Friday, 28 July 2017

´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल : संवैधानिक मान्यताएं खतरे में ------ जगदीश्वर चतुर्वेदी

मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता।



Jagadishwar Chaturvedi
उठो और जागोःसंवैधानिक मान्यताएं खतरे में हैं
बिहार के घटनाक्रम को मात्र भ्रष्टाचार का मामला न समझें।नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार कई स्तरों पर संवैधानिक मान्यताओं और परंपराओं को नष्ट करने का काम कर रही है।अफसोस की बात है आम लोगों को यह नजर ही नहीं आ रहा।हो सकता है लालू यादव के परिवार ने भ्रष्टाचार किया हो लेकिन उससे लड़ने और निबटने के लिए महागठबन्धन को तोड़ना तो गले नहीं उतरता। 
महागठन्धन जब बना था तब भी बिहार और लालू के परिवार में भ्रष्टाचार था,लेकिन एक अंतर था,महागठबंधन का निर्माण साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया गया था।उसके उद्देश्यों में कहीं पर भ्रष्टाचार का जिक्र नहीं है।लेकिन बिहार में चीजें जिस तरह संचालित की गयी हैं, न्यायपालिका की देश में जिस तरह खुली अवहेलना हो रही है, संसदीय मर्यादाओं को ताक पर रखकर जिस तरह हंगामे किए जा रहे हैं,मीडिया को सत्य और विवेक की हत्या के लिए जिस तरह नग्नतम रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है वह अपने आपमें विरल घटना है।
बिहार में जदयू का महागठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ सरकार बनाना ,कोई साधारण घटना नहीं है।यह घटना संकेत है कि संसदीय लोकतंत्र और जनादेश की हमारे नेताओं में कोई इज्जत नहीं है। उल्लेखनीय है इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं लेकिन बिहार हर मामले में अजूबा है,इसबार समूचे जनादेश को ही पलट दिया गया । बिना दल-बदल के समूचे जदयू का स्वैच्छिक भाव से राजनीतिक मन परिवर्तन करके रख दिया गया है। मात्र कुछ एफआईआर के बहाने, कुछ छापों के बहाने यह सब हुआ है।इसका अर्थ यह भी है कि मोदी से लेकर नीतीश कुमार तक किसी के मन में जनादेश को लेकर कोई वचनवद्धता नहीं है।***
असल में मोदीजी ने समूची राजनीति में पैसे और सत्ता की भूमिका को महानतम बना दिया है।इस भूमिका को आमलोगों के जेहन में उतारने में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है। मोदी फिनोमिना की सबसे बड़ी विशेषता है कि अब भाजपा कहीं पर आंदोलन नहीं करती, सिर्फ मीडिया हमले करवाती है, संगठित प्रचार अभियान चलाती है और उसके बाद लक्ष्य को निशाना बनाकर गिरा देती है।भाजपा की समूची रणनीति यह है कि हर हालत में भाजपा और मोदी का वैचारिक-प्रशासनिक वर्चस्व मानो।इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद और मीडिया के हठकंड़ों का खुलकर प्रयोग हो रहा है।
भाजपा-मोदी का वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक बात आम लोगों के जेहन में उतारी जा रही है कि ´मोदी सही और बाकी गलत´,मोदी की मानो,चैन से रहो।मोदी की मनवाने के लिए पहले प्यार से घूस देकर फुसलाया जाता है, बाद में मीडिया के कोड़े लगवाए जाते हैं,अंत में प्रशासनिक हमले होते हैं।मसलन्,यदि आप विपक्ष में हैं तो पहले भाजपा कोशिश करती है कि आप उसके साथ चले जाएं,यदि साथ नहीं जाते तो दल-बदल कराया जाता है, दल-बदल से भी मामला न संभले तो मीडिया हमले कराकर बदनाम किया जाता है, तब भी न संभले तो सीबीआई-आईडी आदि के छापे और मीडिया से अहर्निश बदनामी करके हर एक्शन को देशहित, ईमानदारी की रक्षा में,जनता की सेवा में समर्पित कर दिया जाता है।इस समूची प्रक्रिया में सत्य क्या यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता ,सिर्फ मीडिया में जो बताया गया है वह महत्वपूर्ण रह जाता है।मीडिया के जरिए दिमागों की इस तरह की नाकेबंदी ने हमारे सोचने-समझने और स्वतंत्र रुप से फैसले लेने की क्षमता पूरी तरह खत्म कर दी है।अब हम मीडिया में जो कहा जा रहा है उसे सत्य, न्याय, जनहित आदि के पैमानों पर नहीं परखते अपितु हमारी आदत हो गयी है कि मीडिया में जो कहा जा रहा उसे आँखें बंद करके मानने लगे हैं।
मोदी की मीडिया रणनीति की धुरी है ´घृणा´,कल तक हम मुसलमानों से नफरत कर रहे थे, विभिन्न किस्म के प्रचार अभियानों के जरिए इसे जेहन में उतारा गया,बाद में लवजेहाद के जरिए,कांग्रेस हटाओ-देश बचाओ,घृणा के तत्व के आधार पर कांग्रेस विरोधी प्रचार संगठित किया गया, घृणा के आधार पर पाकविरोधी, आतंकविरोधी प्रचार चलाया गया और अब घृणा के आधार पर ही तेजस्वी यादव और उनके परिवारीजनों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया गया। घृणा के आधार पर मोदी विरोधियों पर हमले किए जा रहे हैं।´घृणा´के आवरण के रूप में भ्रष्टाचार विरोध का इस्तेमाल किया गया, लेकिन मूल चीज है ´घृणा´।कहने का आशय यह कि ´घृणा´के बिना मोदी से प्यार पैदा नहीं होता। मोदी के गुण क्या हैं, मोदी ने कौन सा अच्छा काम किया है, ये चीजें मोदी प्रेम का आधार नहीं हैं बल्कि ´घृणा´ही मोदी प्रेम का आधार है। इस ´घृणा´को हम हर मसले पर मीडिया प्रस्तुतियों में सक्रिय भूमिका अदा करते सहज ही देख सकते हैं। मसलन् , मीडिया वाले गऊ गुंडई से लेकर तेजस्वी प्रकरण तक इसे साफतौर पर देख सकते हैं।यानी ´घृणा´का इतने व्यापक मॉडल के रूप में भारत में प्रयोग विगत ढाई हजार सालों में कभी नहीं देखा गया।हमारे यहां ´घृणा´थी लेकिन नैतिक रूप में। एक वैचारिक अस्त्र के रूप में मोदी ने इसका आविष्कार करके देश को गहरे संकट में डाल दिया है।अब हम गलत में मजा लेने लगे हैं,गलत हमें अच्छा लगने लगा है।यह ´घृणा´के मॉडल की सबसे बड़ी उपलब्धि है।´घृणा´के मॉडल की विशेषता है सभी किस्म के तर्क और विवेक का अंत। मोदी के व्यक्तित्व के सामने आज हम इस कदर अभिभूत हैं कि किसी भी चीज को वास्तव रूप में देखना ही नहीं चाहते।वास्तव से नफरत करने लगे हैं।
https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1727740463921320
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Thursday, 27 July 2017

नीतीश का सियासी सिनेमा ------ नवेंदु कुमार



Navendu Kumar
२७-०७-२०१७ 
'सलीम-जावेद' की 'शोले' 
रिलीज़ होते ही हिट। कमाल की स्क्रिप्ट!
बीजेपी ने बिहार को लेकर जिस पोलिटिकल फ़िल्म की जो पटकथा लिखी उस फिल्म को आखिरकार नीतीश के चौंकाऊ इस्तीफे ने सियासी सिनेमा के पर्दे पर रिलीज़ कर दिया। सत्ता-सियासत की सलीम-जावेद की इस नयी जोड़ी ने ऐसा 'शोले' दिखाया कि फ़िल्म पहले दिन ही हिट भी कर-करा भी दी गयी। इधर लालू विचारते रहे कि बड़ी पार्टी के नाते राजभवन उन्हें सरकार बनाने का न्यौता भेजेगा और उधर बीजेपी को लेकर नीतीश बैठ गये एक-अणे मार्ग। फिर पहुँच गये राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के पास नयी सरकार बनाने का दावा लेकर।
नीतीश कुमार के बारे में लालू प्रसाद जब तब दोटूक और बेबाक टिप्पणी करते रहे हैं। पिछ्ले दिनों लालू ने कहा था कि नीतीश कुमार उनसे भी ज़्यादा एक परिपक्व नेता हैं।...कभी लालू ने ही नीतीश के बारे में कहा था कि नीतीश के पेट में दांत है या फिर कोई ऐसा सगा नहीं नीतीश ने जिसको ठगा नहीं। इस दूसरी वाली बात को जब तब नीतीश कुमार पर राजनीतिक प्रहार करते हुए सुशील मोदी भी दोहरा दिया करते थे। अब तो छोटे मोदी फिर नीतीश के सिपहसालार और डिप्टी सीएम हैं।
जब पुरानी नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम थे। सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें बर्खास्त किया था। तब एनडीए की बिहार सरकार थी। नीतीश का झगड़ा बीजेपी से नरेन्द्र मोदी के प्रोजेक्शन और उनके सांप्रदायिक छवि को लेकर था। तब नीतीश कुमार ने मोदी के साथ आयोजित भोज को भी रद्द कर दिया था।
अबकी बार की सरकार में डिप्टी सीएम तेजस्वी थे। सरकार आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन की थी। मुद्दा बेनामी संपत्ति और सीबीआई केस का था। पटकथा में सीबीआई का किरदार भी स्पेशल अपीयरेंस के तौर पर अचानक एक कंप्लेन के ज़रिए आया और चार-पांच दिनों में तेजस्वी पर एफआईआर कर काम तमाम कर दिया। ऐसी एक्टिव सीबीआई आज़ाद भारत ने पहली बार देखा।...और फिर एक बार उनकी सरकार के डिप्टी सीएम की बर्खास्तगी की नौबत आई। सुशील मोदी लगातार तेजस्वी की बर्खास्तगी की मांग पर अड़े रहे। मोदी ने धमकी भी दे दी थी कि तेजस्वी को नीतीश ने सरकार से नहीं निकाला तो उनकी पार्टी बीजेपी 28 जुलाई से आहूत विधान सभा सत्र को नहीं चलने देगी। 
सवाल बड़ा कि फिर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुशील मोदी की तरह मंत्रिमंडल से क्यों नहीं बर्खास्त किया? कमान तो उनके पास ही थी तो फिर खुद ही इस्तीफा क्यों दे दिया नीतीश ने? और बीजेपी के साथ मिलकर एक नयी सरकार बनाने भी चल दिये। सवाल ये रह जाता है कि नीतीश ने ये सब जो किया वो एक परिपक्व नेता नीतीश की करनी है या पेट में दांत वाले नीतीश की करनी है? तो क्या तेजस्वी की बर्खास्तगी से नहीं तेजस्वी मंथन से ही निकलने वाला था नया सत्ता कलश और नया सियासी अमृत! 
जो भी हो ये तो साफ़ दिख रहा है कि 'एन-स्कवायर' यानि नमो-नीतीश के गणितीय फॉर्मूले से बीजेपी को मिशन 2019 आसान और फ़तह होता हुआ दिख रहा होगा। नीतीश की जेडीयू अब केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में भी शामिल होगी। दरअसल यह सच है कि बीजेपी के भारत दिग्विजय की राह का सबसे बड़ा अवरोध है बिहार। लालू-नीतीश-कांग्रेस महागठबंधन की जीत ने बीजेपी के इस रोड़े को पहाड़ बना दिया था। सरपट सड़क निकालनी हो तो पहाड़ को तोड़ना ज़रूरी होता है।
तो क्या इस 'शोले' से अब बिहार फ़तह का डंका बजा दिया जाएगा? क्या जय-वीरू की जोड़ी गब्बर को शिकस्त दे पायेगी या गब्बर एक बार फिर ठाकुर के दोनों हाथ काट डालेगा? फिलहाल ये कहना ज़्यादा संतुलित होगा कि फ़िल्म अभी बाक़ी है दोस्त!
https://www.facebook.com/navendu.kumarsinha/posts/1175502475889092
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इस सियासी सिनेमा की वजह : 
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Wednesday, 19 July 2017

.....और इस तरह ये मामला दफन हो गया ------ श्वेता यादव

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इस सरकारी अधिकारी को भी महिला के शोषण में सहयोग अन्य महिला से ही मिला और प्राईवेट अधिकारियों को भी. लोहे की कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था लगा कर ही लकड़ी काटी  जाती है, लोहा काटने में भी लोहे की ही आरी  प्रयुक्त होती  है. शोषण से बचने हेतु  महिलाओं को अपनों से ही अधिक सावधान होना होगा . 



w.facebook.com/sweta.yadav.980/posts/744217139120356










    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 8 July 2017

BJP has NO chance of ever coming to power in W. Bengal in the foreseeable future ------ Parvati Goenka


 Her personal humility & modesty is admirable. A woman who has been in politics now for about 40 years, a M.P. for at least 5 terms, a Central Minister on 3 occasions and a two-term Chief Minister now continues to be pretty unpretentious and down-to-earth at a personal level, as vouched for by people who know her.


Parvati Goenka 
As someone who grew up mostly in W.Bengal & Kolkata and as someone who has no commitments to or lasting affiliations with any Indian political party, I can tell you a few home truths about Mamata Banerjee:
1. I can't think of any other politician, male or female, in India currently, who has the kind of sheer guts and raw courage that she has.
2. She is extremely feisty and as someone who did most of her early politics as a streetfighter (starting as a student union leader, Chhatra Parishad (Youth Congress) '74 - '75 she believes in leading from the front. It is a wonder that she is alive and functional today because at least a couple of attacks on her while she was leading protest marches on the streets during the reign of the CPM were designed to kill her and nearly succeeded. One of them hospitalized her for about 6 months.
3. No other politician in W. Bengal currently has the drawing power that she has. 'Didi' can start a streetcorner rally, without accompanying police escorts or bodyguards and still pull in a crowd of many thousands in a short period without any manipulation or crowd gathering techniques.
4. Her personal humility & modesty is admirable. A woman who has been in politics now for about 40 years, a M.P. for at least 5 terms, a Central Minister on 3 occasions and a two-term Chief Minister now continues to be pretty unpretentious and down-to-earth at a personal level, as vouched for by people who know her.
5. She can be impulsive, mercurial, short-tempered and too blunt on occasions. However with age and her stint as the C.M. for nearly 7 years now, she has mellowed & matured in those respects. She is said to be totally honest personally though the same can't be said for several of her party bigwigs.
6. She is totally hands-on as an administrator and as a politician and a doer in every sense of the term. She extensively tours districts and knows intimately what is happening at the grassroots level there.
Political predictions are hazardous and pointless in most cases but, given the above and the whole nature of the W. Bengal population, I don't think the BJP has any chance of ever coming to power in W. Bengal in the foreseeable future unless she commits some serious missteps or she is 'eliminated'. However they can cause many problems sporadically with their brand of communal politics and their doctrine of sowing the seeds of divisiveness and hate with a view to consolidating their base. 

https://www.facebook.com/parvati.goenka.1/posts/411162092614350
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(विजय राजबली माथुर )
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Thursday, 6 July 2017

राग देश क्या सन्देश ला रही है ? ------ विजय राजबली माथुर

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राग देश क्या सन्देश ला रही है ?   इन दोनों  इंटरव्यू  से यह बताने की कोशिश  की गई है कि, हमारे देश को सिर्फ गांधी जी   की अहिंसा से ही आज़ादी नहीं मिल गई है उसके लिए हज़ारों सैनिकों  ने अपनी कुर्बानी दी थी. यह बात सच तो है लेकिन राज्यसभा TV के माध्यम  से फिल्म बनवाकर NDA सरकार इस समय गांधी जी पर प्रहार करके स्वतंत्रता आन्दोलन पर उनके प्रभाव को आने वाली पीढ़ियों से छिपाना चाहती है. यह भी कि, नेताजी सुभाष की INA से लड़ने के लिए आर एस एस ने अंग्रेज फ़ौज के लिए सिपाही भर्ती करवाए थे. नेताजी को हीरो के रूप में लाकर आर एस एस नियंत्रित सरकार जनता में अपनी छवी बेहतर करना चाहती है.
 (विजय राजबली माथुर )




Wednesday, 5 July 2017

सुहाने सपने, स्याह हकीकत ------ उपमा सिंह / असीमा भट्ट

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Monday, 3 July 2017

हिंदुस्तान की हिंदुस्तानियत ख़त्म हो रही है : रूपरेखा वर्मा ------ मुलायम यादव

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Saturday, 1 July 2017

NOT IN My Name को बालीवुड का फुल सपोर्ट ------ प्रशांत जैन

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http://epaper.navbharattimes.com/paper/1-10@9-01@07@2017-1001.html