Tuesday, 30 January 2018

यदि डॉ राम मनोहर लोहिया ने महात्मा गांधी की विरासत को कांग्रेस और कांग्रेसी सत्ता की फाइलों में गुम होने से बचा लिया होता ------शेष नारायण सिंह

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महात्मा गांधी के अंतिम दो दिन एक कुजात गांधीवादी उनका सबसे करीबी था.

शेष नारायण सिंह
Shesh Narain Singh
30-01-2018
30 जनवरी के दिन दिल्ली के बिडला हाउस में महात्मा गांधी की हत्या करके नाथूराम गोडसे ने केवल महात्मा गाँधी की ही हत्या नहीं की थी .उसने एक आज़ाद देश के सपने के भविष्य को भी मार डाला था. शासक वर्गो के शोषण के दर्शनशास्त्र के प्रतिनिधि नाथूराम ने उसी हत्या के साथ अन्य बहुत सी विचारधाराओं की हत्या कर दी थी। महात्मा गाँधी को पढने वाला कोई भी आदमी बता देगा की महात्मा जी ने कांग्रेस के आर्थिक विकास के उस माडल को नहीं स्वीकार किया था जिसे स्वतन्त्र भारत के लिए जवाहर लाल नेहरू और उनकी सरकार वाले लागू करना चाहते थे। महात्मा गाँधी ने साफ़ बता दिया था की वे गाँव को विकास की इकाई बनाने के पक्षधर थे लेकिन जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई को वाली कांग्रेस के नेताओं के दिमाग में औद्योगीकरण के रास्ते देश के आर्थिक विकास करने के सपने पल रहे थे . गांधी जी ने इस विषय पर बहुत विस्तार से लिखा है . उनकी मूल किताब हिंद स्वराज में तो यह बात साफ़ साफ़ लिखी ही है बाद के ग्रंथोंमें भी गाँव को विकास की यूनिट बनाने की बात बार बार कही गयी है . आज़ादी की लड़ाई तक यानी 1946 तक महात्मा गांधी की हर बात मानने वाले जवाहर लाल नेहरू ने महात्मा जी की आर्थिक विकास की सोच को नकारना शुरू कर दिया था। भारत के आख़िरी आदमी के विकास की पक्ष धर गांधी की राजनीति से इसी दौर में जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा ने दूरी बनानी शुरू कर दी थी। कांग्रेस का प्रभावशाली तबका भी इस मामले में नेहरू के साथ था . गांधी जी एक राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस को खत्म करके बाकी राजनीतिक जमातों को चुनावी मैदान में बराबरी देना चाहते थे . लेकिन उस वक़्त तक कांग्रेस में सबसे अधिक प्रभाव शाली हो चुके सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया था। आर्थिक विकास की उनकी सोच को भी सही ठहराने वाला कोई भी आदमी जवाहर लाल की पहली मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं था। गांधी जी इस बात से संतुष्ट नहीं थे। उधर मुहम्मद अली जिन्नाह की जिद के चलतेे मुसलमान ज़मींदारों ने पूरे देश में दंगे भड़काने की साज़िश पर अमल करना शुरू कर दिया था। . 1946 के बाद से ही हर उस मूल्य को दफ़न किया जा रहा था जिसको आधार बनाकर आजादी की लड़ाई लड़ी गयी थी। आज़ादी के आन्दोलन के इथोस को कांग्रेस को लोग भूल चुके थे और अगर भूले नहीं थे तो उसे इतिहास के कूड़ेदान के हवाले करने की पूरी तैयारी कर चुके थे।

इस पृष्ठभूमि में जिन लोगों ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई थी ,महात्मा गांधी उन लोगों पर बहुत भरोसा कर रहे थे .इनमें से एक डॉ राम मनोहर लोहिया थे . अगस्त क्रान्ति के दौरान डॉ. लोहिया के काम से महात्मा गांधी अत्यंत प्रभावित हुए थे। उसके पहले डॉ. लोहिया के कई लेख, महात्मा गांधी के अखबार 'हरिजन' में प्रकाशित भी हो चुके थे। गोवा के मामले पर उनका साथ महात्मा गांधी को छोड़कर और किसी बड़े नेता ने नहीं दिया।
स्वतंत्रता के बाद नेहरू सरकार की आर्थिक नीतियां गांधी के विचारों से प्रतिकूल थीं। डॉ. लोहिया का समाजवाद गांधी की विचारधारा के अत्यन्त निकट था। नेहरू सरकार की दशा-दिशा के कारण महात्मा गांधी का नेहरू से मोहभंग हो रहा था और लोहिया की तरफ रूझान बढ़ रहा था। आज़ादी के बाद देश साम्प्रदायिकता के संकट में फंस गया तो शांति और सद्भाव कायम करने में डॉ. लोहिया ने गांधी का सहयोग किया। इस प्रकार वे गांधीजी के करीब क़रीब आ गये थे। इतने क़रीब कि गांधी ने जब लोहिया से कहा कि जो चीज़ आम आदमी के लिए उपलब्ध नहीं उसका उपभोग तुम्हें भी नहीं करना चाहिए और सिगरेट त्याग देना चाहिए तो लोहिया ने तुरन्त उनकी बात मान ली। महात्मा जी से लोहिया के विचार इतने मिल रहे थे कि लगता था कि आज़ादी के बाद लोहिया ही गांधी की राजनीति के वारिस बनेगें .ऐसा सन्दर्भ देखने को मिला लगता है कि आज़ादी के बाद की भारत की राजनीति पर फिर से विचार की ज़रूरत जितनी आज है उतनी कभी नहीं थी ."भारतीय पक्ष" नाम के एक कोष में लिखा है की 28 जनवरी, 1948 को गांधी ने लोहिया से कहा, मुझे तुमसे कुछ विषयों पर विस्तार में बात करनी है। इसलिये आज तुम मेरे शयनकक्ष में सो जाओ। सुबह तड़के हम लोग बातचीत करेंगे। लोहिया गांधी के बगल में सो गये। उन्होंने सोचा कि जब बापू जागेंगे, तब बातचीत हो जाएगी। लेकिन जब लोहिया की आँख खुली तो गाँधी जी बिस्तर पर नहीं थे। बाद में जब डॉ. लोहिया गांधी से मिले तब गांधी ने कहा, "तुम गहरी नींद में थे। मैंने तुम्हें जगाना ठीक नहीं समझा। खैर कोई बात नहीं। कल शाम तुम मुझसे मिलो। कल निश्चित रूप से मैं कांग्रेस और तुम्हारी पार्टी के बारे में बात करूँगा। कल आख़िरी फैसला होगा।" यानी २९ जनवरी के दिन डॉ लोहिया उन्हें वादा करके आये कि 30 तारीख को बात करने के लिए आ जायेगें .
लोहिया 30 जनवरी, 1948 को गांधी से बातचीत करने के लिए टैक्सी से बिड़ला भवन की तरफ बढ़े ही थे कि तभी उन्हें गांधी की शहादत की खबर मिली। एक ठोस योजना की भ्रूण हत्या हो गयी। बापू अपनी शहादत से पहले अपने आख़िरी वसीयतनामे में कांग्रेस को भंग करने की अनिवार्यता सिद्ध कर चुके थे। उस समय उन्होंनें ऐसा स्पष्ट संकेत दिया था कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान अनेकानेक उद्देश्यों के निमित्त गठित विविध रचनात्मक कार्य लारने वाली संस्थाओं को एकसूत्र में पिरोकर शीघ्र ही एक नया राष्ट्रव्यापी लोक संगठन खड़ा किया जायेगा। डॉ. लोहिया की उसमें विशेष भूमिका होगी। इस प्रकार बनने वाले शक्तिपुंज से बापू आज़ादी की अधूरी जंग के निर्णायक बिन्दु तक पहुंचाना चाहते थे।
डॉ लोहिया के जीवन के इस पक्ष के बारे में जानकारी की कमी है . ज़ाहिर है कि अब इस विषय पर भी सोचविचार की जानी चाहिए कि अगर महात्मा जी और लोहिया की वह मुलाक़ात हो गयी होती तो हमारे देश का इतिहास बिलकुल अलग होता.इस बात की पूरी संभावना है कि महात्मा गांधी की राजनीति और उसमें होने वाले संघर्ष के असली वाहक डॉ राम मनोहर लोहिया ही होते.लेकिन वह मुलाक़ात नहीं हो सकी और कांग्रेस से अलग होकर डॉ लोहिया और उनके साथियों ने जो राजनीतिक रास्ता चुना वह समाजवाद का था. आज़ादी के बाद के लोहिया के सारे काम पर नज़र डालें तो समझ में आ जाएगा कि उनकी मान्यताएं भी लगभग वही थीं जिनके लिए महात्मा गाँधी ने आजीवन संघर्ष किया . जब कांग्रेस के सत्ताधीशों से महात्मा गांधी निराश हो गए थे तो उनको लगा था कि डॉ राम मनोहर लोहिया ही उनकी राजनीतिक सोच के हिसाब से आज़ाद भारत के भविष्य को डिजाइन कर सकते हैं .लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था.
१९४७ के बाद की जो कांग्रेस है उसमें महात्मा गांधी की राजनीति का कोई पुछत्तर नहीं नज़र आता .महात्मा गांधी ने छुआछूत को खत्म करने के लिए आज़ादी के आंदोलन को एक हथियार माना था लेकिन १९४७ के बाद हम साफ़ देखते हैं कि डॉ बी आर आंबेडकर की दलितों के लिए आरक्षण की योजना को संविधान में डालने के अलावा कुछ नहीं हुआ. हाँ यह भी सच है कि जवाहरलाल नेहरू ने डॉ आंबेडकर की संवैधानिक सोच का समर्थन किया .लेकिन इस सीन से कांग्रेसी नदारद थे . सरकारी तौर पर जाति आधारित छुआछूत को मिटाने और सामाजिक समरसता की स्थापना का कोई प्रयास नज़र नहीं आता. गांधी के नाम पर अपना कारोबार चलाने वाली कुछ संस्थाओं ने मंदिर आदि में प्रवेश जैसी कुछ सांकेतिक कार्यवाही की लेकिन कहीं भी गंभीर राजनीतिक क़दम नहीं उठाये गए.

महात्मा गांधी ने साफ कहा था कि कल कारखानों के मालिक उद्योगपति का रोल एक ट्रस्टी का होगा लेकिन जिस तरह की औद्योगिक नीति बनी , सार्वजनिक संपत्ति की मिलकियत के जो नियम बने उसमें महात्मा गांधी कहीं दूर दूर तक नज़र नहीं आते.सारा का सारा कंट्रोल पूंजीपति के हाथ में दे दिया गया . मजदूरों के कल्याण के लिए जो नीतियां बनीं उसमें भी उद्योगपति का पलड़ा भारी कर दिया गया.अपने देश की श्रम नीतियां मजदूरों के शोषण का हथियार बनीं .महात्मा जी का सबसे प्रिय विषय था , ग्रामीण भारत का समुचित विकास लेकिन कृषि नीतियां ऐसी बनायी गयीं जिसमें कहीं भी गाँव में रहने वाले किसान की भलाई का कोई स्थान नहीं था. इस देश में शुरू से ही खेती को उस रास्ते पर विकसित किया गया जिसके बाद किसान का रोल राष्ट्रीय विकास में केवल मतदाता का होकर रह गया . इस देश में नेहरू के वारिसों ने जिस तरह की कृषि नीति को महत्व दिया उसमें किसान को केवल उतना ही सुविधा दी जाती है जिसके बाद वह शहरी आबादी के लिए भोजन का इंतज़ाम करता रहे , और सत्ताधारी पार्टी को वोट देता रहे. 
महात्मा गांधी ने कहा था कि पंचायतों का रोल भारत के ग्रामीण जीवन में सबसे ज्यादा होना चाहिए . लेकिन सरकार ने ऐसी नीतियों बनाईं कि आज देश में वकीलों और उनके दलालों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क तैयार हो गया है . ग्रामीण भारत में ऐसा कोई परिवार नहीं बचा है जिसने कोर्ट के फेरी न लगायी हो . ज़ाहिर है कि महात्मा गांधी के हर सपने को सत्ताधारी दलों ने नाकाम किया है .


ऐसा लगता है कि अगर २९ जनवरी १९४८ की सुबह डॉ लोहिया और महात्मा गांधी की बातचीत हो गयी होती तो शायद डॉ लोहिया कुजात गांधीवादी न होते। बहुत बाद में उन्होंने सरकारी और मठी गांधीवादियों से परेशान होकर अपने आपको और अपने साथियों को कुजात गांधीवादी कह दिया था लेकिन अगर गांधी जी ने उनको कांग्रेस से अपनी निराशा से विधिवत परिचित करा दिया होता तो इस बात में दो राय नहीं होनी चाहिए कि डॉ राम मनोहर लोहिया ने महात्मा जी की इच्छा को पूरा किया होता और महात्मा गांधी की विरासत को कांग्रेस और कांग्रेसी सत्ता की फाइलों में गुम होने से बचा लिया होता
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लेकिन योजनाबद्ध ढंग से आज गांधी और उनकी नीतियों को गलत सिद्ध करने की मुहिम चल रही है जिसको कारपोरेट देशी व विदेशी का पूर्ण समर्थन है और जो भाजपा / आर एस एस के अनुकूल है, जैसे ::

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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30-01-2018

Sunday, 28 January 2018

नारी - सम्मान हेतु मिथ्या मिथकों को त्यागना होगा ------ विजय राजबली माथुर

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परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला होते हैं वहीं से भेदभाव रहित व्यवहार शुरू करने होंगे। पोंगापंथियों द्वारा गढ़े गए प्रक्षेपकों जैसे श्री कृष्ण गोपियों से रास रचाते थे उनके कपड़े ले भागे थे और राम ने स्वर्ण नखा (अपभ्रंश सूपनखा ) को लक्ष्मण के पास तथा लक्ष्मण ने राम के पास भेजा आदि को निषिद्ध करना होगा उनका प्रतिकार करना होगा। वस्तुतः श्री कृष्ण व राम दोनों तत्कालीन राजनीति में शोषित- उत्पीड़ित वर्ग के साथ शोषकों / साम्राज्यवादियों के विरुद्ध संघर्ष के अगुवा थे। इसलिए पुरोहित वर्ग से शोषक शासकों ने उनको बदनाम करने हेतु प्रक्षेपक डलवाए थे जिंनका समाज के पतन में व्यापक हाथ है। अपनी युवा पीढ़ी को सच्चाई से रू -ब - रू करवाकर समस्या का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। 


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday, 24 January 2018

एक्सीडेंटल पी एम का खिताब मनमोहन सिंह जी को देना गलत है ------ विजय राजबली माथुर

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फिल्म बनाना और मनोरंजन करना तो एक अलग बात है लेकिन मनमोहन सिंह जी को एक एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री कहना सच्चाई पर पर्दा डालना ही है। उनके पूर्व सलाहकार महोदय ने पुस्तक ज़रूर किसी निश्चित उद्देश्य के लिए लिखी होगी और वैसे ही उद्देश्य की पूर्ती यह फिल्म भी करेगी। 
बहुत पुरानी बात नहीं है कोई 27 वर्ष पूर्व जब पूर्व पी एम राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई तब सहानुभूति के आधार पर उनकी कांग्रेस को संसद में अधिक सीटें मिल गई थीं और उस अचानक की परिस्थिति में पूर्व आर एस एस कार्यकर्ता पी वी नरसिंहा  राव साहब को पी एम बनने का मौका मिल गया था। उनके द्वारा रिज़र्व बैंक, वर्ल्ड बैंक और आई एम एफ से सम्बद्ध रहे डॉ मनमोहन सिंह जी को वित्तमंत्री बनाया गया था जिनकी आर्थिक नीतियों को भाजपा नेता एल के आडवाणी ने न्यूयार्क में  जाकर उनकी अर्थात भाजपा की नीतियों को चुराया जाना  बताया था। स्पष्ट है कि , मनमोहन जी ने उदारीकरण की जिन नीतियों को कांग्रेस सरकार से लागू करवाया था वे तो जनसंघ और आर एस एस की पुरानी मांग पर आधारित थीं। वर्ल्ड बैंक / आई एम एफ अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से यू एस ए भी उन नीतियों का ही समर्थक था इसलिए कहा तो यह जाना चाहिए था कि , मनमोहन जी जनसंघ / आर एस एस / विश्व कारपोरेट की ख़्वाहिश पर वित्तमंत्री बनाए गए थे और इस प्रकार राजनेता के तौर पर स्थापित किए जा रहे थे। 
नरसिंहा  राव साहब ने  पदमुक्त होने के बाद अपने उपन्यास  THE INSIDER में यह रहस्योद्घाटन किया था कि , ' हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल में जी रहे हैं। '  एक विद्वान , कुशल प्रशासक  और संगठक द्वारा महज मज़ाक में ऐसा नहीं लिखा गया होगा। यह एक वास्तविक सच्चाई रही होगी। हालांकि उनको मनमोहन जी का राजनीतिक गुरु बताया जाता है किन्तु उनको स्थापित करना उनकी मजबूरी भी रही होगी। 
जब सोनिया जी ने 2004 में उनको  पी एम पद के लिए प्रस्तावित किया होगा तब उनके समक्ष भी  नरसिंहा  राव साहब  सदृश्य मजबूरी ही रही होगी। किन्तु जब सोनिया जी ने 2012 में मनमोहन जी को राष्ट्रपति बना कर प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बनाना चाहा था तब जापान यात्रा से लौटते वक्त विमान में दिये साक्षात्कार में उन्होने कहा था कि , वह जहां हैं वहीं संतुष्ट हैं बल्कि तीसरे मौके के लिए भी बिलकुल फिट हैं। 

जब मनमोहन जी को एहसास हो गया कि उनको तीसरा मौका नहीं मिलने जा रहा है तब उनका प्रयास हज़ारे आदि के माध्यम से भाजपा को सशक्त करने के लिए हुआ जिसके परिणाम स्वरूप आज भाजपा की मोदी सरकार सत्तारूढ़ है। 

पुस्तक और फिल्म एक ध्येय को लेकर मनमोहन जी को एक्सीडेंटल पी एम सिद्ध करने का प्रयास करते हैं  जो वास्तविकता से ध्यान हटाने का उपक्रम ही है। 


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 21 January 2018

अपनी साँसों की हिफाजत की किसी को कोई फिक्र नहीं ------ सुधीर मिश्र

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 20 January 2018

उम्मीदों के दबाव में बच्चों द्वारा हिंसा का सहारा ------ नवीन जोशी / क्षमा शर्मा

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नवीन जोशी साहब ने इस तथ्य पर बल दिया है कि, माता - पिता बच्चों से ऊंची - ऊंची  उम्मीदें रखते हैं लेकिन उनके व्यक्तित्व विकास की ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं इसलिए बच्चे आजकल उच्श्र्ङ्खल  हो रहे हैं और अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। केरल में एक माँ  वस्तुतः जननी द्वारा अपने ही पुत्र की हत्या का भी समाचार आया है। उच्च व मध्यम वर्ग  की महिलाओं में पुरुषों से होड़ा- हाड़ी की भावना बढ़ती जा रही है और परिवार की प्राचीन धारणा टूट कर आर्थिक समानता की ओर बढ़ रही प्रवृति में बच्चे असहाय होते जा रहे हैं। 

क्षमा शर्मा जी ने कमला का जो दृष्टांत प्रस्तुत किया है उसमें  कमला ने गरीब वर्ग से आने के बावजूद खुद अपने  बजाय अपने बच्चों व वृद्ध सास- श्वसुर का ख्याल रखा है। 

जननी -माँ - माता के अंतर को अपने ब्लाग पोस्ट के  माध्यम से  2010 में स्पष्ट किया था : 



संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 18 January 2018

आधार से हर आदमी पर हर समय सरकार की नजर : सिविल डेथ ------ श्याम दीवान

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 16 January 2018

सांगठानिक आधार बनाना होगा जिग्नेश को ------ उर्मिलेश

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 15 January 2018

सर्वोच्च न्यायालय का झुकाव सत्ता अधिष्ठान की ओर और उसका विरोध

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द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को दिये अपने साक्षात्कार में सरोच्च न्यायालय की वरिष्ठ एडवोकेट अवनि बंसल ने चार वरिष्ठ जजों की प्रेस कान्फरेंस और उसमें उठाए मुद्दों को उचित बताया है




    

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 13 January 2018

डी राजा कम्युनिस्ट सांसद का जस्टिस चेलमेश्वर से मिलना सर्वथा उचित ------ अरविंद राज स्वरूप

Arvind Raj Swarup Cpi
डी राजा कम्युनिस्ट पार्टी नेता एवं सांसद का जस्टिस चेलमेश्वर से मिलना सर्वथा उचित था।
सीनियर मोस्ट जज को ये कहना पड़ रहा है कि जनवाद खतरे में पड़ सकता है।
उनोहने स्थितियां बताते हुए यह भी कहा कि राष्ट्र के प्रति जो उनका कर्तव्य और कर्ज है वो उसको चुकता कर रहें है।
यह सुन कर जनवाद चाहने वालों को चिंतित होना स्वाभाविक है।
मोदी सरकार बनने के बाद से जनवादी प्रक्रियाओं पर आघात किया गया है।
जस्टिस लोया की मौत और उनके समक्ष सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम भी आया है उसका भी एक महत्वपूर्ण प्रकरण है।
जजों द्वारा उठाये गए सवालों पर निश्चय ही राष्ट्र का ध्यान आकर्षित होना चाहिए और जस्टिस लोया की मौत का मसला समुचित सीनियर जजों की अदालत की देख रेख में हल होना चाहिए।
बेजेपी वाले तो जजों की प्रेस कांफ्रेस के विरुद्ध ही विलाप करते रहंगे।
स्मरण रहे जर्मनी में हिटलर वोट से ही आया था।
आरएसएस बेजेपी का फलसफा हिटलर वादी सोच के करीब है।
इनका एक मंत्री हेगड़े देश के संविधान
को ही बदल देना चाहता है।
प्रश्न बेहद गंभीर है।
राष्ट्र को शुक्र गुज़ार होना चाहिए जजों का।
हम उम्मीद करतें हैं सुप्रीम कोर्ट अपनें विवेक से सवालों को हल कर लेगी पर राष्ट्र को सचेत ही रहना है।
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2024343047783823

जो हुआ है वो अचानक से नहीं हुआ है ------ Roshan Suchan

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Roshan Suchan
13-01-2018 





    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 11 January 2018

हलवा का सर्दी में जलवा ------ ज़ेबा हसन

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 1 January 2018

आत्मसम्मान के अलावा एक लेखक के पास होता क्या है ? ------ नीरजा माधव


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Pankaj Chaturvedi