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यदि सिर्फ शुभकामनायें काम आ सकती हैं तो हमारी शुभकामनायें अग्रिम रूप से सम्मेलन की सफलता हेतु हैं।
आर एस एस नियंत्रित केंद्र सरकार से त्रस्त जनता स्वतः साम्यवाद/वामपंथ की ओर आकर्षित होगी और केंद्र में वामपंथी सरकार को सत्तारूढ़ कर देगी ऐसी सोच लगभग सभी विद्वानों की है। चूंकि मैं विद्वान नहीं हूँ इसलिए व्यवहारिक दृष्टिकोण से सोचता हूँ जो सैद्धान्तिक कहलाने वाले विद्वानों को अखरता है।
गत वर्ष 30 सितंबर की सफल रैली के बाद मैंने लिखा था :
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html
तब से अब तक एक वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है और उस रैली का कोई लाभ पार्टी को मिला हो ऐसा दृष्टिगोचर नहीं होता। अतः मेरा आंकलन गलत नहीं था। न तो लोकसभा चुनावों में न ही विधानसभा के उप चुनावों में पार्टी को कोई लाभ हो सका है। न ही सांगठनिक रूप से पार्टी को बढ़त मिली है। गत माह सम्पन्न लखनऊ के पार्टी ज़िला सम्मेलन में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार तीन वर्षों में पार्टी से 168 सदस्य कम हुये हैं। यह तब है जबकि लखनऊ के पार्टी इंचार्ज लखनऊ के ही हैं और इस प्रकार जिलामंत्री को प्रभावित करते रहे हैं;बल्कि उनका तो दावा है कि वही अकेले पूरी प्रदेश पार्टी को चला रहे हैं।
यदि इसे संकेत समझा जाये तो अन्य जिलों में भी ऐसा ही हुआ होगा। एक तरफ राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता पर संकट है दूसरी ओर संगठन को कमजोर किया गया है और अपेक्षा है कि जनता स्वतः पार्टी की ओर आकर्षित होगी। महिमामंडित उत्पीड़क पदाधिकारी राज्यसचिव का रैली से पूर्व यह कह कर मज़ाक उड़ाते रहे हैं कि वह रैली के ग्लेमर में फंसे हुये हैं। वह शख्स निजी हितों के कारण पार्टी की बढ़त नहीं होने देना चाहते हैं और जबकि नए लोग आ नहीं रहे हैं पुराने लोगों को भी हटाने के उपक्रम करते रहते हैं। अपने ही एक राष्ट्रीय सचिव के प्रति घृणा भाव रखते हैं। उनके एक बयान को पार्टी के अधिकृत ब्लाग में पोस्ट करने के कारण मुझे ब्लाग आथर व एडमिनशिप से हटा दिया था और अब पूर्व घोषणानुसार ज़िला काउंसिल से ।
जब तक पार्टी का विस्तार करने और जन-समर्थन हासिल करने का प्रयास नहीं होता तब तक कोई भी सम्मेलन पार्टी के लिए लाभप्रद नहीं होगा। देश के अपने प्रतीकों व उदाहरणों से जनता को साम्यवाद/मार्क्स वाद के प्रति आकर्षित किया जा सकता है किन्तु उक्त प्रभावशाली पदाधिकारी इसके पक्ष में नहीं हैं और अन्य लोग उनसे अत्यधिक प्रभावित हैं ।वह मूलतः केजरीवाल और कल्याण सिंह समर्थक हैं । 06 दिसंबर 2014 को एक स्टेटस द्वारा मैंने एक बार पुनः केजरीवाल की असलियत सामने रखी है:
फिर भी हम अल्लाहाबाद सम्मेलन की सफलता की कामना करते हुये अग्रिम शुभकामनायें देते हैं।
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