट्रम घोटाले  कामन वेल्थ के ठेकों को लेकर पहुंचाजिसमें देसी सरमायेदारों से लेकर विदेशीसरमायेदार भी शामिल रहेउससे बौखला कर ही यह जवाबी हमला कांग्रेस  यू.पी. सरकार परआना हजारे को सामने रख कर सरमायेदारों की और से किया गया है
हसन कमाल ने अन्ना को रातोरात गाँधी बन जाने को भी हास्यापद बताते हुए लिखा हैकि खुद अन्ना हजारे ने कभी खुद को गाँधी होने का दवा नहीं किया। गाँधी जी ने कभी भीदेश को क्षेत्रियता अथवा भाषा की संकीर्ण विचारधारा के हक़ में ले जाने की वकालत नहींकी बल्कि वह हमेशा एक देश एक समाज  भारतीयता की बात करते रहेपरन्तु इसकेविपरीत अन्ना हजारे ने राज ठाकरे के उस मत के हक़ में अपना समर्थन दिया था जोउन्होंने महाराष्ट्र से गैर महाराष्ट्रीय लोगों को बहार निकलने के बारे में रखा था। 
अन्ना हजारे के पीछे कौन ताकते काम कर रही हैं यह बात जब तक साफ़ होगी शायद बहुत देर होचुकी होगी और देश की आर्थिक उन्नति तब तक काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी होगी। अन्ना की मुहिम कीराष्ट्रीयता पर इससे बड़ा प्रश्न चिन्ह और क्या होगा कि उन्होंने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रात्रि8 से 9 के बीच बत्ती बुझाने का निर्देश देशवासियों को दिया जिस दिन प्रत्येक देशवासी अपने घरों परप्रफुल्लित होकर चिराग करता रहा है। क्या यह स्वतंत्रता दिवस के अपमान  देश द्रोहिता के दायरे मेंनहीं आता है

-मोहम्मद तारिक खान 



'लोकसंगर्ष' पर मैंने यह टिप्पणी दी है-
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Vijai Mathur ने कहा…

मैंने अपने कलाम और कुदाल पर इसी प्रकार अन्ना को 'राष्ट्रद्रोह' मे गिरफ्तार करने की मांग की थी।
आपके इस लेख को मे 'कलाम और कुदल' पर पेस्ट कर रहा हूँ।

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