Friday 5 December 2014

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियां पता नही कब ऐसा कदम उठाएंगी ? ........Roshan Suchan


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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियां पता नही कब ऐसा कदम उठाएंगी ?........

भारतीय राजनीत में 16 मई के बाद पैदा हुई स्थितियों के बाद कभी जनता दल परिवार का हिस्सा रहे 6 दलों ने विलय कर नई पार्टी समाज़वादी जनता दल बनाने का फैंसला किया है , जिसमे सपा , जद(यू) , राजद , इनैलो , जद(एस ) ,समाज़वादी जनता पार्टी शामिल हैं …… इसकी शुरुआत आम चुनावों में बुरी तरह हारने पर बिहार और यूपी में हुए उपचुनावों के बाद नितीश , ल
ालू और मुलायम के साथ आने के बाद हुई थी। फिर हरियाणा के चुनावों में चौटाला की पार्टी इनैलो के समर्थन में सपा , जद(यू) , राजद , इनैलो , जद(एस ) के बड़े नेता सक्रिय रूप से शामिल हुए थे. तभी से ये कयास लगाये जा रहे थे की ये तमाम दल एक राष्ट्रीय पार्टी बना सकते हैं। ७ नवम्बर २०१४ के बाद फिर से कल मुलायम के निवास पर हुई बैठक मे इन दलों ने आपस में विलय कर नई पार्टी बनाने की घोषणा की है । हलांकि बीजेपी और कांग्रेस की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध कोई नया कार्यक्रम नहीं है इन दलों का। पिछले एक दशक से वामपंथी पार्टियां भी देश भर में कमजोर हुई हैं , दुनिया भर के मेहनत कशों को एक होने की बात करने वाले हमारे अपने साथियों ने लाल झंडे को भी नहीं बक्शा बीसियों टुकड़े कर उसकी लीरें बनाकर देश की आवाम से गद्दारी की है। अब जब केंद्र और राज्यों में दक्षिणपंथी हावी हो रहे हैं तो सभी वाम भाकपा , माकपा , माले , न्यू डैमोक्रेसी , एस. यु. सी. आई , आर. एस. पी , एफ बी सहित सभी को जनता परिवार की तरह विलय कर एक नई कम्युनिस्ट पार्टी बनानी चाहिए जो आधुनिक भारत की आवाम का नेतृत्व कर सके। सभी कामरेड्स चाहे वो किसी भी दल से हो अपने अपने दल पर इसके लिए भी काम करना होगा। पार्टी कार्यक्रम , नीतियां , रणनीति , कार्यनीति पर बहस होकर नई पार्टी लाइन बनाई जा सकती है. अब वाम एकता नही विलय की जरूरत है . भाकपा और माकपा को इसकी फेल करनी चाहिए और अपने होने वाले राष्ट्रीय महाधिवेशनों से इसकी शुरआत करनी चाहिए …अगर इस पर दोनों सोचें और काम करें तो वह दिन दूर नहीं जब लाल झंडा हिन्दोस्तान की सबसे बड़ी ताकत बनेगा ...................

  • Nasirul Haque Comrade Roshan Such an main 1993 se yeh baat Kah raha hoon lekin yeh log sun nahi rahen hai sabhi vampanthi cader ko netaon per davao banana padega

    • Roshan Suchan Shikha Singh :जनता परिवार (राजद, जदयू , सपा , जदसे, inld) के वापस विलय की संभावना बढ़ने के बाद कई लोग कम्युनिस्ट "परिवार" को सीख दे रहे हैं कि आप भी साथ मिल जाएं और एक हो जाएं l ये विचार मुझे इसीलिए बेहद हास्यास्पद लगता है क्यूंकि ऐसे मशवरे देने वाले न जनता परिवार को सही से समझ पाएं हैं न कम्युनिस्ट विचारधारा को l बुर्जुवा जनता परिवार का जन्म और बिखराव भी बुर्जुवा वर्ग की अवसरवादी राजनीति का नमूना था और उसका पुनर्मिलन भी इसी निम्नस्तरीय बुर्जुवा अवसरवादी राजनीति का नमूना है l पहली बात तो येकि इसे आधार बनाकर कम्युनिस्ट पार्टियों को "इस तरह" के विलय की सीख देना ही हास्यास्पद है l दूसरा, कम्युनिस्ट पार्टियों में एकता उनकी विचारधारा की एकता तय करती है न कि संसद में गोते लगाने की छटपटाहट में जनता परिवार की तरह हरे-नीले बगुलों का अवसरवादी मिलन और एकता l हमारी पार्टी का जन्म ही संशोधनवादी सीपीआई और सीपीएम के ख्रुश्चेवपंथी लाइन के विरुद्ध महान नक्सलबाड़ी आन्दोलन की गर्भ से माओवादी लाइन पर हुआ था l इसीलिए हमारे लिए वामपंथी एकता सिर्फ और सिर्फ ख्रुश्चेवपंथी सीपीआई-सीपीएम सरीखी संशोधनवादी पार्टियों से विचारधारात्मक संघर्ष करके और क्रांतिकारी मार्क्सवादी लेनिनवादी लाइन को तमाम कम्युनिस्ट कतारों में स्थापित करके ही संभव है न कि परस्पर विरोधी लाइनों को ज़बरदस्ती एक दूसरे के साथ चिपकाने में l इसीलिए ऐसी सीख देने वालों से अनुरोध है कि लालू , मुलायम , नितीश , चौटाला , देवेगौड़ा जैसे जोकरों का अनुसरण करने के बजाए विचारधारा का अनुसरण करें तो बेहतर परिणाम आएँगे , विचारधारात्मक स्तर पर भी और ज़मीनी स्तर पर भी // "comrade उनके अनुसरण को किसने बोला है ? यहां जबरन विलय की बात कहाँ हो रही है ? हम भी मार्क्सवादी लेनिनवादी लाइन को तमाम कम्युनिस्ट कतारों में स्थापित करने की ही बात कर रहे हैं ?
    जब नक्सलबाड़ी आंदोलन घटित हुआ था तो वहाँ से कोई आठ मील दूर ही हम लोग सिलीगुड़ी के आश्रम पाड़ा में चौरंगी मिष्ठान भंडार के स्वामी संतोष घोष साहब के मकान के एक कमरे में बतौर किरायेदार रहते थे। न्यू मार्केट में मारवाड़ियों की जली दुकानें भी हमने देखी थीं और इंश्योरेंस से मिले मुआवजे के बाद फिर से बनी भी। नक्सल बाड़ी आंदोलन ने मारवाड़ी व्यापारियों की 'किस्मत' चमका दी थी। नुकसान से कहीं बहुत ज़्यादा मुआवजा उन पीड़ित व्यापारियों ने पा लिया था। लेकिन इस घटना के बाद बंगाली कामगारों को हटा दिया था और बाहर के लोगों को नौकरी पर रखा था। इसका वर्णन पूर्व में ब्लाग पर किया भी था। :
    मैंने 14 मई 2011 को ब्लाग में एक लेख के माध्यम से यह सिद्ध करने का प्रयास किया था कि भारत में कम्यूनिज़्म को भारतीय संदर्भों का प्रयोग करके जन-प्रिय बनाया जा सकता है । किन्तु उत्तर प्रदेश भाकपा में प्रभावशाली एक बैंक कारिंदा इसी वजह से मेरा प्रबल विरोध व उत्पीड़न करता है। जबकि इन निष्कर्षों से लाभ उठा कर कम्यूनिज़्म को मजबूत करने की नितांत आवश्यकता है।


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