Thursday, 9 May 2013

साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है जो 'तोप,तलवार और बम के गोलों' में भी नहीं पाई जाती---आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी

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"साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है जो 'तोप,तलवार और बम के गोलों' में भी नहीं पाई जाती"-आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी द्वारा लिखित यह पंक्ति मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है जिसे हाई स्कूल की पुस्तक में सिलीगुड़ी में 1965-67 के दौरान पढ़ा था। वस्तुतः आचार्य दिवेदी जी स्वतन्त्रता आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में लिखे जा रहे साहित्य की ओर ध्यानाकर्षण कर रहे थे। 

विश्व इतिहास पर नज़र डालने से उनकी यह उक्ति बिलकुल सही सिद्ध होती है। महर्षि कार्ल मार्क्स के साहित्य के आधार पर ही 1917 में रूस में क्रांति सफल हुई थी। आज़ाद हिन्द फौज ने छोटे-छोटे पर्चे छाप कर जनता से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध उठ खड़े होने का आव्हान किया था। 'विद्रोह या क्रांति' कोई ऐसी चीज़ नहीं होती कि,जिसका विस्फोट अचानक होता है। बल्कि इसके अनंतर 'अन्तर'को बल मिलता रहता है। 

इस अन्तर को जनता के समक्ष लाने वाला साहित्य ही प्रभावशाली होता है जिसकी 'शक्ति' का वर्णन आचार्य दिवेदी ने किया है। प्रस्तुत स्कैन कापी से उनके विचारों का ज्ञान होता है और यह भी कि उनको किस प्रकार आभावों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ा तब भी वह विचलित न हुये एवं 'त्याग' का मार्ग अपना कर 'तप' में तल्लीन रहे। । लेकिन आज साहित्य के नाम पर आत्म-प्रशंसक लेखक जो खुद को बड़ा साहित्यकार घोषित करते हैं तीन-तिकड़म से स्थापित होने को प्रयास रत हैं क्या भावी इतिहास इनको तवज्जो देगा? क्या वे आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी जी के जीवन से कोई प्रेरणा ग्रहण कर सकेंगे?या धन-बल पर धन संग्रह हेतु अपना दुलत्ती अभियान जारी रखेंगे?

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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