Friday, 28 February 2014

शुतुरमुर्ग चाल के वामपंथियों के लिए

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Satya Narayan 

अब सुन ए केजरीवाल
कांग्रेस और भाजपा के राज की तरह
अब भी है मज़दूरों का हाल बेहाल

ठेकेदारी-प्रथा को ख़त्म न करके तुम करते हो ठेकेदारों को मालामाल
और मज़दूरों को करते हो कंगाल
लगता है आप पार्टी है ठेकेदारों की दलाल
लोकसभा के चुनाव में मत भेजना टोपी-धारियों को मज़दूर बस्तियों में
क्योंकि जाग गया है मज़दूर और अब
खिंच सकती है आपके "कार्यकर्ताओं" की खाल.…. .






2011 में, मीरा  हिलेरी क्लिंटन के  'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल 


 मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई से चुनाव लड़ेंगी:

 मेधा ने स्पष्ट किया है कि आम आदमी पार्टी के टिकट पर वह चुनाव में उतरेंगी। हालांकि अभी उन्होंने अपनी सीट के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। दूसरी ओर, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (इंडिया) की पूर्व अध्यक्ष मीरा सान्याल 'आप' के टिकट से केंद्रीय राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा को चुनौती देंगी। मीरा वही भारतीय महिला हैं जिसको हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का मौका मिला था।
साल के शुरुआत में मीरा आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं थी और उन्होंने दक्षिण मुंबई से लोकसभा का टिकट मांगा था। पार्टी उनकी इच्छा को पूरा करते हुए देवड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है।

मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई संसदीय क्षेत्र से 2009 के लोकसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार थी। उस दौरान मीरा चुनाव हार गईं थीं। इस बार मीरा ने चुनावी मैदान में सफल होने के लिए 'आप' का सहारा लिया है। फिलहाल मीरा 'लिबरल्स इंडिया फॉर गुड गवर्नेंस' संस्था की अध्यक्ष भी हैं। गौरतलब है कि मीरा ने समाज सेवा के लिए रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड का अध्यक्ष पद छोड़कर राजनीति में कदम रखा था।


52 वर्षीय मीरा भारत के मशहूर और प्रभावशाली बैंकर्स में से एक हैं। उनका जन्म कोच्चि में हुआ था। मीरा सान्याल स्वर्गीय एडमिरल गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी की पुत्री हैं, जिन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एडमिरल गुलाब मोहनलाल का नाम भारतीय नौसेना के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। मीरा एएमपी रिटेल सर्विसेज के एमडी आशीष जे सान्याल की पत्नी हैं। मीरा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई से की थी और फ्रांस के आईएनएसईएडी से एमबीए की डिग्री हासिल की।

अपने 30 साल के बैंकिंग करियर के दौरान मीरा ने आखिरी के 6 साल आरबीएस बैंक के लिए काम किया। इसके पहले, 15 साल एबीएन एएमआरओ बैंक में 15 साल काम किया। मीरा ने कंपनी को ग्लोबल बैंकिंग और टैक्नोलॉजी सेवाएं देने के लिए तैयार किया था। आज यह कंपनी भारत में लगभग 12 हजार लोगों को रोजगार प्रदान कर रही है। 2005 में मीरा को 17 देशों के लिए बैंक का प्रमुख बनया गया था।

 मीरा एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ 'राइट टू प्ले' की सदस्य भी हैं। यह संस्था बच्चों के विकास के लिए 20 देशों में काम करती है।

2011 में, मीरा को हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का न्योता मिला था। मीरा ने इस परिषद का हिस्सा बनकर महिलाओं के विकास में अहम योगदान दिया था। फाइनेंस के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें 'भारतीय वाणिज्य मंडलों के संघ का सदस्य बनाया गया था'। इसके साथ ही मीरा सीआईआई के बैंकिंग और वित्त, सार्वजनिक नीति और महिलाओं की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद की सदस्य भी हैं।

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शुतुरमुर्ग चाल और प्रवृति के वामपंथी लगातार केजरीवाल/आ आ पा भक्ति के गीत गाये जा रहे हैं। इधर ममता बनर्जी की हज़ारे से समर्थन प्राप्त करने की कूटनीतिक चाल ने तो ऐसे लोगों को किंकर्तव्य विमूढ़ कर दिया है और वे अनर्गल प्रलाप में निमग्न हो गए हैं। 'दीवार पर लिखे को न पढ़ने' और न समझने के कारण वे एक तानाशाह के बदले दूसरे तानाशाह को आमंत्रण देते से प्रतीत  होते हैं जब  उनके द्वारा केजरीवाल व उनकी पार्टी को ईमानदार तथा जन-हितैषी बताया जाता है जबकि 17 फरवरी 2014 को खुल कर खुद को वह पूंजीवाद समर्थक घोषित कर चुके हैं। 

केजरीवाल की पार्टी द्वारा जिन धनिकों या विदेशी सत्ता के शुभेच्छुओं को अपना उम्मीदवार बनाया जा रहा है उनका भारत देश व इसकी जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली सरकार में केजरीवाल ने एक कारखानादार को श्रम मंत्री बनाया था जिसने मजदूरों का घनघोर दमन व उत्पीड़न किया था फिर भी किस मुंह से खुद को वामपंथी कहने वाले लोग उनका समर्थन करते हैं इसे तो वे ही जानें किन्तु इतना स्पष्ट है कि इस दृष्टि के पीछे साधारण जनता और मजदूर वर्ग का हित नहीं है। 

बहुत ही साधारण सी बात है कि जब उदारीवाद के मसीहा मनमोहन जी आउट आफ़ डेट हो गए और उनका विकल्प मोदी साहब जन-संहार के दोष से उबर नहीं पाये तो देशी-विदेशी कारपोरेट को केजरीवाल साहब के रूप में नव-उदारीवाद का मसीहा नज़र आया और उनको राजनीति के स्टेज पर प्रस्तुत कर दिया गया। किन्तु उनके समर्थक वामपंथी क्यों उनकी छवी चमका रहे हैं जिनके हाथ मजदूरों के खून से सने हुये हैं?



Tuesday, 18 February 2014

इस तरह के कल्पना विलासी नेता से तो जनता के हितों की रक्षा करना संभव नहीं लगता ---जगदीश्वर चतुर्वेदी

मुक्त व्यापार,मुक्त बाज़ार का मुक्त नायक केजरीवाल

February 18, 2014 at 10:00am
अरविंद केजरीवाल पर मीडिया के लट्टू होने की वजह धीरे धारे साफ़ होती जा रही हैं। साथ ही नव्य उदार आर्थिक नीतियों के हिमायती युवाओं के उसके प्रति आकर्षण के वैचारिक कारण भी सामने आने लगे हैं । हमें यह भ्रम भी नहीं पालना चाहिए कि केजरीवाल सिस्टम में परिवर्तन करने के लिए राजनीति में आए हैं । वे भी यह नहीं मानते ।
अरविंद केजरीवाल ने साफ़ कहा है कि वह 'क्रोनी कैपीटलिज्म" ( लंपट पूँजीवाद) के ख़िलाफ़ है। लेकिन पूँजीवाद के पक्ष में है। सीआईआई के जलसे में बोलते हुए केजरीवाल ने कहा

"We are not against capitalism, we are against crony capitalism", ( बिज़नेस स्टैंडर्ड, 17फरवरी 2014)
यह भी कहा 'हम ग़लती कर सकते हैं लेकिन हमारी मंशाएँ भ्रष्ट नहीं हैं।'
केजरीवाल की मंशाएँ साफ़ हैं और लक्ष्य भी साफ़ हैं। पहलीबार केजरीवाल ने आर्थिक नीतियों के सवाल पर अपना नज़रिया व्यक्त करते हुए जो कुछ कहा है वह संकेत है कि आख़िरकार वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं ?

केजरीवाल पर बातें करते समय उनके आम आदमी पार्टी के गठन के पहले के बयानों और कामों के साथ मौजूदा दौर में दिए जा रहे बयानों का गहरा संबंध है फिर भी हमें राजनेता केजरीवाल और सामाजिकनेता केजरीवाल में अंतर करना होगा ।
आम आदमी पार्टी के गठन के बाद केजरीवाल यह पहला महत्वपूर्ण नीतिगत बयान है। यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उनके दल के साथ सोशलिस्टों, अतिवामपंथी, उदार देशभक्त और जानेमाने वामपंथी विचारधारा के लोग भी शामिल हैं। ये सब वे लोग हैं जो कल तक विभिन्न मंचों से अपने जो विचार रख रहे थे उनसे केजरीवाल के आर्थिक विचारों का मेल बिठाने में असुविधाएं हो सकती हैं ।
केजरीवाल ने साफ़ शब्दों में अपने नज़रिए की बुनियादी धारणा पेश की है , उन्होंने कहा है
"Time has come to define what is the government's role," Kejriwal said, adding the government has no business to be in business, which is best left to private players.

He said whatever the form of government, it has three primary tasks - providing security, justice and a corruption-free administration."

यानी केजरीवाल चाहते हैं सरकार या राज्यसत्ता की बाज़ार के नियमन में कोई भूमिका न हो । वे चाहते हैं सरकार का काम है सिर्फ़ प्रशासन चलाना ।व्यापार के काम को निजी क्षेत्र के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाय।

नव्य उदार आर्थिक नीति की भी यही माँग रही है। इसी माँग की पूर्ति के लिए कांग्रेस काम करती रही है और बाज़ार की शक्तियाँ ही तय करती रही हैं कि व्यापार में क्या हो?

यह अचानक नहीं है कि केजरीवाल 48दिन दिल्ली में सरकार में रहे लेकिन उन्होंने महँगाई नियंत्रण के लिए कोई क़दम नहीं उठाया । यहाँ तक कि व्यापारियों की लूट -खसोट के ख़िलाफ़ कोई बयान तक नहीं दिया।

केजरीवाल ने अपने बयान में मूलत: मुक्त बाज़ार की धारणाओं की हिमायत की है और जो फ़ार्मूला सुझाया है वह विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विगत कई दशकों से सुझाता रहा है । यह नीति लगातार सभी देशों में पिटती रही है यहाँ तक कि अमेरिका में भी पिटी है।

मुक्त बाज़ार का मतलब भारत जैसे देश के लिए आत्मघाती है। इसका यह भी अर्थ है कि मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा जो जनविरोधी आर्थिक नीतियाँ लागू होती रही हैं उनको लेकर बुनियादी तौर पर केजरीवाल का कोई बुनियादी सैद्धांतिक मतभेद नहीं है। केजरीवाल की मनमोहन सिंह के बारे में जो धारणा है वह जानें,कहा है,
"The world's best economic expert is our Prime Minister Manmohan Singh. During the last 10 years of UPA tenure, you saw best economic policies but the biggest drawback was lack of honest politics. As there was no honest politics, those economic policies could not be implemented,"

यानी मनमोहन सिंह की नीतियाँ सही हैं लेकिन संकट है तो ईमानदार राजनीति का । ईमानदार राजनीति हो और मनमोहन सिंह की नीतियाँ रहें तो बस सोने में सुहागा समझो !

ईमानदार राजनीति का जनहितकारी नीतियों से गहरा संबंध है। मनमोहन सिंह की जनविरोधी नीतियों का भ्रष्ट राजनीति से गहरा संबंध है । मनमोहन सिंह की नीतियाँ " लंपट पूँजीवाद" की जनक हैं। समस्या ईमानदार नेता और बेईमान नेता में से चुनने की नहीं है ।

समस्या यह है मनमोहन सिंह की नीतियाँ रहें या जाएँ ? क्या केजरीवाल के पास मनमोहन सिंह की सुझायी और लागू की गयी नीतियों का कोई विकल्प है ? केजरीवाल के बयान से लगता है उनके पास मनमोहन सिंह की नीतियों का कोई विकल्प नहीं है। नीति मनमोहन सिंह की और राजनीति केजरीवाल की !

केजरीवाल का यह कहना कि सरकार का काम है प्रशासन चलाना और व्यापार के काम से सरकार को बाहर रहना चाहिए । इसका क्या अर्थ लें ?

केजरीवाल के अनुसार व्यापार के नियम व्यापारी बनाएँ , सरकार उस काम में हस्तक्षेप न करे। यानी वे व्यापारियों को मनमानी करने का अबाधित हक़ देना चाहते हैं। बाज़ार को सरकारी चंगुल से पूरी तरह मुक्त करते हुए वे क्या करना चाहते हैं इस पर साफ़तौर पर कुछ नहीं कहा ।

मसलन केजरीवाल से पूछा जाना चाहिए कि रेडियो तरंगों का मालिक कौन रहेगा ? सरकार रहेगी या निजी क्षेत्र ? क्या रेडियो तरंगों के बाजिव दाम मिल जाएँगे तो रेडियो तरंगों को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाय ?
यह सच है केन्द्र सरकार ने रेडियो तरंगें निजी क्षेत्र को बेचकर राष्ट्र को भारी क्षति पहुँचायी है । रेडियो तरंगों को किसी भी क़ीमत पर निजी क्षेत्र को बेचना राष्ट्रहित में नहीं है। ये तरंगें राष्ट्र के लिए आवंटित हैं और राष्ट्र की संपदा हैं। इसी तरह मुनाफ़ा देने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के कारख़ानों के निजीकरण के प्रयासों को देखा जाना चाहिए ।
आम आदमी पार्टी का सार्वजनिक क्षेत्र के कारख़ानों और संस्थानों को लेकर क्या नज़रिया है ? इस पर केजरीवाल चुप रहे ? लेकिन उनकी मुक्तबाजार की धारणा साफ़ बता रही है कि वे सार्वजनिक क्षेत्र के पक्ष में नहीं हैं ।

यानी केजरीवाल को मौक़ा मिलेगा तो वे सार्वजनिक क्षेत्र को तेज़ी से निजी हाथों में सौंपेंगे ।

असल में अरविंद केजरीवाल का 'लंपट पूँजीवाद' का विरोध भी नक़ली है । वे चालाकी से इस बात को छिपा रहे हैं कि 'लंपट पूँजीवाद' तो पूँजीवाद के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया के गर्भ से पैदा हुआ है ।
अमेरिका को 'लंपट पूँजीवाद' का जनक माना जाता है और वहाँ पर बड़े पैमाने पर इसके दुष्परिणाम जनता को भोगने पड़े हैं । मुक्त बाज़ार का सिद्धांत अंततः 'लंपट पूँजीवाद' में जाकर ही शरण लेता है ।
'लंपट पूँजीवाद' के आदर्श नायकों का जनक नव्य आर्थिक उदारीकरण है । केजरीवाल से लेकर मेधा पाटकर तक किसी को इसे लेकर समस्या नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि स्वयंसेवी संगठनों का जो नेटवर्क विगत 25 सालों में पैदा हुआ था उसका बहुत बड़ा हिस्सा इनदिनों आम आदमी पार्टी में समाहित हो चुका है । इसमें वे लोग भी हैं जो कल तक नव्य आर्थिक पूँजीवाद का विरोध कर रहे थे ,ज़मीनी संघर्ष चला रहे थे । लेकिन केजरीवाल के सीआईआई में दिए गए बयान ने साफ़ कर दिया है कि इन सभी रंगत के सामाजिक संगठनों का नव्य आर्थिक उदारीकरण का विरोध तात्कालिक और अवसरवादी था ।

केजरीवाल के द्वारा 'मुक्त व्यापार' की हिमायत करने को एक बड़ी राजनीतिक सफलता के रुप में भी देख सकते हैं । कम से कम केजरीवाल के ज़रिए वे तमाम संगठन जो कल तक मेधा पाटकर से लेकर लिंगराज के नेतृत्व में नव्य आर्थिक पूँजीवादी नीतियों का विरोध कर रहे थे , वे अब खुलकर मुक्त व्यापार के पक्ष में आ गए हैं। यह एनजीओ मार्का परिवर्तनकामी राजनीति में आया नया परिवर्तन है और त्रासद परिवर्तन है ।

केजरीवाल का मुक्त व्यापार की हिमायत में दिया गया बयान माओवादी,नव्य वामपंथियों और दिल्ली के फ़ैशनेबुल सोशलिस्टों के अब तक के नीतिगत बयानों का अतिक्रमण करता है ।

सवाल यह है क्या ये लोग अब भी केजरीवाल के मुक्त बाज़ार ,मुक्त व्यापार और राज्य की भूमिका को लेकर दिए गए बयान से सहमत हैं ? और साथ रहना चाहते हैं ? क्या मुक्त व्यापार का नारा सिस्टम को बदल सकता है ? क्या मुक्त व्यापार की नीतियों से आम जनता के हितों की रक्षा संभव है ? क्या मुक्त व्यापार की नीतियों के चलते 'लंपट पूँजीवाद' से बचना संभव है ? राज्य को व्यापार से पूरी तरह मुक्त करके केजरीवाल किन वर्गों की सेवा करना चाहते हैं ?
केजरीवाल जिस मुक्त व्यापार की हिमायत कर रहे हैं उसकी एक ज़माने में स्वतंत्र पार्टी और संगठन कांग्रेस ने जमकर हिमायत की थी और देश की संसद ने मुक्त व्यापार के सिद्धांत को अनेकबार ठुकराया है। 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' का रास्ता मुक्त व्यापार के ख़िलाफ़ विचारधारात्मक संघर्ष के क्रम में ही जन्मा था ।

मनमोहन सिंह ने विगत २० सालों में मुक्त व्यापार की हिमायत करते हुए बार बार सार्वजनिक क्षेत्र पर हमला किया है और दूरसंचार से लेकर बिजली तक सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के हाथों औने-पौने दामों पर सरकारी संपत्ति को बेचा है । विनिमयन के नाम पर मुक्त बाज़ार और बाज़ार की शक्तियों को अबाध अधिकार दिए हैं । केजरीवाल की नज़र में यह सब जायज़ दाम वसूली का मामला मात्र है । मसलन् रेडियो तरंगें हों या कोयला खदानें उनको यदि जायज़ दामों पर बेच दिया जाता तो उनको कोई आपत्ति नहीं होती । समस्या यहीं पर है।

राज्य की संपदा को निजी क्षेत्र को क्यों बेचें ? क्या सरकार संपदा का प्रबंधन सही तरीक़ों और कौशलपूर्ण ढंग से नहीं कर सकती ? क्या सरकारी प्रबंधन और संचालन की नई नीति नहीं बनायी जा सकती ?
केजरीवाल का मानना है सरकार का काम ख़ाली प्रशासन चलाना है ।व्यापार करना नहीं है । नौकरी देना सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है वह तो निजी क्षेत्र की ज़िम्मेदारी है । इस तरह के कल्पना विलासी नेता से तो जनता के हितों की रक्षा करना संभव नहीं लगता ।

मुक्त बाज़ार और मुक्त व्यापार की हिमायत मूलत: जनतंत्र का विलोम है। मुक्त व्यापार में जनतंत्र तो अमीरों की रखैल है।
अमेरिका में मुक्त व्यापार है और वहाँ लोकतंत्र के नाम पर धनतंत्र है। आम आदमी की कोई हैसियत नहीं है। भारत में अभी भी लोकतंत्र में ग़रीब को ताक़त हासिल है और उसके बिना आप कुछ नहीं कर सकते ।

मुक्त व्यापार में लोकतांत्रिक संरचनाएँ मनमाने नियमों के तहत काम करती हैं। याद करें अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के पहले राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को वहाँ मतपत्रों की गिनती पूरी किए बिना ही उनको राष्ट्रपति बना दिया गया , हमारे देश में यह संभव नहीं है। मुक्त व्यापार के जगत में नीतियों का फ़ैसला सीधे कारपोरेट घराने लेंगे और वह स्थिति भारत के लिए बेहद ख़तरनाक हो सकती है ।

केजरीवाल अपनी भाषणकला के ज़रिए नीतिगत सवालों से कन्नी काटते रहे हैं और घूम फिरकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चले आते हैं। भ्रष्टाचार से लड़ना ज़रुरी है लेकिन अन्य समस्याओं से भी लड़ना ज़रुरी है।

आम आदमी पार्टी को सोचना होगा कि वे मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों पर चुप क्यों रहे ? वे गुजरात के दंगों या सिख दंगों पर बोलते हैं लेकिन मुज़फ़्फ़र नगर के दंगों पर चुप रहते हैं,यह नहीं चलेगा।दंगों में से चुनने का सवाल नहीं है । उसी तरह मोदी की साम्प्रदायिकता पर हमले करें लेकिन दिल्ली में एक जाति विशेष के लोगों या हरियाणा में जाति विशेष के लोगों द्वारा फैलाए जा रहे ज़हर का वोटबैंक की राजनीति के दबाव के कारण विरोध ही न करना ग़लत है ।

भारत में मुक्त व्यापार की हिमायत कल्पना विलास है और इससे जनता की मौजूदा बदहाली को ख़त्म नहीं किया जा सकता । केजरीवाल के पास अभी भी समय है और सोचें कि देश की आर्थिक उन्नति के लिए उनके पास नया क्या है ? मुक्त व्यापार की हिमायत तो नई बोतल में पुरानी शराब ही है और भारत की जनता यह शराब बार बार ठुकरा चुकी है ।


Friday, 14 February 2014

श्रम की प्रतिष्ठा का उत्सव :संत रविदास जयंती---सदानंद शाही/विजय राजबली माथुर

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वर्ण आधारित श्रेष्ठताक्रम को चुनौती :

सत्य की स्थापना हेतु वर्ण आधारित श्रेष्ठताक्रम को चुनौती देना संत रविदास का एक पुनीत 'कर्म' था। वर्णाश्रम-व्यवस्था को जन्मना बना देने से जातियों व उप-जातियों की उत्पत्ति  हुई जो आज तक पूरे देश को जकड़े हुये है और इसी वजह से देश लगभग 1100-1200 वर्ष पराधीन भी रहा है। 'सत्य' को नकारते हुये जहां कुछ लोग 'आर्य' शब्द को विदेशी आक्रांता वर्ग की एक जाति के रूप में निरूपित करते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे देश की ही एक जाति बताते हैं। जबकि दोनों ही बातें पूर्ण रूप से असत्य हैं। 

वस्तुतः 'आर्य' कोई जाति,धर्म या नस्ल नहीं है। 'आर्य' शब्द 'आर्ष' से बना है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ अर्थात जो मनुष्य श्रेष्ठ कर्म करते हैं वे सभी आर्य हैं चाहें वे किसी भी जाति,धर्म या नस्ल को मानने वाले हों और दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों। विदेशी साम्राज्यवादियो ने अपनी दुर्नीति के चलते आर्य को विदेशी आक्रांता घोषित करके जो झगड़ा  खड़ा किया था उसका निर्मूलन करने में संत रविदास की सीख और साहित्य का काफी योगदान हो सकता है। 

योग्यतानुसार 'कर्म' और कर्मानुसार 'वर्ण' बनाए गए थे जो जन्म-जन्मांतर से जोड़ कर विकृत किए गए हैं मात्र आर्थिक -शोषण हेतु उनको पुनः अपने मूल स्वरूप कर्मानुसार वर्ण में परिवर्तित किया जाना ही  संत रविदास की शिक्षा को ग्रहण करना होगा। इसी से विद्वेष  मूलक 'जाति-व्यवस्था' को समाप्त किया जा सकेगा। आज फिर संत रविदास जैसे  सामाजिक आंदोलन को चलाये जाने की आवश्यकता है तभी श्रम की प्रतिष्ठा संभव हो सकेगी । और तभी मानव द्वारा मानव का शोषण समाप्त करके समाजवाद की दिशा में बढ़ा जा सकेगा। अन्यथा थोथे  नारों से समानता नहीं स्थापित की जा सकती। आर्थिक समानता हेतु जातीय असमानता का भी निर्मूलन करना ही होगा।   

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 9 February 2014

प्रेरणासपद एवं अनुकरणीय :मेरठ की बेटी रज़िया सुल्ताना

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday, 7 February 2014

जनता की बात जनता के लिए:मोहम्मद गनी----अशोक बंसल


मोहम्मद गनी-- दिहाड़ी मज़दूर से फिल्मकार बनने का सफर -

मोहम्मद गनी

February 7, 2014 at 8:41am


एक बेलदार से फोटोग्राफर और फिल्मकार का सफर तय करने वाले अड़तीस साल के मोहम्मद गनी मथुरा के ऐसे अकेले फ़िल्मकार हैं जिन्होंने अपने श्रम और लगन से बड़े परदे की एक फ़िल्म का निर्माण कर मथुरा ही नहीं दूसरे शहरों के सांस्कृतिक कमिर्यों को हैरत में डाल दिया है। कहानीकार ज्ञानप्रकाश की कहानी ''कैद '' पर आधारित यह फ़िल्म कोई बम्बइया शैली की तर्ज़ पर न होकर विशुध्द कलात्मक और मकसदशुदा फ़िल्म है । फ़िल्म 'कैद' का प्रदर्शन आजकल मथुरा में जगह जगह किया जा रहा है. इसके साथ ही गाणी इस फ़िल्म को फ़िल्म फेस्टिवल में भी भेजने की तैयारी में जुटे हैं. यह फ़िल्म एक बच्चे के साथ स्कूल और घर पर की गई उपेक्षा से उपजे दर्द की ददर्नाक कहानी है ।
मोहम्मद गनी के पिता नाज़र अली ने सपने में भी न सोचा था कि उनका अनपढ़ बेटा ईंट-गारे की कैद से मुक्त होकर पढ़े लिखों की जमात में शरीक होकर मुक्त गगन में विचरण करेगा । आर्ट फ़िल्म संसार में कुछ कर गुजरने की हसरत रखने वाले गनी ने बताया कि मुफलिसी का जीवन जीने वाले उनके पिता नाज़र अली एटा जनपद के गाँव दोर्रा से मथुरा में काम की तलाश में आये थे। तब मथुरा में श्री कृष्ण जन्म भूमि पर भागवत मंदिर का निर्माण चल रहा था। मज़दूरों की जरूरत थी सो फ़ौरन खप गए। परिवार में पत्नी के अलावा चार बच्चे थे । निर्माण स्थल पर ही अधबने मंदिर में एक मुस्लिम परिवार ने डेरा डालने में तनिक भी संकोच नहीं किया। नाज़र अली को चंग बजाकर आल्हा गाने में महारत हासिल थी । शाम को थके हारे परिवार में आते तो आल्हा गाकर थकान मिटाते। बच्चे पिता के कंठ से निकली स्वर लहरी में बह जाते । पूरा परिवार पेट में अन्न पहुंचाकर ही संतुष्ट था। गनी के स्कूल जाने का सवाल तो दूर' अ ब स' या 'अलिफ़ वे पे' से वाकिफ होने का अवसर न मिला । गनी के हाथो में ताकत आई तो वह भी अपने भाई हनीफ और सनीफ के साथ मेहनत -मजूरी करने लगा। धीरे धीरे मंदिर बन गया तो नाज़र परिवार को मंदिर परिसर से अपनी रिहाइश हटानी पड़ी । सभी लोग यमुना पार की गरीबों की बस्ती में जा बसे । पड़ौस में घनश्याम दरजी की दूकान थी ,पिता ने गनी को दर्जी की मिन्नतें कर कपडा सिलाई का काम सीखने में लगा दिया । तब गनी की उम्र १५ साल रही होगी .गनी ने बताया कि कपडे पर कैंची चलाना तो आ गया पर हर वक्त उसकी इच्छा कैमरे को छूने की होती थी। १९९० में वह स्वतन्त्र दरजी हो गया। पैसा बचाने लगा एक कैमरा खरीदने के लिए । हिंदी पढ़ना सीख लिया। पत्रिकाओं में बड़े बड़े फोटोग्राफरों के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई । इसी वक्त गनी को अशोक मेहता ,बाबा आजमी ,लारेंस डिसूजा जैसे नामी गिरामी फोटोग्राफरों के बारे में जानने का अवसर मिला । गनी ने पढ़ा कि बाबा आजमी (कैफी आजमी के बेटे और शबाना आजमी के भाई ) ''इप्टा '' में काम करते हैं । मथुरा में ''इप्टा'' की शाखा थी । गनी ने इसके पदाधिकारिओं से संपर्क साधा और सदस्य बन गया। वह राम मंदिर आंदोलन का दौ.र था। मथुरा में गुरुशरण सिंह के नाटक ''अपहरण भाईचारे का'' मंचन हुआ। गनी को इस नाटक में काम करने का मौका मिला। गनी को उसकी अभिनय प्रतिभा देख सुशील कुमार सिंह के नाटक ''सिंहासन खाली करो ''में काम दिया गया लेकिन दरजी की दूकान में आमंदनी कम होने लगी । गनी को इप्टा वालों से मिलने शहर आना पड़ता था .अत; घर में ही ''प्रेरक थिएटर '' बना डाला । दिनभर काम और फिर बचे वक्त में गरीब बस्ती के बच्चों के साथ किसी नाटक का रिहर्सल। .गनी की संस्था में गति आ गई। गनी की समझ का विस्तार होने लगा। प्रगतिशील लोगों के संगठन ''जन सांस्कृतिक मंच ''ने गनी को हाथों हाथ लिया। गनी का जुड़ाव देश के वामपंथी आंदोलन से हुआ । वह एक आयोजन में दिल्ली जाकर कैफी आजमी ,फारूख शेख ,मुद्रा राक्षस ,शबाना आजमी ,हबीब तनबीर आदि से मिला। उसकी संस्था' प्रेरक' ने मलिन वस्तिओ में और ज्यादा शिद्दत से काम करना शुरू कर दिया।
पूरे परिवार ने मेहनत मशकत से जमा की कुछ रकम से जमीन का एक टुकड़ा ख़रीदा और बच्चों का स्कूल खोल दिया । गनी का पूरा परिवार स्कूल के काम में जुट गया . गनी ने बच्चों के अंदर नाट्य प्रतिभा को जगाना प्रारम् किया । परिसर में प्रेमचंद की कहानी'' कफ़न '' पर नाटक तैयार किया गया । हरिशंकर परसाई के कई व्यंग पर आधारित नाटक खेले गए। गनी ने दर्जीगिरी का काम फिर भी न छोड़ा ,पैसा इकठ्ठा जो करना था कैमरा खरीदने के लिए ।लगभग ५ वर्ष पूर्व गनी का वर्षों पुराना सपना पूरा हुआ। वह एक हैंडीकैम कैमरा खरीद लाया । शम्भूनाथ सिंह की एक कहानी पर इस छोटे कैमरे से ६ मिनट की फ़िल्म बना डाली । स्कूल चल निकला। आमंदनी होने लगी । सन २०१० में दूसरा कैमरा ख़रीदा और ज्ञान प्रकाश विवेक की अनुमति के बाद उनकी कहानी ''कैद'' का नाट्य रूपांतरण कर उसे फिल्माया गया । फ़िल्म में कई पात्रों का अ•िानय स्कूल के छात्र और शिक्षकों ने किया है । इस फ़िल्म में ''पान सिंह तोमर '' में अभिनय करने वाले अभिनेता व् निदेशक संदीपन विमलकांत(पटकथा लेखिका अचला नागर के बेटे ) ने भी काम किया है। गनी के इस बड़े व् प्रथम प्रयास को मथुरा --आगरा में सराहा जा रहा है।
गनी के सपनों में अब पंख लग गए हैं । उसे धन दौलत की दुनिया से परहेज है । वह जनता के दर्द को व्यक्त करने वाले साहित्य को अपनी फिल्मों में स्थान देना चाहता है । गनी ने बताया कि प्रसिध्द अभिनेता अमोल गुप्त ने उससे कहा है कि अगला सिनेमा छोटी छोटी जगहों -कस्बों से पैदा होगा ,जनता की बात जनता के लिए। गनी ने अपनी दूसरी फ़िल्म की तैयारी शुरू कर दी है . कहानीकार शुशांत सुप्रिय की कहानी ''मेरा जुर्म क्या है '' की पटकथा लेखन में जुट गए हैं --गनी और उसके भाई हनीफ ।
गनी और उसके परिवार का .नाटक और अच्छी फिल्मों के प्रति एक ईमानदार समर्पण देख मथुरा का साहित्यिक -सांस्कृतिक समुदाय उनके प्रति श्रद्धानत है।


साभार जगदीश्वर चतुर्वेदी जी :
https://www.facebook.com/notes/jagadishwar-chaturvedi/

Saturday, 1 February 2014

जैसे दिल्ली को मुर्ख बनाया वैसे ही अब सारे भारत को बनाना है........आकाश दीप

 मेरे प्यारे केजरी भैय्या
नमस्कार
उम्मीद ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आप और आपकी आप टीम मज़े में है,शुक्रगुजार है आपकी टीम आपका और भौचक है जनता..क्या दिमाग (जिसमे सिर्फ खुराफातें भरी है ) पाया है आपने,कैसे उल्लू बना लेते हो आप जनता को ?? क्या आप गं
गा हो ?? जिसमे कही कि गन्दगी आती है तो वो पवित्र हो जाती है..कितना मीठा बोलते हो आप,झूठ को सच बनाने में तो आपका जवाब नहीं..कैसे कर लेते हो आप ये चीज़े ?? बात करते हो दुनिया भर के भ्रष्टाचार कि पर अपना घर और अपने को नहीं देखते हो...इनकम टैक्स कि नौकरी में रहकर 9 लाख का लोन लिया और बिना चुकाए नौकरी छोड़ दी,क्या ये भ्रष्टाचार नहीं था??आपके मंत्री सोमनाथ 150 करोड़ कि आसामी को बचाने में झूठे सबूत कोर्ट में देते है,क्या ये भ्रष्टाचार नहीं??आपके स्वम्भू राष्ट्र कवि विश्वास जी,शज़िआ इल्मी,खुले आम पैसे के लेनदेन कि स्टिंग में फसते है,और बिना किसी जांच के आप उसे गलत बता देते हो,क्या ये भ्रष्टाचार नहीं??दिल्ली हाई कोर्ट के मांगने पर भी विदेशी चंदे का स्रोत नहीं बताते,क्या ये भ्रष्टाचार नहीं??बिहार के आपके मुखिया कुंदन जी (दर्ज़नो अपराध में लिप्त और वांटेड ) खुले आम धन उगाही करते है,ये भ्रष्टाचार नहीं???
बात करते हो सादगी कि,तो आपके दिल्ली के 70 प्रत्यासियो में 41 कि संपत्ति 5 करोड़ से ऊपर,क्या ये सादगी है??आप और आपके सारे लोग हवाई जहाज़ में सफ़र करते है ये सादगी है ??रामलीला मैदान में शपथ लेकर सरकारी खजाने को सिर्फ 2 करोड़ का चुना लगाया,जबकि यही काम राज भवन में सिर्फ 1 लाख में हो जाता,क्या ये सादगी है??आपके कवि महोदय विश्वास जी 35 महंगी गाडियो के काफिले के साथ अमेठी जाते है,क्या यही सादगी है??
बात करते हो वादे निभाने की..बिजली बिल तकनिकी रूप से सब्सिडी देकर आधा किया,और पब्लिक को मुर्ख बनाया,यही वादा निभाया??पानी मुफ्त किया उसके लिए जिसके घर में मीटर है,पर दिल्ली कि 68 प्रतिशत घरो में मीटर ही नहीं,यही वादा निभाया ?? धरने पर बैठ गए ये कह कर कि मेरे हाथ में कुछ नहीं,अब से कुछ हो जाये तो मुझे मत कुछ कहना ,यही तो शीला दीक्षित भी कहती थी,यही वादा निभाया??आज से बिजली के दाम भी बढ़ गए,क्या यही वादा निभा रहे है आप ??
बात करते हो राजनितिक सुचिता कि,पुलिस को नौकरी छोड़ कर आने कि,सिस्टम बदलने कि,कानून नहीं मानने की,कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने कि,नक्सलियो के समर्थन की,खाप पंचायतो को समर्थन की.....आप कहा ले जा रहे हो देश को???
दुनिया भ्रष्ट सिर्फ आप सही,बिना सबूत के आरोप लगाओ....
करना धरना कुछ नहीं है आपको,आपको अब सपने में पागलो कि तरह प्रधानमंत्री कि कुर्सी दिख रही है,सोचा कि जैसे दिल्ली को मुर्ख बनाया वैसे ही अब सारे भारत को बनाना है...
पर भैय्या केजरीवाल भारत दिल्ली नहीं है....आप अति महत्वकाँक्षी हो,और अति हर बात कि बुरी होती है,कही खुद पे झाड़ू ना फिर जाये ....पहले जो जिम्मेदारी मिली है उसको तो ठीक से निभा ले,कही कुछ दिनों के बाद ये ना कहना पड़े- ना खुदा ही मिला ना विशाले सनम,ना इधर के रहे ना उधर के हम.....

आपका अपना
सच का आम आदमी



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National Vice President · 2011 to present