Friday, 3 April 2015

युवाओं को कोसने वाले क्या जवाब देंगे? शासन-प्रशासन को शर्म आएगी क्या?

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 31 March 2015

'ट्रेजेडी क्वीन':मीना कुमारी --- ध्रुव गुप्त/ संजोग वाल्टर

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 मीना कुमारी जी की 44 वीं पुण्य तिथि पर उनका लिखा और उनका ही गाया यह गीत सुनें :

 




 अज़ीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म !:
 'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हिंदी / उर्दू सिनेमा की भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं परदे पर अपने लाज़वाब अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन के दर्द को रूपहले परदे पर साकार करते-करते कब वह ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी न चला होगा। भूमिकाओं में विविधता के अभाव के बावज़ूद उनकी खास अभिनय-शैली और मोहक आवाज़ का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।1939 में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने बेबी मीना के नाम से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया था। नायिका के रूप में 1949 में बनी 'वीर घटोत्कच' उनकी पहली फिल्म थी, लेकिन उन्हें मक़बूलियत हासिल हुई विमल राय की फिल्म 'परिणीता से।1972 की 'गोमती के किनारे' उनकी आखिरी फिल्म थी। 33 साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ कालजयी फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सागर, बहू बेगम, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, आरती, चित्रलेखा, साहब बीवी गुलाम, सांझ और सवेरा, मंझली दीदी, भींगी रात, नूरज़हां, काजल, फूल और पत्थर, पाकीज़ा और मेरे अपने। मीना कुमारी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ अपने असफल दाम्पत्य और तब के संघर्षशील अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ अपने अधूरे प्रेम संबंध की वज़ह से भी चर्चा में रहीं। उनकी बेपनाह भावुकता ने उन्हें नशे की दुनिया में भटकाया, लेकिन उनकी शायरी ने उन्हें मुक्ति भी दी।
 मीना कुमारी की पुण्यतिथि पर उन्हें खिराज़े अकीदत उन्ही की एक नायाब नज़्म के साथ ! 
 सुबह से शाम तलक दूसरों के लिए कुछ करना है
 जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
 रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
 ज़िन्दगी क्या है कभी सोचने लगता है 
यह ज़हन और फिर रूह पे छा जाते हैं 
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
 दिल में रह रहके ख़्याल आता है 
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
 प्यार इक ख़्वाब था इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ !
 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=837061809703752&set=a.379477305462207.89966.100001998223696&type=1&theater

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Meena Kumari ( 1 August 1932 – 31 March 1972), born Mahjabeen Bano was an movie actress and poet. She is regarded as one of the most prominent actresses to have appeared on the screens of Hindi Cinema. During a career spanning 30 years from her childhood to her death, she starred in more than ninety films, many of which have achieved classic and cult status today. With her contemporaries Nargis and Madhubala she is regarded as one of the most influential Hindi movie actresses of all time.
Kumari gained a reputation for playing grief-stricken and tragic roles, and her performances have been praised and reminisced throughout the years. Like one of her best-known roles, Chhoti Bahu, in Sahib Bibi Aur Ghulam (1962), Kumari became addicted to alcohol. Her life and prosperous career were marred by heavy drinking, troubled relationships, an ensuing deteriorating health, and her death from liver cirrhosis in 1972.
Kumari is often cited by media and literary sources as "The Tragedy Queen", both for her frequent portrayal of sorrowful and dramatic roles in her films and her real-life story.

Friday, 27 March 2015

इस ऑडिटोरियम के बिना अधूरी रहेगी थिएटर की कहानी....रंगमंच हमारी जिद है

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 23 March 2015

भगत सिंह: एक संक्षिप्त परिचय --- K K Bora Comrade

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 भगत सिंह: एक संक्षिप्त परिचय :
 भगत सिंह पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बहुत असर पड़ा था भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में चक नंबर 105(अब पाकिस्तान में) नामक जगह पर हुआ था. हालांकि उनका पैतृक निवास आज भी भारतीय पंजाब के नवांशहर ज़िले के खट्करकलाँ गाँव में स्थित है. उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था. यह एक सिख परिवार था . दादा गदरी आन्दोलन से जुड़े थे चाचा निर्वासित हो के आजादी आन्दोलन में रहे पिता समेत सभी लोग आजादी की लड़ाई में कई मर्तबा जेल काट चुके थे . अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था. लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए थे. रूस की मजदूर वर्ग क्रांति से प्रभावित हो भगत सिंह ने शोषण विहीन समाज के रूप में भारतीय आजादी की लड़ाई का लक्ष्य रखा. 1930 में उन्होंने अपने संघटन का एक प्रतिनिधि सोवियत संघ में भेजा और क्रांति के लिए लेनिन के विचारो को जरुरी बताया भगत सिंह के लेख नोजवानो के नाम सन्देश में भगत सिंह ने नोजवानो से कम्युनिस्ट पार्टी को तैयार करने को कहा भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था. भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था. इस कार्रवाई में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने भी उनकी सहायता की थी.   भगत सिंह ने नई दिल्ली की केंद्रीय एसेंबली में बम फेंका था. क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने नई दिल्ली की सेंट्रल एसेंबली के सभागार में 8 अप्रैल, 1929 को 'अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए' बम और पर्चे फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी. भगत सिंह पर ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का आरोप लगा और उन पर लाहौर षड़यंत्र के तहत मामला बनाया गया. लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी की सज़ा सुनाई गई जबकि बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया. भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे फाँसी पर लटका दिया गया. इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था. भगत सिंह ने क्रांतिकारी आंदोलन को ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा दिया था.
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Madhuvandutt Chaturvedi :·
  "भगत सिंह से यह मेरी पहली मुलाकात थी। मैं जतीन्द्र नाथ दास बगैरहा से भी मिला । भगत सिंह का चेहरा आकर्षक था और उससे बुद्धिमत्ता टपकती थी । वह निहायत शांत और गंभीर था । उसमें गुस्सा नहीं दिखाई देता था । उसकी दृष्टि और बातचीत में बड़ी सुजनता थी ।" - जवाहर लाल नेहरू ( लाहौर सडयंत्र केस के कैदियों की भूख हड़ताल के एक महीने पूरे होने पर लाहौर जेल में नेहरू उनसे मिले थे । उल्लेखनीय है कि भूख हड़ताल के 61 वे दिन जतिन्द्र नाथ दास शहीद हो गए थे जिनकी शहादत पर नेहरू ने लिखा,'मृत्यु से सारे देश में सनसनी फ़ैल गयी थी ।' )



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 17 March 2015

पूंजी के बनावटी रिश्ते को अमान्य करना जायज ---सत्य नारायण त्रिपाठी

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Tuesday, 10 March 2015

गांधी जी पर लांछन क्यों? --- विजय राजबली माथुर

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http://vijai-vidrohi.blogspot.in/2015/03/gandhi-british-agent-markandey-katju.html 

https://www.facebook.com/justicekatju/posts/933487810025099 
 हालांकि जस्टिस काटजू का यह कहना कि गांधी जी ने 'क्रांतिकारी आंदोलन' की धार कुन्द कर दी और अधिकांश क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई तो सही है परंतु 'भारत-विभाजन' के लिए उनको उत्तरदाई ठहराना उनके साथ अन्याय होगा एवं अप्रत्यक्ष रूप से RSS/भाजपा के गलत विचारों को प्रोत्साहन देना भी  । 1857 की प्रथम क्रान्ति का हश्र गांधी जी के समक्ष था कि किस प्रकार पारस्परिक फूट से उसे विफल किया गया था अतः 'अहिंसा और सत्याग्रह' का मार्ग अपनाना उनकी एक रणनीतिक सफलता थी । विभाजन तो अमेरिकी राष्ट्रपति आईजेन हावर की दुर्नीति के कारण सामने आया था जिसे कमजोर होते जा रहे ब्रिटिश साम्राज्य को भी मानना ज़रूरी हो गया था। 
 यह एक सुनिश्चित ब्राह्मणवादी विचार धारा है कि भारत के प्रतीक महा पुरुषों को बुरी तरह बदनाम कर के जनता को दिग्भ्रमित किया जाये। इसी कारण पौराणिक ग्रन्थों के जरिये 'राम' और 'कृष्ण' के चरित्रों पर लांछन लगाए गए दूसरी ओर उनको अलौकिक घोषित करके उनकी पूजा शुरू करा दी गई जिसके जरिये ब्राह्मणों को रोजगार मिल गया। शेष जनता उनके क्रांतिकारी विचारों से अनभिज्ञ होने के कारण लाभ न उठा सकी। आधुनिक युग में एक बार फिर गैर ब्राह्मण महा पुरुषों पर लांछन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है जिससे उन लोगों को लाभ पहुंचाया जा सके जो साम्राज्यवाद के पिट्ठू रहे हैं और इसी लिए त्याग,बलिदान करने वाले महा पुरुषों पर ये कीचड़ उछाले जा रहे हैं।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=846099345452043&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater
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जस्टिस काटजू जातिवाद पर चल कर गैर ब्राह्मण महा पुरुषों पर लांछन लगा रहे हैं। अब नेहरू जी को भी गांधी जी के विरुद्ध घसीट लिया है। महात्मा गांधी जी के साथ-साथ नेताजी सुभाष बोस को भी विदेशी एजेंट घोषित करके जस्टिस काटजू RSS के इतिहास पुनरलेखन का कार्य संपादित कर रहे हैं।

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Sunday, 22 February 2015

Stormtroopers of Kejriwal ---Markandey Katju

AAP workers should be made Special Officers


It seems to me that the biggest problem for Kejriwal now is not how to solve the problems of Delhi but how to control the hundreds of thousands of unruly white capped AAP workers, who are spread all over Delhi, and who all now claim to be its kings. Like the hundreds of thousands of stormtroopers ( S.A.) who helped Hitler come to power in January 1933, and then demanded their pound of flesh, the AAP stormtroopers will naturally demand the same, in some form or the other.
Hitler of course solved the problem by bumping of Ernst Roehm and the other top leadership of the S.A. in the ' Night of the Long Knives ', but poor Kejriwal can hardly do the same.
Most of the lumpen elements in Delhi ( and there are hundreds of thousands of them ) now seem to have joined AAP. They shift their loyalties quickly to whichever party comes to power.
In this situation I have a suggestion to make to Kejriwal : he should appoint all AAP workers as Honorary Special officers of Delhi.
These ' Special Officers ' need not be paid anything by the government. But they should be given the power to realize from the people of Delhi as much as they require, by whatever means they think best.

Wednesday, 18 February 2015

Nalini Jaywant (18 February 1926– 20 December 2010) ---Sanjog Waltar

Nalini Jaywant (18 February 1926– 20 December 2010) was an movie actress from Bollywood in the 1940s and 1950s.Jaywant was born in Mumbai (then Bombay) in 1926. She was first cousin of actress Shobhna Samarth, the mother of actresses Nutan and Tanuja.Since 1983, she had been living mostly a reclusive life.
She was married to director Virendra Desai in the 1940s. Later, she married her second husband, actor Prabhu Dayal, with whom she acted in several movies.
Nalini Jaywant died on 20 December 2010, aged 84, at her bungalow of 60 years at Union Park,Chembur, Mumbai.Mystery surrounds the 'death' of yesteryear actress Nalini Jaywant who passed away three days ago (2010) in tragically lonely circumstances at her bungalow in Chembur. Her relatives and those she had once worked with in the film industry were all unaware of the passing of the star who scaled the heights of fame in the 1940s and '50s but had turned into a complete recluse for the last many years. The house is locked and in complete darkness for the past three days, the servants have gone, and Naliniji's pet dogs are on the streets. We neighbours have been taking care of them."n her teens, appeared in Mehboob Khan's Bahen (1941),a film about a brother's obsessive love for his sister. The movie had strong shades of incest. She performed in a few more movies before filming Anokha Pyaar (1948). In 1950, she garnered fame when she became a top star with her performances opposite Ashok Kumar in Samadhi and Sangram. Samadhi was a patriotic drama concerning Subash Chandra Bose and the Indian National Army.Although the leading movie magazine of the day, Film India, called it "politically obsolete", it enjoyed success at the box office. Sangram was a crime drama in which Nalini played the heroine reforming the anti-hero. She and Ashok Kumar performed together in other films, such as Jalpari (1952), Kafila (1952), Nau Bahar (1952), Saloni (1952), Lakeeren (1954), Naaz (1954), Mr. X (1957), Sheroo (1957) and Toofan Mein Pyar Kahan (1963).
Nalini remained an important leading actress through the mid-1950s, appearing in such films as Rahi (1953), Shikast (1953), Railway Platform (1955)), Nastik (1954), Munimji (1955), and Hum Sab Chor Hain (1956). The 1958 film, Kala Pani, directed by Raj Khosla, was Nalini's last successful movie, for which she won the Filmfare Best Supporting Actress Award. Bombay Race Course (1965) was the last film she made, aside from a 1983 film appearance


W B C F :
https://www.facebook.com/sanjog.walter/posts/1039066996119583?pnref=story 

Wednesday, 11 February 2015

यज्ञ का रथ - घोडा उनके ही अंश ने रोका था किसी और ने नहीं ।। तब भी और अब भी ------- अरविन्द विद्रोही

Arvind Vidrohi 59 mins · शुभ संध्या -- मित्रों - मित्रानियों:
https://www.facebook.com/arvind.vidrohi/posts/818892338147018
 दिल्ली विधानसभा का चुनावी परिणाम आने के पश्चात् टी वी पर चर्चाओं में , अख़बारों में और सोशल मीडिया में हर जगह एक बात जरुर इंगित हुई कि नरेन्द्र मोदी - भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ का रथ / घोडा दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल - आआपा ने रोक लिया । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बरबस बोल ही पड़े कि दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने मोदी को सबक सिखाया और हम अब उत्तर प्रदेश में बड़ा दांव देंगे ,पटखनी देंगे । शायद अखिलेश यादव यह भूल गए हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से बड़ी विजय समाजवादी पार्टी उनके युवा नेतृत्व में 2012 के आम विधान सभा चुनाव में हासिल कर चुकी है । कुछ समाजवादियों का तो मानों भाग्य उदय हो गया हो दिल्ली में आआपा की जीत से । बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार से लेकर दिल्ली की सड़क तक बिहार के जनता दल यू विधायकों को मानो बगल में दबाये भ्रमण कर रहे हैं , उनको बहुत भय है कि तनिक से ढील हुई तो जो किसी तरह सहेजे हैं वो भी मटियामेट हो जायेगा । लेकिन वे दुसरे पर हर तरह का आरोप लगाने से नही चूक रहे हैं । पुनः बिहार का मुख्यमंत्री बनने के पुरे प्रयास में लगे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू इस बार दिल्ली में एक भी सीट पर चुनाव नही लड़ी जबकि उनका संगठन भी है और पिछले चुनाव में लडे जीते भी थे । लेकिन बिहार में जीतन राम मांझी के कुर्सी छोड़ने के इंकार से उठे दर्द को तनिक राहत देने के लिए दवा दिल्ली में भाजपा की करारी शिकस्त ने नीतीश कुमार को दे ही दिया । और नीतीश कुमार कहते भी हैं -- दिल्ली ने मोदी सरकार के खिलाफ जनादेश दिया है ।। एक बात तो सभी के सामने है कि आआपा को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ दिल्ली में और अगर नीतीश कुमार सहित तमाम नेताओं को लगता है कि यह दिल्ली का जनादेश नरेन्द्र मोदी के खिलाफ , केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ पुरे देश का मन है तो क्या यह सत्य नही है कि यह जनादेश अरविन्द केजरीवाल - आआपा को हासिल हुआ है और कांग्रेस को तो बिलकुल ही ख़ारिज कर दिया जनता ने । और अगर दिल्ली का यह जनादेश पुरे देश की जनता के मन को प्रदर्शित करता है तो इस तथ्य को कहने मानने वाले समस्त नेताओं को निश्चित रूप से अब अरविन्द केजरीवाल -- आआपा का नेतृत्व स्वीकारना चाहिए । क्यूंकि इन सभी बधाई पर बधाई प्रेषित करने वाले सभी सामाजिक न्याय के समाजवादी पुरोधाओं की दृष्टि में दिल्ली की भाजपा की करारी हार से मोदी का घमंड टुटा और उनके झूठे वायदों की कलई खुली । खैर हार जीत के कारण के विश्लेषण में न जाकर मैं जनता परिवार के धुरंधरों का ध्यान आआपा नेता योगेन्द्र यादव के कथन कि अब हम पुरे देश में भाजपा मोदी विरोधी दलों को एकजुट करेंगे की तरफ आकृष्ट कराना चाहता हूँ । क्या जनता परिवार के आपके एकीकरण का प्रयास निष्फल हो चुका है ?? 

 अब बात हो अश्वमेघ यज्ञ के रथ / घोड़े की । दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद यह उदाहरण अनवरत जारी है सो मेरा भी हस्तक्षेप जरुरी ही है । यह उदाहरण आया अयोध्या के सूर्यवंशी राजा रामचंद्र के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान तत्कालीन परंपरा अनुसार छोड़े गए रथ को दो वनवासी बालक लव एवं कुश के द्वारा अपनी बाल सुलभ चंचलता के कारण रोक लेने से । लंका विजय के पश्चात् वनवासी राम से अयोध्या के राजा बने राम के अनुज लक्ष्मण ,हनुमान सहित सम्पूर्ण वीर अपनी अपनी शक्ति में चूर थे । बाल सुलभ चंचलता में , अश्व - रथ पसंद आने के कारण रथ को रोक चुके लव - कुश से अयोध्या के राजा राम के शक्ति मद में चूर वीर हारे , घायल हुए और मुँह की खाए । अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा दो वीर बालकों ने रोका था । वे वनवासी बालक थे , अपनी माँ के साथ ऋषि के आश्रम में रहते थे । स्वाभाविक था तमाम वीरों को शिकस्त देने के पश्चात् माँ और ऋषि गुरु को सूचित करना ।। अंत में अब होता क्या है ? ऋषि अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा देखकर वीर लव कुश को बताते हैं कि यह तो तुमने गलत किया । यह तो उनका रथ है जिनके तुम अंश हो । यह अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा तो अयोध्या के सूर्यवंशी राजा राम का है और इसे छोड़ दो । यह यज्ञ पूरा होना अति आवश्यक है और ऋषि गुरु के आदेश को शिरोधार्य करते हुए वीर लव- कुश अश्वमेघ यज्ञ के रथ - घोड़े को छोड़ देते हैं । तत्कालीन कथा के अनुसार ही लव - कुश के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के इस रथ - घोड़े को पकड़ कर फिर छोड़ने के पश्चात् किसी ने भी उस वक़्त अश्वमेघ यज्ञ के उस घोड़े को पकड़ने की चेष्टा नही की थी । लंका विजय करने वाले सभी वीरों का गर्व भी चकनाचूर हुआ , अयोध्या के राजा राम के वनवासी पुत्रों लव - कुश का बाहुबल भी स्थापित हुआ और अश्वमेघ यज्ञ भी पूरा हुआ ।। तो दिल्ली के चुनावी परिणामों के पश्चात् अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की उपमा से क्या समझा जाये ? पत्रकारों की कलम ने भी अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े का जिक्र किया और श्री मुख ने भी । समाजवादियों ने भी खूब यह बात दोहराई तो क्या अब भी यह बात आप के समझ में न आई कि जब चर्चा अश्वमेघ यज्ञ के रथ घोड़े को रोकने की होगी तो ध्यान देना चाहिए कि रथ रूका तो परन्तु क्या रूका ही रहा ? और रथ रोका किसने था उस युग में भी और इस युग में भी ?? रथ रुका तो पर छोड़ने के पश्चात् अयोध्या के राजा राम का अश्वमेघ यज्ञ सकुशल विधिवत पूरा भी हुआ और रथ - घोडा रोककर ख्याति अर्जित करने वाले वीर बालक लव - कुश अयोध्या समारोह में शामिल भी हुए और कालांतर में अयोध्या के शासक भी हुए । और यह उदाहरण पेश करने वालों को क्या यह कथा ज्ञात नही थी ? अगर नही थी तो जान लीजिये कि अयोध्या के राजा राम के अश्वमेघ यज्ञ का रथ - घोडा उनके ही अंश ने रोका था किसी और ने नहीं ।। तब भी और अब भी
 ------- अरविन्द विद्रोही