Friday, 31 May 2013

लखनऊ में मकड़जाल




आज 25 मई 2013 को साँय 6 बजे क़ैसर बाग ,लखनऊ स्थित कार्यालय पर इप्टा के 70 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक विचार गोष्ठी एवं नाटक का प्रदर्शन सम्पन्न हुआ।
गोष्ठी में अन्य वक्ताओं के अतिरिक्त वीरेंद्र यादव जी व शकील सिद्दीकी साहब प्रमुख थे जिन्हों ने इप्टा के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डाला तथा इसके महत्व को रेखांकित किया। गोष्ठी के उपरांत खुले प्रांगण में राकेश जी द्वारा लिखित एवं निर्देशित एक नुक्काड नाटक का मंचन किया गया। कलाकारों ने बहुत सुंदर ढंग से नाट्य प्रस्तुति द्वारा,FDI,बाजारीकरण,सेन्सेक्स,विकास आदि की विद्रूपताओं को उद्घाटित किया। इसके विरोध में जनता के जागरूक होकर संघर्ष करने पर शासन तंत्र शोषक मुनाफाखोरों को लाभ पहुंचाने के लिए किस प्रकार जातिवाद व धार्मिक वैमनस्य का खूनी खेल खेलता है इसे नाटक द्वारा बखूबी समझाया गया।
भाकपा,उत्तर प्रदेश के सचिव कामरेड डॉ गिरीश ,ज़िला काउंसिल लखनऊ के सह सचिव कामरेड ओ पी अवस्थी के अलावा कामरेड विजय माथुर भी उपस्थित रहे।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Thursday, 23 May 2013

सौदेबाजी के नौ साल ---विजय राजबली माथुर

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उपरोक्त दोनों स्कैन कापियों का गंभीरता से अध्यन करने के बाद सहज निष्कर्ष यह निकलता है कि,सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया पार्टी कांग्रेस आई और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों दल कारपोरेट लुटेरों के संरक्षक हैं दोनों के एजेंडे पर जनता का कोई महत्व नहीं है। दोनों मिल कर 'संसदीय लोकतन्त्र' को नष्ट कर रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को चोर-चोर कह कर मूलभूत जन-समस्याओं से ध्यान बंटाने का खेल,खेल रहे हैं। अतः जैसा कि ऊपर वाले स्कैन में स्वीकार किया गया है कि वामपंथी दल ही 'संप्रग-1'सरकार को जन-विरोधी कदम उठाने से रोके हुये थे अब 'संप्रग-2' में वैसी रोक न होने से कांग्रेस/भाजपा की जन-विरोधी नीतियाँ कामयाब हो रही हैं। 

अब यह जनता का दायित्व है कि वह आगामी संसदीय चुनावों में  वामपंथी दलों को अग्रिम मोर्चे पर आगे लाये और 'वामपंथी नेतृत्व में 'गैर भाजपा/गैर कांग्रेस' सरकार का गठन करवाए। 

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday, 10 May 2013

लुटेरों से सावधान रहें---विजय राजबली माथुर

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समाचार पत्रों,रेडियो,टेलीविज़न,सूचना-प्रसारण आदि के द्वारा पोंगा पंडित गण 10 मई को सूर्य ग्रहण और उस हेतु दान -पुण्य करने का विभ्रम फैलाएँगे जैसा कि 25-26 अप्रैल 2013 के चंद्र ग्रहण के बारे में किया था। लेकिन कंक्णाकृति यह सूर्य ग्रहण  भी भारत में मान्य नहीं है। केवल इन्डोनेशिया-मलेशिया-आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड तथा पेसेफिक महासागर आदि प्रदेश संभाग में सुदृश्य होगा।
इसके बाद 03 नवंबर 2013 को पड़ने वाला चंद्र ग्रहण भी भारत मे नहीं दीखने के कारण मान्य नहीं होगा। किन्तु परोप जीवी पोंगा पंडित अपनी पेट-पूजा के लिए जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं और गुमराह करते हैं ,उनसे सतर्क व सावधान रहने की आवश्यकता है। 
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Thursday, 9 May 2013

साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है जो 'तोप,तलवार और बम के गोलों' में भी नहीं पाई जाती---आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी

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"साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है जो 'तोप,तलवार और बम के गोलों' में भी नहीं पाई जाती"-आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी द्वारा लिखित यह पंक्ति मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है जिसे हाई स्कूल की पुस्तक में सिलीगुड़ी में 1965-67 के दौरान पढ़ा था। वस्तुतः आचार्य दिवेदी जी स्वतन्त्रता आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में लिखे जा रहे साहित्य की ओर ध्यानाकर्षण कर रहे थे। 

विश्व इतिहास पर नज़र डालने से उनकी यह उक्ति बिलकुल सही सिद्ध होती है। महर्षि कार्ल मार्क्स के साहित्य के आधार पर ही 1917 में रूस में क्रांति सफल हुई थी। आज़ाद हिन्द फौज ने छोटे-छोटे पर्चे छाप कर जनता से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध उठ खड़े होने का आव्हान किया था। 'विद्रोह या क्रांति' कोई ऐसी चीज़ नहीं होती कि,जिसका विस्फोट अचानक होता है। बल्कि इसके अनंतर 'अन्तर'को बल मिलता रहता है। 

इस अन्तर को जनता के समक्ष लाने वाला साहित्य ही प्रभावशाली होता है जिसकी 'शक्ति' का वर्णन आचार्य दिवेदी ने किया है। प्रस्तुत स्कैन कापी से उनके विचारों का ज्ञान होता है और यह भी कि उनको किस प्रकार आभावों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ा तब भी वह विचलित न हुये एवं 'त्याग' का मार्ग अपना कर 'तप' में तल्लीन रहे। । लेकिन आज साहित्य के नाम पर आत्म-प्रशंसक लेखक जो खुद को बड़ा साहित्यकार घोषित करते हैं तीन-तिकड़म से स्थापित होने को प्रयास रत हैं क्या भावी इतिहास इनको तवज्जो देगा? क्या वे आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी जी के जीवन से कोई प्रेरणा ग्रहण कर सकेंगे?या धन-बल पर धन संग्रह हेतु अपना दुलत्ती अभियान जारी रखेंगे?

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 5 May 2013

श्री श्री कार्ल मार्क्साय नमः---क्षमा शर्मा

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कार्ल मार्क्स जयंती 05 मई के अवसर पर विशेष---

फेसबुक पर मार्क्सवाद ---

अभिजात अखबारों के स्तंभ लेखों से लेकर फ़ेसबुक की स्खलित टिप्पणियों तक - अचानक मार्क्सवाद और मार्क्सवादियों की आलोचना (या जिसे आलोचना समझा जाता है) की बाढ़ आ गई है. यह एक अच्छी बात है. लेकिन मैं यह भी सोच रहा हूं कि इसकी वजह क्या है ? क्या कम्युनिस्ट सत्ता पर कब्ज़ा करने जा रहे हैं ? क्या कम्युनिस्ट ख़तरे से आगाह करना अत्यंत सामयिक हो गया है ?

  • Vimalendu Dwivedi उज्ज्वल जी ने इन आलोचनाओं(स्खलन) का निहितार्थ उल्टा समझ लिया है. ये आलोचनाओं की बाढ़ अस्वाभाविक नहीं है. मार्क्सवादियों नें इस देश में पूँजीवादियों और साम्प्रदायिकों को खुला खेल खेलने का मैदान देकर देश की जनता के प्रति अपराध किया है. उन्होने सत्ता के साथ अपने लाभ के संबन्ध बनाकर अपने राजनीतिक कर्तव्यों कि तिलांजलि दे दी.

    लोकतांत्रिक व्यवस्था में दलों का प्रतिरोध दलों के द्वारा ही किया जा सकता. भारत की कम से कम तीन चौथाई आवादी वैचारिक रूप से मार्कसवादी है. वो वोटर भले किसी भी पार्टी के हों. हमारे देश की कम्टुनिष्ट पार्टियों ने इस तीन चौथाई आबादी के भरोसे और भविष्य का खून किया है.

    रही बात इनके सत्ता में आने की......तो यह तो फिलहाल दिवास्वप्न है.
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    हिंदुस्तान में प्रकाशित क्षमा शर्मा जी का लेख मात्र व्यंग्य नहीं उनका अनुभूत वर्णन लगता है। सच्चाई यही है जैसा कि फेसबुक टिप्पणी में भी दुखद रूप से प्रकट की गई है। मैंने अपने लेख द्वारा http://krantiswar.blogspot.in/2012/05/blog-post_05.html
     
    सिद्ध करना चाहा था कि मार्क्स वाद के सिद्धान्त मूल रूप से भारतीय हैं विदेशी नहीं और विदेशों मे असफल भी इसीलिए हुये क्योंकि उनको गैर-भारतीय संदर्भों में लागू किया गया । अतः क्षमा शर्मा जी द्वारा उठाए प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करके उनके निराकरण करने की महती आवश्यकता है।  
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday, 1 May 2013

लखनऊ और मजदूर दिवस ---शकील सिद्दीकी (वरिष्ठ साहित्यकार)

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

शोषण का आधार है 'आधार कार्ड'---विजय राजबली माथुर

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16 अप्रैल 2013 को गांधीवादी विचारक महोदय ने 'आधार कार्ड' की कमजोर 'नींव'का विस्तृत वर्णन दिया था और 28 अप्रैल को वित्तमंत्री ने अनुदार प्रधानमंत्री के इशारे पर आदेश जारी कर दिया कि,जिनके आधार कार्ड बैंक से सम्बद्ध नहीं हैं उनको गैस सबसीडी नहीं मिलेगी और बाज़ार भाव पर लगभग हज़ार रुपयों मे एक गैस सिलेन्डर लेना होगा। एक अरब 21 करोड़ से अधिक आबादी 2011 की जन गणना के वक्त थी जो अब और अधिक ही होगी। इस प्रकार कुल 80 लाख लोगों को छोड़ कर शेष समस्त जनता को मंहगाई की भट्टी में झोंक कर जलाने का इरादा है भ्रष्ट केंद्र सरकार का। जनता को अभी से कमर कस कर तैयार रहना चाहिए गैर कांग्रेस/गैर भाजपा सरकार अगले चुनावों द्वारा केंद्र में बनवाने हेतु अन्यथा देश को गृह-युद्ध का सामना करना पड़ सकता है।



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर