लेकिन जब शरीर और दिमाग दोनों थक जाएँ लेकिन राजनीतिक वासना पहले से भी ज्यादा लोलुप हो जाए तो परिणाम मुलायम हो ही जाता है।किसी बड़ी मजबूरी के तहत मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास चला गया है।वो समाजवादी पार्टी का निर्विवादित भूत तो हैं लेकिन वर्तमान और भविष्य कतई नहीं।............................अखिलेश यादव को विष का पान कर महादेव बनने का अवसर मिल गया है।राजनीति में नेता वही है जिसके साथ जनता है।अखिलेश को आसुरी शक्तियों का विनाश करना ही चाहिए।ये आगे बढ़ने का समय है।
Rajanish Kumar Srivastava
समाजवादी पार्टी का संघर्ष वास्तव में एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री और एक भटके एवं भ्रमित पार्टी अध्यक्ष के सही गलत फैसलों से सम्बन्धित है उसे पिता और पुत्र के पारिवारिक संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
दरअसल राजनीति ही एकमात्र ऐसा पेशा है जिसमें रिटायरमेंट की कोई उम्र ही नहीं होती।लेकिन जब शरीर और दिमाग दोनों थक जाएँ लेकिन राजनीतिक वासना पहले से भी ज्यादा लोलुप हो जाए तो परिणाम मुलायम हो ही जाता है।किसी बड़ी मजबूरी के तहत मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास चला गया है।वो समाजवादी पार्टी का निर्विवादित भूत तो हैं लेकिन वर्तमान और भविष्य कतई नहीं।
सारी दिक्कत दो पृथक मुद्दों को पृथक रूप से नहीं देख पाने के कारण हो रही है।यह भारतीय राजनीति में पहली बार हुआ है कि ठीक चुनाव के पहले एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को एक पार्टी अध्यक्ष ने पार्टी से निष्कासित कर दिया हो। जबकि हर सर्वे में अखिलेश की लोकप्रियता अपनी पार्टी से लगभग दोगुनी है।यह उसी तरह है कि एक पिता खुद पुत्र का विवाह तय करे और बारात के दिन जिद्द करे कि बारात पुत्र के बिना जाएगी।एक मुख्यमंत्री लगातार गुहार लगा रहा था कि इस चुनाव में चूँकि जनता मेरे कार्यों का मुल्याँकन करने जा रही है इसलिए उत्तरपुस्तिका मुझे लिखने दी जाए।लेकिन निष्ठुर पिता और स्वयं से निर्णय कर पाने में असमर्थ पार्टी अध्यक्ष ने अपने मुख्यमंत्री को बिना उत्तरपुस्तिका दिए ही परीक्षा में बैठाने की जिद्द पकड़ रखी थी।लोकतंत्र में अलग पार्टी वो बनाता है जिसे पार्टी में बहुमत प्राप्त ना हो। यह पूरा मसला लोकतंत्र और राजनीति का है।यह पूरी लड़ाई एक मुख्यमंत्री और एक पार्टी अध्यक्ष के सही गलत फैसलों की है ना कि कोई पारिवारिक विरासत की।लोकतंत्र में बहुमत ही निर्णायक होता है और चुने सांसदों तथा विधायकों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं में 90% का बहुमत अखिलेश के पास है।अलग पार्टी मुलायम सिंह यादव को बनानी पड़ेगी।यह लोकतंत्र की लड़ाई है पिता के सम्पत्ति की नहीं।
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क्या मुलायम सिंह यादव का रिमोट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के हाथ में है? सभ्य और शिष्ट तथा विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने और बाहुबलियों को टिकट ना देने की भरपूर कोशिश करने वाले अपने ही लोकप्रिय मुख्यमंत्री को पार्टी से निकालने का दुस्साहस भला कोई यूँ ही कर सकता है।मुलायम सिंह यादव किसी बहुत बड़ी मजबूरी में ऐसा विनाश काले विपरीत बुद्धि वाला निर्णय ले सकते हैं । लेकिन सारे सर्वे यही बताते हैं कि लोकप्रिय युवा मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को अपनी समाजवादी पार्टी से भी ज्यादा लोकप्रियता हासिल है।यकीन मानिए मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास है वरना कोई यूँ ही अपने पैर पर कुल्हाडी नहीं मार लेता है।
समुद्र मंथन में पहले विष निकला था बाद में अमृत।अमृत के लिए राक्षस और देवता लड़ मरे थे लेकिन विष का पान कर मानवता को जिसने बचाया था वह गरलकंठ महादेव कहलाए थे।अखिलेश यादव को विष का पान कर महादेव बनने का अवसर मिल गया है।राजनीति में नेता वही है जिसके साथ जनता है।अखिलेश को आसुरी शक्तियों का विनाश करना ही चाहिए।ये आगे बढ़ने का समय है।
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02-01-2016 |
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