स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
आज साँय तीन बजे क़ैसर बाग स्थित उमानाथ बली प्रेक्षागृह के 'जयशंकर प्रसाद सभागार' में साझा संघर्ष साझी विरासत :सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और जंतान्त्रिक मूल्यों के पक्ष में सांस्कृतिक अभियान चलाने के 22-23 अगस्त 2015 को जबलपुर में हुये निर्णयों की अगली कड़ी के रूप में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें प्रलेस, इप्टा, जलेस, जसम के अलावा यहां की स्थानीय सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं ने भाग लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता वी के सिंह जी ने की तथा संचालन राकेश जी ने।
प्रारम्भ में राकेश जी ने बताया कि, आज दो खतरे बड़े ज़बरदस्त रूप से हमारे सामने खड़े हैं। एक तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला । नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे और प्रोफेसर कालबुरगी की हत्या के बाद दूसरे अनेकों लेखकों की ज़िंदगी पर खतरा फासिस्ट शक्तियों के ऐलान से मंडरा रहा है। दूसरे संगठित मजदूरों को छिन्न-भिन्न करने के लिए एपरेनटिसशिप प्रणाली को अपनाया जा रहा है।
राकेश जी ने प्रस्ताव दिया कि नवंबर के महीने में लगभग दस दिन की एक साझी कार्यशाला आयोजित करके शहर में आगामी कार्यक्रमों के लिए साथियों को प्रशिक्षित किया जाये।
06 दिसंबर 2015 को प्रथम चरण में प्रातः 9 बजे से दिन के एक बजे तक विभिन्न कालोनियों में प्रचार किया जाये और उन सब को लेकर भोजनोपरांत अपरान्ह तीन बजे जी पी ओ स्थित शहीद पार्क में एकत्र होकर संयुक्त अभियान चलाया जाये।
14 अप्रैल 2016 से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों व आदिवासियों से संपर्क स्थापित किया जाये और उनकी समस्याओं का उनके नज़रिये से अध्यन किया जाये।
शिव गोपाल मिश्र जी जो रेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता हैं ने प्रस्तावित कार्यक्रम पर पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया और आह्वान किया कि हमें 'चलो गांवों की ओर' नारे के साथ अपना अभियान चलाना चाहिए।
नलिन रंजन सिंह जी ने आज के 'जनसत्ता' में प्रकाशित समाचार को इंगित करते हुये कहा कि सनातन संस्था के हौसले खतरनाक रूप से बढ़े हुये हैं। इनका मुक़ाबला तो करना ही है लेकिन सामाजिक अवधारणा को नष्ट करने के लिए जो निजीकरण की मुहिम चलाई जा रही है उसका भी कर्मचारियों का सहयोग लेकर डट कर मुक़ाबला करना होगा। प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत के हिसाब से नौकरियाँ समाप्त किए जाने की प्रक्रिया चल रही है उसका मुक़ाबला करने के लिए विभिन्न यूनियनों को अपने आपसी मतभेदों को समाप्त कर 'एकता' बनानी होगी। समान धर्मा लोगों के साथ गाँव व शहर के लोगों से संपर्क करने के दौरान जो बुलेटिन जारी किया जाना है उसकी रचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वह आगे भी काम आए।
प्रेमनाथ राय जी ने कहा कि जबलपुर में तय कार्यक्रम को और आगे बढ़ाया जाये उसमें वह व उनका संगठन पूरा सहयोग देगा।
कात्यायनी जी ने कहा कि यह साझा प्रयास सामयिक है। मतभेदों को रेखांकित करते हुये साझा संघर्ष चलाना चाहिए। 1990 से ही निजीकरण शुरू हो चुका था उसके परिणाम स्वरूप जो आर्थिक संकट चल रहा था उसकी अभिव्यक्ति वीभत्स रूप में अब हुई है। मुजफ्फर नगर,बरेली आदि में जो सांप्रदायिक संघर्ष हुये हैं उनसे समाज में बिखराव आया है और इसका पूरा पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों ने उठाया है। दिल्ली में RSS की गुप्त बैठकों का जो ब्यौरा गुप्त रूप से हासिल किया गया है उसमें बताया गया है कि वहाँ शाखाओं में तलवार चलाने की शिक्षा व तलवारें बांटने का कार्य चल रहा है। आने वाले समय में हम यदि छिन्न-भिन्न संघर्ष करेंगे तो सब मिटेंगे। उनका कहना था कि फासिस्टों का मुक़ाबला संस्कृति कर्मी,साहित्यकार और लेखक स्वम्य अपने आधार पर नहीं कर सकते जब तक कि जनता को जोड़ा नहीं जाएगा हमें कामयाबी नहीं मिलेगी। 1992 का बाबरी कांड,2002 का गुजरात कांड जैसी घटनाएँ अब आगे सड़कों पर होंगी। हमें भी मुक़ाबले के लिए स्वम्य सेवी दस्ते बनाने होंगे। हमें मेहनतकश मजदूर और नौजवानों को अपने साथ लाना होगा साथ ही उनके संघर्षों में हमें योग देना होगा तभी फासिस्टों का मुक़ाबला संभव है। अब तक साझा संघर्ष शुरू करने में काफी विलंब हो चुका है लेकिन अब भी आगे न बढ़े तो आगे और मुश्किल है। हमें अपनी-अपनी सांगठनिक संकीर्णताओं व निहित स्वार्थों को छोडना होगा तभी हम सफल हो सकेंगे।
शकील सिद्दीकी साहब ने कहा कि पहली बात तो यह है कि भगत सिंह का स्वप्न एक विचार धारा है जिसे उन्होने अपनी शहादत से ओज प्रदान किया व प्रमाणित किया है।दूसरी बात उनका बौद्धिक पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। उनके लेख व साहित्य पढ़ना चाहिए। कार्यक्रमों में 'निरंतरता' होनी चाहिए। शहर में ज़्यादा शक्ति लगाने से ज़्यादा लाभ मिलेगा।
हरीश चंद्र , अवकाश प्राप्त IAS ने पूछा कि भगत सिंह के अप्रतिम क्रांतिकारी स्वप्न का क्या हुआ? तब से आज सौ वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है और जीवन मूल्य शीर्षासन कर गए हैं। वह समानता के पक्षधर थे आज सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। सत्ता आज जनता को लूटने का माध्यम बन गई है। सम्पूर्ण प्रगतिशील आंदोलन , किसान आंदोलन छितर बितर हो गए हैं। फिर से उनको संगठित करना होगा। आज ट्रेड यूनियन आंदोलन केवल वेतन,अपनी सुविधा बढ़ाने तक ही सीमित है, मजदूर-किसान समस्याओं से उनको कुछ लेना-देना नहीं है। ट्रेड यूनियनों को किसान ,मजदूर व दलितों के दुख से जोड़ना होगा । वैचारिक मतभेदों के बावजूद सामान्य कार्यक्रम पर दूसरी आज़ादी की लड़ाई लड़ी जाये।
बी एन गौड़ साहब का अभिमत था कि हमारे मुख्य दुश्मन की पहुँच घर से अमेरिका तक है। फिर भी हम खुद को कमजोर न समझें। 2008 में दक्षिण बिहार के माओवादी गांवों के 70 आदमियों ने पूरा इलाका घेर लिया था। निराश होने की ज़रूरत नहीं है -' मत कहो आकाश में कोहरा घना है'। प्रस्तुत प्रस्ताव के अतिरिक्त लखनऊ में 15 मिनट की मानव श्रंखला बनाएँ।
कान्ति मिश्रा, जिलाध्यक्ष महिला फेडरेशन ने कहा कि उनका संगठन पूरा सहयोग देगा । सहयोग की प्रक्रिया के बारे में वह अपनी आशा दीदी से वार्ता के बाद बता सकेंगी।
ताहिरा हसन जी ने कहा भगत सिंह तो अप्रैल 1929 में ही मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे थे। ट्रेड डिसप्यूट एक्ट के विरोध में ही तो एसेम्बली में बम फेंका था। आज के हालात तब से बहुत ज़्यादा खराब हैं। सामूहिक संघर्ष में उनका संगठन पूरा साथ देगा ऐसा उन्होने आश्वासन दिया।
कौशल किशोर जी ने कहा कि भगत सिंह का जन्मदिन 'संघर्ष के संकल्प' का दिन होता है। 7 साल के अध्यन के द्वारा भगत सिंह ने स्वाधीनता आंदोलन की मीमांसा कर डाली थी। 16 मई 2014 के बाद अब यह निर्णायक दौर है। औपचारिकता को तोड़ कर वास्तविकता की समझ कर बस्तियों,कारखानों से पुनः संबंध जोड़ना होगा। पहले का इनसे पलायन का ही परिणाम संघ की मजबूती है।
अंत में अध्यक्षीय भाषण में वी के सिंह जी ने सभी को धन्यवाद देते हुये परिवर्तन चौक पर मानव श्रंखला में भाग लेने को कहा।
संगोष्ठी के बाद परिवर्तन चौक पर पुणे फिल्म संस्थान के भगवाकरण के खिलाफ वहां के छात्रों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के समर्थन में मानव श्रृंखला बनाई गयी। गजेन्द्र सिंह को एफ टी आई आई से हटाये जाने हेतु तथा भगवाकरण की संस्कृति के खिलाफ नारे लगाये गये। इन कार्यक्रमों में रूपरेखा वर्मा, सुभाष राय,राकेश, प्रदीप घोष, शकील सिद्दीकी, मुख्तार, डॉ संजय सक्सेना,विजय राज बली माथुर, कान्ति मिश्रा, बबीता सिंह एवं महिला फेडरेशन की अन्य सदस्याएं, कौशल किशोर, हरीश चंद्र- सेवा निवृत IAS, राम किशोर,ताहिरा हसन, नसीम साकेती, के के वत्स, आर एस बाजपेई, प्रदीप शर्मा, उमेश चन्द्र, अनीता श्रीवास्तव, प्रज्ञा पाण्डेय, सुभाष बाजपेई, ऋषि श्रीवास्तव, सीमा चंद्रा , वीना राना, घर्मेन्द्र, आदियोग, अजय शर्मा सहित बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
******************************************************************
फेसबुक पर प्राप्त कमेंट्स :
आज साँय तीन बजे क़ैसर बाग स्थित उमानाथ बली प्रेक्षागृह के 'जयशंकर प्रसाद सभागार' में साझा संघर्ष साझी विरासत :सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और जंतान्त्रिक मूल्यों के पक्ष में सांस्कृतिक अभियान चलाने के 22-23 अगस्त 2015 को जबलपुर में हुये निर्णयों की अगली कड़ी के रूप में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें प्रलेस, इप्टा, जलेस, जसम के अलावा यहां की स्थानीय सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं ने भाग लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता वी के सिंह जी ने की तथा संचालन राकेश जी ने।
प्रारम्भ में राकेश जी ने बताया कि, आज दो खतरे बड़े ज़बरदस्त रूप से हमारे सामने खड़े हैं। एक तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला । नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे और प्रोफेसर कालबुरगी की हत्या के बाद दूसरे अनेकों लेखकों की ज़िंदगी पर खतरा फासिस्ट शक्तियों के ऐलान से मंडरा रहा है। दूसरे संगठित मजदूरों को छिन्न-भिन्न करने के लिए एपरेनटिसशिप प्रणाली को अपनाया जा रहा है।
राकेश जी ने प्रस्ताव दिया कि नवंबर के महीने में लगभग दस दिन की एक साझी कार्यशाला आयोजित करके शहर में आगामी कार्यक्रमों के लिए साथियों को प्रशिक्षित किया जाये।
06 दिसंबर 2015 को प्रथम चरण में प्रातः 9 बजे से दिन के एक बजे तक विभिन्न कालोनियों में प्रचार किया जाये और उन सब को लेकर भोजनोपरांत अपरान्ह तीन बजे जी पी ओ स्थित शहीद पार्क में एकत्र होकर संयुक्त अभियान चलाया जाये।
14 अप्रैल 2016 से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों व आदिवासियों से संपर्क स्थापित किया जाये और उनकी समस्याओं का उनके नज़रिये से अध्यन किया जाये।
शिव गोपाल मिश्र जी जो रेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता हैं ने प्रस्तावित कार्यक्रम पर पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया और आह्वान किया कि हमें 'चलो गांवों की ओर' नारे के साथ अपना अभियान चलाना चाहिए।
नलिन रंजन सिंह जी ने आज के 'जनसत्ता' में प्रकाशित समाचार को इंगित करते हुये कहा कि सनातन संस्था के हौसले खतरनाक रूप से बढ़े हुये हैं। इनका मुक़ाबला तो करना ही है लेकिन सामाजिक अवधारणा को नष्ट करने के लिए जो निजीकरण की मुहिम चलाई जा रही है उसका भी कर्मचारियों का सहयोग लेकर डट कर मुक़ाबला करना होगा। प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत के हिसाब से नौकरियाँ समाप्त किए जाने की प्रक्रिया चल रही है उसका मुक़ाबला करने के लिए विभिन्न यूनियनों को अपने आपसी मतभेदों को समाप्त कर 'एकता' बनानी होगी। समान धर्मा लोगों के साथ गाँव व शहर के लोगों से संपर्क करने के दौरान जो बुलेटिन जारी किया जाना है उसकी रचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वह आगे भी काम आए।
प्रेमनाथ राय जी ने कहा कि जबलपुर में तय कार्यक्रम को और आगे बढ़ाया जाये उसमें वह व उनका संगठन पूरा सहयोग देगा।
कात्यायनी जी ने कहा कि यह साझा प्रयास सामयिक है। मतभेदों को रेखांकित करते हुये साझा संघर्ष चलाना चाहिए। 1990 से ही निजीकरण शुरू हो चुका था उसके परिणाम स्वरूप जो आर्थिक संकट चल रहा था उसकी अभिव्यक्ति वीभत्स रूप में अब हुई है। मुजफ्फर नगर,बरेली आदि में जो सांप्रदायिक संघर्ष हुये हैं उनसे समाज में बिखराव आया है और इसका पूरा पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों ने उठाया है। दिल्ली में RSS की गुप्त बैठकों का जो ब्यौरा गुप्त रूप से हासिल किया गया है उसमें बताया गया है कि वहाँ शाखाओं में तलवार चलाने की शिक्षा व तलवारें बांटने का कार्य चल रहा है। आने वाले समय में हम यदि छिन्न-भिन्न संघर्ष करेंगे तो सब मिटेंगे। उनका कहना था कि फासिस्टों का मुक़ाबला संस्कृति कर्मी,साहित्यकार और लेखक स्वम्य अपने आधार पर नहीं कर सकते जब तक कि जनता को जोड़ा नहीं जाएगा हमें कामयाबी नहीं मिलेगी। 1992 का बाबरी कांड,2002 का गुजरात कांड जैसी घटनाएँ अब आगे सड़कों पर होंगी। हमें भी मुक़ाबले के लिए स्वम्य सेवी दस्ते बनाने होंगे। हमें मेहनतकश मजदूर और नौजवानों को अपने साथ लाना होगा साथ ही उनके संघर्षों में हमें योग देना होगा तभी फासिस्टों का मुक़ाबला संभव है। अब तक साझा संघर्ष शुरू करने में काफी विलंब हो चुका है लेकिन अब भी आगे न बढ़े तो आगे और मुश्किल है। हमें अपनी-अपनी सांगठनिक संकीर्णताओं व निहित स्वार्थों को छोडना होगा तभी हम सफल हो सकेंगे।
शकील सिद्दीकी साहब ने कहा कि पहली बात तो यह है कि भगत सिंह का स्वप्न एक विचार धारा है जिसे उन्होने अपनी शहादत से ओज प्रदान किया व प्रमाणित किया है।दूसरी बात उनका बौद्धिक पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। उनके लेख व साहित्य पढ़ना चाहिए। कार्यक्रमों में 'निरंतरता' होनी चाहिए। शहर में ज़्यादा शक्ति लगाने से ज़्यादा लाभ मिलेगा।
हरीश चंद्र , अवकाश प्राप्त IAS ने पूछा कि भगत सिंह के अप्रतिम क्रांतिकारी स्वप्न का क्या हुआ? तब से आज सौ वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है और जीवन मूल्य शीर्षासन कर गए हैं। वह समानता के पक्षधर थे आज सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। सत्ता आज जनता को लूटने का माध्यम बन गई है। सम्पूर्ण प्रगतिशील आंदोलन , किसान आंदोलन छितर बितर हो गए हैं। फिर से उनको संगठित करना होगा। आज ट्रेड यूनियन आंदोलन केवल वेतन,अपनी सुविधा बढ़ाने तक ही सीमित है, मजदूर-किसान समस्याओं से उनको कुछ लेना-देना नहीं है। ट्रेड यूनियनों को किसान ,मजदूर व दलितों के दुख से जोड़ना होगा । वैचारिक मतभेदों के बावजूद सामान्य कार्यक्रम पर दूसरी आज़ादी की लड़ाई लड़ी जाये।
बी एन गौड़ साहब का अभिमत था कि हमारे मुख्य दुश्मन की पहुँच घर से अमेरिका तक है। फिर भी हम खुद को कमजोर न समझें। 2008 में दक्षिण बिहार के माओवादी गांवों के 70 आदमियों ने पूरा इलाका घेर लिया था। निराश होने की ज़रूरत नहीं है -' मत कहो आकाश में कोहरा घना है'। प्रस्तुत प्रस्ताव के अतिरिक्त लखनऊ में 15 मिनट की मानव श्रंखला बनाएँ।
कान्ति मिश्रा, जिलाध्यक्ष महिला फेडरेशन ने कहा कि उनका संगठन पूरा सहयोग देगा । सहयोग की प्रक्रिया के बारे में वह अपनी आशा दीदी से वार्ता के बाद बता सकेंगी।
ताहिरा हसन जी ने कहा भगत सिंह तो अप्रैल 1929 में ही मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे थे। ट्रेड डिसप्यूट एक्ट के विरोध में ही तो एसेम्बली में बम फेंका था। आज के हालात तब से बहुत ज़्यादा खराब हैं। सामूहिक संघर्ष में उनका संगठन पूरा साथ देगा ऐसा उन्होने आश्वासन दिया।
कौशल किशोर जी ने कहा कि भगत सिंह का जन्मदिन 'संघर्ष के संकल्प' का दिन होता है। 7 साल के अध्यन के द्वारा भगत सिंह ने स्वाधीनता आंदोलन की मीमांसा कर डाली थी। 16 मई 2014 के बाद अब यह निर्णायक दौर है। औपचारिकता को तोड़ कर वास्तविकता की समझ कर बस्तियों,कारखानों से पुनः संबंध जोड़ना होगा। पहले का इनसे पलायन का ही परिणाम संघ की मजबूती है।
अंत में अध्यक्षीय भाषण में वी के सिंह जी ने सभी को धन्यवाद देते हुये परिवर्तन चौक पर मानव श्रंखला में भाग लेने को कहा।
संगोष्ठी के बाद परिवर्तन चौक पर पुणे फिल्म संस्थान के भगवाकरण के खिलाफ वहां के छात्रों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के समर्थन में मानव श्रृंखला बनाई गयी। गजेन्द्र सिंह को एफ टी आई आई से हटाये जाने हेतु तथा भगवाकरण की संस्कृति के खिलाफ नारे लगाये गये। इन कार्यक्रमों में रूपरेखा वर्मा, सुभाष राय,राकेश, प्रदीप घोष, शकील सिद्दीकी, मुख्तार, डॉ संजय सक्सेना,विजय राज बली माथुर, कान्ति मिश्रा, बबीता सिंह एवं महिला फेडरेशन की अन्य सदस्याएं, कौशल किशोर, हरीश चंद्र- सेवा निवृत IAS, राम किशोर,ताहिरा हसन, नसीम साकेती, के के वत्स, आर एस बाजपेई, प्रदीप शर्मा, उमेश चन्द्र, अनीता श्रीवास्तव, प्रज्ञा पाण्डेय, सुभाष बाजपेई, ऋषि श्रीवास्तव, सीमा चंद्रा , वीना राना, घर्मेन्द्र, आदियोग, अजय शर्मा सहित बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
******************************************************************
फेसबुक पर प्राप्त कमेंट्स :
This would be the desired and required action for future and we all should participate effectively to make it all success.
ReplyDelete