Sunday, 15 January 2017

‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है ---------- - मंजुल भारद्वाज

ये लोकतंत्र का त्रासदी काल है जहाँ ‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है               -    मंजुल भारद्वाज

दुनिया जिस मोड़ पर खड़ी है वहां लूट को व्यापर और लूट के प्रचारक को ब्रांड एम्बेसडर कहा जाता है यानी जो जितना संसाधनों को बेच सकता है वो उतना बड़ा ब्रांड एम्बेसडर जैसे जो जितना बड़ा पोर्न स्टार वो उतना बड़ा कलाकार ... और जो झूठ के बल पर, फ़रेब और ‘लूट’ के गिरोह यानी ‘पूंजीपतियों’ की कठपुतली बनकर उनका एजेंडा चलाये , मीडिया के माध्यम से निरीह जनता को बहकाए , कालेधन को वापस लाकर हरेक के खाते में15 लाख जमा करने का वादा करे , वोट मिलने के बाद उसे चुनावी जुमला बताये .. याद दिलाने पर नोटबंदी कर, पूरे देश की गरीब जनता को कतार में खड़ा कर, उनको सजा दे... उनको मौत के घाट उतारे और ख़ामोशी को, मजबूरी को ‘जन समर्थन’ समझ कर .. एक तरफा रैलियों में अपनी ही बधाई के गीत गाये ..ऐसे ‘सत्ता लोलुप’ और उनके समर्थकों से आप क्या उम्मीद करते हैं की वो ‘गांधी’ को चरखे से नहीं ‘हटा’ सकता .. बहुत नादान है इस देश के बुद्धिजीवी ... और बहुत नादान है इस देश की जनता ...  उनके ‘सबका साथ , सबका विकास’ जुमले पर विश्वास कर बैठी .. परिणाम सबके सामने हैं ..सिर्फ ‘पूंजीपतियों’ का विकास , बाकी सबका सत्यानाश !
बिक्री और बाज़ार जिसका मापदंड हो उससे ‘वैचारिक’ सात्विकता की क्या उम्मीद, वो तो ‘मुनाफाखोरों’ की धुन पर देश की जनता को ‘विकास’ की चक्की में पीसकर लहूलुहान कर रहा है चाहे वो ‘किसान हो , सरहद पर जवान हो या विश्वविधालय का युवा छात्र’ और मीडिया उसकी हाँ में हाँ मिला रहा है ..हाँ भाई धंधा है ना , विरोध किया तो लाइसेंस कैंसिल हो जाने का डर और सरकारी विज्ञापन नहीं मिलने का खतरा ...
एकाधिकारवाद , विषमता , जातिवाद , धर्मान्धता , अलगाववाद जिस संघ का ‘राष्ट्र’ सूत्र हो उसकी शाखाओं से ऐसे ही ‘शोषक’ पैदा होंगें जो अपनी अस्मिता , देश की धरोहर को बेच कर अपनी ‘राजनैतिक’ जमीन तैयार करेंगें . इनके पास ना ‘ विचार है , ना व्यवहार है , ना चेहरा है , ना चाल है , ना चरित्र’ जो है बस वो छद्म है !
इस छद्म के बल पर ‘बहुमत’ हासिल कर लिया पर ‘जनमानस’ में विश्वसनीयता नहीं ला पाए . उस ‘विश्वसनीयता’ को हासिल करने के लिए ये ‘महोदय’ और इनका परिवार अब तक विदेशों में ‘गांधी और बुद्ध’ का नाम लेकर अपने गुनाहों को धो रहे थे . अब देश में ही ..देश के सामने सरे आम बाकायदा सारी धृष्टताओं के साथ ‘गाँधी’ की जगह विराजमान हो गए हैं. और ब्रांड एम्बेसडर बनकर खादी को बेच रहे हैं . क्योंकि इनके लिए ‘खादी’ एक उत्पाद भर है जो सिर्फ बिकने के लिए है , सिर्फ फैशन है . ‘गांधी’ की हत्या करने के बाजूद ‘गांधी’ का वजूद पूरी दुनिया में है. इस देश की आत्मा में है तो ‘गांधी’ के विचारों की हत्या का आगाज़ है यह . इसके बहुत सधे हमले है . ‘गांधी’ को सभी तस्वीरों से गायब करो चाहे वो ‘करंसी हो , कैलंडर हो, डायरी हो या खादी हो , चरखा हो’ सभी जगह से ‘गांधी’ गायब होने वाले हैं . उनके द्वारा आजमाए हर नुस्खे को ये  ब्रांड एम्बेसडर एक ‘उत्पाद’ में तब्दील कर उसको बेचना चाहता है ताकि ‘गांधी’ एक विचार की बजाए एक ‘उत्पाद’ में सिमट जाए. इस भयावह कारनामों को अमली जामा पहनानाने का दुस्साहस है ‘बहुमत’ और गणपति को दुध पिलाने वाली जन मानसिकता  . ये ‘संघ’ और उसके पोषक बस चमत्कारों की बाँट जोहते हैं सरोकारों की नहीं !
इस देश की 40 प्रतिशत आबादी युवा है . क्या ये युवा सिर्फ मूक दर्शक बने रहेगें . इनमें जो आवाज़ उठा रहे हैं उन पर ‘देशद्रोही’ का मुकदमा चलता रहेगा या उनकी हत्या कर दी जायेगी . विश्व विश्वविधालयों में ऐसे लोगों का बोलबाला रहेगा ‘जहाँ’ विमर्श खत्म कर दिया जाएगा . क्योंकि ‘विमर्श’ इनका ‘मूल्य’ नहीं है चाहे वो संसद हो या सड़क..ये एक तरफ़ा प्रवचन के कुसंस्कार से पोषित हैं . ये संसद को मंदिर कहते हैं सिर्फ जनता की भावनाओं को दोहने के लिए, पर उसके ‘भगवान’ ये बनना चाहते हैं !
यह  एकाधिकारवाद का भयानक दौर है . यह लोकतंत्र का त्रासदी काल है जहाँ ‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है ‘मैं,मेरा और मेरे लिए’ इनका मन्त्र है .
पूंजीपतियों के स्वामित्व वाले मीडिया की चौपालों में भक्त जब अपने भगवान की करतूतों को तर्क की कसौटी पर हारता हुआ देखते हैं तो तर्क देने वालों के वध के लिए तैयार हो जाते हैं . सत्ता का दलाल  एंकर बीच बचाव का नाटक करता है और बेशर्मी से भक्तों की भक्ति करता है . ‘बहुमत’ देने की इतनी बड़ी सज़ा की लोकतंत्र का हर स्तम्भ ‘भक्ति’ मय हो गया है यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट तक की ‘निष्पक्षता’ पर प्रश्नचिन्ह लग गया है उसमें भी ‘बहुमत’ के गुरुर की गुरराहट पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई पड़ रही . वो न्याय देने की बजाए ‘बहुमत’ के सामने क्यों गिडगिडा रहा है ..समझ के परे है?
क्या देश की जनता , किसान , महिला , युवा इस ‘बहुमत’ के गुरुर को सहने के लिए अभिशप्त रहेगें या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के ‘निगहेंबान’ की भूमिका अख्तियार कर, ‘बहुमत’ के गुरुर को धराशायी कर, एक नयी राजनैतिक पीढ़ी को तैयार करेंगें जो ‘लोकतंत्र और देश के संविधान’ को अमलीजामा पहनाये और  ‘गांधी’ के सपनों का भारत और ‘स्वराज’ का निर्माण करे  !

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लेखक  परिचय -

थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैंजो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैंबल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।

एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।

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