Thursday, 8 October 2015

कथा सम्राट प्रेमचंद के संबंध में डॉ रामविलास शर्मा ने क्या कहा ?

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10 अक्तूबर को जन्में  विचारक-आलोचक डॉ राम विलास शर्मा जी ने कथा सम्राट प्रेमचंद जी के संबंध में जो विचार व्यक्त किए वे 08 अक्तूबर प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर इस स्कैन कापी के माध्यम से प्रस्तुत हैं। 

प्रेमचंद जी गांधीवाद से साम्यवाद की ओर अग्रसर हुये थे जबकि डॉ रामविलास शर्मा जी साम्यवादी चिंतक व विचारक ही नहीं थे वरन सेंट जोन्स कालेज , आगरा  के अध्यापक व भाकपा के सक्रिय सदस्य भी थे। लेकिन सुंदर होटल, राजा-की-मंडी स्थित भाकपा  कार्यालय में उनके विचारों का विरोध व्यक्त करने के लिए उनके ऊपर साईकिल की चेन से घातक प्रहार किए गए थे। उन हमलावरों में से एक  लगातार 9-9 वर्षों  तक दो बार जिलामंत्री रहे और दूसरे 3 वर्षों तक। डॉ रामविलास शर्मा को अपनी ज़िंदगी बचाने हेतु आगरा छोड़ कर दिल्ली में बसना पड़ा था। 

यह विडम्बना ही है कि आंतरिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को कुचलने वालों को सम्मानित करने वाली पार्टी को आज फासिस्ट सरकार के विरुद्ध अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के संघर्ष में साथ देना पड़ रहा है क्योंकि उसके अपने एक शीर्ष नेता कामरेड गोविंद पानसारे की हत्या फासिस्ट शक्तियों द्वारा की जा चुकी है। लेकिन उनके स्थान पर एक शीर्ष समिति में जिनको लिया गया है वह अश्लीलता व बाजारवाद के प्रबल समर्थक हैं जिनका दृष्टिकोण है कि, ओ बी सी व दलित वर्ग से आए कामरेड्स से सिर्फ काम लो लेकिन उनको कोई पद न दो इसी आधार पर उत्तर प्रदेश में वह दो-दो बार पार्टी को विभाजित भी करा चुके हैं। एक राष्ट्रीय सचिव के विरुद्ध दो-दो बार पार्टी छोडने की अफवाहें उड़वा चुके हैं । मीडिया में उनका सहायक पुत्र मुलायम सिंह जी से घनिष्ठ रूप से संबन्धित है (निम्न चित्र से स्पष्ट है )जो उनके इशारे पर वरिष्ठ पार्टी कामरेड्स के विरुद्ध जब-तब ऐसे कार्य  आसानी से सम्पन्न करवा देता है और किसी के विरुद्ध मुलायम जी के कान भी भर देता है। 


***ऐसा सिर्फ एक ही साम्यवादी दल में ही नहीं वरन प्रत्येक साम्यवादी दल या सम्पूर्ण वामपंथ में है कि उसका नेतृत्व 'ब्राह्मण' जाति में जन्में या 'ब्राह्मण वादियों' के हाथों में है। युवा कामरेड्स में इसके प्रति असंतोष भी है जिसका प्रमाण प्रस्तुत दो फोटो कापियों से मिल जाएगा। 
https://www.facebook.com/ashishkumaranshu/posts/10156310439200157?fref=nf&pnref=story&__mref=message


युद्ध एक कला भी है और विज्ञान भी। जब फासिस्ट /सांप्रदायिक/साम्राज्यवादी शक्तियों से लड़ना है तब उनका मुक़ाबला न करके अपनी ही पार्टी में घमासान  मचा देने का साफ मतलब यह है कि शत्रु को मजबूती प्रदान की जाये। शत्रु को  शक्ति  देने वाला व्यक्ति या संगठन शत्रु-कृपा से अपना अस्तित्व तो बचाए रख सकता है किन्तु विचार धारा नहीं। यही दुर्भाग्य साम्यवादी/वामपंथी खेमे को ग्रसित किए हुये है जिससे निकल कर ही प्रेमचंद जी एवं डॉ रामविलास शर्मा जी के दृष्टिकोण व चिंतन को मूर्त रूप प्रदान करते हुये अपने संगठन व विचार धारा को आज मजबूत किए जाने  व युवा वर्ग को आकर्षित किए जाने की महती आवश्यकता है। 
(विजय  राजबली माथुर)

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