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28 जूलाई 1982 को 'सप्तदिवा'आगरा मे प्रकाशित यह लेख 30 वर्ष की आयु की समझ से लिखा था जिसे आज 29 वर्ष बाद पुनः प्रकाशित कर रहे हैं तुलसी दास जी की जयंती-श्रावण शुक्ल सप्तमी के अवसर पर ।
खेद यह है कि कुछ दूसरे ब्लागो पर आपको तुलसी दास जी का दूसरा रूप दिखाया जाएगा जो उनका था नहीं। तमाम लोग भक्ति-अध्यात्म के नाम पर महान 'ऐतिहासिक-राजनीतिक ग्रंथ' को जनता के सामने पाखंडी रूप मे प्रस्तुत करते और तमाम वाहवाही लूटते हैं। अफसोस आज के विज्ञान के युग मे भी लोग-बाग अपनी सोच को परिष्कृत नहीं करना चाहते। खैर मैंने अपना फर्ज अदा किया है। -
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
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फेसबुक कमेन्ट :
07-08-2015 ---
28 जूलाई 1982 को 'सप्तदिवा'आगरा मे प्रकाशित यह लेख 30 वर्ष की आयु की समझ से लिखा था जिसे आज 29 वर्ष बाद पुनः प्रकाशित कर रहे हैं तुलसी दास जी की जयंती-श्रावण शुक्ल सप्तमी के अवसर पर ।
खेद यह है कि कुछ दूसरे ब्लागो पर आपको तुलसी दास जी का दूसरा रूप दिखाया जाएगा जो उनका था नहीं। तमाम लोग भक्ति-अध्यात्म के नाम पर महान 'ऐतिहासिक-राजनीतिक ग्रंथ' को जनता के सामने पाखंडी रूप मे प्रस्तुत करते और तमाम वाहवाही लूटते हैं। अफसोस आज के विज्ञान के युग मे भी लोग-बाग अपनी सोच को परिष्कृत नहीं करना चाहते। खैर मैंने अपना फर्ज अदा किया है। -
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
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