Thursday, 27 December 2012

धिक्कार है ऐसे वक्तव्यों व प्रवचनों को ---विजय राजबली माथुर



महिला वैज्ञानिक बोलीं- लड़की छह लोगों से घिर गई थी तो समर्पण क्यों नहीं कर दिया?
Dainik Bhaskar News  |  Dec 27, 2012, 09:49AM IST

 http://www.bhaskar.com/article/MP-IND-delhi-gang-rape-woman-scientist-illogical-statement-4127693-NOR.html
 
खरगोन। पुलिस विभाग ने खरगोन में एक सेमिनार रखा। विषय था-महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता। लेकिन इसमें वक्ता जितने असंवेदनशील हो सकते थे, हुए। हैरत यह है कि इनकी सिरमौर रहीं एक महिला कृषि वैज्ञानिक। डॉ. अनीता शुक्ला। ये लायंस क्लब की अध्यक्ष भी हैं।
मंच से डॉ. अनीता शुक्ला ने दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले में पीडि़ता को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। उन्होंने कहा- महिलाएं ही पुरुष को उकसाती हैं। डॉ. शुक्ला यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने और भी सवाल उठाए। उनका सवाल था 10 बजे रात को लड़की घर से बाहर क्या कर रही थी? फिर कहा- ब्वॉय फ्रेंड के साथ रात को बाहर निकलेगी तो यही होगा। पुलिस कहां तक संरक्षण देगी। उन्होंने पीडि़ता के प्रतिरोध को भी उसका दुस्साहस बता दिया। उनका कहना था हाथ पांव में दम नहीं, हम किसी से कम नहीं। (पूर्व महिला सांसद ने दी नसीहत- तन ढंक कर रखें लड़कियां)
छह लोगों से घिरने पर लड़की ने चुपचाप समर्पण क्यों नहीं कर दिया। कम से कम आंते निकालने की नौबत तो नहीं आती। उन्होंने कानूनों की बात भी की। उनका निष्कर्ष था सुविधाओं और अधिकारों का महिलाओं ने गलत इस्तेमाल किया है। इसलिए ऐसे मामलों में पुलिस का रवैया बिलकुल ठीक है। असंवेदनशीलता का आलम यह रहा कि इस भाषण पर वहां मौजूद ज्यादातर अफसर मौन रहे।
लेकिन भास्कर ने रात को डॉ. अनीता से फिर बात की। पूछा कि पूरा देश जिस मामले को लेकर इतना संवेदनशील है, तब  आप ऐसा क्यों कह रही हैं? उन्होंने फिर वही बातें दोहराईं और कहा-देखिए, मेरी उस पीडि़ता के प्रति पूरी संवेदना है लेकिन ऐसी घटनाओं को महिलाएं ही समझदारी दिखाकर रोक सकती हैं।  सेमिनार में एडिशनल एसपी एसएस चौहान, एसडीओपी आरबी दीक्षित, एसडीओपी भीकनगांव कर्णसिंह रावत, सीएमएचओ डॉ. विराज भालके, खनिज निरीक्षक रश्मि पांडे, आरआई अनिल राय भी उपस्थित थे।

वे क्या बोलेंगी, इसकी स्क्रीनिंग कैसे करते
हमने सेमिनार में डॉ. शुक्ला को बुलाया था। वे क्या बोलेंगी इसकी कोई स्क्रीनिंग करना संभव भी नहीं था। उन्होंने निजी विचार व्यक्त किए। मंै उनसे सहमत नहीं हूं।
- एस.एस.चौहान, एडिशनल एसपी, खरगोन

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Giridhari Goswami अगर लडकी समर्पण कर देती तो उसका शारीरिक नुक्सान कम होता , इसे इसी रूप में लेना चाहिए. बोकारो में मोनिका का बलात्कार बीस लोगो ने किया पर उन्हें उतना नुक्सान नही हुआ जितना इस लड़की को हो रहा है. एक को छोड़ १७ आरोपी साजा भूगत रहे हैं.
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आज की ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ की उपभोक्तावादी संस्कृति पूरा कर दे रही है। इसमें प्रचार माध्यमों की पूरी ताकत से पुरूषों को उकसाया जा रहा है कि औरतों के शरीर को दबोचो, वह तुम्हारे उपभोग की वस्तु है। औरत या लड़की महज शरीर मात्र है और वह तुम्हारे उपभोग के लिए है। और जब इस घृणित कारोबार का वीभत्स परिणाम सामने आता है तो वही कारोबारी ‘फांसी-फांसी’ को कोलाहल शुरू कर देते हैं।

बलात्कार और यौन हिंसा आज के पतित पूंजीवाद का हिस्सा है। यह कोई अपवाद या अतिरेक में बहाव नहीं है। इसीलिए इससे मुक्ति पूंजीवाद के खात्मे की मांग करती है। मजदूर वर्ग को, खासकर महिला मजदूरों को यौन हिंसा के मामले में भी अपनी क्रांतिकारी पहलकदमी प्रदर्शित करनी होगी और यौन हिंसा के लिए समूचे पूंजीवाद को कठघरे में खड़ा करना होगा।

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16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के बसंत विहार क्षेत्र मे घटित जघन्य कांड पर जनांदोलन भी हो रहे हैं विभिन्न विद्वानों के विभिन्न विचार भी सामने आ रहे हैं और लोग उपाय भी सुझा रहे हैं। परंतु नितांत महत्वपूर्ण तथ्य को सभी पक्ष नज़र अंदाज़ करते जा रहे हैं। लगभग  1300 वर्षों पूर्व विदेशियों द्वारा हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति को विकृत रूप मे पेश करने का जो अभियान चला था वह आज पक्का पौराणिक आख्यान बन चुका है और उसी के कारण समाज का निरंतर पतन होता जा रहा है,नैतिक मूल्य लगभग नष्टप्राय हैं। 

जगह-जगह भागवत प्रवचनों मे मिथ्या पाठ पढ़ाया जा रहा है कि,श्री कृष्ण गोपियों के वस्त्र हरण कर 'कदंब' पर चढ़ गए और उनको यमुना से बाहर निर्वस्त्र आने पर बाध्य कर दिया । वृन्दावन मे तो रास-लीला बाकायदा बड़ी धूम-धाम से चलती है। 
इसी प्रकार राम द्वारा स्वर्ण नखा (सूपनखा)को विवाह हेतु लक्ष्मण के पास और लक्ष्मण द्वारा राम के पास भेजने के कुत्सित प्रसंग विदेशी षड्यंत्र हैं। 
किन्तु ढ़ोंगी-पाखंडी लोग इन खुराफ़ातों को धर्म के रूप मे पेश करते हैं जिनको व्यापार जगत के दान से प्रोत्साहित किया जाता है। अतः 'हस्तक्षेप'मे व्यक्त आह्वान एक सार्थक पहल है। लेकिन इसी के साथ-साथ पोंगा-पंथ के विरुद्ध भी जनता को जाग्रत करने की आवश्यकता है। तथा कथित 'बापुओं' 'सन्यासियों' की पोल खोलने की आवश्यकता है और 'कुम्भ स्नान' के नाम पर हो रहे जनता के मानसिक शोषण के विरुद्ध भी आवाज़ बुलंद करने की ज़रूरत है। 
लेकिन दुर्भाग्य से प्रदेश व केंद्र सरकारें इस प्रकार के ढोंग-पाखंड को कारपोरेट के दबाव मे सहयोग व समर्थन दे रही हैं। जनता गुमराह है उसे 'सन्मार्ग' दिखाने वाला कोई 'नेतृत्व कारी तत्व' नज़र नहीं आ रहा है। यदि कोई पाखंड-आडंबर-ढोंग के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करता है या लेखनी चलाता है तो उसे 'धार्मिक भटकाव' कह कर तथाकथित प्रगतिशील हतोत्साहित करते हैं और ढ़ोंगी तो प्रबल प्रहार करते ही हैं। 

यदि समाज से चरित्र हीनता को समाप्त करना है तो गलत को गलत कहने का साहस जुटाना ही होगा अन्यथा थोथे शोर गुल व हुल-हपाड़े से कुछ नहीं होने वाला है।











2 comments:

  1. नैतिक मूल्यों का पतन, उत्तर आधुनिकता, समाज और मनोरंजन जगत में बढ़ती अश्लीलता, अक्षम कानून, भ्रष्ट पुलिस-प्रशासन तंत्र, युवाओं के बीच पनपता बिंदासपन और अभिभावकों की लापरवाही... ऐसे अनेक कारक बलात्कार और उत्पीड़न के कारक होते हैं। बहस में सभी अपना-अपना मत रखते हैं । कुछ लोग सटीक ढंग से अपनी बात कह पाते हैं । कुछ लोग स्वयं को ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पाते । कुछ लोग वास्तव में मानसिक रूप से दीवालिये होते हैं और इसीलिए अनर्गल प्रलाप करते हैं । अब पता नहीं यह महिला किस प्रकार की हैं ? इसलिए इन्हें मैं 'संदेह का लाभ' दे रहा हूँ ।

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  2. सुशीला श्योराण की फेसबुक पर टिप्पणी---

    इनको शर्म आनी चाहिए ! कल से हैरान हूँ काहे की PHD हैं ये? खरीदी हुई डिग्री लग रही है मुझे क्योंकि शिक्षा से तो इनका दूर का भी वास्ता नहीं ! यदि इनके साथ भी ऐसा होगा तो क्या ये समर्पण करेंगी? धिक्कार है ऐसी सोच पर !

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