Wednesday, 20 June 2012

देखिये 'लोकतन्त्र का भ्रमजाल'

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(दोनों कटिंग-हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक 20 जून 2012 से )

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंघा राव जी ने पद से हट कर 'THE INSIDER' मे यों ही नहीं लिख दिया था कि,"हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल मे जी रहे हैं"। वस्तुतः उनको व्यावहारिक ज्ञान था । उनके बाद अटल जी ने परमाणु विस्फोट के बाद बतौर प्रधानमंत्री यू एस ए के प्रेसीडेंट जनाब बिल क्लिंटन साहब को पत्र द्वारा सूचित किया था। अब माननीय पी एम मनमोहन साहब ने ओबामा साहब को भारत मे गैस व डीजल के दाम बढ़ाने की सूचना दी है और साथ ही साथ हवाई यात्रा मे 20 प्रतिशत कटौती भी दी जा रही है तथा यूरोजों की मदद के लिए 10 अरब डालर भी दिये जा रहे हैं।

हैं न नीति निर्धारण मे परतंत्र हम आज़ादी के 65 वर्ष बाद भी। साम्राज्यवाद का यह नया स्वरूप है। राष्ट्रपति हमारे सांसद-विधायक चुनेंगे किन्तु अमेरिकी पसंद का। विधायक-सांसद जनता द्वारा निर्वाचित हैं अतः चुनाव लोकतान्त्रिक ही होगा। वाकई यह 'लोकतन्त्र का भ्रमजाल' ही है।

समाधान क्या है?यह तो बामपंथ को सोचना पड़ेगा कि कैसे वह जन-समर्थन हासिल करे?वर्तमान नीतियाँ जनता से बामपंथ को दूर रखने वाली हैं।

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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