Friday, 31 March 2017
Wednesday, 29 March 2017
भुवन शोम एक प्रेरणास्पद हास्य फिल्म
Er S D Ojha .
https://www.facebook.com/sd.ojha.3/posts/1808246549501223भुवन शोम फिल्म के माध्यम से निर्देशक ने हास्य नाटकीयता के द्वारा यह सिद्ध किया है कि, एक सिद्धांतनिष्ठ कडक प्रशासनिक अधिकारी को भी नारी सुलभ ममता द्वारा व्यावहारिक धरातल पर नर्म मानवीय व्यवहार बरतने हेतु परिवर्तित किया जा सकता है। रेलवे के प्रशासनिक अधिकारी भुवन शोम के रूप में उत्पल दत्त जी व ग्रामीण नारी गौरी के रूप में सुहासिनी मुले जी ने मार्मिक अभिनय किया है। प्रारम्भिक अभिनेत्री होते हुये भी परिपक्व अभिनेता उत्पल दत्त जी के साथ सुहासिनी मुले जी का अभिनय सराहनीय है। यह गौरी का ही चरित्र था जिसने उसके पति जाधव पटेल का निलंबन रद्द करने को भुवन शोम जी को प्रेरित कर दिया।
UTPAL DUTT BIO
Utpal Dutt (Bangla: উত্পল দত্ত) (March 29, 1929 – August 19, 1993) was an Indian actor, director and writer. He was primarily an actor in Bengali Theatre, but he also acted in many Bengali and Hindi films. He received National Film Award for Best Actor in 1970 and three Filmfare Best Comedian Awards वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के भुवन शोम के लिए राष्ट्रीय फिल्म ..
Wednesday, 15 March 2017
क्या उत्तर प्रदेश में कोई संरचनात्मक बदलाव हुआ है? ------ अनिल पदमनाभन
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
पद्मनाभन साहब की नज़र से तीन वर्षों में दो बार ऐसा होना उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में संरचनात्मक बदलाव है। क्योंकि देश की जनसंख्या में नौजवानों की आबादी काफी ज़्यादा हो गई है और वह युवा आबादी किसी परंपरा में आसानी से नहीं बंधती।यह स्थिति इन मतदाताओं को अपनी पहचान से परे जाकर अपनी प्राथमिकताए तय करने की राह दिखाती है।
परंतु मुझे जो जानकारी 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद आज से तीन वर्ष पहले हासिल हुई थी उसके अनुसार प्राथमिकताओं में बदलाव की यह प्रक्रिया 2011 / 12 में शुरू की गई थी। व्हाईट हाउस में तब के प्रेसीडेंट बराक हुसैन ओबामा साहब ने विश्व भर के दलित-पिछड़ों की एक बैठक की थी जिसमें भारत से गए लोगों में लखनऊ विश्वविद्यालय के एक तत्कालीन हिन्दी अध्यापक भी शामिल हुये थे। उस बैठक में ही यह तय हुआ था कि विश्व भर से किस प्रकार मुस्लिमों का सत्ता में अस्तित्व समाप्त करना है।उसी योजना के तहत कारपोरेट समर्थक 'भ्रष्टाचार आंदोलन' चलवाया गया था और उसी योजना का यह परिणाम था कि, 2014 के लोकसभा चुनावों में दलित वर्ग का वोट बसपा के बजाए भाजपा को पड़ा था और लोकसभा में बसपा 'शून्य ' हो गई थी। 2017 का यू पी चुनाव परिणाम उसी व्यवस्था का विस्तार है जिसने दलित वर्ग के साथ - साथ पिछड़े वर्ग का भी वोट बसपा / सपा के बजाए भाजपा को पड़ा है। चुनाव विश्लेषणों से सिद्ध है कि, यू पी विधानसभा में इस बार अगड़े अर्थात सवर्ण वर्ग के विधायक अधिक चुने गए हैं। दलित, पिछड़ा और मुस्लिम प्रतिनिधित्व काफी कम हुआ है।
आज ईस्ट इंडिया कंपनी सरीखा 'साम्राज्यवाद ' स्थापित करना संभव नहीं है। अतः कारपोरेट कंपनियों द्वारा नियंत्रित तथाकथित राष्ट्रवाद अर्थात अप्रयक्ष साम्राज्यवाद स्थापित किया जा रहा है जो कि, जनतंत्र की समाप्ती एवं अधिनायकतंत्र के आगमन का संकेत प्रस्तुत करता है।
(विजय राजबली माथुर )
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फेसबुक कमेंट्स :
पद्मनाभन साहब की नज़र से तीन वर्षों में दो बार ऐसा होना उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में संरचनात्मक बदलाव है। क्योंकि देश की जनसंख्या में नौजवानों की आबादी काफी ज़्यादा हो गई है और वह युवा आबादी किसी परंपरा में आसानी से नहीं बंधती।यह स्थिति इन मतदाताओं को अपनी पहचान से परे जाकर अपनी प्राथमिकताए तय करने की राह दिखाती है।
परंतु मुझे जो जानकारी 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद आज से तीन वर्ष पहले हासिल हुई थी उसके अनुसार प्राथमिकताओं में बदलाव की यह प्रक्रिया 2011 / 12 में शुरू की गई थी। व्हाईट हाउस में तब के प्रेसीडेंट बराक हुसैन ओबामा साहब ने विश्व भर के दलित-पिछड़ों की एक बैठक की थी जिसमें भारत से गए लोगों में लखनऊ विश्वविद्यालय के एक तत्कालीन हिन्दी अध्यापक भी शामिल हुये थे। उस बैठक में ही यह तय हुआ था कि विश्व भर से किस प्रकार मुस्लिमों का सत्ता में अस्तित्व समाप्त करना है।उसी योजना के तहत कारपोरेट समर्थक 'भ्रष्टाचार आंदोलन' चलवाया गया था और उसी योजना का यह परिणाम था कि, 2014 के लोकसभा चुनावों में दलित वर्ग का वोट बसपा के बजाए भाजपा को पड़ा था और लोकसभा में बसपा 'शून्य ' हो गई थी। 2017 का यू पी चुनाव परिणाम उसी व्यवस्था का विस्तार है जिसने दलित वर्ग के साथ - साथ पिछड़े वर्ग का भी वोट बसपा / सपा के बजाए भाजपा को पड़ा है। चुनाव विश्लेषणों से सिद्ध है कि, यू पी विधानसभा में इस बार अगड़े अर्थात सवर्ण वर्ग के विधायक अधिक चुने गए हैं। दलित, पिछड़ा और मुस्लिम प्रतिनिधित्व काफी कम हुआ है।
आज ईस्ट इंडिया कंपनी सरीखा 'साम्राज्यवाद ' स्थापित करना संभव नहीं है। अतः कारपोरेट कंपनियों द्वारा नियंत्रित तथाकथित राष्ट्रवाद अर्थात अप्रयक्ष साम्राज्यवाद स्थापित किया जा रहा है जो कि, जनतंत्र की समाप्ती एवं अधिनायकतंत्र के आगमन का संकेत प्रस्तुत करता है।
(विजय राजबली माथुर )
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Sunday, 12 March 2017
मरणासन्न भाजपा को संजीवनी देने का काम भी मायावती ने ही किया था ------ कँवल भारती
Kanwal Bharti
11-03-2017
मायावती की हार के कारण (कँवल भारती)
मायावती की यह आखिरी पारी थी, जिसमें उनकी शर्मनाक हार हुई है. 19 सीटों पर सिमट कर उन्होंने अपनी पार्टी का अस्तित्व तो बचा लिया है, परन्तु अब उनका खेल खत्म ही समझो. मायावती ने अपनी यह स्थिति अपने आप पैदा की है. मुसलमानों को सौ टिकट देकर एक तरह से उन्होंने भाजपा की झोली में ही सौ सीटें डाल दी थीं. रही-सही कसर उन्होंने चुनाव रैलियों में पूरी कर दी, जिनमें उनका सारा फोकस मुसलमानों को ही अपनी ओर मोड़ने में लगा रहा था. उन्होंने जनहित के किसी मुद्दे पर कभी कोई फोकस नहीं किया. तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह आज तक जननेता नहीं बन सकीं. आज भी वह लिखा हुआ भाषण ही पढ़ती हैं. जनता से सीधे संवाद करने का जो जरूरी गुण एक नेता में होना चाहिए, वह उनमें नहीं है. हारने के बाद भी उन्होंने अपनी कमियां नहीं देखीं, बल्कि अपनी हार का ठीकरा वोटिंग मशीन पर फोड़ दिया. ऐसी नेता को क्या समझाया जाय! अगर वोटिंग मशीन पर उनके आरोप को मान भी लिया जाए, तो उनकी 19 सीटें कैसे आ गयीं, और सपा-कांग्रेस को 54 सीटें कैसे मिल गयीं? अपनी नाकामी का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना आसान है, पर अपनी कमियों को पहिचानना उतना ही मुश्किल.
अब इसे क्या कहा जाए कि वह केवल टिकट बांटने की रणनीति को ही सोशल इंजिनियरिंग कहती हैं. यह कितनी हास्यास्पद व्याख्या है सोशल इंजिनियरिंग की. उनके दिमाग से यह फितूर अभी तक नहीं निकला है कि 2007 के चुनाव में इसी सोशल इंजिनियरिंग ने उन्हें बहुमत दिलाया था. जबकि वास्तविकता यह थी कि उस समय कांग्रेस और भाजपा के हाशिए पर चले जाने के कारण सवर्ण वर्ग को सत्ता में आने के लिए किसी क्षेत्रीय दल के सहारे की जरूरत थी, और यह सहारा उसे बसपा में दिखाई दिया था. यह शुद्ध राजनीतिक अवसरवादिता थी, सोशल इंजिनियरिंग नहीं थी. अब जब भाजपा हाशिए से बाहर आ गयी है और 2014 में शानदार तरीके से उसकी केन्द्र में वापसी हो गयी है, तो सवर्ण वर्ग को किसी अन्य सहारे की जरूरत नहीं रह गयी, बल्कि कांग्रेस का सवर्ण वोट भी भाजपा में शामिल हो गया. लेकिन मायावती हैं कि अभी तक तथाकथित सोशल इंजिनियरिंग की ही गफलत में जी रही हैं, जबकि सच्चाई यह भी है कि मरणासन्न भाजपा को संजीवनी देने का काम भी मायावती ने ही किया था. उसी 2007 की सोशल इंजिनियरिंग की बसपा सरकार में भाजपा ने अपनी संभावनाओं का आधार मजबूत किया था.
मुझे तो यह विडम्बना ही लगती है कि जो बहुजन राजनीति कभी खड़ी ही नहीं हुई, कांशीराम और मायावती को उसका नायक बताया जाता है. केवल बहुजन नाम रख देने से बहुजन राजनीति नहीं हो जाती. उत्तर भारत में बहुजन आंदोलन और वैचारिकी का जो उद्भव और विकास साठ और सत्तर के दशक में हुआ था, उसे राजनीति में रिपब्लिकन पार्टी ने आगे बढ़ाया था. उससे कांग्रेस इतनी भयभीत हो गयी थी कि उसने अपनी शातिर चालों से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए और वह खत्म हो गयी. उसके बाद कांशीराम आये, जिन्होंने बहुजन के नाम पर जाति की राजनीति का माडल खड़ा किया. वह डा. आंबेडकर की उस चेतावनी को भूल गए कि जाति के आधार पर कोई भी निर्माण ज्यादा दिनों तक टिका नहीं रह सकता. बसपा की राजनीति कभी भी बहुजन की राजनीति नहीं रही. बहुजन की राजनीति के केन्द्र में शोषित समाज होता है, उसकी सामाजिक और आर्थिक नीतियां समाजवादी होती हैं, पर, मायावती ने अपने तीनों शासन काल में सार्वजानिक क्षेत्र की इकाइयों को बेचा और निजी इकाइयों को प्रोत्साहित किया. उत्पीडन के मुद्दों पर कभी कोई आन्दोलन नहीं चलाया, यहाँ तक कि रोहित वेमुला, कन्हैया कुमार और जिग्नेश कुमार के प्रकरण में भी पूरी उपेक्षा बरती, जबकि ये ऐसे मुद्दे थे, जो उत्तर प्रदेश में बहुजन वैचारिकी को मजबूत कर सकते थे.
इन चुनावों में मायावती को मुसलमानों पर भरोसा था, पर मुसलमानों ने उन पर भरोसा नहीं किया, जिसका कारण भाजपा के साथ उनके तीन-तीन गठबंधनों का अतीत है. उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मात्र 4 और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मात्र 2 सीटें मिली हैं, जिसका मतलब है कि उनके जाटव वोट में भी सेंध लगी है. मायावती की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह जमीन की राजनीति से दूर रहती हैं. न वह जमीन से जुड़ती हैं और न उनकी पार्टी में जमीनी नेता हैं. एक सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलन का कोई मंच भी उन्होंने अपनी पार्टी के साथ नहीं बनाया है. यह इसी का परिणाम है कि वह बहुजन समाज के हिन्दूकरण को नहीं रोक सकीं. इसी हिन्दूकरण ने लोकसभा में उनका सफाया किया और यही हिन्दूकरण उनकी वर्तमान हार का भी बड़ा कारण है.
मायावती की इससे भी बड़ी कमी यह है कि वह नेतृत्व नहीं उभारतीं. हाशिए के लोगों की राजनीतिक भागीदारी जरूरी है, पर उससे ज्यादा जरूरी है उनमें नेतृत्व पैदा करना, जो वह नहीं करतीं. इसलिए उनके पास एक भी स्टार नेता नहीं है. इस मामले में वह सपा से भी फिसड्डी हैं.
मायावती के भक्तों को यह बात बुरी लग सकती है, पर मैं जरूर कहूँगा कि अगर उन्होंने नयी लीडरशिप पैदा नहीं की, वर्गीय बहुजन राजनीति का माडल खड़ा नहीं किया और देश के प्रखर बहुजन बुद्धिजीवियों और आन्दोलन से जुड़े लोगों से संवाद कायम करके उनको अपने साथ नहीं लिया, तो वे 11 मार्च 2017 की तारीख को बसपा के अंत के रूप में अपनी डायरी में दर्ज कर लें.
(11 मार्च 2017)
https://www.facebook.com/kanwal.bharti/posts/10202653799143390
ईवीएम मैनैज कर चुनाव में धांधली हुई ------ मायावती, पूर्व मुख्यमंत्री
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
http://www.rediff.com/news/report/up-election-alleging-evm-tampering-mayawati-calls-for-fresh-polls/20170311.htm
http://www.nationaldastak.com/story/view/opinion-on-up-election-result
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी ने स्पष्ट कहा है कि, EVM मशीनों को मैनैज किया गया है और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को यू पी में बहुमत दिलवाया गया है। जैसी की उम्मीद थी चुनाव आयोग ने इन आरोपों को गलत बताया है। चुनावों में पीठासीन अधिकारी रहे लोगों ने EVM मशीनों से छेड़ - छाड़ किए जाने से इंकार किया है। अति जोशीले लोग मायावती जी के ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहे हैं।
1991 सांप्रदायिक दंगों मे जिस प्रकार सरकारी मशीनरी ने एक सांप्रदायिकता का पक्ष लिया है उससे अब संघ की दक्षिण पंथी असैनिक तानाशाही स्थापित होने का भय व्याप्त हो गया है। 1977 के सूचना व प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी ने आकाशवाणी व दूर दर्शन मे संघ की कैसी घुसपैठ की है उसका हृदय विदारक उल्लेख सांसद पत्रकार संतोष भारतीय ने वी पी सरकार के पतन के संदर्भ मे किया है। आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया उस घटना को भुला दिया गया है।
आगरा पूर्वी ( वर्तमान उत्तरी ) विधान सभा क्षेत्र मे 1985 में मतगणना क्लर्क कालरा ने हाथ का पंजा मोहर लगे मत पत्रों को ऊपर व नीचे गड्डी में कमल मोहर लगे मत पत्रों के बीच छिपा कर गणना करके भाजपा प्रत्याशी सत्यप्रकाश विकल को विजयी घोषित करवा दिया था। पराजित कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चंद्र गुप्ता ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने अपनी निगरानी में पुनः मत गणना करवाई और गलती पकड़ने पर भाजपा के सत्य प्रकाश विकल का चुनाव रद्द करके कांग्रेस के सतीश चंद्र गुप्ता को विजयी घोषित कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों में बनारस में EVM हेरा फेरी का मामला प्रकाश में आया था किन्तु भाजपा के केंद्र में सरकार बना लेने के बाद मामला दब गया था। अतः सभी राजनीतिक दलों को मायावती जी का सहयोग व समर्थन करना चाहिए।
लेकिन यह भी बिलकुल सच है कि, कांशीराम - मुलायम समझौते के बाद सत्तारूढ़ 'सपा - बसपा गठबंधन' की सरकार को मायावती जी ने भाजपा के सहयोग से तोड़ कर और भाजपा के ही समर्थन से खुद मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया था। दो बार और भाजपा के ही समर्थन से सरकार बनाई थी तथा गुजरात चुनावों में मोदी के लिए अटल जी के साथ चुनाव प्रचार भी किया था। भाजपा की नीति व नीयत साफ थी कि, मायावती जी के जरिये मुलायम सिंह जी व सपा को खत्म कर दिया जाये और बाद में मायावती जी व बसपा को यह सब जानते हुये भी मायावती जी भाजपा की सहयोगी रहीं थीं। यदि वह 'सपा - बसपा गठबंधन' मायावती जी ने भाजपा के फायदे के लिए न तोड़ा होता तो आज 2017 में भाजपा द्वारा न तो सपा को और न ही बसपा को हानी पहुंचाने का अवसर मिलता वह केंद्र की सत्ता तक पहुँच ही न पाती।
http://www.rediff.com/news/report/up-election-alleging-evm-tampering-mayawati-calls-for-fresh-polls/20170311.htm
http://www.nationaldastak.com/story/view/opinion-on-up-election-result
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी ने स्पष्ट कहा है कि, EVM मशीनों को मैनैज किया गया है और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को यू पी में बहुमत दिलवाया गया है। जैसी की उम्मीद थी चुनाव आयोग ने इन आरोपों को गलत बताया है। चुनावों में पीठासीन अधिकारी रहे लोगों ने EVM मशीनों से छेड़ - छाड़ किए जाने से इंकार किया है। अति जोशीले लोग मायावती जी के ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहे हैं।
1991 सांप्रदायिक दंगों मे जिस प्रकार सरकारी मशीनरी ने एक सांप्रदायिकता का पक्ष लिया है उससे अब संघ की दक्षिण पंथी असैनिक तानाशाही स्थापित होने का भय व्याप्त हो गया है। 1977 के सूचना व प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी ने आकाशवाणी व दूर दर्शन मे संघ की कैसी घुसपैठ की है उसका हृदय विदारक उल्लेख सांसद पत्रकार संतोष भारतीय ने वी पी सरकार के पतन के संदर्भ मे किया है। आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया उस घटना को भुला दिया गया है।
आगरा पूर्वी ( वर्तमान उत्तरी ) विधान सभा क्षेत्र मे 1985 में मतगणना क्लर्क कालरा ने हाथ का पंजा मोहर लगे मत पत्रों को ऊपर व नीचे गड्डी में कमल मोहर लगे मत पत्रों के बीच छिपा कर गणना करके भाजपा प्रत्याशी सत्यप्रकाश विकल को विजयी घोषित करवा दिया था। पराजित कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चंद्र गुप्ता ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने अपनी निगरानी में पुनः मत गणना करवाई और गलती पकड़ने पर भाजपा के सत्य प्रकाश विकल का चुनाव रद्द करके कांग्रेस के सतीश चंद्र गुप्ता को विजयी घोषित कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों में बनारस में EVM हेरा फेरी का मामला प्रकाश में आया था किन्तु भाजपा के केंद्र में सरकार बना लेने के बाद मामला दब गया था। अतः सभी राजनीतिक दलों को मायावती जी का सहयोग व समर्थन करना चाहिए।
लेकिन यह भी बिलकुल सच है कि, कांशीराम - मुलायम समझौते के बाद सत्तारूढ़ 'सपा - बसपा गठबंधन' की सरकार को मायावती जी ने भाजपा के सहयोग से तोड़ कर और भाजपा के ही समर्थन से खुद मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया था। दो बार और भाजपा के ही समर्थन से सरकार बनाई थी तथा गुजरात चुनावों में मोदी के लिए अटल जी के साथ चुनाव प्रचार भी किया था। भाजपा की नीति व नीयत साफ थी कि, मायावती जी के जरिये मुलायम सिंह जी व सपा को खत्म कर दिया जाये और बाद में मायावती जी व बसपा को यह सब जानते हुये भी मायावती जी भाजपा की सहयोगी रहीं थीं। यदि वह 'सपा - बसपा गठबंधन' मायावती जी ने भाजपा के फायदे के लिए न तोड़ा होता तो आज 2017 में भाजपा द्वारा न तो सपा को और न ही बसपा को हानी पहुंचाने का अवसर मिलता वह केंद्र की सत्ता तक पहुँच ही न पाती।
Saturday, 11 March 2017
एवीएम में गड़बड़ी दब गयी और भाजपा जीत गई ------ डॉ. मनीषा बांगर
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
उत्तर प्रदेश में चुनाव और ईवीएम की गड़बड़ी
Created By : डॉ. मनीषा बांगर Date : 2017-03-11 Time : 16:07:13 PM
उत्तर प्रदेश में चुनाव और ईवीएम की गड़बड़ी
एवीएम मशीन में गड़बड़ी पहले भी साबित हुई थी और इस चुनाव में भी हुआ| पहले भी कुछ लोगों ने हारने से अद्लातों में EVM मशीन में गड़बड़ी की शिकायत की थी और वे सफल भी हुए| राजनितिक पार्टियों ने कोई रूचि नहीं दिखाई| पिचाले पांच वर्षों में सुरक्षित चुनाव क्षेत्रों से चुनकर आने वाले 84 विधायकों ने उत्तर प्रदेश में कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं किया|
सपा की बेवकूफी का फायदा लेना चाहते थे बीएसपी के लोग| कांग्रेस ने सत्ता भाजपा को सौंपने के बाद सिर्फ दिखावे के लडती है| ये तीनो कारण – एवीएम मशीन की गड़बड़ी पर चुप्पी, विधान सभा में प्रतिनिधित्व नहीं करना, सपा की नाकामियों के बदले मुफ्त में जनता से वोट लेना – ने बौद्धिक गुलामी और कर्म-विहीनता की हदे पार कर दी हैं | मनुवाद विजयी हो गया और हम उसे गलियां देते रहे।
नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई, उत्पीडन, गरीबी, भ्रष्टाचार, आदि से बुद्धिजीवी और मुर्ख दोनों परेशान हैं और अपनी परेशानी को दूर करने का जो रास्ता चुना वह उत्तर प्रदेश के चुनाव में दिख गया| मानिये या मत मानिये लेकिन सच यह यह है कि मनुवाद ने हमें जकड़ लिया है और हम जिस मूर्खता के साथ अपने राजनितिक प्रतिनिधित्व का जिम्मा देते हैं उसका परिणाम हमारे सामने है| डॉ. आम्बेडकर ने हमें शिक्षित होने के लिए कहा था और हमारी राजनितिक शिक्षा का परिणाम 2014 और 2017 के चुनाव में दिख गया|
मैं सभी लोगों से निवेदन करती हूँ गुलामी से बहार निकलने के लिए जो रास्ता चुना है उसपर पुनर्विचार करें| समय, समाज और विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है और हम पीछे जा रहे हैं| दोष मूर्खों का नहीं है बल्कि उनका है जो बुद्धिमान और नेता हैं| समाज के बुद्धिमान और नेता अगर पुनर्विचार करें और अपनी गलतियों को सुधार लें तो मामला संभल सकता है |
इस कदम में बजट और आर्थिक विकास के मुद्दे पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अंतर्गत चुने हुए जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाना और उसका समाधान निकलना| अगर संविधान की इस गरिमा का हमने सम्मान नहीं किया तो वह सब कुछ होगा जो पहले कभी नहीं हुआ और हम उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार में अभी तक जो हुआ है उससे आंकलन लगा सकते हैं – सरकारी नौकरी गयी, बजट में आबंटित पैसा गया, साधन-संपत्ति में हिस्सा गया, अदालतों के निर्णय का सम्मान गया, लोक सभा और विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व गया, शिक्षा और स्वास्थ्य के निजीकरण में हमारी शिक्षा और स्वास्थ्य गया |
मीडिया ने पिछले दिनों मनुवाद के पक्ष में जो हवा बनाई उसके बाद एवीएम में गड़बड़ी दब गयी और भाजपा जीत गई | वही कहानी दोबारा हुई और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे |
साभार :
http://www.nationaldastak.com/story/view/opinion-on-up-election-result
हालांकि अब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर और बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने भी EVM मशीनों से छेड़ - छाड़ की संभावना व्यक्त की है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बनारस में ऐसी ही कारवाई का ज़िक्र खूब हुआ था किन्तु केंद्र में भाजपा की सरकार बन जाने से हुआ कुछ भी नहीं। अब भी इन संभावनाओं और आरोपों पर कुछ भी नहीं होने जा रहा है।
वस्तुतः ऐसी छेड़ - छाड़ हुई अथवा नहीं प्रामाणिक रूप से सिद्ध किया जाना मुश्किल ही है। परंतु यह तो तय है कि, अखिलेश जी ने जो लेपटाप छात्रों को पढ़ने के लिए दिये थे वे गरीब छात्रों ने बेच दिये थे जिनको भाजपा के लोगों ने खरीद लिया था और उनके जरिये सोशल मीडिया पर सपा व अखिलेश जी के ही विरुद्ध धुआ धार प्रचार किया गया था। उनकी सरकार ने जिन कारपोरेट कंपनियों में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलवाया था उन युवाओं का प्रयोग कारपोरेट कंपनियों ने भाजपा के प्रचार मे जम कर किया था।
वैसे मायावती जी के आरोप की पुष्टि नेशनल दस्तक के इस वीडियो के जरिये तो होती है। लेकिन क्या चुनाव आयोग और अदालतें इसे मानेंगी?
(विजय राजबली माथुर )
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1361124220616217
उत्तर प्रदेश में चुनाव और ईवीएम की गड़बड़ी
Created By : डॉ. मनीषा बांगर Date : 2017-03-11 Time : 16:07:13 PM
उत्तर प्रदेश में चुनाव और ईवीएम की गड़बड़ी
एवीएम मशीन में गड़बड़ी पहले भी साबित हुई थी और इस चुनाव में भी हुआ| पहले भी कुछ लोगों ने हारने से अद्लातों में EVM मशीन में गड़बड़ी की शिकायत की थी और वे सफल भी हुए| राजनितिक पार्टियों ने कोई रूचि नहीं दिखाई| पिचाले पांच वर्षों में सुरक्षित चुनाव क्षेत्रों से चुनकर आने वाले 84 विधायकों ने उत्तर प्रदेश में कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं किया|
सपा की बेवकूफी का फायदा लेना चाहते थे बीएसपी के लोग| कांग्रेस ने सत्ता भाजपा को सौंपने के बाद सिर्फ दिखावे के लडती है| ये तीनो कारण – एवीएम मशीन की गड़बड़ी पर चुप्पी, विधान सभा में प्रतिनिधित्व नहीं करना, सपा की नाकामियों के बदले मुफ्त में जनता से वोट लेना – ने बौद्धिक गुलामी और कर्म-विहीनता की हदे पार कर दी हैं | मनुवाद विजयी हो गया और हम उसे गलियां देते रहे।
नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई, उत्पीडन, गरीबी, भ्रष्टाचार, आदि से बुद्धिजीवी और मुर्ख दोनों परेशान हैं और अपनी परेशानी को दूर करने का जो रास्ता चुना वह उत्तर प्रदेश के चुनाव में दिख गया| मानिये या मत मानिये लेकिन सच यह यह है कि मनुवाद ने हमें जकड़ लिया है और हम जिस मूर्खता के साथ अपने राजनितिक प्रतिनिधित्व का जिम्मा देते हैं उसका परिणाम हमारे सामने है| डॉ. आम्बेडकर ने हमें शिक्षित होने के लिए कहा था और हमारी राजनितिक शिक्षा का परिणाम 2014 और 2017 के चुनाव में दिख गया|
मैं सभी लोगों से निवेदन करती हूँ गुलामी से बहार निकलने के लिए जो रास्ता चुना है उसपर पुनर्विचार करें| समय, समाज और विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है और हम पीछे जा रहे हैं| दोष मूर्खों का नहीं है बल्कि उनका है जो बुद्धिमान और नेता हैं| समाज के बुद्धिमान और नेता अगर पुनर्विचार करें और अपनी गलतियों को सुधार लें तो मामला संभल सकता है |
इस कदम में बजट और आर्थिक विकास के मुद्दे पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अंतर्गत चुने हुए जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाना और उसका समाधान निकलना| अगर संविधान की इस गरिमा का हमने सम्मान नहीं किया तो वह सब कुछ होगा जो पहले कभी नहीं हुआ और हम उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार में अभी तक जो हुआ है उससे आंकलन लगा सकते हैं – सरकारी नौकरी गयी, बजट में आबंटित पैसा गया, साधन-संपत्ति में हिस्सा गया, अदालतों के निर्णय का सम्मान गया, लोक सभा और विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व गया, शिक्षा और स्वास्थ्य के निजीकरण में हमारी शिक्षा और स्वास्थ्य गया |
मीडिया ने पिछले दिनों मनुवाद के पक्ष में जो हवा बनाई उसके बाद एवीएम में गड़बड़ी दब गयी और भाजपा जीत गई | वही कहानी दोबारा हुई और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे |
साभार :
http://www.nationaldastak.com/story/view/opinion-on-up-election-result
हालांकि अब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर और बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने भी EVM मशीनों से छेड़ - छाड़ की संभावना व्यक्त की है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बनारस में ऐसी ही कारवाई का ज़िक्र खूब हुआ था किन्तु केंद्र में भाजपा की सरकार बन जाने से हुआ कुछ भी नहीं। अब भी इन संभावनाओं और आरोपों पर कुछ भी नहीं होने जा रहा है।
वस्तुतः ऐसी छेड़ - छाड़ हुई अथवा नहीं प्रामाणिक रूप से सिद्ध किया जाना मुश्किल ही है। परंतु यह तो तय है कि, अखिलेश जी ने जो लेपटाप छात्रों को पढ़ने के लिए दिये थे वे गरीब छात्रों ने बेच दिये थे जिनको भाजपा के लोगों ने खरीद लिया था और उनके जरिये सोशल मीडिया पर सपा व अखिलेश जी के ही विरुद्ध धुआ धार प्रचार किया गया था। उनकी सरकार ने जिन कारपोरेट कंपनियों में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलवाया था उन युवाओं का प्रयोग कारपोरेट कंपनियों ने भाजपा के प्रचार मे जम कर किया था।
वैसे मायावती जी के आरोप की पुष्टि नेशनल दस्तक के इस वीडियो के जरिये तो होती है। लेकिन क्या चुनाव आयोग और अदालतें इसे मानेंगी?
(विजय राजबली माथुर )
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1361124220616217
Wednesday, 8 March 2017
Wednesday, 1 March 2017
'इज्जत' के झूठे दिलासे दरअसल गुलामी की जंजीरें हैं... ------ Bindu Bikash Ojha
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यह दिल्ली में रहने वाले एक परिवार की लड़की का दर्द है...। इस परिवार के दिमाग पर टीवी है, और टीवी में एबीवीपी का आतंक है... उसकी गुंडागर्दी है... थोड़ा बोलने वाली लड़की को दी जाने वाली बलात्कार की धमकी है... बाल पकड़ कर घसीटी जाती लड़कियां हैं... लड़कियों को अपने पैंट खोल कर यौनांग दिखाते स्टूडेंट्स के नाम पर कुछ गुंडे-लुच्चे-लफंगे हैं... और इन सबके बीच अपनी बेटी की फिक्र है...।
इस फिक्र में पता नहीं कितने-कितने पहलू छिपे हैं..। यह फिक्र है कि सत्ता है... यह लड़की के आखिरी हश्र पर तय होगा...।
जेएनयू में चारों तरफ कंडोम बिखरे पड़े हैं... डीयू में लड़कियों को बलात्कार की धमकी है... सभी कॉलेज में लड़़कियों के 'चरित्र' पर... 'इज्जत' पर आंच है... इसलिए लड़कियों को कॉलेज में नहीं जाना चाहिए...। परिवार की औकात है तो पांच-दस लाख खर्च करके प्राइवेट कॉलेजों में जाइए या फिर बकौल मोहन भागवत तसल्ली से रसोई के काम में कारीगरी हासिल कीजिए...।
इस आईने में दिल्ली से बाहर के राज्यों, जिलों, कस्बों में मौजूद परिवारों के बारे में सोचिए कि वहां बजरिए टीवी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को लेकर कौन-सी छवि बन रही होगी... और उन घरों की दहलीज से निकल कर कॉलेज के जरिए नए सपने देखना लड़कियों के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा..।
तो क्या एजेंडा यही है कि पिछले बीस-तीस सालों के दौरान लड़कियों ने... और दलित-वंचित जातियों के बच्चों ने कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के जरिए जो थोड़ा सिर उठा कर चलने के सपने देखना शुरू किया था, उन्हें वापस अपनी हैसियत पर लौटा देना है...?
नहीं लड़की... बदनामी अगर बदनामी ही है... तो इस बदनामी की कोई भी जोखिम उठा लेना... लेकिन घर की दहलीज के भीतर मत लौटना...। चारदिवारियों में कैद 'इज्जत' के झूठे दिलासे दरअसल गुलामी की जंजीरें हैं... जो जिंदगी के... जीने के हर ख्वाब छीन लेती हैं...।
https://www.facebook.com/bindubikash.ojah/posts/790366574445726?comment_id=790499701099080&comment_tracking=%7B%22tn%22%3A%22R2%22%7D
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Bindu Bikash Ojha
आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की ने कहा- 'घर वाले कहते हैं कि अब कॉलेज-वॉलेज छोड़ो... वे अपनी पसंदीदा टीवी चैनल [पर पसरे आतंक और हंगामे को] देख कर यह फरमान सुनाते हैं..।' इसके आगे शायद उसकी आवाज घुट कर रह गई..। वह शायद यह कहना चाहती थी कि कितनी-कितनी जद्दोजहद के बाद घर की चारदिवारी के बाहर निकल सकने और कॉलेज के जरिए अपना आसमान तलाशने का... अपने भरोसे खड़ा हो सकने का... अपनी तरह से जीने की उम्मीद पालने का मौका मिल सका है... अब शायद वह छिन जाएगा..।यह दिल्ली में रहने वाले एक परिवार की लड़की का दर्द है...। इस परिवार के दिमाग पर टीवी है, और टीवी में एबीवीपी का आतंक है... उसकी गुंडागर्दी है... थोड़ा बोलने वाली लड़की को दी जाने वाली बलात्कार की धमकी है... बाल पकड़ कर घसीटी जाती लड़कियां हैं... लड़कियों को अपने पैंट खोल कर यौनांग दिखाते स्टूडेंट्स के नाम पर कुछ गुंडे-लुच्चे-लफंगे हैं... और इन सबके बीच अपनी बेटी की फिक्र है...।
इस फिक्र में पता नहीं कितने-कितने पहलू छिपे हैं..। यह फिक्र है कि सत्ता है... यह लड़की के आखिरी हश्र पर तय होगा...।
जेएनयू में चारों तरफ कंडोम बिखरे पड़े हैं... डीयू में लड़कियों को बलात्कार की धमकी है... सभी कॉलेज में लड़़कियों के 'चरित्र' पर... 'इज्जत' पर आंच है... इसलिए लड़कियों को कॉलेज में नहीं जाना चाहिए...। परिवार की औकात है तो पांच-दस लाख खर्च करके प्राइवेट कॉलेजों में जाइए या फिर बकौल मोहन भागवत तसल्ली से रसोई के काम में कारीगरी हासिल कीजिए...।
इस आईने में दिल्ली से बाहर के राज्यों, जिलों, कस्बों में मौजूद परिवारों के बारे में सोचिए कि वहां बजरिए टीवी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को लेकर कौन-सी छवि बन रही होगी... और उन घरों की दहलीज से निकल कर कॉलेज के जरिए नए सपने देखना लड़कियों के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा..।
तो क्या एजेंडा यही है कि पिछले बीस-तीस सालों के दौरान लड़कियों ने... और दलित-वंचित जातियों के बच्चों ने कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के जरिए जो थोड़ा सिर उठा कर चलने के सपने देखना शुरू किया था, उन्हें वापस अपनी हैसियत पर लौटा देना है...?
नहीं लड़की... बदनामी अगर बदनामी ही है... तो इस बदनामी की कोई भी जोखिम उठा लेना... लेकिन घर की दहलीज के भीतर मत लौटना...। चारदिवारियों में कैद 'इज्जत' के झूठे दिलासे दरअसल गुलामी की जंजीरें हैं... जो जिंदगी के... जीने के हर ख्वाब छीन लेती हैं...।
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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