Tuesday 16 December 2014

अच्‍छा इंसान होना बिलकुल दूसरी बात ---Manisha Pandey

एक दिन मां ने फोन पर कहा कि फला अंकल आए थे। वो कह रहे थे कि मनीषा फेसबुक पर लेफ्ट के खिलाफ लिखती रहती है। कुछ शिकायती अंदाज में कि भला बताइए कॉमरेड, आपकी बेटी ही ऐसा लिख रही है।
पापा ने जवाब दिया, "लेफ्ट के खिलाफ नहीं, लेफ्टिस्‍टों के खिलाफ लिखती है। मुझे पता है उसके विचार नहीं बदले। वो मेरी बेटी है।"
इतना गर्व। बात चाहे पॉलिटिकल कमिटमेंट की हो या मेरी लाइफ स्‍टाइल की। पापा हमेशा मेरा बचाव करते हैं और मेरे पक्ष में खड़े रहते हैं। कोई कुछ भी बोले। ये मुमकिन नहीं है कि वो किसी की बातों में आ जाएं। "जनाब, आप कितना जानते हैं उसे। वो मेरी बेटी है। मैं उसकी पैदाइश के दिन से उसे जानता हूं।"
मैं भी पापा की नहीं, बल्कि अपनी पैदाइश के दिन से तो उन्‍हें जानती ही हूं। मुझे पूरा लेफ्ट संसार कितना भी चिरकुट लगे, मैं पापा से यही कहती हूं कि I still believe in this ideology. वजह साफ है। ऐसा नहीं कि पूरी दुनिया में इस विचारधारा का क्‍या हो रहा है, क्‍या लिखा जा रहा है, क्‍या प्रैक्टिस चल रही है, सब मुझे पता है। मैं सब पढ़ रही हूं या काफी अपडेट हूं। नहीं। मुझे कुछ भी नहीं मालूम। अपडेट रहने का वक्‍त नहीं है मेरे पास। मेरी चिंताएं, सवाल दूसरे हैं। मेरी ऊर्जा फिलहाल कहीं और खर्च हो रही है। लेकिन मैं पापा से हर बार यही कहती हूं कि क्‍योंकि मैं उनका दिल नहीं तोड़ना चाहती। मुझे मालूम है कि 65 साल के उस बूढ़े शख्‍स को जिंदा रहने के लिए ये विश्‍वास चाहिए कि लेफ्ट इररेलेवेंट नहीं हुआ है। न्‍याय की विचारधारा जिंदा है। कि ये दुनिया सुंदर होगी एक दिन। लोग काम कर रहे हैं इसके लिए। बदलाव के कारखाने चालू हैं। मुझे भी लगता है, ठीक ही होगा, जो होगा।
लेकिन मेरी जिंदगी का सबक फिलहाल ये है कि राइट-लेफ्ट होना और बात है और अच्‍छा इंसान होना बिलकुल दूसरी बात। वाम मार्ग से तनिक भी सो कॉल्‍ड विचलन देखकर आपका घर-खानदान, जीवन गालियों से तौल देने वाले वाम सिपाही भी बहुत क्रूर, तंगदिल मनुष्‍य हो सकते हैं। बल्कि हैं ही। उनकी पॉलिटिक्‍स जो भी हो, मुझे ऐसे लोगों से सिर्फ डर लगता है।
मेरे लिए एक ही बात के मायने हैं फिलहाल। कि मेरे पिता का दिल न टूटे। प्‍यार का भरोसा बना रहे। कि सबके दिलों की परवाह की जाए। थोड़ा उदार हों, थोड़ा अच्‍छे, थोड़े मानवीय रहें, केंद्र में चाहे जिसकी भी सरकार रहे। कांग्रेस की रहे या बीजेपी की। पापा की, लेफ्ट की विचारधारा ने मुझे जिंदा नहीं रखा है। इस विश्‍वास ने रखा है कि वो मुझसे प्‍यार करते हैं। मेरे साथ खड़े हैं।
मेरी मां भी लेफ्टिस्‍ट नहीं हैं। मुझे सबसे ज्‍यादा प्‍यार करने वाली, हर संकट में मेरा हाथ पकड़ने वाली सहेलियां भी लेफ्टिस्‍ट नहीं हैं। लेकिन अच्‍छी हैं, प्‍यारी हैं। दिल का ख्‍याल रखती हैं। वो मेरे और और मैं उनके दिल का। बाकी लेफ्ट का क्‍या हो रहा है, क्‍या होने वाला है, पता नहीं। पता करने की फुरसत भी नहीं है मेरे पास। मैं तो ये सोच रही हूं कि कल पल्‍लवी आएगी तो उसके लिए गाजर का हलुआ बनाऊंगी।

https://www.facebook.com/manisha.pandey.564/posts/10205667154182873 

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