Sunday 14 December 2014

भगत सिंह , चार्ली चैप्लिन और राज कपूर .....Roshan Suchan


शो मैन को सालगिरह पर याद करते हुए:

भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे और वो चार्ली को " 4 फुट का अमेरिकन नौटंकीबाज़ कहते थे। गुस्से में आज़ाद बोलते थे उसकी फ़िल्में देख देख के क्रांति लाएंगे … ? जवाब में राजगुरु कहते थे - बहुत बड़ा एक्टर है जी .... इस पर आज़ाद और भी आग बबूला हो जाते थे। भगत सिंह कहीं पीछे से तमाशा देखते थे।
वही चार्ली चैप्लिन भगत सिंह और साथियों के भी हीरो थे जब जर्मनी में हिटलर की तानाशाही से सभी खौफजदा थे तब उस दौर में एक कलाकार लोगों में व्याप्त डर को मिटाकर उनमें सुंदर कल्पना को साकार करने निकल पङा था। राह आसान नही थी पर हौसला बुलंद था। गरीबी और बदहाली की भट्टी में पक कर वो कुंदन बना चुका था। जिसकी चमक ने करोङों लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। ऐसे हास्य महानायक का जन्म आज से 125 वर्ष पूर्व हुआ था और आज भी उनकी फिल्में पूरे विश्व को हँसा रही हैं। वो कोई और नहीं बल्कि हम सबका प्रिय हास्य कलाकार चार्ली चैप्लिन है. चार्ली की फिल्मों में दुःख, दरिद्रता, अकेलापन तथा बेरोजगारी का चित्रण किया गया है. जिसने फिल्मी हास्य और प्रहसन की दुनिया के इस सिरमौर ने हास्य का ऐसा स्वरूप रचा, जिसमें विनोद के साथ-साथ संवेदनशीलता, विचार, व्यंग्य और क्रूर व्यवस्था पर प्रहार भी था। चार्ली चैप्लीन हास्य की दुनिया के इकलौते ध्रुवतारा हैं जिसका कोई विकल्प नही है। चार्ली को कम्युनिस्ट होने के आरोप में अमेरिका में इस तरह सताया गया कि चालीस साल इस देश में बिताने के बाद उन्हें हार कर स्विटजरलैंड में जाकर बसना पड़ा …।
खेर , ऐसे महान कलाकार की शख्शियत का भारतीय सिनेमा और उसके कलाकारों पर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। अवाम के दुःख तख़लीफ़ों और अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ कलाकारों का थिएटर इप्टा खड़ा करने वाले और भारतीय सिनमा के भीषम पितामह कहे जाने वाले और पृत्वीराज़ कपूर जो कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़कर अभिनय में आये थे. उनके बेटे राज कपूर भी चार्ली चैपलिन के इतने प्रशंसक थे और उनके अभिनय में चार्ली चैपलिन का पूरा पूरा प्रभाव पाया जाता था| राज कपूर को भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता है। आज उनका जन्मदिन भी है ......................

भारतीय सिनमा में उनके महान योगदान पर आइये उन्हें याद करते हैं :-
राजकपूर ने अपने सिने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार 1935 में, जब उनकी उम्र केवल 11 वर्ष थी फिल्म 'इंकलाब' से की। राज कपूर प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक थे।पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा। यही कारण था कि राज कपूर ने 10वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इस मनमौजी ने अपने विद्यार्थी जीवन में किताबें बेचकर खूब केले, पकोड़े और चाट खाई.हिन्दी फ़िल्मों में राज कपूर को पहला शोमैन माना जाता है क्योंकि उनकी फ़िल्मों में मौज-मस्ती, प्रेम, हिंसा से लेकर अध्यात्म और समाजवाद तक सब कुछ मौजूद रहता था और उनकी फ़िल्में एवं गीत आज तक भारतीय ही नहीं तमाम विदेशी सिने प्रेमियों की पसंदीदा सूची में काफ़ी ऊपर बने रहते हैं नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित अपनी शुरूआती फिल्मों से लेकर प्रेम कहानियों को मादक अंदाज से परदे पर पेश करके उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए जो रास्ता तय किया, इस पर उनके बाद कई फिल्मकार चले। भारत में अपने समय के सबसे बड़े 'शोमैन' थे। सोवियत संघ और मध्य-पूर्व में राज कपूर की लोकप्रियता दंतकथा बन चुकी /सोवियत संघ में भी भारत के इस महान अभिनेता के निधन पर गहरा शोक मनाया गया था। उनकी "आवारा" फिल्म तो इस देश में बेहद लोकप्रिय हुई थी 1953 इसी साल सोवियत संघ में भारतीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया जहां राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’ बड़ी हिट साबित हुई।
है। राज कपूर की फिल्मों की कहानियां आमतौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती थीं और अपनी ज्यादातर फिल्मों के मुख्य नायक वे खुद होते थे
उनके पिता पृथ्वीराज कपूर को विश्वास नहीं था कि राज कपूर कुछ विशेष कार्य कर पायेगा, इसीलिये उन्होंने उसे सहायक या क्लैपर ब्वाय जैसे छोटे काम में लगवा दिया था| केदार शर्मा ने राज कपूर के भीतर के अभिनय क्षमता और लगन को पहचाना और उन्होंने राज कपूर को सन् 1947 में अपनी फिल्म नीलकमल, जिसकी नायिका (heroine) मधुबाला थी, में नायक (hero) का काम दे दिया| 24 साल की उम्र में ही अर्थात सन् 1948 में उन्होंने अपनी स्टुडिओ, आर.के. फिल्म्स, की स्थापना कर लिया था और उस समय के सबसे कम उम्र के निर्देशक बन गये थे| सन् 1948 में उन्होंने पहली बार फिल्म 'आग' का निर्देशन किया और वह अपने समय की सफलतम फिल्म रही|
राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी सफलतम फिल्मी जोड़ियों से एक थी, उन्होंने फिल्म आह, बरसात, आवारा, श्री 420, चोरी चोरी आदि में एक साथ काम किया था|
बॉबी फिल्म की सफलता के बाद राज कपूर ने अपनी अगली फिल्म सत्यं शिवं सुन्दरं बनाई जो कि फिर एक बार हिट हुई| इस फिल्म के के क्लाइमेक्स में बाढ़ का दृश्य था जिसे फिल्माने के लिये अपने खर्च से नदी पर बांध बनवाया और नदी में भरपूर पानी भर जाने के बाद बांध को तुड़वा दिया जिससे कि बाढ़ का स्वाभाविक दृश्य फिल्माया जा सके| इस दृश्य के फिल्मांकन हो जाने के बाद जब उसे राज कपूर को दिखाया गया तो दृश्य उन्हें पसंद नहीं आया और एक बार फिर से लाखों रुपये खर्च करके राज कपूर ने बांध बनवाया तथा उस दृश्य को फिर से शूट किया गया|

सत्यं शिवं सुन्दरं के बाद राज कपूर की अगली सफल फिल्म राम तेरी गंगा मैली रही| राम तेरी गंगा मैली बनाने के बाद वे हिना के निर्माण में लगे थे जिसकी कहानी भारतीय युवक और पाकिस्तानी युवती के प्रेम सम्बंध पर आधारित थी| हिना के निर्माण के दौरान राज कपूर की मृत्यु हो गई और उस फिल्म को उनके बेटे रणधीर कपूर ने पूरा किया|

राज कपूर को सिने प्रेमी दर्शकों के साथ ही साथ फिल्म आलोचकों से भी भरपूर प्रशंसा मिली| वे चार्ली चैपलिन के प्रशंसक थे और उनके अभिनय में चार्ली चैपलिन का पूरा पूरा प्रभाव पाया जाता था| राज कपूर को भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता है| राज कपूर की फिल्मों ने सोवियत रूस, चीन, आफ्रीका आदि देशों में भी प्रसिद्धि पाई| रूस में तो उनकी फिल्मों के हिंदी गाने भी अत्यंत लोकप्रिय रहे हैं विशेषकर फिल्म आवारा और श्री 420 के|

उनके बारे में यही कहा जाता था कि वह फिल्म में अपनी हीरोइनों से प्रेम करने लगते थे।

कहते हैं कि एक पार्टी में बैजयंती माला को लेकर राज कपूर, राजेंद्र कुमार से झगड़ भी पड़े थे। कुछ किस्से हैं इस फिल्म के। एक बार बैजयंती माला शूटिंग के लिए समय नहीं निकाल पा रही थी, तब राज ने एक खत उन्हें मद्रास भेजा था, संगम होगा या नहीं। वैसे त्रिकोण प्रेम पर बनी 'संगम' बहुत सराही गई थी.
राज कपूर के बारे में एक और दिलचस्प बात है। कहते हैं कि बचपन में राज कपूर सफेद साड़ी पहने हुई एक स्त्री पर मोहित हो गए थे। उसके बाद से सफेद साड़ी से उनका मोह इतना गहरा गया कि उनकी तमाम फिल्मों की अभिनेत्रियां (नर्गिस, पद्मिनी, वैजयंतीमाला, जीनत अमान, पद्मिनी कोल्हापुरे, मंदाकिनी) पर्दे पर भी सफेद साड़ी पहने नजर आईं। यहां तक कि घर में उनकी पत्नी कृष्णा हमेशा सफेद साड़ी ही पहना करती थीं

'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार', 'सजन रे झूठ मत बोलो', 'मेरा जूता है जापानी', 'दुनिया बनाने वाले', 'सब कुछ सीखा हमने', 'दोस्त दोस्त ना रहा' मुकेश के ऐसे सुपरहिट गाने हैं जो आज भी सबकी जबान पर हैं. ये सब गाने राज कपूर पर फिल्माए गए थे. मुकेश ने राज कपूर की इतनी फिल्मों में गाने गए कि उन्हें राज कपूर की आवाज के नाम से जाना जाने लगा. राज कपूर को जब उनकी मौत की खबर मिली तो उनके मुंह से बरबस निकल गया, "मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई."

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