Showing posts with label वामपंथ. Show all posts
Showing posts with label वामपंथ. Show all posts

Saturday, 14 October 2017

' चित भी मेरी : पट भी मेरी ' संघी नीति को नहीं समझ कर विपक्ष अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी चला रहा है ------ विजय राजबली माथुर

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 



Arvind Raj Swarup Cpi
16 hrs
हिंदू राष्ट्रवादी सम्पादक हरिशंकर व्यास ने अपने अख़बार ‘नया इंडिया’ में आज लिखा है -

“ढाई लोगों के वामन अवतार ने ढाई कदम में पूरे भारत को माप अपनी ढाई गज की जो दुनिया बना ली है, उसमें अंबानी, अडानी, बिड़ला, जैन, अग्रवाल, गुप्ता याकि वे धनपति और बड़े मीडिया मालिक जरूर मतलब रखते हैं, जिनकी दुनिया क्रोनी पूंजीवाद से रंगीन है और जो अपने रंगों की हाकिम के कहे अनुसार उठक-बैठक कराते रहते हैं।

“आज का अंधेरा हम सवा सौ करोड़ लोगों की बीमारी की असलियत लिए हुए है। ढाई लोगों के वामन अवतार ने लोकतंत्र को जैसे नचाया है, रौंदा है, मीडिया को गुलाम बना उसकी विश्वसनीयता को जैसे बरबाद किया है - वह कई मायनों में पूरे समाज, सभी संस्थाओं की बरबादी का प्रतिनिधि भी है। तभी तो यह नौबत आई जो सुप्रीम कोर्ट के जजों को कहना पड़ा कि यह न कहा करें कि फलां जज सरकारपरस्त है और फलां नहीं!

“अदालत हो, एनजीओ हो, मीडिया हो, कारोबार हो, भाजपा हो, भाजपा का मार्गदर्शक मंडल हो, संघ परिवार हो या विपक्ष सबका अस्तित्व ढाई लोगों के ढाई कदमों वाले ‘न्यू इंडिया’ के तले बंधक है!

“आडवाणी, जोशी जैसे चेहरे रोते हुए तो मीडिया रेंगता हुआ। आडवाणी ने इमरजेंसी में मीडिया पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इंदिरा गांधी ने झुकने के लिए कहा था मगर आप रेंगने लगे! वहीं आडवाणी आज खुद के, खुद की बनाई पार्टी और संघ परिवार या पूरे देश के रेंगने से भी अधिक बुरी दशा के बावजूद ऊफ तक नहीं निकाल पा रहे हैं।

“सोचें, क्या हाल है! हिंदू और गर्व से कहो हम हिंदू हैं (याद है आडवाणी का वह वक्त), उसका राष्ट्रवाद इतना हिजड़ा होगा यह अपन ने सपने में नहीं सोचा था। और यह मेरा निचोड़ है जो 40 साल से हिंदू की बात करता रहा है! मैं हिंदू राष्ट्रवादी रहा हूं। इसमें मैं ‘नया इंडिया’ का वह ख्याल लिए हुए था कि यदि लोकतंत्र ने लिबरल, सेकुलर नेहरूवादी धारा को मौका दिया है तो हिंदू हित की बात, दक्षिणपंथ, मुसलमान को धर्म के दड़बे से बाहर निकाल उन्हें आधुनिक बनवाने की धारा का भी सत्ता में स्थान बनना चाहिए।

“यह सब सोचते हुए कतई कल्पना नहीं की थी कि इससे नया इंडिया की बजाय मोदी इंडिया बनेगा और कथित हिंदू राष्ट्रवादी सवा सौ करोड़ लोगों की बुद्धि, पेट, स्वाभिमान, स्वतंत्रता, सामाजिक आर्थिक सुरक्षा को तुगलकी, भस्मासुरी प्रयोगशाला से गुलामी, खौफ के उस दौर में फिर हिंदुओं को पहुंचा देगा, जिससे 14 सौ काल की गुलामी के डीएनए जिंदा हो उठें। आडवाणी भी रोते हुए दिखलाई दें।

“आप सोच नहीं सकते हैं कि नरेंद्र मोदी, और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने साढ़े तीन सालों में मीडिया को मारने, खत्म करने के लिए दिन-रात कैसे-कैसे उपाय किए हैं। एक-एक खबर को मॉनिटर करते हैं। मालिकों को बुला कर हड़काते हैं। धमकियां देते हैं।

“जैसे गली का दादा अपनी दादागिरी, तूती बनवाने के लिए दस तरह की तिकड़में सोचता है, उसी अंदाज में नरेंद्र मोदी और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने भारत सरकार की विज्ञापन एजेंसी डीएवीपी के जरिए हर अखबार को परेशान किया ताकि खत्म हों या समर्पण हो। सैकड़ों टीवी चैनलों, अखबारों की इम्पैनलिंग बंद करवाई।

“इधर से नहीं तो उधर से और उधर से नहीं तो इधर के दस तरह के प्रपंचों में छोटे-छोटे प्रकाशकों-संपादकों पर यह साबित करने का शिकंजा कसा कि तुम लोग चोर हो। इसलिए तुम लोगों को जीने का अधिकार नहीं और यदि जिंदा रहना है तो बोलो जय हो मोदी! जय हो अमित शाह! जय हो अरूण जेटली!


“और इस बात पर सिर्फ मीडिया के संदर्भ में ही न विचार करें! लोकतंत्र की तमाम संस्थाओं को, लोगों को कथित ‘न्यू इंडिया’ में ऐसे ही हैंडल किया जा रहा है। ढाई लोगों की सत्ता के चश्मे में आडवाणी हों या हरिशंकर व्यास या सिर्दाथ वरदराजन, भाजपा का कोई मुख्यमंत्री या मोहन भागवत तक सब इसलिए एक जैसे हैं कि सभी ‘न्यू इंडिया’ की प्रयोगशाला में महज पात्र हैं, जिन्हें भेड़, चूहे के अलग-अलग परीक्षणों से ‘न्यू इंडिया’ लायक बनाना है। ...”
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/1984164238468371




वरुण गांधी (भाजपा सांसद ), हरिशंकर व्यास ( जिनका  लेख अरविंद राज स्वरूप CPI के वरिष्ठ नेता द्वारा उद्धृत किया गया है )  और  हज़ारे साहब के साक्षात्कार पर ध्यान दें  तो स्पष्ट होता है कि , संघ की पसंद के पी एम मोदी  की सरकार के विरुद्ध अभियान में भी अग्रणी संघ के नेता और विचारक ही हैं। यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघन सिन्हा  आदि नेताओं व विचारकों के कदम भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। विपक्ष के जो नेता या विचारक मुखर होते हैं उनके विरुद्ध क्रिमिनल  व सिविल केस चलाये जाते हैं या उनकी हत्या करा दी जाती है। यह है ' चित भी मेरी : पट भी मेरी ' संघी नीति जिसे वर्तमान विपक्ष के नेता और दल नहीं समझ रहे हैं  जो कि, भारतीय राजनीति से उनके सफाये की योजना है। 
संघ ने सत्ता ( शासन और प्रशासन दोनों ) पर  मजबूत पकड़ बनाने के बाद  अब विपक्ष पर भी पकड़ बनाना शुरू कर दिया है जिससे मोदी सरकार के पतन  की दशा में बनने वाली सरकार में भी संघ की मजबूत पकड़ बरकरार रहे। 
यदि वर्तमान विपक्ष ने आगामी लोकसभा चुनाव कांग्रेस + CPM समेत सम्पूर्ण वामपंथ + ममता बनर्जी समेत समस्त क्षेत्रीय दलों ने एक साथ न लड़ कर अलग - अलग लड़ा या आ आ पा (AAP) को अपने साथ जोड़ा तो तय है कि, बनने वाली सरकार  पर भी संघ का ही नियंत्रण रहेगा। 
------ विजय राजबली माथुर 





Saturday, 5 March 2016

कन्हैया कुमार के विचार : जन-अभिव्यक्ति ------ विजय राजबली माथुर

कन्हैया कुमार ने जो राह दिखा दी है उसको अपना कर ,उसको मान-सम्मान के साथ अनुकरण में लाकर जनता को अपने साथ जोड़ने का कार्य वामपंथ को अविलंब करना चाहिए। उसके विचार जन-अभिव्यक्ति हैं तभी तो अब मीडिया भी उनको स्थान देने लगा है। 
(विजय राजबली माथुर )
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।



नई दिल्‍ली: देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद कल (गुरुवार को) जमानत पर रिहा होकर जेएनयू वापस लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने NDTV से खास बातचीत में कहा कि '9 फरवरी का कार्यक्रम मैंने आयोजित नहीं किया था। देश‍विरोधी नारे लगे या नहीं लगे, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था।'

कन्हैया द्वारा कही गई मुख्‍य बातें...
मेरी उस कार्यक्रम के प्रति परोक्ष रूप से कोई सहमति नहीं थी। मुझे उस कार्यक्रम की सूचना नहीं दी गई थी। कार्यक्रम की इजाजत देना मेरा काम नहीं है।
चार-पांच लोग वहां नारे लगा रहे थे। नारे लगाना गलत है। नारे लगाने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
पुलिस कहती है कि मेरी रज़ामंदी से कार्यक्रम हुआ, इसलिए गिरफ़्तार किया।
पहले से इस तरह की गतिविधियां होती आ रही है। उस कार्यक्रम को रोकना मेरे अधिकार से बाहर था।
अध्यक्ष होने के नाते मैं छात्रों की नुमाइंदगी करता हूं। छात्रों की बात करना मेरा काम, कार्यक्रम की इजाज़त देना नहीं।
कुछ छात्रों को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है।
जो नारे लगाए गए, मैं उसकी निंदा करता हूं। ये सिर्फ़ नारे का मामला नहीं है, उससे ज़्यादा गंभीर है। नारों से लोगों का पेट नहीं भरता।
देश के सिस्‍टम पर मेरा भरोसा है।
मामला कोर्ट में है, इसलिए मैं ज्‍यादा बोल नहीं सकता।
हमारा देश इतना कमजोर है, जो नारों से हिल जाएगा?
हैदराबाद की कहानी जेएनयू में दोहराने की कोशिश हुई।
जेएनयू में दक्षिणपंथी ताकतें अलग-थलग हैं।
हर मामले को हिंदू-मुसलमान रंग दिया जाता है।
हम अफजल गुरु पर कोर्ट के आदेशों का सम्‍मान करते हैं।
मेरा भाई सीआरपीएफ में था, जो नक्‍सली हमले में मारा गया।
किसी को नक्‍सली बताकर गलत तरीके से मारने का भी समर्थन नहीं करता।
ये लड़ाई देश के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ है।
जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है।
पिछड़े लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
पटियाला हाउस कोर्ट में जो मैंने देखा वो ख़तरनाक परंपरा है।
हाथ में झंडा लेकर संविधान की धज्जियां उड़ा रहे थे।
देशद्रोह का क़ानून अंग्रेज़ों के ज़माने का है।
भगत सिंह देश के लिए लड़ रहे थे। भगत सिंह को अंग्रेज़ देशद्रोही मानते थे।
सरकार आपके पास के थाने से लेकर संसद तक है।
विचारधारा को रणनीतिक रूप नहीं देने से वो ख़त्म हो जाती है।
केजरीवाल, राहुल गांधी को देश से प्यार है तो आंदोलन करना होगा।
भगत सिंह और गांधी जैसे सुधारक हुए। ये वो लोग थे जो साम्राज्यवाद से लड़े।
दक्षिणपंथी मुद्दों पर फ़ोकस करतें है, विचारधारा पर नहीं।
जब तक आप डरेंगे नहीं तो लड़ेंगे नहीं।
मुझे आरएसएस से डर लगा इसलिए उसके ख़िलाफ़ लड़ा।
अब पुलिस से दोस्ती हो गई है।
मैं आगे चलकर शिक्षक ही बनूंगा।
मैं मुद्दों पर बहस करूंगा, अपनी विचारधारा के लिए लडूंगा।
मैं अपने अनुभवों पर किताब लिखना चाहता हूं।
मामला कोर्ट में है, अभी फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद पर बहस न हो।
जब आरएसएस में वैचारिक बदलाव हो रहा है तो कांग्रेस, लेफ़्ट में भी होगा। हमें इस बदलाव को बारीकी से देखने की ज़रूरत है। तभी हम लेफ़्ट, बीजेपी, कांग्रेस, केजरीवाल में फ़र्क कर पाएंगे
सबको एक ब्रश से मत रंगिए।
http://khabar.ndtv.com/news/india/exclusive-kanhaiya-kumar-interview-by-ravish-kumar-1283995?site=full
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
05-03-2016 

http://epaper.telegraphindia.com/details/173713-175741306.html

नीतीश कुमार ::
युवाओं के आगे आने से देश में लोकतंत्र मजबूत होगा। देश में पनप रहे अंसतोष को दबाने के लिए देशभक्ति का नारा छेड़ा है। उनको और कम्युनिस्ट पार्टी को शुभकामना देता हूं, ऐसे विचारों को बल मिलेगा।

http://www.livegaya.com/…/in…/id/3118/kanhaiya-nitish-kumar… 


भाषण में क्‍या था:  
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।   

http://www.jansatta.com/national/why-jnusu-president-kanhaiya-kumar-not-a-hero/73955/?utm_source=JansattaHP&utm_medium=referral&utm_campaign=jaroorpadhe_story

*******************************************************
फेसबुक पर प्राप्त  टिप्पणियाँ :
05-03-2016 

Thursday, 8 October 2015

कथा सम्राट प्रेमचंद के संबंध में डॉ रामविलास शर्मा ने क्या कहा ?

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 


10 अक्तूबर को जन्में  विचारक-आलोचक डॉ राम विलास शर्मा जी ने कथा सम्राट प्रेमचंद जी के संबंध में जो विचार व्यक्त किए वे 08 अक्तूबर प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर इस स्कैन कापी के माध्यम से प्रस्तुत हैं। 

प्रेमचंद जी गांधीवाद से साम्यवाद की ओर अग्रसर हुये थे जबकि डॉ रामविलास शर्मा जी साम्यवादी चिंतक व विचारक ही नहीं थे वरन सेंट जोन्स कालेज , आगरा  के अध्यापक व भाकपा के सक्रिय सदस्य भी थे। लेकिन सुंदर होटल, राजा-की-मंडी स्थित भाकपा  कार्यालय में उनके विचारों का विरोध व्यक्त करने के लिए उनके ऊपर साईकिल की चेन से घातक प्रहार किए गए थे। उन हमलावरों में से एक  लगातार 9-9 वर्षों  तक दो बार जिलामंत्री रहे और दूसरे 3 वर्षों तक। डॉ रामविलास शर्मा को अपनी ज़िंदगी बचाने हेतु आगरा छोड़ कर दिल्ली में बसना पड़ा था। 

यह विडम्बना ही है कि आंतरिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को कुचलने वालों को सम्मानित करने वाली पार्टी को आज फासिस्ट सरकार के विरुद्ध अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के संघर्ष में साथ देना पड़ रहा है क्योंकि उसके अपने एक शीर्ष नेता कामरेड गोविंद पानसारे की हत्या फासिस्ट शक्तियों द्वारा की जा चुकी है। लेकिन उनके स्थान पर एक शीर्ष समिति में जिनको लिया गया है वह अश्लीलता व बाजारवाद के प्रबल समर्थक हैं जिनका दृष्टिकोण है कि, ओ बी सी व दलित वर्ग से आए कामरेड्स से सिर्फ काम लो लेकिन उनको कोई पद न दो इसी आधार पर उत्तर प्रदेश में वह दो-दो बार पार्टी को विभाजित भी करा चुके हैं। एक राष्ट्रीय सचिव के विरुद्ध दो-दो बार पार्टी छोडने की अफवाहें उड़वा चुके हैं । मीडिया में उनका सहायक पुत्र मुलायम सिंह जी से घनिष्ठ रूप से संबन्धित है (निम्न चित्र से स्पष्ट है )जो उनके इशारे पर वरिष्ठ पार्टी कामरेड्स के विरुद्ध जब-तब ऐसे कार्य  आसानी से सम्पन्न करवा देता है और किसी के विरुद्ध मुलायम जी के कान भी भर देता है। 


***ऐसा सिर्फ एक ही साम्यवादी दल में ही नहीं वरन प्रत्येक साम्यवादी दल या सम्पूर्ण वामपंथ में है कि उसका नेतृत्व 'ब्राह्मण' जाति में जन्में या 'ब्राह्मण वादियों' के हाथों में है। युवा कामरेड्स में इसके प्रति असंतोष भी है जिसका प्रमाण प्रस्तुत दो फोटो कापियों से मिल जाएगा। 
https://www.facebook.com/ashishkumaranshu/posts/10156310439200157?fref=nf&pnref=story&__mref=message


युद्ध एक कला भी है और विज्ञान भी। जब फासिस्ट /सांप्रदायिक/साम्राज्यवादी शक्तियों से लड़ना है तब उनका मुक़ाबला न करके अपनी ही पार्टी में घमासान  मचा देने का साफ मतलब यह है कि शत्रु को मजबूती प्रदान की जाये। शत्रु को  शक्ति  देने वाला व्यक्ति या संगठन शत्रु-कृपा से अपना अस्तित्व तो बचाए रख सकता है किन्तु विचार धारा नहीं। यही दुर्भाग्य साम्यवादी/वामपंथी खेमे को ग्रसित किए हुये है जिससे निकल कर ही प्रेमचंद जी एवं डॉ रामविलास शर्मा जी के दृष्टिकोण व चिंतन को मूर्त रूप प्रदान करते हुये अपने संगठन व विचार धारा को आज मजबूत किए जाने  व युवा वर्ग को आकर्षित किए जाने की महती आवश्यकता है। 
(विजय  राजबली माथुर)