संसद में पहली बार चुनकर आईं तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने चिंता जताई है कि देश के मौजूदा हालात फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत जैसे हैं.
26 जून 2019
संसद में पहली बार बोलते हुए उन्होंने सात संकेतों का ज़िक्र किया और अमरीका के 'होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम ' की मेन लॉबी में साल 2017 में प्रदर्शित एक पोस्टर का हवाला दिया.
जर्मनी में 1940 के दशक के दौरान नाज़ी हुकूमत के तहत यहूदियों की सामूहिक हत्या को याद करने के लिए बने मेमोरियल म्यूज़ियम में 2017 में लगाए गए पोस्टर में फ़ासीवाद के शुरुआती संकेतों की सूची छपी है.
बीबीसी से बातचीत में सासंद महुआ मोइत्रा ने कहा, "ये लिस्ट मैंने नहीं बनाई, ये पुरानी लिस्ट है और बाक़ि आपके सामने है. फ़ासीवाद, मेजोरिटेरियनिज़म (बहुसंख्यकों का प्रभुत्व) से जुड़ा है. जहां ये माना जाता है कि हम जो सोचते हैं वही सही है बाक़ि सब ग़लत और उसको अक्सर जन समर्थन मिलता है, जैसा कि अभी हुआ है."
वो पोस्टर अब भी होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम या उसकी गिफ़्ट शॉप में प्रदर्शित है या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है पर पोस्टर की एक तस्वीर साल 2017 में ट्विटर पर पोस्ट होने के बाद ये चर्चा में आया था.
महुआ के मुताबिक़ उनका इशारा बड़े स्तर के किसी जनसंहार की तरफ़ नहीं है पर इतने बड़े जनादेश को ध्यान में रखते हुए इन मुद्दों पर जानकारी फैलाना उनकी ज़िम्मेदारी है.
उन्होंने कहा, "फ़ासीवाद सिर्फ़ जर्मनी में ही नहीं था, अब कई जगह हैं, मेरी बात का ये मतलब नहीं कि साठ लाख यहूदियों को मार दिया जाएगा, लेकिन ये साफ़ है कि फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं."
अपने चुनाव प्रचार में भी महुआ मोदी सरकार की आलोचना करती रही हैं. उन्होंने लोगों की जानकारी की निजता के हक़ की सुरक्षा के लिए याचिकाएं भी दायर की हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमारे पास डेटा प्राइवेसी क़ानून नहीं है और सरकार अध्यादेश के ज़रिए प्राइवेट कंपनियों को लोगों की जानकारी देने के प्रावधान बना रही है, हमारे देश में लोगों में निजता के बारे में जागरूकता नहीं है और सस्ती चीज़ों, सेवाओं के लिए वो अपना डेटा देने से हिचकते नहीं हैं."
महुआ के मुताबिक़ ऐसे में सरकार की ज़िम्मेदारी है लोगों के हक़ में सही क़ानून लाना लेकिन वो कॉरपोरेट और राजनीतिक हित को देख रही है.
पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र से जीतकर आईं महुआ मोइत्रा पहले लंदन में बहुराष्ट्रीय कंपनी जे पी मॉर्गन में इंवेस्टमेंट बैंकर थीं.
साल 2009 में ये नौकरी छोड़ वो भारत आईं और राजनीति में जुड़ गईं. साल 2016 में वो करीमपुर विधानसभा क्षेत्र से जीती.
1972 से वो सीट वाम दल ही जीतते आए थे. 2016 से महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.
2019 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. मंगलवार को वो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में बोलीं. ये संसद में उनका पहला संबोधन था.
अपने भाषण में उन्होंने जिन सात संकेतों को रेखांकित किया वो सब उस पोस्टर में चिन्हित हैं.
पहला, देश में लोगों को अलग करने के लिए उन्मादी राष्ट्रवाद फैलाया जा रहा है. दशकों से देश में रह रहे लोगों को अपनी नागरिकता का सबूत देने को कहा जा रहा है.
उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार के कुछ मंत्रियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि जहां सरकार के मंत्री ये तक नहीं दिखा पा रहे हैं कि उन्होंने किस कॉलेज या यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है वहां सरकार ग़रीब लोगों से नागरिकता के सबूत देने को कह रही है.
दूसरा, सरकार के हर स्तर में मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ घृणा पनपती जा रही है. दिन दहाड़े भीड़ के द्वारा की जा रही लिंचिंग पर चुप्पी है.
तीसरा, मीडिया पर नकेल कसी जा रही है. देश की सबसे बड़ी पांच मीडिया कंपनियों पर या तो सीधा या अप्रत्यक्ष तरीक़े से एक व्यक्ति का नियंत्रण है. फ़ेक न्यूज़ के ज़रिए लोगों को दिगभ्रमित किया जा रहा है.
चौथा, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दुशमन ढूंढे जा रहे हैं. जबकि पिछले पांच सालों में कश्मीर में सेना के जवानों की मौत में 106 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.
पांचवा, सरकार और धर्म आपस में मिल गए हैं. 'नैश्नल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स' और 'सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल' के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि एक ही समुदाय को इस देश में रहने का हक़ रहे.
छठा, बुद्धीजीवियों और कला की उपेक्षा की जा रही है और असहमति की आवाज़ों को दबाया जा रहा है.
और सातवां, चुनाव प्रक्रिया की स्वायत्ता कम हो रही है.
https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=7722108332076466490#editor/target=post;postID=5368392547571634011
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
26 जून 2019
संसद में पहली बार बोलते हुए उन्होंने सात संकेतों का ज़िक्र किया और अमरीका के 'होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम ' की मेन लॉबी में साल 2017 में प्रदर्शित एक पोस्टर का हवाला दिया.
जर्मनी में 1940 के दशक के दौरान नाज़ी हुकूमत के तहत यहूदियों की सामूहिक हत्या को याद करने के लिए बने मेमोरियल म्यूज़ियम में 2017 में लगाए गए पोस्टर में फ़ासीवाद के शुरुआती संकेतों की सूची छपी है.
बीबीसी से बातचीत में सासंद महुआ मोइत्रा ने कहा, "ये लिस्ट मैंने नहीं बनाई, ये पुरानी लिस्ट है और बाक़ि आपके सामने है. फ़ासीवाद, मेजोरिटेरियनिज़म (बहुसंख्यकों का प्रभुत्व) से जुड़ा है. जहां ये माना जाता है कि हम जो सोचते हैं वही सही है बाक़ि सब ग़लत और उसको अक्सर जन समर्थन मिलता है, जैसा कि अभी हुआ है."
वो पोस्टर अब भी होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम या उसकी गिफ़्ट शॉप में प्रदर्शित है या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है पर पोस्टर की एक तस्वीर साल 2017 में ट्विटर पर पोस्ट होने के बाद ये चर्चा में आया था.
महुआ के मुताबिक़ उनका इशारा बड़े स्तर के किसी जनसंहार की तरफ़ नहीं है पर इतने बड़े जनादेश को ध्यान में रखते हुए इन मुद्दों पर जानकारी फैलाना उनकी ज़िम्मेदारी है.
उन्होंने कहा, "फ़ासीवाद सिर्फ़ जर्मनी में ही नहीं था, अब कई जगह हैं, मेरी बात का ये मतलब नहीं कि साठ लाख यहूदियों को मार दिया जाएगा, लेकिन ये साफ़ है कि फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं."
अपने चुनाव प्रचार में भी महुआ मोदी सरकार की आलोचना करती रही हैं. उन्होंने लोगों की जानकारी की निजता के हक़ की सुरक्षा के लिए याचिकाएं भी दायर की हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमारे पास डेटा प्राइवेसी क़ानून नहीं है और सरकार अध्यादेश के ज़रिए प्राइवेट कंपनियों को लोगों की जानकारी देने के प्रावधान बना रही है, हमारे देश में लोगों में निजता के बारे में जागरूकता नहीं है और सस्ती चीज़ों, सेवाओं के लिए वो अपना डेटा देने से हिचकते नहीं हैं."
महुआ के मुताबिक़ ऐसे में सरकार की ज़िम्मेदारी है लोगों के हक़ में सही क़ानून लाना लेकिन वो कॉरपोरेट और राजनीतिक हित को देख रही है.
पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र से जीतकर आईं महुआ मोइत्रा पहले लंदन में बहुराष्ट्रीय कंपनी जे पी मॉर्गन में इंवेस्टमेंट बैंकर थीं.
साल 2009 में ये नौकरी छोड़ वो भारत आईं और राजनीति में जुड़ गईं. साल 2016 में वो करीमपुर विधानसभा क्षेत्र से जीती.
1972 से वो सीट वाम दल ही जीतते आए थे. 2016 से महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.
2019 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. मंगलवार को वो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में बोलीं. ये संसद में उनका पहला संबोधन था.
अपने भाषण में उन्होंने जिन सात संकेतों को रेखांकित किया वो सब उस पोस्टर में चिन्हित हैं.
पहला, देश में लोगों को अलग करने के लिए उन्मादी राष्ट्रवाद फैलाया जा रहा है. दशकों से देश में रह रहे लोगों को अपनी नागरिकता का सबूत देने को कहा जा रहा है.
उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार के कुछ मंत्रियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि जहां सरकार के मंत्री ये तक नहीं दिखा पा रहे हैं कि उन्होंने किस कॉलेज या यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है वहां सरकार ग़रीब लोगों से नागरिकता के सबूत देने को कह रही है.
दूसरा, सरकार के हर स्तर में मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ घृणा पनपती जा रही है. दिन दहाड़े भीड़ के द्वारा की जा रही लिंचिंग पर चुप्पी है.
तीसरा, मीडिया पर नकेल कसी जा रही है. देश की सबसे बड़ी पांच मीडिया कंपनियों पर या तो सीधा या अप्रत्यक्ष तरीक़े से एक व्यक्ति का नियंत्रण है. फ़ेक न्यूज़ के ज़रिए लोगों को दिगभ्रमित किया जा रहा है.
चौथा, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दुशमन ढूंढे जा रहे हैं. जबकि पिछले पांच सालों में कश्मीर में सेना के जवानों की मौत में 106 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.
पांचवा, सरकार और धर्म आपस में मिल गए हैं. 'नैश्नल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स' और 'सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल' के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि एक ही समुदाय को इस देश में रहने का हक़ रहे.
छठा, बुद्धीजीवियों और कला की उपेक्षा की जा रही है और असहमति की आवाज़ों को दबाया जा रहा है.
और सातवां, चुनाव प्रक्रिया की स्वायत्ता कम हो रही है.
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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