Sunday 10 June 2012

सोच को सकारात्मक बनाएँ

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कन्नौज से निर्विरोध निर्वाचित सांसद श्रीमती डिम्पल यादव



हिंदुस्तान ,लखनऊ,10 जून 2012 ,पृष्ठ-2

कन्नौज मे श्रीमती डिम्पल यादव निर्विरोध क्या जीतीं कुछ लोग जो खुद को विद्वान और महान कहते हैं 'लोकतन्त्र' और 'राजनीति' का मखौल उड़ाने लगे। जहां दहेज की खातिर बहुओं को जला कर मार डाला जाता हैं वहाँ यदि एक 'बहू' को संसद मे भेजा गया तो इसकी सराहना और प्रशंसा की जानी चाहिए थी। क्या महिला होना ही गुनाह माना जा रहा है?
· · 16 hours ago ·



  •  "हम डिम्पल यादव जी की ऐतिहासिक जीत के लिए हार्दिक बधाई देते हैं और उनके पारिवारिक,राजनीतिक,सामाजिक उज्ज्वल भविष्य के लिए मंगलकामना करते हैं।"
    (यह टिप्पणी राम शिव मूर्ती यादव जी के नोट पर मैंने दी थी) 


जब से  डिम्पल यादव जी के कन्नौज से निर्विरोध सांसद चुने जाने की घोषणा हुई है तथाकथित महान-विद्वान चिंतकों ने आसमान सिर पर ढा रखा है कि, यह भारतीय राजनीति मे सामंतशाही की शुरुआत है और लोकतन्त्र के लिए खतरे की घंटी। तमाम लोगों ने तमाम तरह के आक्षेप लगाए जिनमे 'डिम्पल जी' पर व्यक्तिगत आक्षेप भी हैं। लोकसभा के लिए यह पहला निर्विरोध निर्वाचन नहीं है। पूर्व मे और भी कई लोग निर्विरोध चुने जा चुके हैं तब से आज तक लोकतन्त्र समाप्त नहीं हुआ तो अब ही ऐसा कैसे हो जाएगा?

फ़तेहपुर सीकरी (आगरा) से सांसद श्रीमती सीमा उपाध्याय ने राज बब्बर जी को पराजित किया था जिनहोने फीरोजाबाद मे डिम्पल जी को पराजित किया और अब डिम्पल जी कन्नौज से लोक-सभा पहुँच गई हैं। अब एक दूसरे से पराजित हुये और पराजित करने वाले -सीमा उपाध्याय जी,राज बब्बर जी और डिम्पल जी एक साथ लोक-सभा मे विराजमान होंगे। यह लोकतन्त्र की मजबूती का प्रतीक हुआ या कमजोरी का?

यदि डिम्पल जी या उनकी पार्टी द्वारा सत्ता बल से दूसरों को नामांकन करने से रोका  गया होता तब तो आरोप लगाना ठीक रहता। जब राष्ट्रीय दलों ने ही अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए तो निश्चित हार देख कर निर्दलीय भी हट गए। जो लोग आज विरोध मे गाल बाजा रहे हैं उन महानुभावों को समुचित वक्त मे अपना नामांकन करके चुनाव सुनिश्चित कराना चाहिए था। ये बड़बोले लोग अपना खुद का वोट तो डालने जाते नहीं हैं और 'राजनीति' तथा 'राजनीतिज्ञों' को कोसने आगे आ जाते हैं ऐसे लोग ही 'लोकतन्त्र के लिए खतरा' हैं। पटना नगर निगम के चुनावों मे लगभग 67 प्रतिशत लोगों ने वोट नहीं डाले हैं। क्या इस कदम को लोकतन्त्र मजबूती का कदम कहा जाएगा?

शरद पवार जी और उनकी बेटी एवं पी ए संगमा साहब और उनकी बेटी सभी इसी लोकसभा मे सांसद हैं उन पर जब  परिवारवाद चस्पा नहीं होता तो सिर्फ 'डिम्पल जी' के सांसद बनने पर परिवारवाद का सवाल क्यों उठाया गया। यहाँ तो बेटी की जगह 'बहू' को चुना गया है। दूसरे के घर से आई बेटी को सम्मान देने पर यह सराहना जनक उदाहरण माना जाना चाहिए था। काश आक्षेप लगाने वाले लोगों की सोच सकारात्मक होती!




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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