हिंदू समाज में दलित के रूप में पैदा होना निश्चित ही दुनिया का सबसे निकृष्टतम कृत्य और कृत्य भी ऐसा जिसमें आपका कोई हाथ नही होता है। यह निकृष्टता और अपमान ब्राहमणवादी संघी टोले के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद से अपने चरम पर है। ब्राहमणवादियों की दबंगई और उसमें सत्ता का दुरूपयोग अपनी पूरी आक्रामकता और निर्लज्जता के साथ देश में चारो तरफ पैर पसार रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी भी इस दबंगई से अछूती नही है।
ब्राहमणवाद का राजनीतिक अर्थशास्त्र :
हिंदू समाज में दलित के रूप में पैदा होना निश्चित ही दुनिया का सबसे निकृष्टतम कृत्य और कृत्य भी ऐसा जिसमें आपका कोई हाथ नही होता है। यह निकृष्टता और अपमान ब्राहमणवादी संघी टोले के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद से अपने चरम पर है। ब्राहमणवादियों की दबंगई और उसमें सत्ता का दुरूपयोग अपनी पूरी आक्रामकता और निर्लज्जता के साथ देश में चारो तरफ पैर पसार रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी भी इस दबंगई से अछूती नही है।
द्वारका इलाके में कुतुब विहार नामक कालोनी में एक दलित रामप्रसाद के नेतृत्व में कालोनी के अनुसूचित जाति के लोगों ने कुछ साल पहले एक मंदिर की नींव रखी और कईं सालों की मेहनत के बाद उसे विकसित भी किया। अब अचानक इलाके के ब्राहमणवादी भाजपाईयों को याद आ गया कि उनकी देवी देवताओं की देखभाल करने वाले लोग दलित हैं और उन्हें उनके देवी देवताओं की रखवाली और पूजा अर्चना करने का कोई अधिकार नही है। उसके बाद भाजपा के स्थानीय नेता शेलैन्द्र पाण्ड़े के साथ मिलकर उनकी ही पार्टी के दो अन्य कार्यकर्ताओं अभिमन्यू और मनीषा ने रामप्रसाद और उनके परिवार को मंदिर से धक्के देकर बाहर कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि तुम नीच जाति वालों को पूजा पाठ करने विशेषकर मंदिर की देखभाल करने का कोई अधिकार ही नही है। रामप्रसाद ने थाने जाकर शिकायत करनी चाही तो थानाध्यक्ष ने साफ कहा कि शिकायत मत करो पछताना पडेगा और शिकायत लेने से मनाकर दिया। उसके बाद उन्होंने अपनी शिकायत डीसीपी और पुलिस आयुक्त को एवं अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में भी भेजी जहां आयोग ने 29 दिसम्बर को इस मामले की सुनवाई तय की है।
अब थानाघ्यक्ष की चेतावनी के मूर्त रूप लेने का समय था। भाजपा नेता ने अपनी सहयोगी मनीषा के माध्यम रामप्रसाद पर छेड़छाड़ करने का आरोप लगवाकर उसे जेल भेज दिया। पंरतु ऐसा मामला बनने की आशंका को लेकर एक शिकायत रामप्रसाद ने पहले ही पुलिस विभाग को कर दी थी और उसी के आधार पर उन्हें जमानत भी मिल गई। इस इलाके में जगह जगह लगे पोस्टर एवं होर्डिंग्स भाजपा नेता के पद एवं रसूख का पता दे रहे हैं तो वहीं उनके साथ उन्हीं होर्डिंग्स में लगी उस महिला की तस्वीर भी पूरी कहानी बयां कर देती है जिसने रामप्रसाद को छेडछाड़ को आरोप में फंसवाया है।
दरअसल यह पूरा मामला सरकारी जमीन को हड़पने का है। डीडीए की कईं बीघा जमीन में यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास भी लगभग एक हजार गज की जमीन पर बना ढ़ंाचा है अर्थात मामला स्थानीय निवासियों द्वारा इस मंदिर को कालोनी के कब्जे में रखकर इसका सामाजिक इस्तेमाल करने बनाम लैंड माफिया द्वारा इसे हथियाकर बेचन का है। जिसने कईं सालों तक इस मंदिर को बनाने में अपना सब कुछ लगाया और जिसका पूरा परिवार इस मंदिर के रख रखाव में लगा उसे एक दिन ब्राहमणवादी संगठन के प्रदेश स्तरीय नेता ने बता दिया कि तुम दलित हो और ना मंदिर तुम्हारा है और यह धर्म ही तुम्हारा है, भागो यहां से। हिंदू धर्म, उसके मंदिर उसके पूरे कार्मकाण्ड़ों का सच ही यही है कि वो एक वर्ग विशेष को देश और समाज के पूरे संसाधनों पर कब्जे और उसके दोहन का अर्थशास्त्र सिखाता है। यह तभी से जारी है जब हजारों साल पहले इस देश के मूल निवासियों पर आर्यों के रूप में पहला साम्राज्यवादी हमला हुआ था।* तभी से इन ब्राहमणवादियों की कोशिश धार्मिक कर्मकाण्ड़ों पर अपना वर्चस्व बनाने के माध्यम से पूरी प्राकृतिक और राष्ट्रीय संपदा के दोहन की है। परंतु अब लड़ाई का बिगुल बज चुका है और कुतुब विहार, गोला डेरी में ब्राहमणवाद के कब्जे से इस मंदिर को आजाद कराकर इसे समता प्रेरणा स्थल के रूप स्थापित किया जायेगा। आप सभी के इसमें सहयोग की आशा है।
https://www.facebook.com/mahesh.rathi.33/posts/10203777537797264
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'भारत पर आर्यों का हमला ' यह एक पाश्चात्य दृष्टिकोण है जो साम्राज्यवादियो द्वारा खुद को श्रेष्ठ साबित करने का एक घृणित प्रयास है।
वस्तुतः आर्य न कोई जाति है, न संप्रदाय, न ही धर्म । आर्य शब्द आर्ष का अपभ्रंश है जिसका अभिप्राय है 'श्रेष्ठ' अर्थात विश्व का कोई भी मनुष्य जो श्रेष्ठ है वह आर्य है।
यदि पाश्चात्य दुष्चक्र में फंस कर आर्य को जाति,धर्म,संप्रदाय के रूप में लेकर हमलावर मानते रहेंगे तो कभी भी अपने लक्ष्य में सफल न हो सकेंगे, जैसा कि ब्राह्मणवादी चाहते भी हैं।
'त्रिवृष्टि' अर्थात तिब्बत क्षेत्र आर्यों का मूल उद्गम क्षेत्र है जहां 'स्व:' और 'स्वधा' का सृजन हुआ। ये श्रेष्ठ लोग जब आबादी बढ्ने पर दक्षिण में हिमालय के पार जिस निर्जन-क्षेत्र में बसे वह इनके कारण आर्यावृत कहलाया। पहले मूल निवासी तो ये श्रेष्ठ जन- आर्य ही थे। तब तक आज का दक्षिण भारत 'जंबू द्वीप' के रूप में एक अलग निर्जन टापू था। जब भू- गर्भीय हलचलों से 'जंबू द्वीप' उत्तर की ओर बढ़ कर आर्यावृत से टकराया तब 'हिंदमहासागर' नाम से जाना जाने वाला समुद्र सिकुड़ कर धुर दक्षिण में चला गया तथा जंबू द्वीप व आर्यावृत को संयुक्त करने वाले 'विंध्याचल' पर्वत की उत्पत्ति हुई। आर्यावृत से जंबू द्वीप पर आबादी के स्थानांतरण से आर्यजन वहाँ भी आबाद हुये। पाश्चात्य इतिहासकारों ने इनको प्रथक द्रविन घोषित करके पार्थक्य की भावना को पोषित कर रखा है।
जब अफ्रीका व यूरोप की आबादी को श्रेष्ठ अर्थात आर्य बनाने के उद्देश्य से आर्यों के जत्थे पश्चिम से चले तो उनका पहला पड़ाव था आर्यनगर= एर्यान= ईरान। खोमेनी से पहले तक वहाँ का शासक खुद को आर्य मेहर रज़ा पहलवी कहता था। आगे बढ़ते हुये आर्य मेसोपोटामिया होते हुये जर्मनी पहुंचे थे। लेकिन पाश्चात्य जगत से गुमराह लोग उल्टा कहते हैं कि वहाँ से आर्य भारत पर आक्रमण करके आए थे।
पूर्व से चले आर्य वर्तमान चीन, साईबेरिया क्षेत्र से होते हुये ब्लाड़ीवासटक और अलास्का को पार करते हुये कनाडा से दक्षिण की ओर बढ़े थे। उनका पहला पड़ाव 'तक्षक' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा था वह स्थान आज भी उनके नाम पर अपभ्रंश में 'टेक्सास' कहलाता है जहां जान एफ केनेडी को गोली मारी गई थी। दूसरा पड़ाव धुर दक्षिण में 'मय' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा वह आज भी उनके ही नाम पर मेक्सिको है।
दक्षिण दिशा में 'पुलत्स्य'ऋषि के नेतृत्व में गए आर्य वर्तमान आस्ट्रेलिया पहुंचे थे जहां का शासक 'सोमाली' एक निर्जन टापू की ओर अपने समर्थकों सहित भाग गया था वह आज भी उसी के नाम पर सोमाली लैंड है।
भारत से बाहर गए इन आर्यों का ध्येय लोगों को श्रेष्ठ मार्ग सिखाना अर्थात आर्यत्व में ढालना था। किन्तु पुलत्स्य के वंशज 'विश्र्श्वा' ने वर्तमान लंका में एक राज्य की स्थापना कर डाली जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और इसी कारण उनका पुत्र रावण साम्राज्यवादी बन सका अपने अमेरिकी और साईबेरियाई सहयोगियों (एरावन व कुंभकरण ) की सहायता से। इसी साम्राज्यवादी आर्य - रावण को भारत के आर्य - राम ने कूटनीति व युद्ध में परास्त कर साम्राज्यवाद का सर्व प्रथम विनाश किया था।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि विद्वान लेखक महेश राठी जी ने भी पाश्चात्य साम्राज्यवादियों के दुर्भावनापूर्ण शब्द आर्य हमलावर थे को अपना लिया। भारतीय साम्यवाद के जनता के मध्य अलोकप्रिय होने का सबसे बड़ा कारण साम्यवादी विद्वानों द्वारा साम्राज्यवादी इतिहासकारों से भ्रमित होते रहना ही है। काश अब भी साम्यवादी विद्वान 'सत्य ' को स्वीकार करके ' हिन्दू' और 'ब्रहमनवाद' को अभारतीय कहने का साहस दिखा सकें तो सफलता उनके चरण चूम लेगी। साम्यवाद और कुछ नहीं वेदोक्त समष्टिवाद ही है लेकिन सत्य से दूर रहना और उसका वरन करने की बजाए उस पर प्रहार करते रहना ही वह वजह है जिसने जनता के दिलो-दिमाग में साम्यवाद के प्रति नफरत भर रखी है।महेश राठी जी सत्य के शस्त्र से हिंदूवाद और ब्रहमनवाद पर प्रहार करें तो निश्चय ही सफल होंगे , हमारी शुभकामनायें उनके साथ हैं।
(विजय राजबली माथुर )
Mahesh Rathi
ब्राहमणवाद का राजनीतिक अर्थशास्त्र :
हिंदू समाज में दलित के रूप में पैदा होना निश्चित ही दुनिया का सबसे निकृष्टतम कृत्य और कृत्य भी ऐसा जिसमें आपका कोई हाथ नही होता है। यह निकृष्टता और अपमान ब्राहमणवादी संघी टोले के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद से अपने चरम पर है। ब्राहमणवादियों की दबंगई और उसमें सत्ता का दुरूपयोग अपनी पूरी आक्रामकता और निर्लज्जता के साथ देश में चारो तरफ पैर पसार रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी भी इस दबंगई से अछूती नही है।
द्वारका इलाके में कुतुब विहार नामक कालोनी में एक दलित रामप्रसाद के नेतृत्व में कालोनी के अनुसूचित जाति के लोगों ने कुछ साल पहले एक मंदिर की नींव रखी और कईं सालों की मेहनत के बाद उसे विकसित भी किया। अब अचानक इलाके के ब्राहमणवादी भाजपाईयों को याद आ गया कि उनकी देवी देवताओं की देखभाल करने वाले लोग दलित हैं और उन्हें उनके देवी देवताओं की रखवाली और पूजा अर्चना करने का कोई अधिकार नही है। उसके बाद भाजपा के स्थानीय नेता शेलैन्द्र पाण्ड़े के साथ मिलकर उनकी ही पार्टी के दो अन्य कार्यकर्ताओं अभिमन्यू और मनीषा ने रामप्रसाद और उनके परिवार को मंदिर से धक्के देकर बाहर कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि तुम नीच जाति वालों को पूजा पाठ करने विशेषकर मंदिर की देखभाल करने का कोई अधिकार ही नही है। रामप्रसाद ने थाने जाकर शिकायत करनी चाही तो थानाध्यक्ष ने साफ कहा कि शिकायत मत करो पछताना पडेगा और शिकायत लेने से मनाकर दिया। उसके बाद उन्होंने अपनी शिकायत डीसीपी और पुलिस आयुक्त को एवं अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में भी भेजी जहां आयोग ने 29 दिसम्बर को इस मामले की सुनवाई तय की है।
अब थानाघ्यक्ष की चेतावनी के मूर्त रूप लेने का समय था। भाजपा नेता ने अपनी सहयोगी मनीषा के माध्यम रामप्रसाद पर छेड़छाड़ करने का आरोप लगवाकर उसे जेल भेज दिया। पंरतु ऐसा मामला बनने की आशंका को लेकर एक शिकायत रामप्रसाद ने पहले ही पुलिस विभाग को कर दी थी और उसी के आधार पर उन्हें जमानत भी मिल गई। इस इलाके में जगह जगह लगे पोस्टर एवं होर्डिंग्स भाजपा नेता के पद एवं रसूख का पता दे रहे हैं तो वहीं उनके साथ उन्हीं होर्डिंग्स में लगी उस महिला की तस्वीर भी पूरी कहानी बयां कर देती है जिसने रामप्रसाद को छेडछाड़ को आरोप में फंसवाया है।
दरअसल यह पूरा मामला सरकारी जमीन को हड़पने का है। डीडीए की कईं बीघा जमीन में यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास भी लगभग एक हजार गज की जमीन पर बना ढ़ंाचा है अर्थात मामला स्थानीय निवासियों द्वारा इस मंदिर को कालोनी के कब्जे में रखकर इसका सामाजिक इस्तेमाल करने बनाम लैंड माफिया द्वारा इसे हथियाकर बेचन का है। जिसने कईं सालों तक इस मंदिर को बनाने में अपना सब कुछ लगाया और जिसका पूरा परिवार इस मंदिर के रख रखाव में लगा उसे एक दिन ब्राहमणवादी संगठन के प्रदेश स्तरीय नेता ने बता दिया कि तुम दलित हो और ना मंदिर तुम्हारा है और यह धर्म ही तुम्हारा है, भागो यहां से। हिंदू धर्म, उसके मंदिर उसके पूरे कार्मकाण्ड़ों का सच ही यही है कि वो एक वर्ग विशेष को देश और समाज के पूरे संसाधनों पर कब्जे और उसके दोहन का अर्थशास्त्र सिखाता है। यह तभी से जारी है जब हजारों साल पहले इस देश के मूल निवासियों पर आर्यों के रूप में पहला साम्राज्यवादी हमला हुआ था।* तभी से इन ब्राहमणवादियों की कोशिश धार्मिक कर्मकाण्ड़ों पर अपना वर्चस्व बनाने के माध्यम से पूरी प्राकृतिक और राष्ट्रीय संपदा के दोहन की है। परंतु अब लड़ाई का बिगुल बज चुका है और कुतुब विहार, गोला डेरी में ब्राहमणवाद के कब्जे से इस मंदिर को आजाद कराकर इसे समता प्रेरणा स्थल के रूप स्थापित किया जायेगा। आप सभी के इसमें सहयोग की आशा है।
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'भारत पर आर्यों का हमला ' यह एक पाश्चात्य दृष्टिकोण है जो साम्राज्यवादियो द्वारा खुद को श्रेष्ठ साबित करने का एक घृणित प्रयास है।
वस्तुतः आर्य न कोई जाति है, न संप्रदाय, न ही धर्म । आर्य शब्द आर्ष का अपभ्रंश है जिसका अभिप्राय है 'श्रेष्ठ' अर्थात विश्व का कोई भी मनुष्य जो श्रेष्ठ है वह आर्य है।
यदि पाश्चात्य दुष्चक्र में फंस कर आर्य को जाति,धर्म,संप्रदाय के रूप में लेकर हमलावर मानते रहेंगे तो कभी भी अपने लक्ष्य में सफल न हो सकेंगे, जैसा कि ब्राह्मणवादी चाहते भी हैं।
'त्रिवृष्टि' अर्थात तिब्बत क्षेत्र आर्यों का मूल उद्गम क्षेत्र है जहां 'स्व:' और 'स्वधा' का सृजन हुआ। ये श्रेष्ठ लोग जब आबादी बढ्ने पर दक्षिण में हिमालय के पार जिस निर्जन-क्षेत्र में बसे वह इनके कारण आर्यावृत कहलाया। पहले मूल निवासी तो ये श्रेष्ठ जन- आर्य ही थे। तब तक आज का दक्षिण भारत 'जंबू द्वीप' के रूप में एक अलग निर्जन टापू था। जब भू- गर्भीय हलचलों से 'जंबू द्वीप' उत्तर की ओर बढ़ कर आर्यावृत से टकराया तब 'हिंदमहासागर' नाम से जाना जाने वाला समुद्र सिकुड़ कर धुर दक्षिण में चला गया तथा जंबू द्वीप व आर्यावृत को संयुक्त करने वाले 'विंध्याचल' पर्वत की उत्पत्ति हुई। आर्यावृत से जंबू द्वीप पर आबादी के स्थानांतरण से आर्यजन वहाँ भी आबाद हुये। पाश्चात्य इतिहासकारों ने इनको प्रथक द्रविन घोषित करके पार्थक्य की भावना को पोषित कर रखा है।
जब अफ्रीका व यूरोप की आबादी को श्रेष्ठ अर्थात आर्य बनाने के उद्देश्य से आर्यों के जत्थे पश्चिम से चले तो उनका पहला पड़ाव था आर्यनगर= एर्यान= ईरान। खोमेनी से पहले तक वहाँ का शासक खुद को आर्य मेहर रज़ा पहलवी कहता था। आगे बढ़ते हुये आर्य मेसोपोटामिया होते हुये जर्मनी पहुंचे थे। लेकिन पाश्चात्य जगत से गुमराह लोग उल्टा कहते हैं कि वहाँ से आर्य भारत पर आक्रमण करके आए थे।
पूर्व से चले आर्य वर्तमान चीन, साईबेरिया क्षेत्र से होते हुये ब्लाड़ीवासटक और अलास्का को पार करते हुये कनाडा से दक्षिण की ओर बढ़े थे। उनका पहला पड़ाव 'तक्षक' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा था वह स्थान आज भी उनके नाम पर अपभ्रंश में 'टेक्सास' कहलाता है जहां जान एफ केनेडी को गोली मारी गई थी। दूसरा पड़ाव धुर दक्षिण में 'मय' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा वह आज भी उनके ही नाम पर मेक्सिको है।
दक्षिण दिशा में 'पुलत्स्य'ऋषि के नेतृत्व में गए आर्य वर्तमान आस्ट्रेलिया पहुंचे थे जहां का शासक 'सोमाली' एक निर्जन टापू की ओर अपने समर्थकों सहित भाग गया था वह आज भी उसी के नाम पर सोमाली लैंड है।
भारत से बाहर गए इन आर्यों का ध्येय लोगों को श्रेष्ठ मार्ग सिखाना अर्थात आर्यत्व में ढालना था। किन्तु पुलत्स्य के वंशज 'विश्र्श्वा' ने वर्तमान लंका में एक राज्य की स्थापना कर डाली जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और इसी कारण उनका पुत्र रावण साम्राज्यवादी बन सका अपने अमेरिकी और साईबेरियाई सहयोगियों (एरावन व कुंभकरण ) की सहायता से। इसी साम्राज्यवादी आर्य - रावण को भारत के आर्य - राम ने कूटनीति व युद्ध में परास्त कर साम्राज्यवाद का सर्व प्रथम विनाश किया था।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि विद्वान लेखक महेश राठी जी ने भी पाश्चात्य साम्राज्यवादियों के दुर्भावनापूर्ण शब्द आर्य हमलावर थे को अपना लिया। भारतीय साम्यवाद के जनता के मध्य अलोकप्रिय होने का सबसे बड़ा कारण साम्यवादी विद्वानों द्वारा साम्राज्यवादी इतिहासकारों से भ्रमित होते रहना ही है। काश अब भी साम्यवादी विद्वान 'सत्य ' को स्वीकार करके ' हिन्दू' और 'ब्रहमनवाद' को अभारतीय कहने का साहस दिखा सकें तो सफलता उनके चरण चूम लेगी। साम्यवाद और कुछ नहीं वेदोक्त समष्टिवाद ही है लेकिन सत्य से दूर रहना और उसका वरन करने की बजाए उस पर प्रहार करते रहना ही वह वजह है जिसने जनता के दिलो-दिमाग में साम्यवाद के प्रति नफरत भर रखी है।महेश राठी जी सत्य के शस्त्र से हिंदूवाद और ब्रहमनवाद पर प्रहार करें तो निश्चय ही सफल होंगे , हमारी शुभकामनायें उनके साथ हैं।
(विजय राजबली माथुर )
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