Sunday, 20 September 2015

’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर सेमिनार में प्रोफेसर शमसुल इस्लाम का वक्तव्य

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प्रोफेसर शमसुल इस्लाम साहब बोलते हुये 

श्रोता गण (लाल गोल घेरे में- विजय राजबली माथुर )


Rihai Manch
Lucknow
‪#‎Inquilab‬ राज्य प्रायोजित आतंकवाद का जघन्य रूप है बटला हाउस मुठभेड़- शमसुल इस्लाम
संघ देश के हिदुओं के खिलाफ है- शमसुल इस्लाम
बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच ने यूपी प्र्रेस क्लब में ’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर आयोजित किया सेमिनार
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच द्वारा शनिवार को यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, प्रख्यात इतिहासकार व रंगकर्मी शमसुल इस्लाम ने संबोधित किया।
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ कांड का जिक्र करते हुए शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज राज्य सत्ता द्वारा अपने आतंक को जस्टिफाई करने के लिए ’राष्ट्रीय सुरक्षा’ जैसे एक जुमले का प्रयोग करने लगी है। वह अन्याय के सारे सवाल को राष्ट्रीय सुरक्षा के के नाम पर दफन करना चाहती है। वह किसी को भी मार डालने, आतंकित करने, उत्पीडि़त करने का एक अघोषित हक रखने लगी है और यह सब काम राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किया जाने लगा है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से दिल्ली सरकार ने बिजली की प्राइवेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए जन विरोधी फैसले किए। इन फैसलों द्वारा आम जनता पर कई गुना ज्यादा बिजली बिल वसूला जाना था। बिजली के इस प्राइवेटाइजेशन पर कोई हंगामा न मचे इसलिए इस समझौते को राष्ट्रीय सुरक्षा की श्रेणी में डाल दिया गया। अब आम नागरिक आरटीआई जैसे कानून से भी इस फैसले के बारे में सरकार की प्राइवेट कंपनियों से क्या डील हुई है, जान नहीं सकता। यही नहीं प्राइवेट बिजली कंपनियों ने जिन मीटरों का इस्तेमाल किया था वे अपनी सामान्य गति से तीन गुना तेजी से चलते थे। इस तरह से जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आम जनता को लूटने का खेल चलता है वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उत्पीड़न के खिलाफ आवाम का मुंह बंद किया जाता है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज के वर्तमान राज्य की बुनियाद पूंजीवाद के आरंभ के युग में 18वीं सदी में ही पड़ गई थी। पूंजीपति वर्ग यह जानता था कि जब तक आम जनता के दिमाग को गुलाम नहीं बनाया जाएगा तब तक पूंजीवाद और उसके लूट को जस्टीफाई नहीं किया जा सकेगा। पहले यह माना जाता था कि राज्य बदमाश लोगों के चंगुल में है, उससे पूरी दुनिया में आम जनता के भीषण टकराव होते थे। लेकिन फिर पूंजीपति वर्ग ने यह भ्रम फैलाया कि राज्य सत्ता सबकी है। उसमें सबकी हिस्सेदारी है। उसके फैसले सबकी सहमति से लिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शब्द दरअसल दिमाग को गुलाम बनाने के लिए था। आज मोदी के समर्थक भी इसी की बात करते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि देश की केवल 31 फीसदी आवाम ने ही उन्हें वोट किया है। यह बात मोदी के जन विरोधी फैसलों को जस्टीफाई करने के लिए की जाती है। जो इस भ्रम को बेनकाब कर रहे हैं उन्हें मारा जा रहा है दाभोलकर, पनसरे और कालुबर्गी की हत्या इसी का नतीजा थी। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी वे इस दिशा में व्यापक सहमति बनाने में असफल है।
उन्होंने कहा कि देश का सत्ता हस्तांतरण भले ही 1947 में हुआ था, लेकिन यह सरकार जो कि आजादी के बाद सत्ता में आयी, ने अपने कृत्यों से यह साबित किया कि वह आवाम की जनआंकांक्षा पूरी नहीं करती थी। इसके लिए उन्होंने दो उदाहरण दिए। पहला सन् 1857 की आजादी की जंग हम इसलिए हारे थे क्योंकि मराठा और हैदराबाद के निजाम की सेना ने सिंधिया परिवार के खात्मे के लिए निकली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़ाई की थी। इसी वजह से उन्हे ग्वालियर में शहादत देनी पड़ी। सन् 1945 में तेलंगाना के इलाके में निजाम द्वारा आम जनता के उत्पीड़न के खिलाफ कम्यूनिस्टों ने बहादुराना संघर्ष किया था। लेकिन सरकार ने आजादी के बाद उन्हीं जैसी जन विरोधी ताकतों को सबसे पहले उपकृत किया। आजादी के बाद भारत ने सबसे पहला एक्शन हैदराबाद और तेलंगाना में लिया था। इसमें भारतीय सेना ने निजाम के विरोधियों को, जिन्होंने उसके अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया था बड़े पैमाने पर मारा। यहां यह भी तथ्य है कि सेना ने अपने आॅपरेशन में केवल मुसलमानों को मारा था। जबकि निजाम के खिलाफ हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर संयुक्त लड़ाइयां लड़ी थीं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमारे देश में निजाम को हैदराबाद का गर्वनर बनाया गया। हरी सिंह को भी कश्मीर का गर्वनर बनाया गया। उस दौर में दोनों अपनी आवाम के खिलाफ दमन के सबसे बड़े चेहरे माने जाते थे। इससे यह साबित होता है कि राज्य सत्ता आम जन की विरोधी और भारत के अपने संदर्भें में मूलतः सांप्रदायिक थी।
दूसरा उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जिस पुलिस अफसर ने भगत सिंह को फांसी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, आजादी के बाद उसे पंजाब के पुलिस का मुखिया बनाया गया। कहने का मतलब यह है कि सब कुछ आजाद भारत में वेसा ही चल रहा था जैसा कि गुलामी के दौर में चलता था। राजसत्ता में आम जन की भागीदारी का सवाल धोखा से ज्यादा कुछ नहीं था। आज भी राज्य सत्ता अपने चरित्र में जनविरोधी है। वह इंसाफ देने की कुव्वत नहीं रखती है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने बाबरी विध्वंस प्रकरण के पूरे संदर्भ पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मुंबई बम धमाकों के आरोप में याकूब मेमन को फांसी दी गई। लेकिन सवाल यह भी तो है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस, और उसके बाद उपजी हिंसा के बाद मुंबई में नौ सौ से अधिक लोग मारे गए थे जिसमें सात सौ मुसलमान थे। इनके गुनहगारों के लिए क्या किया गया। श्री कृष्णा आयोग ने साफ बताया है कि इन दंगों में भाजपा के लोग और बाल ठाकरे शामिल था। यह बात डाॅकुमेंट में दर्ज है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। उन्होंने कहा कि आसाम के नेल्ली में 1983 में उल्फा ने सरकार के हिसाब से 1800 लोगों का, जिनमें सब मुसलमान थे, की हत्या की थी। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बडा जनसंहार था। लेकिन राष्ट्रवाद की रक्षा के नाम पर राजीव गांधी से समझौते के तहत कुछ नहीं किया गया। अन्याय की और भी कहानियां हैं। मेरठ के हाशिमपुरा में सब छूट गए। किसी को भी सजा नहीं हुई। सन् 1984 में सिख जनसंहार में क्या हुआ? हजारों सिखों को उठाकर मार दिया गया। किसी को इंसाफ नहीं मिल सकता और हमें इस सत्ता से इंसाफ की उम्मीद नहीं करना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले सीबीआई ने कहा कोर्ट से कहा है कि है कि क्या हम टाइटलर को जबरजस्ती सिख विरोधी दंगों में फंसा दें? जब जानते हैं कि जगदीश टाइटलर का इन दंगों में क्या रोल था। यहीं नहीं 1996 में बथानी टोला का जनसंहार हुआ जिसमें सब बच गए। लक्षमणपुर बाथे में भी सब छूट गए। मारे गए लोग गरीब, वंचित, और अल्पसंख्यक थे। क्या राज्य की प्रतिबद्धता इन तबकों को इंसाफ दिलाने की थी। इन सबके बाद भारतीय राज्य अपने मूल चरित्र में जन विरोधी साबित हो चुका है।
उन्होंने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस मुल्क में दलित महिलाओं के खिलाफ रेप और उत्पीड़न के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते। गुजरात में दलित महिलाओं के रेप पांच सौ प्रतिशत बढ़े हैं। दलितों और वंचितों के खिलाफ हिंसा कोई चिंता की बात नहीं है। हां अगर दलित कभी हिंसा करेंगे तो उन्हें फास्ट ट्रेक अदालत में घसीटा जाता है। वास्तव में यह गरीबों और वंचितों को आतंकित करने की राज्य सत्ता की एक रणनीति है। और एक पाॅलिसी के तहत ऐसा किया जाता है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज राज्य सत्ता जिसे आरएसएस संचालित कर रही है, आम हिंदुओं के खिलाफ है। आरएसएस का आम हिंदुओं से, उसकी समस्याओं से कुछ भी लेना देना नहीं है। यही बात मुसलमानों के हित संवर्धन का दावा करने वालों से भी है। उन्हें आम मुसलमान की समस्याओं और उसकी बेहतरी के सवाल से कुछ भी लेना देना नहीं है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मुकेश अंबानी जो दुनिया के तीसरे खरबपति ह,ै का घर यतीमखाने की जमीन पर बना है। लेकिन इसे लेकर कोई सवाल किसी भी नुमाइंदे की ओर से कभी नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि सवाल और भी हैं जिनमें कई मायनों में हमने शर्म भरे कीर्तिमान भी बनाए हैं। जैसे भारत में सबसे ज्यादा बेघर लोग रहते हैं। भारत दुनिया का वो देश है जहां किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। इस देश में दुनिया का सबसे ज्यादा खाना खराब किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार यह खुद मानती है कि हम दुनिया की भूखों की राजधानी हैं। भारत विश्व दासता सूचकांक में भी सबसे आगे है। लेकिन राज्य सत्ता और सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता। आरएसएस के लोग मुसलमानों से तिरंगा लगाने की बात करते हैं लेकिन सच यह है कि आरएसएस तिरंगे से कितना प्यार करता है इसकी बानगी यह है कि वह तीन का रंग ही अशुभ मानता है।
सेमिनार को संबोधित करते हुए प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि देश के 55 फीसद हिंदू भाजपा को अपनी पार्टी नहीं मानते हैं। इनके चरित्र में पूंजीवाद की सेवा है और ये आम आदमी के पक्के शत्रु हैं। चाहे वह कांगेेस हो या फिर भाजपा, पूंजीवाद की दलाली इनके चरित्र में बसी है। उन्होंने कहा कि अंबानी ग्रुप को आगे बढ़ाने में प्रणव मुखर्जी और नारायण दत्त तिवारी सबसे आगे थे। आज राजसत्ता का खुला चरित्र सबकेे सामने है और वह विश्व पूंजीवाद की दलाली कर रही है। हिंदुस्तान की राजसत्ता का चरित्र गरीब विरोधी और सांप्रदायिक है। यहीं नहीं, मीडिया ने आतंकवाद का मीडिया ट्रायल किया। उन्होंने कहा कि हम संजरपुर गए थे और उन परिवारों के लोगों की इलाके में बड़ी इज्जत है। रमेश दीक्षित ने कहा कि आज हिंदुस्तान के सारे इलाकों को पूंजीपतियों ने बांट लिया है। इसे रोकने के लिए सबसे पहले लोकतंत्र को बचाना होगा। तभी यह देश और उसके संसाधान बच पाएंगे।
सेमिनार को संबोधित करते हुए एपवा की ताहिरा हसन ने कहा कि यह याद करने का दिन है। यह इसलिए कि हम इस लड़ाई को आगे केसे बढ़ाएं? बटला की जांच जांच होनी चाहिए। इसलिए इस प्रकरण की पूरी जांच होनी चाहिए। गिरफ्तारी दिखाने में खेल क्यों होता है? यह भी एक सवाल है। राजसत्ता असली आतंकवादी को बचाती है क्योंकि इसकी एक राजनीति है। दरअसल सारा खेल जनता को आतंकित करके उनके संसाधनों को लूटने का है। बिना पूंजीवाद के खात्मे के आतंकवाद के खात्मे की कोई उम्मीद नहीं करना चाहिए क्योंकि यह राज्य सत्ता द्वारा पोषित है। बेगुनाह केवल शिकार होते हैं।
काॅर्ड के अतहर हुसैन ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ जितने भी जनसंहार आयोजित हुए उनमें केवल गुजरात जनसंहार के दोषियों को कुछ स्तर पर सजा मिल पायी। यह इसलिए हुआ कि इस जनसंहार में न्याय के लिए व्यापक स्तर पर जन समुदाय सड़क पर उतर कर कानूनी लड़ाई भी लड़ा। इस लड़ाई को और भी आगे ले जाने की जरूरत है। डा. इमरान, अलग दुनिया के केके वत्स, आफाक उल्ला ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का आरंभ दाभोलकर, पानसरे और कालबुर्गी की शहादत का स्मरण करते हुए दो मिनट का मौन धारण कर उन्हे श्रद्धांजलि देते हुए शुरू किया गया।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने किया। विषय प्रवर्तन अनिल यादव तथा सेमिनार का संचालन मसीहुद्दीन संजरी द्वारा किया गया। इस अवसर पर शरद जायसवाल, सत्यम वर्मा, कात्यायनी, संजय, अबुल कैंश, कारी हसनैन, कारी मो. इस्लाम खान, बाबर नकवी, मो. मसूद, प्रबुद्ध गौतम, संघलता, हाजी फहीम सिद्दीकी, फरीद खान, संयोग बाल्कर, महेश चन्द्र देवा, जाहिद, इनायत उल्ला खान, अभय सिंह, मो. उमर, इमत्यिाज अहमद, रिफत फातिमा, राहुल, जैद अफहम फारूकी, आदियोग, राम किशोर, लवलेश चैधरी, आदित्य विक्रम सिंह, वर्तिका शिवहरे, मनन, उत्कर्ष, के के वत्स, ओंकार सिंह, लक्ष्मी शर्मा, ओपी सिन्हा, आफाक, गुफरान, अतहर हुसैन, कमर सीतापुरी, जुबैर जौनपुरी, मोईद अहमद, सुनील, ज्योति राय, अखिलेश सक्सेना, अमित मिश्रा, मो. आसिफ, मो. वसी, ओंकार सिंह, डा. अली अहमद कासमी, अजीजुल हसन, कमर, मुशीर खान, मो. शमीम, सरफराज कमर अंसारी समेत कई लोग मौजूद रहे।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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